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जीन्स तथा जैफ्रे की ज्वारीय परिकल्पना (1919)

Estimated reading time: 7 minutes

जीन्स तथा जैफ्रे की ज्वारीय परिकल्पना (1919) सौरमंडल की उत्पत्ति को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह परिकल्पना विशेष रूप से उन छात्रों के लिए उपयोगी है जो भूगोल विषय में B.A, M.A, UGC NET, UPSC, RPSC, KVS, NVS, DSSSB, HPSC, HTET, RTET, UPPCS, और BPSC जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। इस लेख में, हम इस परिकल्पना के विभिन्न पहलुओं, तर्कों और आपत्तियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, जिससे छात्रों को इस महत्वपूर्ण सिद्धांत को गहराई से समझने में मदद मिलेगी।

परिचय

जीन्स द्वारा 1919 में प्रस्तुत की गई ज्वारीय परिकल्पना को हेरोल्ड जैफ्रे ने 1926 में संशोधित किया। यह परिकल्पना सौरमंडल की उत्पत्ति को समझाने का प्रयास करती है। इस परिकल्पना के अनुसार, सूर्य के निकट एक विशाल तारे के आने से सौरमंडल के ग्रहों की उत्पत्ति हुई। यह सिद्धांत सौरमंडल की उत्पत्ति के अन्य सिद्धांतों से भिन्न है और इसमें गुरुत्वाकर्षण बल की महत्वपूर्ण भूमिका बताई गई है।

ज्वारीय परिकल्पना का विवरण

इस परिकल्पना के अनुसार, सूर्य से कई गुना बड़ा तारा किसी कारणवश सूर्य के निकट आ गया। इस विशाल तारे की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव से सूर्य पर एक ज्वार उठा। जैसे-जैसे तारा सूर्य के निकट आता गया, ज्वार का आकार बढ़ता गया। जब तारा सूर्य के बहुत निकट आ गया, तो ज्वारीय भाग का पदार्थ सूर्य से अलग हो गया और एक सिगार (Cigar) का रूप धारण कर लिया। इस सिगार के बीच का भाग मोटा और किनारों का भाग पतला था। 

तारे के दूर जाने पर तारे की आकर्षण शक्ति कम हो गई और यह ज्वारीय पदार्थ तारे के पीछे अधिक दूरी तक नहीं जा सका। सूर्य से दूर होने के कारण यह सूर्य में भी वापिस न जा सका। आकर्षण-सिद्धांत के अनुसार यह ज्वारीय पदार्थ सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करने लगा सिगार के अन्दर एक पदार्थ तीव्रता से ठंडा हुआ और इसमे कई गांठे बन गई। ये गाठें बाद में ग्रहों के रूप में परिवर्तित हो गई।

ग्रहों में पदार्थ पर सूर्य के आकर्षण का प्रभाव पड़ा और उनमें ज्वार उत्पन्न हो गए। ग्रहों के इस ज्वारीय पदार्थ से उपग्रहों की उत्पत्ति हुई।

Tidal Hypothesis of Jeans sand Jeffreys
जीन्स तथा जैफ्रे की ज्वारीय परिकल्पना के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति

विवेचना

  1. ग्रहों का आकार: सिगार के रूप में ज्वारीय पदार्थ के कारण सौरमंडल के बीच के ग्रह बड़े और किनारों के ग्रह छोटे होने चाहिए। वर्तमान ग्रहों की व्यवस्था इसी प्रकार की है। उदाहरण के लिए, बृहस्पति और शनि जैसे बड़े ग्रह सौरमंडल के बीच में स्थित हैं, जबकि बुध और नेपच्यून जैसे छोटे ग्रह किनारों पर स्थित हैं।
  2. उपग्रहों की संख्या: बड़े ग्रहों के उपग्रहों की संख्या अधिक और छोटे ग्रहों के उपग्रहों की संख्या कम होती है, जो इस परिकल्पना के अनुसार है। उदाहरण के लिए, बृहस्पति के कई उपग्रह हैं, जबकि बुध और शुक्र के कोई उपग्रह नहीं हैं।
  3. उपग्रहों का क्रम: उपग्रहों का आकार भी ग्रहों के क्रम के समान ही है, अर्थात बीच में बड़ा और किनारों पर छोटा। यह इस परिकल्पना के समर्थन में एक और तर्क है।
  4. ग्रहों का पदार्थ: सभी ग्रहों में एक जैसा पदार्थ पाया जाता है, क्योंकि इनकी उत्पत्ति सूर्य से अलग हुए ज्वारीय पदार्थ से हुई है। यह इस परिकल्पना को और भी मजबूत बनाता है, क्योंकि यह दर्शाता है कि सभी ग्रह एक ही स्रोत से बने हैं।
  5. पृथ्वी की अवस्था: इस परिकल्पना में पृथ्वी को द्रव अवस्था में स्वीकार किया गया है, जो आधुनिक विचारधारा के अनुकूल है। यह दर्शाता है कि प्रारंभिक पृथ्वी गर्म और तरल थी, जो समय के साथ ठंडी होकर ठोस में परिवर्तित हो गई।

आपत्तियां

  1. तारों की दूरी: लेविन के अनुसार, अन्तरिक्ष में तारों के बीच इतनी अधिक दूरियां हैं कि किसी तारे का सूर्य के निकट आकर ज्वार उत्पन्न करना असंभव है। यह इस परिकल्पना के सबसे बड़े विरोधाभासों में से एक है।
  2. सूर्य का तापमान: सूर्य के धरातल पर ज्वार तभी उठ सकता है जब आन्तरिक तापमान कई लाख डिग्री सेल्सियस हो, जिससे ज्वारीय पदार्थ ग्रहों के रूप में घनीभूत होने की बजाय आकाश में फैल जाएगा। यह इस परिकल्पना के खिलाफ एक और तर्क है।
  3. ग्रहों की दूरियां: सौरमंडल के ग्रहों के बीच की दूरियां बहुत अधिक हैं, जिन्हें यह परिकल्पना प्रमाणित नहीं कर पाती। पेरिस्की के अनुसार, इतनी दूरियां इस परिकल्पना के अनुसार संभव नहीं हैं। उदाहरण के लिए, बृहस्पति और वरुण की सूर्य से दूरियां सूर्य के व्यास से क्रमशः 500 और 3200 गुनी हैं।
  4. मंगल ग्रह का आकार: मंगल ग्रह सूर्य से पृथ्वी की अपेक्षा अधिक दूरी पर है, लेकिन यह पृथ्वी से छोटा है, जो इस परिकल्पना के विपरीत है। यह इस परिकल्पना के खिलाफ एक और तर्क है।
  5. कोणीय संवेग: ग्रहों में अधिक कोणीय संवेग है, जो इस परिकल्पना के अनुकूल नहीं है। यह दर्शाता है कि ग्रहों की गति और उनके कोणीय संवेग को यह परिकल्पना सही तरीके से नहीं समझा पाती।
  6. तारे का भविष्य: जिस तारे के कारण सूर्य में ज्वार उत्पन्न हुआ, उसका बाद में क्या हुआ, इसका उत्तर इस परिकल्पना में नहीं दिया गया। यह इस परिकल्पना के सबसे बड़े अनुत्तरित प्रश्नों में से एक है।

इस प्रकार, जीन्स तथा जैफ्रे की ज्वारीय परिकल्पना सौरमंडल की उत्पत्ति को समझाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है, लेकिन इसमें कुछ आपत्तियां भी हैं जिन्हें ध्यान में रखना आवश्यक है।

Test Your Knowledge with MCQs

  1. जीन्स तथा जैफ्रे की ज्वारीय परिकल्पना किस सिद्धांत से संबंधित है?
    • A) सौरमंडल की उत्पत्ति
    • B) पृथ्वी की संरचना
    • C) जलवायु परिवर्तन
    • D) भूगर्भीय गतिविधियाँ
  2. ज्वारीय परिकल्पना के अनुसार, सौरमंडल के ग्रहों की उत्पत्ति किसके कारण हुई?
    • A) सूर्य के विस्फोट से
    • B) एक विशाल तारे के सूर्य के निकट आने से
    • C) पृथ्वी के ज्वालामुखी से
    • D) चंद्रमा के प्रभाव से
  3. ज्वारीय परिकल्पना में ज्वारीय पदार्थ का रूप क्या था?
    • A) गोलाकार
    • B) सिगार के आकार का
    • C) त्रिकोणीय
    • D) वर्गाकार
  4. ज्वारीय परिकल्पना के अनुसार, सिगार के बीच का भाग कैसा था?
    • A) पतला
    • B) मोटा
    • C) ठोस
    • D) तरल
  5. ज्वारीय परिकल्पना के अनुसार, ग्रहों का आकार किस पर निर्भर करता है?
    • A) सूर्य से दूरी पर
    • B) ज्वारीय पदार्थ के आकार पर
    • C) तारे की गति पर
    • D) चंद्रमा की स्थिति पर
  6. ज्वारीय परिकल्पना के अनुसार, बड़े ग्रहों के उपग्रहों की संख्या कैसी होती है?
    • A) कम
    • B) अधिक
    • C) समान
    • D) कोई उपग्रह नहीं
  7. ज्वारीय परिकल्पना के अनुसार, सभी ग्रहों में किस प्रकार का पदार्थ पाया जाता है?
    • A) भिन्न-भिन्न
    • B) एक जैसा
    • C) ठोस
    • D) गैसीय
  8. ज्वारीय परिकल्पना के अनुसार, पृथ्वी की प्रारंभिक अवस्था कैसी थी?
    • A) ठोस
    • B) गैसीय
    • C) द्रव
    • D) प्लाज्मा

उत्तर:

  1. A) सौरमंडल की उत्पत्ति
  2. B) एक विशाल तारे के निकट आने से
  3. B) सिगार के आकार का
  4. B) मोटा
  5. B) ज्वारीय पदार्थ के आकार पर
  6. B) अधिक
  7. B) एक जैसा
  8. C) द्रव

FAQs

जीन्स तथा जैफ्रे की ज्वारीय परिकल्पना क्या है?

जीन्स तथा जैफ्रे की ज्वारीय परिकल्पना 1919 में प्रस्तुत की गई थी। इस परिकल्पना के अनुसार, एक विशाल तारा सूर्य के निकट आया और उसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण सूर्य पर ज्वार उत्पन्न हुआ। यह ज्वारीय पदार्थ सूर्य से अलग होकर सिगार के आकार का हो गया और सिगार के अन्दर पदार्थ तीव्रता से ठंडा हुआ और इसमे कई गांठे बन गई। ये गाठें बाद में ग्रहों के रूप में परिवर्तित हो गई।। इस परिकल्पना के अनुसार, सौरमंडल के ग्रहों की उत्पत्ति इसी ज्वारीय पदार्थ से हुई।

ज्वारीय परिकल्पना के अनुसार ग्रहों का आकार कैसे निर्धारित होता है?

ज्वारीय परिकल्पना के अनुसार, सिगार के आकार के ज्वारीय पदार्थ के कारण सौरमंडल के बीच के ग्रह बड़े और किनारों के ग्रह छोटे होते हैं। उदाहरण के लिए, बृहस्पति और शनि जैसे बड़े ग्रह सौरमंडल के बीच में स्थित हैं, जबकि बुध और नेपच्यून जैसे छोटे ग्रह किनारों पर स्थित हैं।

ज्वारीय परिकल्पना के अनुसार पृथ्वी की प्रारंभिक अवस्था कैसी थी?

ज्वारीय परिकल्पना के अनुसार, पृथ्वी की प्रारंभिक अवस्था द्रव थी। यह दर्शाता है कि प्रारंभिक पृथ्वी गर्म और तरल थी, जो समय के साथ ठंडी होकर ठोस में परिवर्तित हो गई। यह आधुनिक विचारधारा के अनुकूल है और इस परिकल्पना को समर्थन प्रदान करता है।

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