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रिचर्ड हार्टशोर्न (Richard Hartshorne)

Estimated reading time: 7 minutes

Richard Hartshorne

रिचर्ड हार्टशोर्न (Richard Hartshorne (1899-1992)) का बीसवीं शताब्दी के भौगोलिक चिन्तन के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती जर्मन, फ्रांसीसी, ब्रिटिश तथा अमेरिकी भूगोलवेत्ताओं द्वारा प्रतिपादित विचारों तथा संकल्पनाओं का सम्यक् अध्ययन किया और उनकी विद्वतापूर्ण तुलनात्मक समीक्षा की। उन्होंने आधुनिक भूगोल के वास्तविक स्वरूप को अपने लेखों, पुस्तकों तथा व्याख्यानों के माध्यम से स्पष्ट करने का सफल प्रयास किया। रिचर्ड हार्टशोर्न हार्टशोर्न अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के भूगोलवेत्ता थे जिन्होंने भूगोल के संकल्पनात्मक और विधितंत्रीय पक्ष के स्पष्टीकरण में अद्वितीय योगदान किया है।

रिचर्ड हार्टशोर्न (Richard Hartshorne): जीवन परिचय

रिचर्ड हार्टशोर्न हार्टशोर्न का जन्म 1899 में संयुक्त राज्य में पश्चिम पेन्सिलवेनिया के किट्टोनिंग (kittoning) नगर में हुआ था। स्थानीय स्कूल से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् हार्टशोर्न ने 1920 में प्रिन्सटन विश्वविद्यालय से गणित में उच्चशिक्षा प्राप्त किया और 1921-1923 तक शिकागो में रहकर सहायक अध्यापक के रूप में कार्य किया। उन्होंने 1924 में शिकागो विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की जिसका शोध विषय था- ‘शिकागो का झील परिवहन’ (Lake Transport of Chicago)

1924 में रिचर्ड हार्टशोर्न (Richard Hartshorne) की नियुक्ति मिनेसोटा विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग में व्याख्याता (Lecturer) के पद पर हुई जहाँ वे 1940 तक कार्य करते रहें। वे 1940 में विसकान्सिन विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष के पद पर आसीन हुए और सेवानिवृत्ति (1970) तक उसी पद पर कार्य करते रहे। अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् उन्हें राष्ट्रीय प्रोफेसर (Professor Emeritus) चुना गया। अमेरिकी भौगोलिक संघ ने उन्हें 1960 में ‘डेली स्वर्ण पदक’ प्रदान करके सम्मानित किया था।

रिचर्ड हार्टशोर्न (Richard Hartshorne) की रचनाएं

रिचर्ड हार्टशोर्न (Richard Hartshorne) ने भूगोल को संकल्पनात्मक दृष्टि से ठोस और सुदृढ़ स्वरूप प्रदान करने के उद्देश्य से दो लब्ध प्रतिष्ठित पुस्तके और लगभग 50 लेख प्रकाशित किये। उनकी दोनों पुस्तकों के नाम हैं –

(1) The Nature of Geography (भूगोल की प्रकृति), 1939, और

(2) Perspective on the Nature of Geography (भूगोल की प्रकृति पर संदर्श), 1959

रिचर्ड हार्टशोर्न (Richard Hartshorne) की ये दोनों पुस्तके भौगोलिक विचारधाराओं तथा उनके विकास के इतिहास पर अंग्रेजी भाषा में प्रामाणिक ग्रंथ हैं। ये दोनों पुस्तकें बस्तुतः एक-दूसरे की पूरक हैं और किसी भी एक से सम्पूर्ण आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पाती है। 

रिचर्ड हार्टशोर्न ने 1939 में अपनी चिरसम्पत रचना ‘The Nature of Geography’ (भूगोल की प्रकृति) में भौगोलिक साहित्य का विशद् विवेचना की थी और अनेक विख्यात प्राचीन एवं नवीन भूगोलवेत्ताओं के विचारों का प्रभावोत्पादक विश्लेषण प्रस्तुत किया था। इस पुस्तक की आलोचना हुई और इसके मूल तथ्यों पर पुनर्विचार के लिए नवीन चुनौतियां भी दी गयीं। 

इससे प्रेरित होकर हार्टशोर्न ने 1959 में अपनी दूसरी कृति ‘Perspective on the Nature of Geography’ (भूगोल की प्रकृति पर संदर्श) प्रकाशित की जिसमें उन्होंने अपनी रचना के सर्वमान्य निष्कर्षों का पुनर्कथन किया और तत्सम्बंधी आलोचना तथा नवीन विकास के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण संशोधन किया।

भूगोल की उपर्युक्त मानक पुस्तकों के अतिरिक्त हार्टशोर्न ने कृषि प्रदेश, नगरीय विकास, राजनीतिक भूगोल, आर्थिक भूगोल, भौगोलिक संकल्पना आदि विषयों पर भी सारगर्भित और शोधपूर्ण निबंध प्रकाशित करके भौगोलिक साहित्य को सम्पन्न बनाने में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया।

रिचर्ड हार्टशोर्न (Richard Hartshorne) की विचारधारा

आधुनिक भूगोल के संकल्पनात्मक विकास में हार्टशोर्न की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होने भूतल की संकल्पना, क्षेत्रीय भिन्त्रता की संकल्पना, भूदृश्य की संकल्पना, सम्भववाद, भूगोल में द्वैतवाद आदि विभिन्न संकल्पनात्मक पक्षों को सरल भाषा में दृष्टांत सहित स्पष्ट करने का सार्थक प्रयास किया है। उनकी विचारधारा के इन पक्षों का संक्षिप्त विवरण निम्नांकित है-

भूतल की संकल्पना (Concept of Earth’s Surface)

रिचर्ड हार्टशोर्न (Richard Hartshorne) ने भूतल के सम्बंध में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने का सार्थक प्रयास किया था। उन्होंने प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान काल तक के विद्वानों के विचारों की समीक्षा की ओर भूतल के विषय में अपना स्पष्ट मत व्यक्त किया। भूगोल एक क्षेत्रीय या स्थानिक विज्ञान (Spatial science) है जिसमें भूतल (Earth’s surface) का अध्ययन मानवगृह के रूप में किया जाता है। 

स्थानिक विज्ञान के तीन रूप हैं- खगोलशास्त्र (Astronomy), भूगर्भशास्त्र (Geology) और भूगोल (Geography)। खगोल शास्त्र में आकाशीय पिण्डों का और भूगर्भशास्त्र में पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन किया जाता है। भूगोल पृथ्वी की ऊपरी खोल अर्थात् भूतल के अध्ययन से सम्बंधित है। हार्टशोर्न ने स्पष्ट किया कि भूतल के अंतर्गत तीन भूक्षेत्र सम्मिलित होते हैं-

(1) स्थलमण्डल (Lithosphere) – पृथ्वी की ऊपरी सतह और उसके नीचे की पतली शैल परत जो भूतल को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।

(2) जल मण्डल (Hydrosphere) – पृथ्वी पर स्थिति जल राशियां या जलाशय ।

(3) वायुमण्डल (Atmosphere) – वायुमण्डल की निचली परत (क्षोभ मण्डल) जिसमें ऋत्विक और जलवायविक भिन्नताएं पायी जाती हैं और जो पृथ्वी की ऊपरी सतह के जैविक और अजैविक तत्वों को प्रभावित करती हैं।

क्षेत्रीय भिन्नता की संकल्पना (Concept of Areal Differentiation)

हार्टशोर्न ने हेटनर और कार्ल सावर के दृष्टिकोण का समर्थन किया और क्षेत्रीय भिन्नता की संकल्पना की समीक्षात्मक व्याख्या प्रस्तुत की। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘नेचर आफ ज्योग्राफी’ में लिखा है कि ‘भूगोल मानवगृह के रूप में पृथ्वी के एक स्थान से दूसरे स्थान पर पायी जाने वाली भिन्नता का वर्णन एवं व्याख्या करता  है (Geography is that discipline that seeks to describe and interpret the variable character from place to place on the earth as the world of man)। इस प्रकार हार्टशोन ने क्षेत्रीय भिन्नता की संकल्पना की पुष्टि की है।

भूदृश्य की संकल्पना (Concept of Landscape)

रिचर्ड हार्टशोर्न (Richard Hartshorne) ने पाया कि उनके पूर्ववर्ती विद्वानों द्वारा प्रस्तुत भूदृश्य की संकल्पना भ्रांतिपूर्ण और अस्पष्ट है। उन्होंने इस संकल्पना को भली प्रकार समझाते हुए स्पष्ट किया। उन्होंने सम्पूर्ण भूदृश्य को दो वर्गों में विभक्त किया- प्राकृतिक भूदृश्य और सांस्कृतिक भूदृश्य। 

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि लैण्डस्केप (भूदृश्य) जर्मन शब्दावली ‘लैण्डशाफ्ट’ का वास्तविक पर्याय नहीं है क्योंकि लैण्डशाफ्ट का प्रयोग कई अर्थों में किया जाता है जबकि भूदृश्य का सम्बंध भूतल के प्राकृतिक और मानवीय तथ्यों से है जो द्रष्टव्य होते हैं। हार्टशोर्न के अनुसार भूदृश्य भूतल की ही अभिव्यक्ति है जिसके निर्माण में उच्चावच, वनस्पति और मानव विन्यास का योगदान होता है। भूदृश्य की मूल प्रकृति की अभिव्यक्ति उसके रंग और रूप में होती है जिसे देखा और अनुभव किया जा सकता है।

सम्भववाद (Possibilism)

कार्ल सावर की भाँति रिचर्ड हार्टशोर्न (Richard Hartshorne) भी सम्भववाद के समर्थक थे। उन्होंने मनुष्य को पर्यावरण के परिवर्तक (modifier) के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने नियतिवादी जर्मन विचारधारा को अस्वीकार कर दिया और फ्रांसीसी विचारधारा सम्भववाद का समर्थन किया। उन्होंने अनेक स्थानों पर मानवीय तत्वों को भौतिक तत्वों से अधिक प्रभावशाली कारक माना और भौगोलिक अध्ययनों में मानवीय क्रिया-कलापों तथा उनसे उत्पन्न प्रतिरूपों के विश्लेषण को अधिक महत्वपूर्ण बताया।

भूगोल एक समन्वित विज्ञान (Geography as on Integrated Science)

रिचर्ड हार्टशोर्न (Richard Hartshorne) ने भूगोल में द्वैतवाद को अस्वीकार कर दिया था। वे पूर्ववर्ती भूगोलवेत्ताओं- रैटजेल, रिचथोफेन, ब्लाश, ब्रूंश आदि द्वारा किये गये मानव और भौतिक भूगोल, क्रमबद्ध और प्रादेशिक भूगोल के विभाजन को अनुचित और असत्य मानते थे। 

उनके अनुसार भूगोल एक समन्वित विज्ञान है जिसमें किसी तत्व विशेष का नहीं बल्कि तत्वों के एकीकरण और समष्टि का अध्ययन किया जाता है क्योंकि समष्टि के द्वारा ही किसी क्षेत्र को विशिष्ट स्वरूप प्राप्त होता है। उनके अनुसार मानवीय तत्वों को प्राकृतिक तत्वों से और प्रादेशिक पद्धति को क्रमबद्ध पद्धति से स्पष्टतः पृथक् नहीं किया जा सकता।

FAQs

रिचर्ड हार्टशोर्न का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

रिचर्ड हार्टशोर्न का जन्म 1899 में पश्चिम पेन्सिलवेनिया के किट्टोनिंग नगर में हुआ था।

रिचर्ड हार्टशोर्न की प्रमुख रचनाएं कौन-कौन सी हैं?

रिचर्ड हार्टशोर्न की दो प्रमुख रचनाएं हैं: “The Nature of Geography” (1939) और “Perspective on the Nature of Geography” (1959)।

रिचर्ड हार्टशोर्न ने किस सिद्धांत का समर्थन किया?

रिचर्ड हार्टशोर्न ने सम्भववाद (Possibilism) का समर्थन किया और मनुष्य को पर्यावरण के परिवर्तक के रूप में प्रस्तुत किया।

रिचर्ड हार्टशोर्न के विचारसे भूगोल किस प्रकार का विज्ञान है?

रिचर्ड हार्टशोर्न के अनुसार, भूगोल एक समन्वित विज्ञान है जिसमें तत्वों के एकीकरण और समष्टि का अध्ययन किया जाता है, ना कि किसी तत्व विशेष का।

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