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वायुमण्डलीय प्रकीर्णन (Atmospheric Scattering): अर्थ एवं प्रकार

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वायुमण्डलीय प्रकीर्णन (Atmospheric Scattering)

वायुमण्डल में विद्यमान गैस के अणुओं द्वारा विद्युत-चुम्बकीय विकिरण की पुनर्दिशा निर्धारण को प्रकीर्णन कहते हैं। दूसरे शब्दों में विकिरण (जैसे सौर विकिरण) का चारों दिशाओं की ओर विक्षेपण (Deflection) या विसरण (Diffusion) या फैलाव होना विकिरण कहलाता है। प्रकीर्णन (Scattering) के कारण, धरती की सतह या किसी लक्ष्य से परावर्तित होने वाला प्रतिबिम्ब, जो कि संसूचक के द्वारा प्राप्त होता है, का विपर्यास (Contrast) बदल जाता है। इस प्रकार प्रकीर्णन द्वारा प्रतिबिम्ब (Image) स्य तो साफ नजर नही आता या उसका रंग ही बदल जाता है। 

अत: यह कहा जा सकता है कि वायुमण्डल में विद्युत-चुम्बकीय विकिरण के प्रकीर्णन का सुदूर संवेदन पर दो विपरीत प्रभाव पड़ते हैं- 

  • यह प्रतिबिम्ब के विपर्यास (Contrast) को कम कर देता है तथा
  • यह धरातलीय वस्तुओं में स्पैक्ट्रल संकेतों को परिवर्तित कर देता है जिन्हें संवेदक द्वारा देखा जाता है।

विद्युत-चुम्बकीय विकिरण का प्रकीर्णन (Scattering) कितना होगा यह वायुमण्डल में मौजूद गैस अणुओं के सापेक्षिक आकार (size), वायुमण्डल से होकर आने वाली उत्सर्जित ऊर्जा की दूरी तथा तरंग दैर्ध्य विकिरण (Wavelength of the radiation) पर निर्भर करता है। वायुमण्डल में विभिन्न आकार के अणु होते हैं। गैस के अणुओ आकार 102 µm होता है। धुन्ध (Haze) कणों के आकार का निर्माण आर्द्रता के संघनन से होता है जिनका आकार 102 µm तक होता है। 

द्रव्य के कणों की सान्द्रता समय के साथ बदलती रहती है। अतः प्रकीर्णन (Scattering) का प्रभाव प्रमुख विषय होता है जो समय के साथ-साथ बदलता रहता है। स्वच्छ व साफ दिन में रंग चमकीले दिखाई देते हैं। सौर्य ऊर्जा का 95% प्रकाश हमारी आँखों से दिखाई देता  है तथा 5% प्रकाश वायुमण्डल द्वारा बिखेर दिया जाता है। इसके विपरीत बादल युक्त या धुंध युक्त दिनों में रंग धूमिल पड़ जाते हैं। ऐसी स्थिति में हमारे आँखों में जो प्रकाश पड़ता है वह बिखरा हुआ होता है।

प्रकीर्णन के भेद (Types of Scattering)

प्रकीर्णन (Scattering) करने वाले कणों के आकार के आधार पर इसके तीन प्रमुख भेद हैं, जिनका वर्णन यहां किया जा रहा है 

प्रकीर्णनतरंग दैर्ध्यअणुओं का आकारअणुओं के प्रकार
रैले प्रकीर्णन𝝺41 µm से कम हवा के कण
मी प्रकीर्णन𝝺0 से 𝝺40.1 से 10 µmधुआं एवं धुंध
अवरणात्मक प्रकीर्णन𝝺010 µm से अधिकधूल, कोहरा व बादल
प्रकीर्णन के भेद

रैले प्रकीर्णन (Rayleigh Scattering)

रैले प्रकीर्णन तब होता है जब विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा का वायुमण्डल में निहित कार्यों के साथ अन्तर्किया होती है। जब कभी विकिरण तरंग दैर्ध्य का मान, कणों के आकार से बहुत अधिक होता है तब रैले प्रकीर्णन प्रतीत होता है। दृश्य रेन्ज में (0.4 µm से 0.7 µm) स्वच्छ वातावरण के अणुओं (104 µm) द्वारा प्रकीर्णन (Scattering) किया जाता है। उदाहरण के लिए ये धूल के महीन कण तथा गैसों के अणु- नाइट्रोजन (NO₂) तथा ऑक्सीजन (O₂) होते हैं।

रैले प्रकीर्णन के कारण ही आकाश का रंग नीला प्रतीत होता है। प्रकीर्णन गुणांक तरंग दैर्ध्य की चतुर्थ घात के व्युत्क्रमानुपाती होता है। दृश्य प्रकाश में नीले रंग की तरंग दैर्ध्य का मान सबसे कम तथा लाल रंग का सबसे अधिक होता है। अतः नीले रंग का प्रकीर्णन लाल रंग से बहुत अधिक होता है। यही कारण है कि हमें आकाश नीला दिखाई देता है।

रैले प्रकीर्णन के कारण ही स्पैक्ट्रम के नीले भाग के बहु-स्पैक्ट्रल सूचनायें कम उपयोगी होती हैं। यह भी देखा जाता है कि रैले प्रकीर्णन आगे-पीछे दोनों ही दिशाओं में होता है। तेज पश्चवर्ती प्रकीर्णन (Scattering) के कारण ही वायु फोटोग्राफी में काले धब्बे (Hot Spot) दिखाई देते हैं जो धुँधले वातावरण में विस्तृत कोणीय (Wide Angle) कैमरे के द्वारा चित्रित किए जाते हैं। ऐसी दशा में सौर्य विकिरण, संसूचक (sensor) के फील्ड ऑफ व्यूह में पड़ता है। रैले प्रकीर्णन के कारण प्रतिबिम्ब धुंधले हो जाते हैं तथा रंगीन फोटोचित्रों में एक हल्के नीले धूसर रंग की छाया सी पड़ जाती है जो प्रतिबिम्बों को अस्पष्ट बना देती है।

types of scattering

कणों व अणुओं एवं प्रकीर्णन के अभाव में आकाश काला दिखाई देता है। दिन के समय सौर्य प्रकाश वायुमण्डल से लघु दूरी तय कर धरातल तक पहुँचता है। इसी प्रकार सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य प्रकाश धरातल तक पहुँचने से पहले, वायुमंडल में लम्बी दूरी तय करता है। लघु तरंग दैर्ध्य में विकिरण कुछ दूरी तय करने के बाद बिखर जाता है। इसके विपरीत दीर्घ दूरी की तरंग दैर्ध्य विकिरण पृथ्वी तल तक पहुँचती है। यही कारण है कि सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय आकाश नीला नहीं बल्कि नारंगी व लाल दिखाई देता है। 

रैले प्रकीर्णन, दुश्य स्पैक्ट्रम में अधिक ऊँचाई वाले स्थानों पर सुदूर संवेदन प्रक्रिया को हानि पहुँचाता है। परावर्तित ऊर्जा, स्पैक्ट्रल विशेषताओं में विकार (Distortion) उत्पन्न करता है। सुदूर संवेदन रैले प्रकीर्णन के द्वारा लघु तरंग दैर्ध्य पर अत्यधिक आकलन किया जाता है। अत्यधिक ऊँचाई से लिए गए रंगीन फोटो चित्रों में हल्का नीलापन दृष्टिगोचर होता है। रैले प्रकीर्णन फोटोचित्रों में स्पष्टता कम हो जाती है जिसके कारण ये विश्लेषण क्षमता को कम कर देते हैं। इसी प्रकार रैले प्रकीर्णन का अंकीय वर्गीकरण (Digital Classification) भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

रैले प्रकीर्णन के घटकों को नीले रंग की छन्नी (Filter) लगाकर तैयार किया जा सकता है। गहरे धुंध की अवस्था में जब सभी तरंग दैर्ध्य समान रूप से प्रकीर्णित होती है तो धुंध को फिल्टर लगाकर दूर नहीं किया जा सकता है। धुंध का प्रभाव तापीय अवरक्त क्षेत्र में कम होता है जबकि लघु तरंग विकिरण पर धुंध की उपस्थिति का कुछ प्रभाव नहीं पड़ता है। ये तरंगें बादलों को भी पार कर सकती है।

मी-प्रकीर्णन (Mie-Scattering)

जब विकिरण तरंग दैर्ध्य का मान प्रकीर्णन (Scattering) करने वाले कणों के आकार के बराबर होता है, तब भी प्रकीर्णन(Scattering) प्रतीत होता है। वायुमण्डल में विद्यमान जल-वाष्प तथा धूलिकण इस प्रकीर्णन के मुख्य कारण हैं। सुदूर संवेदन में प्रकीर्णन स्पष्ट करता है कि किस प्रकार वायुमण्डलीय धुंध, बहु-स्पैक्ट्रल प्रतिबिम्बों में गिरावट के लिए उत्तरदायी हैं। तरंग दैर्ध्य की तुलना में अणुओं के आकार के आधार पर भी प्रकीर्णन 𝝺4 से 𝝺0 तक आ सकता है। 

मी- प्रकीर्णन में आपतित प्रकाश अग्रगामी दिशा में ही प्रकीर्णन होता है। लम्बे तरंग दैर्ध्य पर रैले-प्रकीर्णन की तुलना में मी-प्रकीर्णन का प्रभाव अधिक होता है। मी-प्रकीर्णन अल्ट्रा वोइलेट से मध्य इन्फ्रारेड रेन्ज तक प्रभाव डालता है।

अवरणात्मक प्रकीर्णन (Non-Selective Scattering)

जब प्रकीर्णन (Scattering) करने वाले कणों का आकार, विकिरण तरंग दैर्ध्य करने वाले कणों से बहुत अधिक होता है तब अवरणात्मक या अचुनिन्दा (Non- Selective) प्रकीर्णन सम्भव होता है। इस प्रकार का प्रकीर्णन तरंग दैर्ध्य पर निर्भर नहीं करता है। उदाहरण के लिये जल बूंदें तथा धूल कण जिनका आकार सामान्यतः 5 से 10 µm तक होता है, विकिरण का अवरणात्मक प्रकीर्णन करती हैं क्योंकि इनमें दृश्य प्रदेश से अवरक्त प्रदेश के परावर्तित अवरक्त बैंड तक के सभी तरंग दैयों का समान रूप से प्रकीर्णन करने की क्षमता होती है। 

अवरणात्मक प्रकीर्णन तब अनुभव किया जाता है जब वायुमण्डल में बादल या गहरा धुआं होता है। बादल जलवाष्प कणों को धारण करते हैं जिसके कारण वे प्रकाश को बिखेर देते हैं। यही कारण है कि बादल सफेद दिखाई देते हैं। यह बिखराव सभी तरंग दैर्ध्य पर समान रूप से प्रतीत होता है। इसके परिणामस्वरूप प्राप्त आंकड़ों अथवा सूचनाओं में बहुत भेद होते हैं। इसके कारण सभी तरंग दैर्ध्य में समान बदलाव प्रतीत होता है। 

अवरणात्मक प्रकीर्णन में धुंध की उपस्थिति के कारण आकाश का रंग सफेद प्रतीत होता है। चूँकि इसमें दृश्य प्रदेश के नीले, हरे व लाल सभी बैन्डों का समान मात्रा में प्रकीर्णन हो जाता है इसलिए हमें मेघ व कुहरे का रंग श्वेत दृष्टिगोचर होता है। इस प्रकीर्णन की उपस्थिति में यह आभास होता है कि वायुमण्डल में इच्छित दृश्य से ऊपर बड़े आकार के कण हैं जो कि अपने में एक उपयोगी सूचना है। 

सुदूर संवेदक हमारी आँखों की तरह है। जिस प्रकार हमारी आँखें बादलों के पार नहीं देख पाती हैं उसी प्रकार संवेदक भी कार्य करता है। ऑप्टीकल सुदूर संवेदन में बादलों की छाया का प्रभाव भी पड़ता है जो बादलों का अप्रत्यक्ष प्रभाव है।

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