एडवर्ड उलमैन का स्थानिक अंतःक्रिया का मॉडल, जिसे गुरुत्वाकर्षण मॉडल के रूप में भी जाना जाता है, भूगोल की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। जैसे नगरीय भूगोल में नगरीय नियोजन के लिए और परिवहन भूगोल में परिवहन सेवाओं की वर्तमान व सम्भावित माँग के मूल्यांकन में इसका उपयोग किया जाता है।
स्थानिक अंतःक्रिया का मॉडल जिसे 1950 के दशक में विकसित किया गया था, तीन-कारक (स्थानान्तरणीयता, सम्पूरकता व मध्यवर्ती अवसर) मॉडल के रूप में भी जाना जाता है। यह विभिन्न स्थानों के बीच सापेक्ष दूरी और आकार के आधार पर लोगों, वस्तुओं और विचारों के प्रवाह का वर्णन करता है। स्थानिक अंतःक्रिया मॉडल स्थानों के बीच विभिन्न सेवाओं की गति की मात्रा और दिशा की भविष्यवाणी करने में बेहद उपयोगी साबित हुआ है, और इसलिए यह स्थानिक विश्लेषण की आधारशिला बन गया है।
उलमैन का मॉडल इस विचार पर आधारित है कि दो स्थानों के बीच अंतःक्रिया की तीव्रता उनके आकार के समानुपाती होती है और उनकी दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होती है। दूसरे शब्दों में, दो स्थान जितने बड़े और निकट होते हैं, उनके बीच अंतःक्रिया होने की संभावना उतनी ही अधिक होती है।
उदाहरण के रूप में हम दुनिया के दूसरे छोर पर रहने वाले लोगों की तुलना में अपने पड़ोसियों के साथ बातचीत करने या अंतःक्रिया करने की अधिक संभावना रखते हैं, और हम एक छोटे से सुविधा स्टोर की तुलना में एक बड़े शॉपिंग मॉल में जाने की अधिक संभावना रखते हैं।
उलमैन का मॉडल इस विचार को गणितीय रूप देता है, और हमें स्थानिक अंतःक्रिया के बारे में मात्रात्मक भविष्यवाणियां करने की मदद करता है।
उलमैन के मॉडल का मूल सूत्र है:
Iij = Ai * Bj / Dij
जहां
Iijस्थानों i और j के बीच अंतः क्रियाओं का आयतन या मात्रा है,
Ai और Bj क्रमशः स्थानों i और j के आकार हैं (आमतौर पर जनसंख्या या आर्थिक गतिविधि के संदर्भ में मापा जाता है), और Dij स्थानों i और j के बीच की दूरी है।
यह सूत्र मानता है कि अंतःक्रिया सममित हैं (यानी, i और j के बीच अंतःक्रिया की मात्रा j और i के बीच अंतःक्रिया की मात्रा के समान है), और यह कि अंतःक्रिया की तीव्रता दूरी के साथ तेजी से घट जाती है।
‘उलमैन के त्रय’ स्थानान्तरणीयता, सम्पूरकता व मध्यवर्ती अवसर जो विभिन्न स्थानों के बीच अंतःक्रिया या संबंधों को आकार देने के लिए मिलकर काम करते हैं, की व्याख्या इस प्रकार है
1. स्थानान्तरणीयता (Transferability)
स्थानान्तरणीयता से तात्पर्य है कि कितनी आसानी से वस्तुओं, सेवाएं और लोगों का दो स्थानों या क्षेत्रों के बीच आवागमन होता हैं। किन्हीं दो स्थानों के बीच आवागमन जितना अधिक सुलभ होता है, व्यवसायों और व्यक्तियों के लिए एक दूसरे के साथ अंतःक्रिया करना उतना ही आसान होता है। इससे व्यापार और आर्थिक विकास में वृद्धि हो सकती है।
स्थानों के मध्य अन्तःक्रिया अथवा व्यापार के लिए वस्तुओं, उत्पादों, विचारों व सेवाओं का स्थानान्तरणीय होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, स्थानों. पर जनसंख्या, धन आदि का जितना आधिक्य होगा, प्रवाह उतना ही अधिक होगा तथा दूरी जितनी अधिक होगी, प्रवाह उतना ही कम होगा।
विभिन्न स्थानों के मध्य जितनी अधिक वाणिज्यिक बाधाएँ होंगी, स्थानान्तरणीयता का स्तर उतना ही कम होगा। दो स्थानों के मध्य अन्तःक्रिया में, प्रत्येक स्थान को उस वस्तु की आवश्यकता है जो अन्य स्थान उत्पादन अथवा विक्रय कर रहा है तथा इन उत्पादों व सेवाओं के एक स्थान से अन्य स्थान तक स्थानान्तरण हेतु कुछ मार्ग स्थापित हैं।
इस प्रकार स्थानान्तरणीयता किसी वस्तु अथवा व्यक्ति की गतिशीलता की मात्रा को दर्शाती है। स्थानान्तरणीयता केवल तभी हो सकती है जब विनिमय की लागत दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो, जिसमें समय व धन दोनों सम्मिलित होते हैं। यह तीन परिस्थितियों का सम्मिलित प्रतिफल है-
1. उत्पाद के गुण व मूल्य,
2. समय व लागत में दूरी का मापन,
3. वस्तु की परिवहन लागत को वहन करने की क्षमता।
स्थानान्तरणीयता, भौतिक व आर्थिक दोनों कारकों से प्रभावित होती है। यदि समय व लागत दोनों अधिक हों तो अन्तःक्रिया नहीं हो सकती है। उपभोक्ता अधिक लागत वाले उत्पाद का विकल्प खोजता है अथवा उसके बिना भी रह लेता है। कुछ वस्तुओं अथवा व्यक्तियों का परिवहन अधिक दूरी तक सम्भव नहीं है, क्योंकि परिवहन लागत उस वस्तु की उत्पादन लागत से अधिक हो जाती है तथा जब उस वस्तु की परिवहन लागत वस्तु के मूल्य से अधिक नहीं है तो उत्पादन (उत्पादित वस्तुएं) स्थानान्तरणशील है।
इसके अतिरिक्त हमें यह जानने की आवश्यकता है कि वस्तु की कितनी मात्रा अथवा व्यक्तियों की कितनी संख्या यात्रा में भाग ले रही है? तथा यात्रा के लिए हमें कितने समय की उपलब्धता है? जिसमें यात्रा समय तथा गंतव्य पर बिताये जाने वाला समय, दोनों सम्मिलित हैं और पूँजी की उपलब्धता भी एक आवश्यक कारक है। उदाहरणार्थ, यदि मात्र एक व्यक्ति देल्ही से गोवा की यात्रा करना चाहता है तथा उसे उसी दिन लौटना है तो वायुमार्ग स्थानान्तरणीयता का सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प है, जिसकी परिवहन लागत लगभग 20,000 रुपये है जो कि बहुत ही खर्चीला विकल्प है।
यदि कुछ लोगों का समूह यात्रा कर रहा है तथा तीन-चार दिन का समय उनके पास है (दो दिन यात्रा के लिए तथा 1-2 दिन भ्रमण हेतु) तो ट्रेन उचित विकल्प होगा, जिसमें प्रति व्यक्ति परिवहन व्यय लगभग 5,000 रुपये होगा। तृतीय विकल्प स्वयं अथवा किराये की कार है, जिसमें लगभग 7 व्यक्ति यात्रा कर सकते हैं तथा प्रति व्यक्ति औसत परिवहन लागत लगभग 4,000 रुपये होगी।
यदि लगभग 50 व्यक्ति अथवा अधिक के समूह को यात्रा करनी हो तो बस उचित साधन होगी जिसकी प्रति व्यक्ति औसत परिवहन लागत 3000 रुपये होगी। अतः उक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि स्थानान्तरणीयता व्यक्तियों की संख्या, दूरी, उपलब्ध यात्रा समय, प्रति व्यक्ति औसत परिवहन लागत पर आधारित विभिन्न परिवहन माध्यमों के द्वारा प्रभावित होती है।
2. सम्पूरकता (Complementarity)
सम्पूरकता से तात्पर्य है कि किस हद या सीमा दो स्थान एक दूसरे की आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक ग्रामीण क्षेत्र जो बहुत सारे कृषि उत्पादों का उत्पादन करता है, वह पास के एक शहरी क्षेत्र का पूरक हो सकता है जिसमें एक बड़ा खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing)उद्योग है।
परस्पर अन्तःक्रिया वाले स्थानों के मध्य आपूर्ति (उत्पाद का आधिकता) तथा माँग (उत्पाद की कमी) का होना आवश्यक है। एक अधिवास क्षेत्र और औद्योगिक क्षेत्र परस्पर सम्पूरक होते हैं, क्योंकि एक ओर अधिवास क्षेत्र श्रमिकों की आपूर्ति करता है, तो वहीं दूसरी ओर औद्योगिक क्षेत्र श्रमिकों की माँग रखता है तथा इसके विपरीत औद्योगिक क्षेत्र रोजगार की आपूर्ति व अधिवास क्षेत्र इसकी माँग वाले स्थल हैं।
इसी प्रकार एक बाजार व उपभोक्ता तथा उद्योग व वितरक भी परस्पर सम्पूरक होते हैं। उद्गम व गंतव्य स्थान के मध्य बढ़ती दूरी; परिवहन की आवृत्ति व सम्पूरकता को कम कर देती है।
3. मध्यवर्ती अवसर (Intervening Opportunity)
मध्यवर्ती अवसर दो स्थानों के बीच किसी तीसरे स्थान की उपस्थिति को दर्शाता, जो उन दो स्थानों के मध्य अन्तःक्रिया को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, किसी गाँव व शहर के बीच कोई छोटा कस्बा शहर की तुलना में समान या बेहतर अवसर या सेवाओं को उपलब्ध कराने लग जाता है। तब गाँव के लोग शहर के बजाए उस छोटे कस्बे के साथ अन्तःक्रिया करना प्रारम्भ कर देंगे, जो उसके नजदीक है। जिससे गाँव व शहर के बीच अन्तःक्रिया नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी।
इस प्रकार हम देखते है कि दो स्थानों के मध्य अन्तःक्रिया के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण कारक मध्यवर्ती अवसरों का अभाव है। ऐसी परिस्थिति जहाँ किसी उत्पाद की उच्च मांग वाले क्षेत्र व उसी उत्पाद की आपूर्ति वाले अनेक क्षेत्रों के मध्य सम्पूरकता स्थापित होती है तो माँग वाला क्षेत्र समस्त स्थानों से अन्तः क्रिया करने के स्थान पर न्यूनतम मूल्य वाले निकटतम आपूर्तिकर्ता के साथ ही व्यापार करेगा।
अत: दो स्थलों के मध्य उद्गम अथवा गंतव्य के रूप में एक उत्तम विकल्प की उपलब्धता नहीं होनी चाहिए। दूरी के घर्षण तथा स्थान-समय सम्बन्धों (space-time relations) के कारण समीप के अवसर दूरस्थ व तुलनात्मक रूप से उत्तम विकल्पों के आकर्षण को भी कम कर देते हैं।
आलोचना
हालाँकि, उलमैन के मॉडल की कुछ सीमाएँ और आलोचनाएँ भी हैं। मुख्य आलोचनाओं में से एक यह है कि यह मानता है कि दूरी ही एकमात्र ऐसा कारक है जो दो स्थानों के मध्य अन्तःक्रिया को प्रभावित करता है। वास्तव में, कई अन्य कारक हैं जो अन्तःक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं, जैसे कि स्थलाकृति, जलवायु, बुनियादी ढाँचा, संस्कृति और राजनीति।
उदाहरण के लिए, एक पर्वत श्रृंखला एक भौतिक अवरोध पैदा कर सकती है, जो दो अन्यथा करीबी स्थानों के बीच अन्तःक्रिया को कम करती है, या एक सीमा, कानूनी या सांस्कृतिक बाधाएं पैदा कर सकती है। जो अन्तःक्रिया को हतोत्साहित करती है। इसलिए, जटिल या विषम अन्तःक्रिया प्रणालियों से निपटने के लिए उलमैन के मॉडल का सावधानी से उपयोग किया जाना चाहिए।
उलमैन के मॉडल की एक और सीमा यह है, कि यह मानता है कि दो स्थानों के मध्य अन्तःक्रिया कार्यों या सेवाओं की विशेषताओं की परवाह किए बिना स्थानों के आकार के समानुपाती होती है। यह धारणा कई मामलों में सही नहीं हो सकती। खासकर जब कोई स्थान किसी विशेषकार्य या सेवा के लिए जाना जाता हो। उदाहरण के लिए, एक छोटा शहर जो एक प्रसिद्ध संगीत समारोह आयोजित करता है, बड़ी संख्या में आगंतुकों को आकर्षित कर सकता है। भले ही उसकी आबादी कम हो।
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