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समय (काल) भूगोल (Time Geography)

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इस लेख के माध्यम से आप स्वीडन के भूगोलवेत्ता हेगरस्ट्रेण्ड के समय भूगोल (Time Geography) से संबंधित विचारों को जानेंगे।

समय (काल) भूगोल (Time Geography)

स्वीडन के भूगोलवेत्ता हेगरस्ट्रेण्ड (T. Hagerstrand) और उसके सहायकों ने लुण्ड विश्वविद्यालय में ‘समय के भूगोल’ सम्बन्धी विचार विकसित किए। समय और स्थान की जोड़ी अविछिन्न है, और “प्रत्येक घटना भूतकालीन स्थिति में अपनी जड़ें जमाए रहती है।” 

समय भूगोल का आधार प्रकृतिवाद (Naturalism) है, अर्थात् प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों की पद्धति में अनिवार्यतः एकता विद्यमान है। घटनाओं के अनुक्रमों अथवा तांता में (Sequence of Events) स्थान व समय की दृष्टि से तारतम्यता देखी जाती है।

समय-भूगोल की संकल्पना काण्ट की अवधारणा से मिलती जुलती है। काण्ट भूगोल व इतिहास की संगति को किसी प्रकार का तर्क नहीं मानता। वह दोनों को प्राकृतिक रूप से वर्गीकृत ठहराता है। काण्ट भूगर्भ विज्ञान में चट्टानों और वनस्पति विज्ञान में पादपों को तथा प्राणीविज्ञान में पशुओं को उनकी आकृति-मूलक विशेषताओं के आधार पर तार्किक रूप से वर्गों में विभक्त बताता है। 

परन्तु प्राकृतिक वर्गीकरण, इसके विपरीत, ऐसे व्यक्तिगत विषयों का संग्रह करता है जो समय के सन्दर्भ में अथवा स्थान के सन्दर्भ में समान बने हैं। हमारे अवबोध की समस्त परिधि को भूगोल व इतिहास घेरे हुए हैं- “भूगोल ‘स्थान’ Space) के सन्दर्भ में, और इतिहास ‘समय’ (Time) के सन्दर्भ में। (हार्ट शोर्न से उद्धृत, 1939)” 

हेगरस्ट्रेण्ड के अनुसार समय व स्थान ऐसे संसाधन हैं जो हमारी क्रियाओं को नियंत्रित बनाए हुए हैं। हमारे व्यवहार में प्रत्येक क्रिया साथ-साथ समय व स्थान की अनुपालना में पूर्ण होती है। नीचे दिए गए आरेख में क्रिया की गति क्षैतिज-धुरी पर स्थान में और ऊर्ध्वाधर पर समय में पूर्ण बनी है।

Hagerstrand time geography

हेगरस्ट्रेण्ड ने प्रारम्भिक समय-स्थान संकेत का विकास जनसंख्या विज्ञान में प्रयुक्त लेक्सिस बेकर (Lexis-Becker) के आरेख के मानक अनुसार किया। यह एक जाल- मॉडल (Web Model) है जो चार आधारभूत प्रस्तावों पर आधारित है-

(अ) स्थान व समय संसाधन हैं जिन पर प्रोजेक्ट की पूर्ति की जाती है, और

(ब) किसी प्रोजेक्ट की पूर्ति में तीन प्रकार के नियंत्रण (Constraints) आते हैं:

1. ‘क्षमता विषयक नियंत्रण’ (Capacity Constraints) 

यह व्यक्तियों की क्रियाओं को सीमित कर देता है। प्रत्येक स्थान व प्रत्येक समय व्यक्तियों की क्रिया-क्षमताएँ एवं साधन- सुविधाएँ समान नहीं रहती हैं। अतः व्यक्ति उन्हीं मार्गों की ओर उन्मुख बनकर क्रियापूर्ति करता है जो उसकी क्षमता अनुकूल सम्भाव्य और उपयुक्त बने रहते हैं। चाहे उसकी क्रियाएँ खेत-खलिहान, फैक्ट्रियों, शालाओं अथवा दुकानों से ही संबन्धित क्यों न हो, व्यक्ति क्षमतानुसार उपयुक्त मार्गों की अनुपालना करता है।

2. युग्मन अथवा संयोजन विषयक नियंत्रण (Coupling Constraints) 

संयोजन विषयक नियंत्रण से अभिप्राय स्थान-विशेष और निर्धारित समयों पर व्यक्तियों के युग्मों अथवा समूहों की सार्थकता से है। यह सार्थकता स्थान व समय के सन्दर्भ में क्रियाओं पर नियंत्रण करती है, और समय-स्थान के पुलिंदे निर्धारित करती है। यह संसाधनों का सामूहिक संयोजन अथवा पूल (Pool) है जो प्रोजेक्ट की पूर्ति में योग देता है।

3. प्रभुत्त्व नियंत्रण (Authority Constraints)

तीसरा नियंत्रण प्रभुत्त्व (Authority) अथवा मार्ग-दिखाने वाली सत्ता है जो समयानुकूल और निर्धारित स्थानों पर व्यक्तियों की क्रियाओं को प्रतिबाधित बनाती है।

(स) तीसरा आधारभूत प्रस्ताव हेगरस्ट्रेण्ड के जालनुमा मॉडल में ‘अन्तसक्रियता’ (Interactive) है जो उपर्युक्त नियंत्रणों में घटित बनी है। यही संभावित सीमाओं को निर्धारित करती है। मार्गों को भी यही इंगित करती है जो समूहों द्वारा विशेष प्रोजेक्ट के सम्पादन में योग रखते हैं।

इस सरल उदाहरण में व्यक्ति क्षेत्र को उस समय तक नहीं छोड़ सकता जब तक क्रिया के आरम्भ (समय 1) से अन्त (समय II) तक पूर्ति नहीं हो जाती है। इन दोनों समय के बीच में वह अधिकतम उपलब्धि स्थानिक-प्रसार (Spatial Range) में अर्जित करता है। (मील/कि.मी.)

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