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अति जनसंख्या या जनाधिक्य (Overpopulation)

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अति जनसंख्या (overpopulation) या जनाधिक्य का अर्थ

जब किसी क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों के विकास की तुलना में वहाँ जनसंख्या वृद्धि की गति तेज होती है जिसके परिणामस्वरूप वहां की जनसंख्या उस क्षेत्र की सामान्य पोषण क्षमता से अधिक हो जाती है और जीवन-स्तर नीचे गिरने लगता है, ऐसी अवस्था को अति जनसंख्या, जनाधिक्य या जनातिरेक की संज्ञा दी जाती है। अनुकूलतम जनसंख्या या संतुलन अवस्था से विचलन (deviation) का परिणाम होती है जिसमें विभिन्न आर्थिक-सामाजिक कारणों से प्राकृतिक संसाधनों का विकास जनसंख्या वृद्धि की गति से नहीं हो पाता है जिसके कारण प्रति व्यक्ति संसाधनों की कमी पड़ने लगती है। 

अति जनसंख्या की स्थिति में भूमि तथा प्राकृतिक संसाधनों पर जनसंख्या का भार लगातार बढ़ता जाता है तथा बेरोजगारी और निर्धनता में वृद्धि होने लगती है। इस प्रकार प्रति व्यक्ति औसत वास्तविक आय और जीवन-स्तर में गिरावट आरम्भ हो जाती है। किसी देश या प्रदेश में जनाधिक्य कई कारणों से उत्पन्न हो सकता है जिनमें जनसंख्या में तीव्र वृद्धि, संसाधनों का अभाव, श्रम की मांग में कमी आदि प्रमुख हैं। जनाधिक्य इनमें से किसी एक कारण से भी उत्पन्न हो सकता है अथवा दो या कई कारणों का मिश्रित परिणाम भी हो सकता है। 

जनसंख्या-संसाधन सम्बन्धों के आधार पर जनाधिक्य को दो वर्गों में रखा जा सकता है, जिनका वर्णन नीचे किया जा रहा है :-

पूर्ण जनाधिक्य (Absolute overpopulation)

ज्ञात प्रौद्योगिकी के अनुसार जब किसी क्षेत्र के संसाधनों का विकास अधिकतम बिन्दु तक हो जाता है और विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है किन्तु जनसंख्या की वृद्धि जारी रहती है, तब ऐसी अवस्था में प्रति व्यक्ति संसाधनों (या प्रति व्यक्ति आय) में कमी होने लगती है और जनसंख्या का जीवन स्तर क्रमशः गिरने लगता है। इस विशिष्ट स्थिति को पूर्ण या सकल जनातिरेक कहा जाता है। 

इस प्रकार की स्थिति वर्तमान विश्व में कम देखी जाती है किन्तु ग्रेट ब्रिटेन, जापान आदि कुछ विकसित देशों में यह परिलक्षित होती है। 

सापेक्ष जनाधिक्य (Relative overpopulation)

सापेक्ष जनाधिक्य की स्थिति वहाँ उत्पन्न होती है जहाँ सम्पूर्ण उत्पादन की मात्रा वर्तमान जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए अपर्याप्त होती है। इसमें संसाधनों का पूर्ण विदोहन नहीं हो पाता है किन्तु नवीन प्रौद्योगिकी के प्रयोग से इसके भविष्य में विदोहन या उत्पादन की सम्भावनाएँ विद्यमान होती हैं। 

भविष्य में उत्पादन स्तर में सुधार और वृद्धि हो जाने पर सापेक्ष जनाधिक्य की स्थिति समाप्त हो सकती है। वर्तमान विश्व में सापेक्ष जनाधिक्य की स्थिति पूर्ण जनाधिक्य की तुलना में अधिक सामान्य है। यह अधिकांशत: छोटे-छोटे विकासशील देशों अथवा बड़े विकासशील देशों के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में व्याप्त है। उन विकासशील देशों में जो जनसंख्या विस्फोट की अवस्था से गुजर रहे हैं और जहाँ जनसंख्या तीव्रता से बढ़ रही है किन्तु विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारणों से आर्थिक विकास की गति अत्यन्त मन्द है, सापेक्ष जनाधिक्य सामान्य हो गया है। 

जनसंख्या की अधिकता केवल राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि एक ही राष्ट्र के अन्दर प्रादेशिक या क्षेत्रीय स्तर पर भी हो सकती है। एक सम्पूर्ण देश ही जनसंख्या आधिक्य की स्थिति में हो सकता है किन्तु ऐसा सामान्यत: छोटे देशों में ही सम्भव हो पाता है क्योंकि उनकी संसाधन संख्या और मात्रा दोनों ही सीमित होती हैं। बड़े देशों में प्रायः स्थानीय या प्रादेशिक स्तर पर जनाधिक्य तो सामान्य है किन्तु विशाल आकार तथा संसाधनों की विविधता के कारण सम्पूर्ण देश इस स्थिति में कम आ पाता है। उदाहरण के लिए चीन का पूर्वी तटीय भाग, इन्डोनेशिया में जावा द्वीप और भारत के उत्तरी मैदान जनाधिक्य की स्थिति में हैं किन्तु सम्पूर्ण देश के सन्दर्भ में ऐसा नहीं है। 

इसी प्रकार यह भी सम्भव है कि संसार के विकसित देशों में भी स्थानीय रूप से जनाधिक्य की स्थिति उत्पन्न हो गई हो। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि जनसंख्या का आधिक्य राष्ट्रीय अथवा प्रादेशिक दोनों स्तरों पर हो सकता है किन्तु उनमें परस्पर साम्य का होना आवश्यक नहीं है। किसी देश के अन्दर क्षेत्र की आर्थिक प्रगति (कृषि एवं उद्योग) के अनुसार जनाधिक्य ग्रामीण (कृषि) और नगरीय (ओद्योगिक) स्तर पर भी पाया जा सकता है। 

अति जनसंख्या या जनाधिक्य के विशिष्ट रूप

ग्रामीण जनाधिक्य और औद्योगिक जनाधिक्य अति जनसंख्या के दो विशिष्ट रूप हैं जिनका विवरण अग्र लिखित है – 

ग्रामीण जनाधिक्य (Rural overpopulation)

जब ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों के विकास की अपेक्षा जनसंख्या तीव्रता से बढ़ जाती है, तब जनाधिक्य या जनातिरेक की स्थिति उत्पन्न होती है जिसे ग्रामीण जनाधिक्य की संज्ञा दी जाती है। ग्रामीण जनाधिक्य तृतीय विश्व (विकासशील देशों) के कृषि प्रधान देशों में अधिक सामान्य है। ऐसे देश सामान्यतः जनसंख्या विस्फोट की अवस्था में हैं जहाँ मृत्युदर की तुलना में जन्मदर अधिक ऊँची है और जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। इन देशों के प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं तथा पिछड़ी प्रौद्योगिकी और पर्याप्त पूँजी के अभाव में अनेक संसाधन अविकसित पड़े हुए हैं जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन का स्तर काफी निम्न है। 

दक्षिणी एवं पूवीं एशिया तथा अफ्रीका के अधिकांश देशों में ग्रामीण जनाधिक्य सामान्य घटना है। ग्रामीण जनाधिक्य से ग्रामीण बेरोजगारी और निर्धनता में वृद्धि होती है तथा जीवन-स्तर में गिरावट आती है और अनेक सामाजिक आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न होती है। 

ग्रामीण जनाधिक्य के कारण

  • ग्रामीण क्षेत्रों में तीव्र प्राकृतिक वृद्धि अर्थात् मृत्युदर की तुलना में जन्मदर का अधिक होना। 
  • कृषि भूमि का सीमित होना तथा अकृषित भूमि का अपूर्ण विकास। ये दोनों ही कृषि क्षेत्र और कृषि उत्पादनों को सीमित कर देते हैं। 
  • ग्रामीण क्षेत्रों में द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्रों के अल्प विकसित होने के कारण रोजगार के अवसर कम होते हैं और प्रति व्यक्ति आय भी बहुत कम होती है जिससे जीवन-स्तर निम्न रहता है।
  • कृषि में यंत्रीकरण से श्रम में कमी हो जाती है जिससे बेरोजगारी को बढ़ावा मिलता है। इससे उत्पादनों में वृद्धि तो होती है लेकिन इसका लाभ बहुसंख्य श्रमिक वर्ग को नहीं मिल पाता है। 
  • किसी भी क्षेत्र में कृषि भूमि के जनसंख्या भार वहन की एक निश्चित सीमा होती है। अतः जनसंख्या में अधिक वृद्धि हो जाने पर जनसंख्या का भरण-पोषण उचित प्रकार से नहीं हो पाता है। यद्यपि नवीन तकनीक के प्रयोग से कृषि क्षेत्र की वहन क्षमता में कुछ वृद्धि की जा सकती है लेकिन वह भी सीमित मात्रा में।
  • कृषकों के मध्य भूमि के असमान वितरण के कारण कृषि उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जहाँ एक ओर कुछ बड़े किसान या जमींदार पूरी भूमि पर खेती नहीं कर पाते हैं जिससे कुछ भूमि परती पड़ी रहती है और प्रति हेक्टयर उत्पादन कम होता है वहीं दूसरी ओर बहुसंख्यक भूमिहीन कृषक या अत्यन्त छोटे (सीमांत) कृषक खेती के अभाव में दूसरे के खेतों पर मजदूरी करते हैं अथवा कुछ समय तक बेरोजगार रहते हैं। 

किसी भी देश के विकास के लिए ग्रामीण जनाधिक्य का हल ढूढ़ना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि उससे देश की आर्थिक प्रगति अवरुद्ध हो जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में जनाधिक्य को कम करने के लिए कुछ ठोस उपाय किए जाने चाहिए जैसे राष्ट्रीय विकास नीति में कृषि विकास पर विशेष बल देना, जनसंख्या नियोजन कार्यक्रम संचालित करना, अवसंरचना (Infrastructure) का विकास करके गैर-कृषि क्षेत्रों के विकास के लिए आधार प्रस्तुत करना, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित उद्योगों तथा विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना आदि। इसके अतिरिक्त सीमित मात्रा में ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों के लिए प्रवास भी इस समस्या के समाधान में सहायक हो सकता है। 

औद्योगिक जनाधिक्य (Industrial overpopulation)

नगरीय केन्द्रों विशेषतः औद्योगिक केन्द्रों में उपलब्ध रोजगार की तुलना में कार्यकारी जनसंख्या के अधिक बढ़ जाने पर औद्योगिक जनाधिक्य उत्पन्न हो जाता है। इससे नगर एवं औद्योगिक केन्द्रों में बेरोजगारी बढ़ने लगती है और अनेक सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। 

औद्योगिक जनाधिक्य के कारण

  • व्यापारिक मन्दी अथवा किसी उद्योग या उद्योग समूह के उत्पादन में ह्रास होने के कारण। कभी- भी लाभ के अभाव में कुछ कारखानों को बन्द कर दिया जाता है जिससे उसमें संलग्न श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं। 1930 वें दशक की विश्वव्यापी मन्दी के कारण उद्योगों के ह्रास से ब्रिटेन सहित अनेक पश्चिमी यूरोपीय देशों में औद्योगिक जनाधिक्य की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। 
  • ग्रामीण क्षेत्रों तथा लघु नगरीय केन्द्रों में रोजगार के अभाव तथा मजदूरी कम होने के कारण प्रायः बड़ी संख्या में श्रमिक उपयुक्त रोजगार तथा अपेक्षाकृत् अधिक मजदूरी की आशा में नगरों तथा औद्योगिक केन्द्रों के लिए प्रवास करते हैं। इससे नगरों में जनसंख्या का दबाव बढ़ जाता है। अकुशल श्रमिकों के लिए पर्याप्त रोजगार के अभाव में इनमें से बहुत से श्रमिक वहाँ भी बेरोजगार ही रह जाते हैं अथवा निम्न मजदूरी पर काम करके जीवन यापन करने लगते हैं। इस प्रकार आप्रवासियों के कारण नगरों तथा औद्योगिक केन्द्रों में जनाधिक्य की समस्या उत्पन्न हो जाती है। 
  • तकनीकी प्रगति के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में पूर्ववर्ती श्रमिक अकुशल हो जाते हैं और साथ ही कम्प्यूटर जैसे आधुनिक यंत्रों के प्रयोग से श्रमिकों की आवश्यकता में भी कमी आ जाती है। इसके कारण उद्योगों तथा कार्यालयों में श्रमिकों एवं कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ती है। इससे रोजगार और उत्पादन दोनों प्रभावित होते हैं। 

औद्योगिक श्रमिकों में गतिशीलता तथा लोच कृषि श्रमिकों (खेतिहर मजदूरों) की तुलना में अधिक होती है। अतः इस समस्या का समाधान भी कृषि क्षेत्रों की तुलना में कम कठिन होता है। औद्योगिक जनाधिक्य विकसित तथा विकासशील दोनों प्रकार के देशों में व्याप्त है किन्तु इसके कारण और प्रकृति में उल्लेखनीय अन्तर देखे जा सकते हैं।

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