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स्ट्रैबो का भूगोल में योगदान (Strabo’s Contribution to Geography)

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स्ट्रैबो (Strabo) का भूगोल में योगदान (64 ई०पू० से 20 ई०)

  • रोमन भूगोलवेत्ताओं में स्ट्रैबो का प्रमुख स्थान रहा है। स्ट्रैबो का जन्म कालासागर के तट से लगभग 80 किमी० दक्षिण की ओर टर्की (एशिया माइनर) के भीतरी भाग में स्थित अमासिया नगर में हुआ था जहाँ यूनानियों की संख्या अधिक थी। 
  • 29 ई०पू० में वे रोम गए और वहाँ कई वर्षों तक रहे। उन्होंने नील नदी से साइने (आसवान) तक, आरमीनिया से टिरहेनियन सागर (Tyrrheniansea) तक और युगजाईन सागर से इथोपिया तक यात्राएं की थीं। उन्होंने यूनान के कोरिन्यस, एथेन्स, मेगरा, आर्गोस आदि स्थानों की भी यात्रा की थी। 
  • स्ट्रैबो ने महत्वपूर्ण लेखन कार्य अलेक्जण्डरिया में रहने के पश्चात् किया और अपनी पुस्तक यूनानी भाषा में लिखी। स्ट्रैबो ने अपने से पूर्ववर्ती सम्पूर्ण भौगोलिक ज्ञान को संग्रहीत करके एक सामान्य ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत करने का अग्रगामी और सराहनीय कार्य किया था। 
  • स्ट्रैबो ने ऐतिहासिक इतिवृत्त (Historical Memoir) के रूप में लगभग 43 पुस्तकों को लिखा था। उन्होंने ज्ञात संसार के वर्णन को 17 खण्डों वाले भौगोलिक विश्वकोश (Geographical Encyclopedia) में संकलित किया था जिसका नाम ज्योग्राफिया (Geographia) रखा। 
  • रोमन भूगोलवेत्ता स्ट्रैबो प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने भूगोल की चारों प्रमुख शाखाओं- गणितीय, भौतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक को एक साथ समाहित करके एक सम्पूर्ण भौगोलिक ग्रंथ की कल्पना की थी। 
  • स्ट्रैबो के ग्रंथों का महत्व इसलिए भी अधिक है कि उन्होंने अपने ग्रंथों में उन विद्वानों के विचारों और कार्यों को भी उद्धृत किया है जिनकी रचनाएं नष्ट हो गई हैं और उपलब्ध नहीं हैं। 
  • स्ट्रैबो ने ज्योग्राफिया नामक पुस्तक भूगोलवेत्ताओं के लिए नहीं बल्कि राजनीतिज्ञों, राजनेताओं और सामान्य पाठकों के लिए लिखा था। यही कारण है कि इस ग्रंथ में प्रत्येक देश की सामान्य भौगोलिक विशेषताओं, भौतिक आकार एवं धरातलीय बनावट, प्राकृतिक उत्पादनों आदि के साथ ही वहाँ की सांस्कृतिक भिन्नताओं, शासन प्रणालियों तथा रीति-रिवाजों का भी वर्णन किया गया है। 
  • स्ट्रैबो के ज्योग्राफिया नामक विश्वकोश की 17 खण्डों (पुस्तकों) की विषय सामग्री इस प्रकार है : प्रथम दो खण्डों में विषय की प्रस्तावना दी गई है जिसमें पुस्तक के लक्ष्य, उद्देश्य तथा मौलिक सिद्धान्तों की चर्चा की गयी है। इसमें लेखक ने इरेटोस्थनीज तथा अन्य पूर्ववर्ती विद्वानों के कार्यों की आलोचनात्मक समीक्षा किया है। 
  • तीसरे खण्ड में पश्चिमी यूरोप स्पेन, गाल (फ्रांस) और ब्रिटेन का भौगोलिक वर्णन है। चौथे खण्ड में गाल (फ्रांस), ब्रिटेन और आल्पस पर्वत का वर्णन है। 
  • पाँचवें और छठें खण्डों में इटली और सिसली का वर्णन है। सातवें खण्ड में स्ट्रैबो ने राइन के पूर्व और डेन्यूब के उत्तर में स्थित देशों का संक्षिप्त वर्णन किया है। 
  • आठवें, नौवें और दसवें खण्डों में यूनान तथा समीपवर्ती द्वीपों का भौगोलिक वर्णन है। स्ट्रैबो की ग्यारहवीं से लेकर सोलहवीं पुस्तकों में एशिया के देशों का वर्णन है। अंतिम अर्थात् सत्रहवें खण्ड में अफ्रीका का वर्णन है और इसके लगभग दो-तिहाई भाग में मिस्र के भूगोल का वर्णन किया गया है। 
  • स्ट्रैबो (Strabo) ने भूगोल का उद्देश्य बताते हुए ज्योग्राफिया की पहली पुस्तक में लिखा है कि “भूगोल का उद्देश्य केवल सामाजिक जीवन और प्रशासनिक कार्यों में सहायता देना ही नहीं है बल्कि भूगोल एक स्वतंत्र विषय है जिसका उद्देश्य लोगों को इस संसार का, आकाशीय पिण्डों का, स्थल, महासागर, जीवों, वनस्पतियों, फलों तथा वृक्षों का और पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों में देखी जाने वाली अन्य वस्तुओं का ज्ञान उपलब्ध कराना है (H.L. Zones. 1927)।” 
  • प्राचीन यूनानी तथा रोमन भूगोलवेत्ताओं में स्ट्रैबो (Strabo) ही अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने भूगोल की कई शाखाओं- ऐतिहासिक, भौतिक, राजनीतिक, प्रादेशिक आदि का सार्थक वर्णन किया था। 
  • उन्होंने रोमन साम्राज्य के उत्थान और शक्ति पर इटली की आकृति, उच्चावच, जलवायु तथा स्थानिक सम्बंधों के प्रभाव की व्याख्या की थी। 
  • स्ट्रैबो (Strabo) ने यूनान तट के समीप कुछ लघु द्वीपों को आगे बढ़ती हुई तट रेखा में मिलते हुए निरीक्षण किया था और पाया था कि समुद्री तटों और तट के समीप स्थित द्वीपों के मध्य में तलछटी जमावों के परिणामस्वरूप उनके बीच स्थलीय सम्बंध स्थापित हो जाते हैं। 
  • स्ट्रैबो (Strabo) ने भूमध्यसागर में स्थित माउण्ट विसूवियस के ज्वलामुखी विस्फोटों का आंखों देखा वर्णन किया है और विसूवियस को एक जलते हुए पर्वत के रूप में प्रदर्शित किया है। उन्होंने लिखा है कि क्रेटर से बाहर निकलने वाला लावा धीरे-धीरे सघन और कठोर होकर मिलस्टोन के समान कठोर शैल में परिवर्तित हो जाता है। 
  • स्ट्रैबो (Strabo) ने यूनान के चूनापत्थर प्रदेश (कार्स्ट प्रदेश) में भूमिगत जल द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों के निर्माण का वर्णन भौतिक भूगोलवेत्ता के दृष्टिकोण से किया है।
  • स्ट्रैबो (Strabo) का सर्वाधिक योगदान प्रादेशिक भूगोल में माना जाता है। उन्होंने अपनी विभिन्न पुस्तकों में अलग-अलग प्रदेशों का भौगोलिक वर्णन किया है। उन्होंने इटली, स्पेन, गाल (फ्रांस), यूनान, उत्तरी एवं पूर्वी यूरोप, एशिया माइनर (टर्की), फारस, मेसोपोटामिया, भारत, अरब, सीरिया तथा मिस्र, लीबिया, इथोपिया आदि अफ्रीकी देशों का भौगोलिक वर्णन किया है। 
  • स्ट्रैबो (Strabo) की रचनाओं से उस समय तक ज्ञात संसार के विषय में जानकारी प्राप्त होती है यद्यपि दूरवर्ती क्षेत्रों के विषय में जानकारी कही-सुनी बातों पर आधारित होने के कारण त्रुटिपूर्ण थी । 
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