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एकत्रित करना (Gathering)

वनों से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं या पदार्थों को एकत्रित करने के दो उद्देश्य हो सकते हैं

  1. जीवन निर्वाह के लिए या
  2. व्यापार के लिए

जीवन निर्वाह के लिए एकत्रीकरण (Gathering) की क्रिया उन क्षेत्रों में की जाती है, जहां पर तकनीकी विकास नहीं हुआ है। ये प्रदेश आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए होते हैं। व्यापार के लिए एकत्रीकरण (Gathering) क्रिया उन प्रदेशों में की जाती है, जहां पर विज्ञान एवं तकनीकी का विकास अच्छी तरह से हुआ है।

जीवन निर्वाह के लिए एकत्रीकरण (Gathering)

वनों के अंदर या उसके आसपास रहने वाले मानव समुदाय अपने जीवन निर्वाह के लिए वनों से विभिन्न प्रकार के पदार्थों को एकत्रित करते रहते हैं। एकत्रित किए जाने वाले पदार्थ निम्नलिखित पांच प्रकार के हो सकते हैं:

  • खाने के लिए फल, कंदमूल, फूल, जंगली शहद आदि।
  • वस्त्रों के लिए वृक्षों की छाल, पत्तियां और घास।
  • घर या झोपड़ी बनाने के लिए बांस की डलिया, पेड़ों की शाखाएं, पत्तियां, लकड़ी और घास फूस।
  • घरेलू आवश्यकता के लिए जलाने को इंन की लकड़ी।
  • घाव आदि पर लगाने के लिए, चोट पर बांधने ने के लिए और रोगों के उपचार के लिए औषधियाँ या या जड़ी बूटियां।

व्यापार के लिए वनों के विभिन्न पदार्थों को एकत्रित करने के विचार से विश्व के वनों को दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत कर सकते हैं।

  1. उष्णकटिबंधीय वन तथा
  2. सम शीतोष्ण कटिबंधीय वन।

इन दोनों प्रकार के वनों में अलग-अलग तरह की वस्तुएं इकट्ठा की जाती हैं जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है

उष्णकटिबंधीय वनों से एकत्रित की जाने वाली वस्तुएं निम्नलिखित हैं:

फल

इन वनों से अनेक प्रकार के जंगली फल जैसे जंगली आम, जामुन, बेर, जंगली केला, खजूर, ताड़, नारियल आदि एकत्रित किए जाते हैं। हालांकि आजकल इन फलों के बाग  भी लगाए जाते हैं। फिर भी जंगली फलों को जीवन निर्वाह तथा बाजारों में बिक्री के लिए भी इकट्ठा किया जाता है।

fruits gathering in tropical forest
उष्णकटिबंधीय वन में जंगली केले व नारियल एकत्रित करती महिलाएं

गोंद व लाख

उष्णकटिबंधीय वनों से विभिन्न प्रकार के गोंद जैसे कीकर का गोंद, ढाक का गोंद, सेमल का गोंद तथा वार्निश के पदार्थ व लाख भिन्न-भिन्न प्रकार के वृक्षों से एकत्रित किए जाते हैं।

नीचे दर्शाए गए ढाक व सेमल के पेड़ों से गोंद इकट्ठा किया जाता है

चरम शोधक पदार्थ

चमड़े व खाल को साफ करने तथा रंगने के लिए जरूरी टैनिन पदार्थ बहुत से वृक्षों की छालों से प्राप्त किया जाता है। उदाहरण के लिए मैन्ग्रोव के पेड़ों की छाल व पत्तियों,  बबूल की छाल, कीकर की  छाल आदि में यह तत्व अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसी प्रकार दक्षिण अमेरिका के वृक्ष क्वाब्राको की लकड़ी भी चमड़े के रंगने में काम आती है। भारत में हरड़, बहेड़ा और आंवला के फलों में टैनिन की बड़ी मात्रा पाई जाती है। ये फल अधिक मात्रा में यूरोपीय देशों तथा अमेरिका को भी निर्यात किए जाते हैं।

नीचे दर्शाए गए हरड़, बहेड़ा, कीकर व मैन्ग्रोव के पेड़ों से चरम शोधक पदार्थ टैनिन इकट्ठा किया जाता है

पत्तियां

शीशम व ताड़ की पत्तियों से थैले, टोकरियाँ, चटाई आदि बनाए जाते हैं। इसके अलावा कुछ पतियों जैसे तुलसी, जंगली चाय आदि को पेय पदार्थों के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। कुछ पत्तियों के रस से औषधियाँ बनाई जाती हैं तथा कुछ पतियों से सौंदर्यीकरण के सामान भी बनाए जाते हैं। झोपड़ी बनाने के लिए भी अनेक पेड़ों की पत्तियों को काम में लाया जाता है। कारनौबा ताड़ की पत्तियों के रस से एक विशेष प्रकार का मोम भी बनाया जाता है।

नीचे दर्शाए गए शीशम व ताड़ की पत्तियों से थैले, टोकरियाँ, चटाई आदि बनाए जाते हैं

रबड़ व बलाटा

उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रबड़ के वृक्ष बहुतायत मात्रा में होते हैं, जिनसे रबड़ बनाई जाती है। जो बिजली के सामान व परिवहन गाड़ियों के लिए ट्यूब-टायर बनाने के काम आती है। इसी प्रकार एक वृक्ष से बलाटा नामक पदार्थ तैयार किया जाता है। जो बिजली के तारों का रोधन के लिए और मशीनों के पट्टे बनाने में प्रयोग किया जाता है। बलाटा का प्रमुख रूप से उपयोग समुद्री तारों के निर्माण में, मशीन चलाने वाले पट्टों और गोल्फ की गेंदों के कवर बनाने में किया जाता है।

रबड़ के पेड़ से टपकता हुआ रस जिसका उपयोग रबड़ बनाने में किया जाता है

चिकिल

यह एक प्रकार का चबाने वाला गोंद होता है जो उष्णकटिबंधीय वनों में पैदा होने वाले जपोटा वृक्ष के दूध या रस से बनाया जाता है।

गिरीदार फल

इन वनों में बहुत सारे वृक्ष के फल ऐसे होते हैं जिनमें गिरी पाई जाती हैं, जिनका उपयोग वहां के निवासी भोजन के लिए या अन्य कार्यों में उपयोग में लाते हैं। विभिन्न प्रदेशों से कई प्रकार के गिरीदार फलों का अधिक मात्रा में विदेशों में निर्यात भी किया जाता है। ब्बास्सू ताड़ के फल के रंगों से पेंटों को सुखाने वाले तेल प्राप्त होते हैं।

अनेक प्रकार के तेल जो साबुन बनाने में, मोमबत्ती निर्माण में व नकली मक्खन बनाने में प्रयोग किया जाता है। उनको भी इन वनों. में मिलने वाले गिरीदार फलों से निकाला जाता है। इनमें सबसे प्रमुख रूप से हैं, नारियल व ताड़, जो मुख्य रूप से दक्षिण अफ्रीका व दक्षिण एशिया के आदिवासी जनजातियों द्वारा इकट्ठा किया जाता है। नारियल के सफेद गुद्दे का उपयोग तेल निकालने के लिए भी किया जाता है। नारियल प्रमुख रूप से दक्षिण पूर्व एशिया प्रदेश के मलेशिया व इंडोनेशिया में एकत्रित किया जाता है।

नारियल का पेड़

तेल देने वाली गिरी वाले ताड़, पाम आयल पश्चिम अफ्रीका के उष्ण व आर्द्र वनों में होते हैं। जिन पर विश्व का पाम आयल उद्योग टिका हुआ है। सारे विश्व का लगभग दो तिहाई पाम आयल और 90% पाम आयल गिरी का निर्यात नाइजीरिया, कांगो, सेनेगल, आईवेरी कॉस्ट, घाना आदि देशों द्वारा किया जाता है। इस उद्योग का दूसरा मुख्य क्षेत्र दक्षिण-एशिया में मलेशिया व इंडोनेशिया है, जहां से हजारों टन ताड़ गिरी यूरोप तथा दक्षिण अमेरिका को निर्यात की जाती है। वहां पर आधुनिकरण मशीनों के द्वारा तेल निकाला जाता है। जो साबुन, मोमबत्ती, ग्लिसरीन, टिन प्लेट आदि के निर्माण में प्रयोग में लाया जाता है।

औषधियाँ

इन वनों.से विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटी मिलती है, जिनसे औषधियाँ बनाई जाती हैं। जैसे सिनकोना वृक्ष से कुनैन बनाई जाती है। अश्वगंधा से बीपी की दवाई बनाई जाती है। आदिकाल से ही आखेट करने वाले मानव समुदायों के द्वारा आखेट लिए तथा युद्ध में प्रयोग में आने वाले बाणों जहरीला बनाने के लिए कई प्रकार के विष इकट्ठा किए जाते रहे हैं। इनके अलावा अमृत के समान गुण रखने वाली जड़ी बूटियों का भी एकत्रीकरण किया जाता है।

दक्षिण अमेरिका में कोलंबिया, इक्वाडोर, पेरू और बोलीविया क्षेत्रों में तथा भारत-श्रीलंका और जावा वनों में सिनकोना के वृक्ष अधिक मिलते हैं। अब तो इस वृक्ष को प्लांटेशन द्वारा तैयार किया जाने लगा है। वर्तमान समय में कुनैन का सबसे बड़ा उत्पादक देश जावा है। इसी प्रकार भारतीय आयुर्वेद में हरड़, बहेड़ा, आंवला दारूहल्दी, जायफल, जावित्री, दालचीनी, गिलोय आदि हर प्रकार की दवा बनाने के लिए उपयोग में लाए जाते हैं।

भोजन के मसाले जैसे काली मिर्च, लौंग, इलायची, तेजपत्ता आदि दक्षिणी भारत, इंडोनेशिया, श्रीलंका व निकटवर्ती द्वीपों से एकत्रित करके विदेशों को निर्यात की जाती हैं। आजकल तो इनके बागान भी लगाए जाने लगे हैं। कपूर के जंगली वृक्ष जापान, ताइवान, चीन के वनों में भारी वर्षा के क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

भारत में हिमालय के वनों में हजारों रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किए जाने वाली औषधियों को बनाने के लिए जड़ी बूटियों को इकट्ठा किया जाता है।

रेशों के पदार्थ

विभिन्न प्रकार के वनों में विभिन्न प्रकार के रेशों के पदार्थ एकत्रित किए जाते हैं। जिनसे आसान, चटाई, बोरे जाल, रसिया, वस्त्र आदि बनाए जाते हैं। भंगेला नामक पौधों की छाल जूट की तरह मोटे वस्त्र बनाने में प्रयोग में ली जाती है। भिमल वृक्ष की छाल के रेशें की रस्सियाँ व चटाई बनाई जाती हैं। वही आक व शेमल के फलों के डोडे से एक विशेष प्रकार की रुई निकलती है; जो रेशम के समान मुलायम होती है। उसे गद्दों में भरते हैं तथा उसको रुई में मिलाकर वस्त्र भी बनाए जाते है।

समशीतोष्ण कटिबंधीय तथा उपोषण कटिबंधीय वनों में एकत्रीकरण

इन वनों में एकत्रीकरण का उद्योग इतना अधिक विस्तृत नहीं है; जितना कि उष्णकटिबंधीय वनों में है। इन वनों में इकट्ठा किए जाने वाले पदार्थ निम्नलिखित हैं:

चरम शोधक पदार्थ

संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस तथा पूर्व सोवियत संघ के वनों से विभिन्न प्रकार के वृक्षों की छाले चमड़ा शोधन और रंगने के लिए इकट्ठा की जाती हैं। इनमें हेमलॉक और चेस्टनट की छालों का प्रयोग सबसे अधिक होता है। भूमध्यसागरीय देशों में सुमैक वृक्ष की छाल तथा टर्किश ओक वृक्ष के फल उत्तम प्रकार के चरम शोधक होते हैं। वर्तमान समय में कई प्रकार के खनिजों का प्रयोग भी चमड़ा शोधन के लिए किया जाता है। फिर भी वनों से मिलने वाले ये पदार्थ महत्वपूर्ण होते हैं।

इसी प्रकार दक्षिण अमेरिका में अर्जेंटीना और पराग्वे के वनों में चाको वृक्षों से क्वेब्राको नामक चर्म शोधक पदार्थ निकाला जाता है। क्वेब्राको की लकड़ी में हेमलोक की अपेक्षा दुगुना टैनिन निकलता है।

रेजिन व तारपीन

चीड़ के वृक्षों से रेजिन व तारपीन एकत्रित किए जाते है । इन वृक्षों के तनों को जगह-जगह से काट दिया जाता है । उसके बाद उन से निकला हुआ रेजिन नामक तरल पदार्थ इकट्ठा कर लिया जाता है । इसको गर्म करके उसमें से तारपीन का तेल निकाला जाता है तथा शेष भाग बैरोजा (rosin) कहलाता है । इन पदार्थों को पैक करके यूरोप के देशों में भेज दिया जाता है, जहां अनेक प्रकार के पदार्थ बनाए जाते हैं ।

चीड़ के पेड़ जिनसे रेजिन व तारपीन एकत्रित किए जाते है

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