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सुदूर संवेदन की भूमिका (Introduction to Remote Sensing)
प्राचीन काल से ही मनुष्य के मन में ब्रह्माण्ड अथवा अन्तरिक्ष के सम्बन्ध में अधिक से अधिक जानकारी पाने की इच्छा रही है। उस समय ग्रहों (Planets), उपग्रहों (Satellites), नक्षत्रों (Stars), निहारिकाओं (Nebulas), उल्काओं (meteors), धूमकेतुओं (Comets) आदि को देखने के लिए दूरबीन (Telescope) का प्रयोग किया जाता था परन्तु आज सुदूर संवेदन विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे तकनीकी उपकरण विकसित हो गए हैं जिनके द्वारा दृश्य प्रकार के तरंग दैर्ध्य (Wavelength) के माध्यम से ब्रह्माण्ड (Universe) को देखा जा सकता है।
वायुयानों तथा मनुष्य द्वारा बनाए गए उपग्रहों के विकास से सुदूर संवेदन के क्षेत्र में क्रान्ति जगा दी है। आधुनिक विकसित उपकरणों को वायुयानों तथा उपग्रहों में रखकर दूर किसी स्थान से पृथ्वी के प्रतिबिम्बों (Images) को लिया जाता है तथा सूचनायें प्राप्त की जाती हैं। उपग्रहों के विकास से पूर्व, अन्तरिक्ष से सूचनायें प्राप्त करने का कार्य स्वतः प्रक्षेपण तथा प्रकाश फोटोग्राफी तक सीमित था।
लिकिन 1960 के बाद सुदूर संवेदन (Remote Sensing) तकनीक में इतना अधिक सुधार एवं विकास हुआ है कि आज यह वातावरण के प्रत्येक पहलू को समझने में अग्रणी भूमिका निभा रही है। आज सुदूर संवेदन एक शक्तिशाली विज्ञान के रूप में उभरकर सामने आया है कि जिसका व्यावहारिक उपयोग प्रत्येक क्षेत्र में किया जाने लगा है।
भूविज्ञान (Geology), भौगोलिक घटनाओं, पर्यावरण संरक्षण, संसाधनों के उपयोग एवं संरक्षण, भूमि उपयोग, प्राकृतिक आपदाओं (Natural Hazards) तथा मौसम विज्ञान आदि क्षेत्रों में सुदूर संवेदन (Remote Sensing) का उल्लेखनीय योगदान है। धीरे-धीरे यह विषय शोध कार्यों के अतिरिक्त विश्वविद्यालय तथा स्कूल स्तर तक के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया जाने लगा है जिससे शिक्षण संस्थाओं में भी इसके व्यावहारिक अध्ययन का महत्त्व बढ़ा है।
सुदूर संवेदन का अर्थ (Meaning of Remote Sensing)
सुदूर संवेदन (Remote Sensing) का अर्थ है किसी दूर स्थिति घटना, वस्तु अथवा धरातल के बारे में सूचनाओं अथवा आँकड़ों को प्राप्त करना। दूसरे शब्दों में मोटे तौर पर सुदूर संवेदन का अर्थ है कि बिना किसी भौतिक सम्पर्क के, किसी वस्तु अथवा घटना के सम्बन्ध में सूचनाएं एकत्र करना।
सुदूर संवेदन (Remote Sensing) एक ऐसा विज्ञान है जो पृथ्वी के किसी स्थान, वस्तु अथवा घटना के सम्बन्ध में दूर अन्तरिक्ष में स्थित उपग्रह या अन्तरिक्षयानों पर लगे संवेदकों के द्वारा ग्रहण किए गए धरातलीय परावर्तित प्रकाश के आवेगों को अंकित करता है। उसके बाद हम संवेदक पर अंकित परावर्तित प्रकाश के आवेगों का विश्लेषण करते हैं। तत्पश्चात् प्राप्त आँकड़ों तथा प्रतिबिम्बों के माध्यम से किसी स्थान, घटना या वस्तु के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी प्राप्त कर निष्कर्ष पर पहुँचते हैं।
जिस प्रकार हमारी आँखें प्रत्येक वस्तु को देखकर उनमें भेद स्थापित करती हैं उसी प्रकार संवेदक भी कार्य करता है। आँखों से देखने पर कुछ वस्तुएं चमकीली तथा कुछ काली लगती हैं या आँखों को अलग-अलग वस्तुओं में रंगों की गहनता अलग-अलग प्रतीत होती है। यह सब प्रकाश आवेगों के कारण होता है। प्रत्येक वस्तु का विद्युत-चुम्बकीय विकिरण अलग-अलग होने से आँखों को वस्तुएं अलग-अलग रंगों में प्रतीत होती हैं।
संवेदक भी आँखों की तरह विद्युत चुम्बकीय विकिरण को प्राप्त करते हैं। जिस वस्तु से या स्थान से परावर्तित प्रकाश अधिक प्राप्त होता है। वह चमकीली एवं अन्य इसके विपरीत काली प्रतीत होती हैं। वायु कैमरा (Aerial Camera), बहुस्यैक्ट्रल स्कैनर (Multispectral Scanner), तापीय अवरक्त रैखिक क्रमवीक्षक (Thermal Infrared Linear Scanner) इत्यादि प्रमुख संवेदक हैं।
यहाँ पर यह समझना आवश्यक है कि उपग्रहों में प्रयोग किए जाने वाले संवेदक विद्युत चुम्बकीय विकिरण को अंकीय आँकड़ों (Digital Data) के रूप में अभिलेखन (Recording) करते हैं। इन आँकड़ों से प्रतिबिम्ब बनाने की क्षमता होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि “पृथ्वी से दूर अन्तरिक्ष में किसी प्लेटफार्म पर लगे हुए संवेदक द्वारा विद्युत-चुम्बकीय विकीरण के माध्यम से धरातलीय सूचनाओं को प्राप्त करने की कला को सुदूर संवेदन (Remote Sensing) विज्ञान कहते हैं।”
सुदूर संवेदन की परिभाषाएं (Definition of Remote Sensing)
फिसचर तथा अन्य (Fischer et. al) के अनुसार “सुदूर संवेदन एक ऐसी कला या विज्ञान है जो बिना किसी सम्पर्क के किसी वस्तु के बारे में जानकारी प्राप्त करता है”।
लिंग्टज एवं सिमनेट (Lintz and Simonett) के अनुसार “बिना छुए या सम्पर्क के किसी वस्तु के बारे में भौतिक आँकड़ों की प्राप्ति करना सुदूर संवेदन कहलाता है”।
बैरेट एवं कर्टीज (Barrett and Curtis) के अनुसार “किसी निश्चित दूरी से किन्हीं युक्तियों द्वारा किसी लक्ष्य के अवलोकन को सुदूर संवेदन कहते हैं”।
नासा (NASA) के अनुसार, रिमोट सेंसिंग किसी घटना, वस्तु या सामग्री के बारे में डेटा या जानकारी को रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया है, जहां रिकॉर्डिंग डिवाइस उस वस्तु के प्रत्यक्ष संपर्क में नहीं होते। इसमें विशेष उपकरणों जैसे कैमरा, रेडियोमीटर, स्कैनर और रडार सिस्टम का उपयोग करके विद्युत चुंबकीय विकिरण, बल क्षेत्रों, या ध्वनि ऊर्जा को मापने की प्रक्रिया शामिल होती है।
जेंसन (2004) के अनुसार, रिमोट सेंसिंग को दो तरीकों से परिभाषित किया जा सकता है:
1.पहली परिभाषा के अनुसार रिमोट सेंसिंग बिना भौतिक संपर्क के वस्तु के बारे में डेटा प्राप्त करने की प्रक्रिया है, जिसमें पृथ्वी के अवलोकन से लेकर चिकित्सा इमेजिंग तक कई प्रकार के अनुप्रयोग शामिल होते हैं।
2. इस परिभाषा के अनुसार रिमोट सेंसिंग विशेष रूप से विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के अल्ट्रावायलेट, दृश्य, इंफ्रारेड और माइक्रोवेव क्षेत्रों से जानकारी रिकॉर्ड करने को संदर्भित करता है, जिसमें उपकरण जैसे कैमरे या स्कैनर शामिल होते हैं, जो विमान या उपग्रह जैसे प्लेटफार्मों पर रखे जाते हैं।
भारत का राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग केंद्र (NRSC)
NRSC के अनुसार, रिमोट सेंसिंग पृथ्वी की सतह और वायुमंडल के बारे में जानकारी को उपग्रह, ड्रोन या विमान पर लगे सेंसरों के माध्यम से एकत्रित करने की प्रक्रिया है, और इस डेटा को उन्नत एल्गोरिदम के माध्यम से विश्लेषण किया जाता है।
अमेरिकन राष्ट्रीय शैक्षणिक विज्ञान (National Academy of Science) के अनुसार “हाल ही में कई वैज्ञानिकों द्वारा सुदूर संवेदन, शब्द का उपयोग वृहत दूरी से लक्ष्यों (पृथ्वी, चन्द्रमा, वायुमण्डल, स्टेलर, घटनाएं इत्यादि) के अध्ययन के लिए किया गया है। विस्तृत रूप से सुदूर संवेदन, नियोजित आधुनिक संवेदकों, आँकड़ा संसाधित विधितन्त्र, संचार सिद्धान्त व युक्तियां, अन्तरिक्ष व वायु निर्मित संयन्त्र तथा वृहत सैद्धान्तिक तथा प्रयोगात्मक प्रणाली जिसका उद्देश्य पृथ्वी के धरातल के वायु एवं अन्तरिक्ष सर्वेक्षण के संचालन से है के, सामूहिक प्रभावों को निर्दिष्ट करता “है।
सुदूर संवेदन की प्रक्रियाएं (Processes of Remote Sensing)
सुदूर संवेदन तकनीक द्वारा पृथ्वी के धरातल से सूचनाओं को एकत्र करने तथा विद्युत-चुम्बकीय आँकड़ों का विश्लेषण करने के लिए प्रमुखतः दो प्रक्रियाओंसे गुजरना पड़ता है
आँकड़े अर्जित करना (Data Acquisition)
सर्वप्रथम, संवेदक द्वारा पृथ्वी या पृथ्वी के किसी भाग को या किसी वस्तु के सम्बन्ध में विद्युत-चुम्बकीय विकिरण द्वारा सूचनायें अंकीय (Digital) रूप में एकत्र किए जाते हैं। दूसरा इन अंकीय आँकड़ों की सहायता से प्रतिबिम्ब तैयार किए जाते हैं जिन्हें चित्रीय (Pictorial) रूप भी कहते हैं। टी.एम. लिलिसेंड एवं आर.डब्ल्यू, काईफर ने आँकड़ा अर्जित करने की प्रक्रिया को निम्न पाँच रूपों में विभाजित किया है।
- ऊर्जा के स्रोत (Source of Energy)
- वायुमण्डल द्वारा संचरण (Propagation through the atmosphere)
- पृथ्वी की धरातलीय आकृतियाँ (Earth Surface Features)
- वायुमण्डल द्वारा पुनः संचारण (Re-Transmission through the Atmosphere)
- संवेदन प्रणालियां (Sensing Systems)
हम जानते हैं कि सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। पृथ्वी सूर्य से विकिरण ऊर्जा प्राप्त करती हैं। सूर्य से पृथ्वी की ओर कुल विकिरण ऊर्जा को 100 इकाई या प्रतिशत माना जाता है। सूर्य से जितनी ऊर्जा विकिरण होती है उसका अल्पांश (1/2 अरबां भाग) ही पृथ्वी को प्राप्त होता है। वायुमण्डल द्वारा प्रकीर्णन (scattering) तथा प्रत्यावर्तन (reflection) के कारण सौर्य ऊर्जा का कुछ भाग शून्य में वापस लौट जाता है।
लघु तरंग प्रवेशी सौर्य विकिरण का 35% भाग प्रकीर्णन तथा प्रत्यावर्तन के माध्यम से शून्य में वापस चला जाता है (27% बादलों से + 20% धरातल से प्रत्यावर्तित + 6% वायुमण्डल द्वारा प्रकीर्ण), 51% भाग भूतल द्वारा अवशोषित किया जाता है (17% विसरित दिवा प्रकाश (Diffuse daylight) के रूप में तथा 34% प्रत्यक्ष विकिरण के रूप में) तथा 14% वायुमण्डल द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है (एस. सिंह, 1991)।
23% ऊर्जा का धरातल से पार्थिव विकिरण द्वारा वायुमण्डल में प्रत्यक्ष गमन हो जाता है, 9% ऊर्जा संवहन तथा विक्षोभ के रूप में खर्च होती है तथा 19% ऊर्जा वाष्पीकरण के रूप में खर्च हो जाती है। इस तरह भूतल पर सौर विकिरण द्वारा जो 51% ऊर्जा है, वह पृथ्वी से विकिरण, संवहन् तथा परिचालन के माध्यम से वायुमण्डल में वापस चली जाती है। वायुमण्डल सौर्यक विकिरण से अवशोषण द्वारा 14% ऊर्जा तथा पृथ्वी से होने वाले विकिरण से 34% ऊर्जा अर्थात् कुल 48% ऊर्जा प्राप्त करता है।
आँकड़ा विश्लेषण (Data Analysis)
सुदूर संवेदन की दूसरी प्रक्रिया आँकड़ों का विश्लेषण करना है। अन्तरिक्ष आधारित संवेदकों के द्वारा जो अंकीय आँकड़े अर्जित किए जाते हैं उनसे कम्प्यूटर की सहायता से प्रतिबिम्ब तैयार किए जाते हैं जिन्हें आँकड़ा उत्पाद (Data Product) कहा जाता है। ये उत्पाद किसी भी दृश्य क्षेत्र के सभी विवरणों को प्रस्तुत करते हैं। इन विवरणों को पहचानने एवं इनके बारे में आवश्यक जानकारी प्राप्त करने तथा किसी निर्णय तक पहुँचने की प्रक्रिया को आँकड़ा विश्लेषण कहते हैं।
इसके लिए पर्याप्त अनुभव, अभ्यास, ज्ञान एवं श्रम की आवश्यकता होती है। आँकड़ा उत्पादों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है
- पहला उपग्रहीय प्रतिबिम्ब (Satellite Imageries) तथा
- दूसरा वायु फोटो चित्र (Aerial Photographs)
वायु फोटो चित्रों के विश्लेषण के लिए स्टीरियोस्कोप (Stereoscope) इत्यादि यंत्रों की आवश्यकता होती हैं। इनकी सहायता के लिए स्थलाकृतिक मानचित्र, सांख्यिकीय आँकड़े तथा अन्य सन्दर्भ आँकड़ों की आवश्यकता होती है। आँकड़ा विश्लेषण के निम्न प्रमुख तत्व हैं-
- आँकड़ा उत्पाद (Data Product)
- व्याख्या तथा विश्लेषण (Interpretation and Analysis)
- सूचना उत्पाद (Information Products)
- उपयोगकर्ता (Users)
सुदूर संवेदन की अवस्थाएं (Stages of Remote Sensing)
इस प्रकार सुदूर संवेदन आँकड़ा अर्जन की प्रक्रिया को निम्न सात सोपानों में विभाजित किया जा सकता है जो सुदूर संवेदन की अलग-अलग अवस्थाएं हैं।
ऊर्जा स्रोत (Energy Source)
सुदूर संवेदन में आधारभूत आवश्यकता ऊर्जा स्रोत की है जो इच्छित लक्ष्यों को प्रकाशयुक्त (Illuminate) करता है। इसको विद्युत-चुम्बकीय विकिरण (EMR) का उत्सर्जन (Emission) कहते हैं।
ऊर्जा का वायुमण्डल के साथ अन्योन्यक्रिया (Energy Interaction with the Atmosphere)
ऊर्जा जब प्रमुख स्रोत से धरातल पर किसी लक्ष्य तक तथा किसी लक्ष्य से संवेदक तक पहुँचती है तो यह वायु मण्डल के सम्पर्क में आकार अन्योन्याक्रिया करती है। इसके अन्तर्गत ऊर्जा का संचारण (Transmission), अवशोषण (Absorption) तथा प्रकीर्णन (Scattering) को सम्मिलित किया जाता है।
ऊर्जा का पृथ्वी के धरातलीय आकृतियों से अन्योन्यक्रिया (Interaction of Energy with Earth’s surface features)
पृथ्वी के धरातल की आकृतियों, आपतन (Incident) ऊर्जा के साथ अलग -2 प्रकार से अन्योन्यक्रिया करती है। धरातल द्वारा आपतन ऊर्जा का कुछ अंश परावर्तित (Reflected) तथा कुछ अंश अवशोषित (Absorption) किया जाता है।
ऊर्जा का संवेदक द्वारा अभिलेखन (Recording of Energy by the Sensor)
धरातलीय तत्वों के साथ अन्योन्याक्रिया के पश्चात् ऊर्जा संवेदक तक पहुँचती हैं जिसे ऊर्जा का संचारण (Transmission) कहते हैं। जिन रूपों में इसे अंकित किया जाता है उन्हीं रूप में उपयोगकर्ता द्वारा इसे प्रयोग किया जाता है।
आँकड़ों का संचारण तथा प्रक्रमण (Data Transmission and Processing)
जो ऊर्जा संवेदक द्वारा अभिलेखित की जाती है उसे प्राप्त कर्ता तथा प्रक्रमण स्टेशन को संचारित किया जाता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को धरातल से सुदूर संवेदक तक ऊर्जा का संचरण (Transmission) कहलाता है।
प्रतिविम्ब प्रक्रमण तथा विश्लेषण (Image Processing and Analysis)
प्रक्रमण के पश्चात् बिम्बों का विश्लेषण किया जाता है तथा पृथ्वी के धरातलीय आकृतियों के बारे में सूचनाओं को निकाला जाता है। इसे आँकड़ों का प्रक्रमण तथा विश्लेषण करना कहते हैं।
अनुप्रयोग (Application)
विश्लेषण के पश्चात् उपयोगी सूचनाओं का अनुपयोग किसी समस्या के समाधान में निर्णय लेने के किया जाता है।
यह सारा परिदृश्य विद्युत-चुम्बकीय विकीरण तथा धरातल के वस्तुओं व आकृतियों के भौतिक गुणों व विशेषताओं पर निर्भर करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सुदूर संवेदन एक अन्तर्विषयी विज्ञान है जिनके अन्तर्गत विभिन्न विषयों जैसे के ऑप्टिक्स (Optics), फोटोग्राफी (Photography), कम्प्यूटर (Computer), इलेक्ट्रॉनिक्स (Electronics), दूर संचार (Telecommunication), उपग्रहीय-प्रक्षेपण (Satellite-launching) इत्यादि का समावेश है।