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टालमी का भूगोल में योगदान (Ptolemy’s Contribution to Geography)

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टालमी का भूगोल में योगदान (Ptolemy’s Contribution to Geography)

जीवन परिचय

  • टालमी (90-168 ई०) का पूरा नाम क्लाडियस टालमी (Claudius Ptolemy) है। 
  • प्राचीनकाल के समस्त यूनानी और रोमन भूगोलवेत्ताओं में टालमी सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं।
  • टालमी के जन्मस्थान और प्रारंभिक जीवन के विषय में बहुत कम जानकारी प्राप्त है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि टालमी का जन्म यूनान के टालेभिस हर्मी नामक नगर में हुआ था तो कुछ का विश्वास है कि उनका जन्म अलेक्जण्डरिया (मिस्र) के समीप टालमी नामक ग्राम में हुआ था। कुछ लोग टालमी का जन्म स्थान पेल्यूसियस नगर को भी मानते हैं। 
  • जो भी हो, किन्तु इतना तय है कि टालमी ने अपने अध्ययन और लेखन सम्बंधी कार्य अलेक्जण्डरिया में रहकर ही पूरा किया था। इसीलिए वह ‘अलेक्जण्डरिया का टालमी’ के रूप में प्रसिद्ध है।
  • टालमी एक महान खगोलशास्त्री थे जिन्होंने खगोलशास्त्र की प्रसिद्ध पुस्तक ‘अलमाजेस्ट’ (Almagest) की रचना की थी। 
  • प्रेक्षण, अन्वेषण तथा लेखन द्वारा टालमी ने गणितीय भूगोल, मानचित्रकला और सामान्य भूगोल के क्षेत्र में अति महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 
  • टालमी के कार्यों का संकलन ‘अलमाजेस्ट’ नामक पुस्तक में किया गया जो अरबी भाषा में लिखी गयी है। टालमी की अन्य प्रमुख पुस्तकें हैं- ‘ज्योग्राफिया’ (Geographia), ‘ग्रहीय परिकल्पना’ (Planetary Hypothesis) और ‘एनेलिमा’ (Anaelema)

टालमी के कार्यक्षेत्र का विवरण

खगोलिकी (Astronomy )

  • टालमी की ‘अलमाजेस्ट’ नामक पुस्तक खगोलशास्त्र की प्रसिद्ध पुस्तक है जो दीर्घकाल (कई शताब्दियों) तक आकाशीय पिण्डों की गतिविधियों से सम्बंधित जानकारी के लिए मानक संदर्भ ग्रंथ के रूप में प्रतिष्ठित रही। 
  • उन्होंने अपने समय तक ज्ञात सभी महत्वपूर्ण स्थानों की गणितीय स्थिति का निर्धारण किया था जिसके लिए उन्होंने अक्षांश और देशांतर रेखाओं से सम्बन्धित हिप्पार्कस द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत को आधार बनाया था। 
  • टालमी ने खगोलिकी के विषय में विस्तृत जानकारी के लिए कई प्रकार के यंत्रों द्वारा प्रेक्षण और अन्वेषण कार्य भी किया था। उनका विश्वास था कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड के मध्य (केन्द्र) में स्थित है और स्थिर है तथा सभी आकाशीय पिण्ड उसकी परिक्रमा करते हैं। 
  • उन्होंने नक्षत्रों का वेध करके 1022 नक्षत्रों की सूची तैयार की थी। इसके पूर्व हिप्पार्कस द्वारा निर्मित नक्षत्रों की सूची में 850 नक्षत्र सम्मिलित किए गए थे। टालमी ने बताया था कि आकाश में एक स्थिर नक्षत्र मण्डल है। इसके बाहर गतिशील नक्षत्रों का मण्डल है जिसके बाहरी भाग में सबसे अधिक गतिशीलता पाई जाती है। 
  • टालमी की ‘ग्रहीय परिकल्पना’ (Planetary Hypothesis) नामक पुस्तक में आकाशीय पिण्डों के पारस्परिक सम्बंधों, उनके मध्य की दूरियों तथा उनकी गतियों आदि से सम्बंधित परिकल्पनाओं का विवरण दिया गया है। 
  • ‘एनेलिमा’ (Anuelima) नामक पुस्तक में नक्षत्र विज्ञान तथा प्रेक्षण की परिकल्पना आदि का सैद्धांतिक विवरण है। 
  • टालमी ने अपने प्रेक्षण और अनुभव के आधार पर नक्षत्रों के उदय तथा अस्त होने, सांध्य प्रकाश (गोधूलि एवं उपाकाल), ऋतु आदि का पंचांग (कैलेण्डर) भी तैयार किया था। टालमी के खगोलीय विचार यूरोपीय देशों में पन्द्रहवीं शताब्दी तक माने जाते रहे किन्तु बाद में नवीन खोजों ने टालमी के विचारों को अशुद्ध और दोषपूर्ण कर दिया। 

गणितीय भूगोल और मानचित्र कला (Mathematical Geography and Cartography) 

  • गणितीय भूगोल में टालमी का मुख्य कार्य प्रक्षेपों की रचना से सम्बंधित था। उन्होंने मानचित्र कला के अध्ययन को भूगोल का प्रमुख पक्ष स्वीकार किया था। 
  • टालमी हिप्पार्कस के निष्टावान अनुयायी थे जिसका दृढ़ मत था कि विश्व के सभी महत्वपूर्ण स्थानों के अक्षांश और देशान्तर का सही निर्धारण करके ही विश्व का सही मानचित्र बनाया जा सकता है। किन्तु ऐसे प्रेक्षणों की संख्या कम होने के कारण टालमी को यात्रियों और नाविकों द्वारा निर्धारित दूरियों पर आश्रित होना पड़ा जिसके कारण मानचित्र में अशुद्धि आना स्वाभाविक था । 
  • ‘ज्योग्राफिया’ (Geographia) नामक ग्रंथमाला के अंतर्गत टालमी की कुल आठ पुस्तकें प्रकाशित हुई जिनमें गणितीय भूगोल, मानचित्रकला और सामान्य भूगोल से सम्बंधित पुस्तकें सम्मिलित थीं। 
  • प्रथम पुस्तक सैद्धांतिक नियमों से सम्बंधित है जिसमें ग्लोब की रचना और मानचित्र प्रक्षेप की रचना विधि का वर्णन है। 
  • दूसरी से सातवीं पुस्तकों में लगभग 8000 स्थानों के नाम और उनकी ज्यामितीय स्थिति (अक्षांश देशांतर) का उल्लेख है। इनमें कुछ स्थानों की स्थिति ही वैज्ञानिक प्रेक्षण पर आधारित थी और अधिकांश स्थानों के अक्षांश और देशांतर यात्रा वर्णनों तथा पुराने मानचित्रों के आधार पर निर्धारित किये गए थे। 
  • आठवीं पुस्तक में मानचित्रकला के सिद्धांतों, प्रक्षेपों तथा खगोलिकीय वेधों आदि का विवरण दिया गया है। 
  • टालमी ने विश्व मानचित्र के निर्माण विधि का सविस्तार वर्णन किया है। उन्होंने तत्कालीन ज्ञात विश्व के विषय में उपलब्ध जानकारी के आधार पर अपने पूर्ववर्ती विद्वानों के मानचित्रों में महत्वपूर्ण सुधार किया था।
  • टालमी ने विश्व मानचित्र के लिए निर्मित्त प्रक्षेप में भूमध्य रेखा तथा अन्य अक्षांश रेखाओं को समानांतर वक्रों द्वारा और देशांतर रेखाओं को भूमध्य रेखा पर समकोण पर काटते हुए दिखाया था। देशांतर रेखाओं को सीधी रेखा द्वारा मानचित्र की सीमा से बाहर स्थित ध्रुवों पर मिलती हुई दिखाया गया था जो वास्तविकता के अधिक समीप है। 
  • उन्होंने अपने विश्व मानचित्र के लिए हिप्पार्कस के विचार को आधार बनाया था जिसने भूमध्य रेखा को 360 अंशों में विभाजित किया था। 
  • उन्होंने पृथ्वी के परिधि की लम्बाई पोसीडोनियस की अनुमानित लम्बाई 18000 मील के बराबर माना। इसके अनुसार प्रत्येक अंश के बीच की दूरी 500 स्टेडिया (50 मील) माना गया था जो वास्तविक दूरी (700 स्टेडिया या 70 मील) से काफी कम थी। इस कारण पृथ्वी का आकार वास्तविक से छोटा तथा बाह्य क्षेत्रों का आकार त्रुटिपूर्ण था। 
  • टालमी की ग्रंथमाला ज्योग्राफिया में एक विश्व मानचित्र के अतिरिक्त 26 अन्य मानचित्र भी सम्मिलित हैं। टालमी ने विश्व मानचित्र की रचना के लिए संशोधित शंक्वाकार प्रक्षेप (modified conical projection) का निर्माण किया था। इसके लिए पृथ्वी को 360 देशांतरों में विभक्त किया गया है किन्तु ज्ञात संसार (पूर्वी गोलार्द्ध) को प्रदर्शित करने के लिए मानचित्र को 180 अंश देशांतरों का बनाया गया था। 
  • प्रधान मध्याह्न रेखा काल्पनिक सौभाग्य द्वीपों (कनारी द्वीपों) के पास से गुजरती दिखायी गई थी ।
  • टालमी ने दो नये प्रक्षेपों की रचना विधि का भी विवेचन किया है। इनमें एक है लम्बकोणीय प्रक्षेप (Orthogonal projection) जिसे तीन तलों (planes) के आधार पर तीन प्रकार से बनाया जा सकता है
    • क्षैतिज तल (horizontal plane) पर,
    •  याम्योत्तरीय तल (meridional plane) पर, और 
    • ऊर्ध्वाधर तल (vertical plane) पर। 

इनका दूसरा प्रक्षेप त्रिविम प्रक्षेप (stereographic projection) है जिसे दक्षिणी ध्रुव की केन्द्र मानकर बनाया गया था। 

सामान्य और प्रादेशिक भूगोल (General and Regional Geography) 

  • टालमी की आठ खण्डों वाली प्रसिद्ध ग्रंथमाला ज्योग्राफिया मुख्यतः सामान्य भूगोल से सम्बंधित है और भूगोल के विविध पक्षों पर प्रकाश डालती है। इसमें सामान्य सैद्धान्तिक नियमों, स्थानों की स्थितियों, मानचित्र कला की विधियों आदि का वर्णन किया गया है। 
  • टालमी ने पश्चिमी यूरोप के कई प्रदेशों का सविस्तार वर्णन किया है। उन्होंने ज्योग्राफिया के द्वितीय खण्ड में यूरोप के फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, ब्रिटेन, मध्य यूरोप आदि प्रदेशों की विभिन्न प्रादेशिक विशेषताओं का भौगोलिक वर्णन किया है। 
  • उन्होंने एशिया के भारत, चीन, पश्चिमी और मध्य एशिया की भौगोलिक विविधताओं का भी वर्णन किया है। संभवतः अल्प जानकारी के कारण टालमी ने अफ्रीका के केवल उत्तरी भाग और नील नदी के विषय में ही लिखा है। 

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