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प्रसम्भाव्यवाद (Probabilism)
ब्रिटिश भूगोलवेत्ता स्पेट (O.H.K. Spate) ने 1957 में ‘प्रसम्भाव्यवाद‘ (Probabilism) संकल्पना को प्रतिपादित किया। इस विचारधारा के अनुसार भूतल के विभिन्न भागों की प्राकृतिक दशाओं में विविधता तथा विलक्षणता पायी जाती है। किसी प्रदेश में कोई तत्व मानव के लिए अधिक उपयोगी है तो अन्य क्षेत्र में दूसरा तत्व। मानव के लिए उपयोगी सभी वस्तुएं भूतल के सभी भागों में समानरूप से नहीं पाई जाती है। किसी प्रदेश में कृषि के लिए प्राकृतिक परिस्थिति उपयुक्त है तो किसी प्रदेश में पशुचारण या खनन या औद्योगिक विकास के लिए।
इस प्रकार प्रत्येक भूक्षेत्र में अनेक सम्भावनाएं विद्यमान होती हैं। जिनमें कुछ अधिक लाभदायक होती हैं। अपने हित में मानव को चाहिए कि वह प्रकृति द्वारा प्रस्तुत विभिन्न सम्भाव्यताओं या विकल्पों में से उसका चयन करे जो अन्य की तुलना में अधिक उपयोगी तथा लाभदायक हो। इसके लिए मनुष्य को भूतल की प्राकृतिक विशेषताओं या स्थानिक सम्भाव्यताओं को समझना तथा उनमें से सर्वोपयुकत को चुनना आवश्यक होता है।
प्रसम्भाव्यवाद (Probabilism) की संकल्पना पर्यावरण नियतिवाद और सम्भववाद के मध्य समन्वय पर बल देती है। उसमें प्राकृतिक पर्यावरण की विशेषताओं तथा मानवीय क्षमता एवं कार्यकुशलता दोनों के महत्व पर ध्यान दिया जाता है। पर ब्लाश द्वारा प्रतिपादित सम्भववाद के अधिक निकट है और उसका ही संशोधित रूप है, किन्तु इसमें प्रकृति के महत्व पर भी ध्यान दिया गया है।
इस संकल्पना के अनुसार जिस प्रदेश में चावल की कृषि के लिए भौगोलिक दशाएं सर्वाधिक उपयुक्त हैं (जैसे पश्चिम बंगाल) वहाँ चावल की खेती द्वारा ही सर्वाधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है और इसके स्थान पर अन्य किसी फसल की खेती करने पर हानि की सम्भावना है। इसी प्रकार जिन प्रदेशों में जिन उत्पादनों के लिए प्राकृतिक परिस्थितियां उपयुक्त हों, वहाँ उन्हीं का उत्पादन करना लाभदायक तथा मानव हित में है। इस प्रकार प्रसम्भाव्यवाद (Probabilism) तमाम उपलब्ध विकल्पों में से अधिक उपयोगी विकल्प के चुनाव पर बल देता है।
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