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इस लेख में आप भूगोल में आधुनिक प्रसंग के अंतर्गत उत्तरआधुनिकता एवं नारीवाद (Postmodernism and Feminism) के बारे में जानेंगे।
जाति-प्रजाति के अतिरिक्त अनेक महत्त्वपूर्ण संबन्धों में से लिंग का तत्त्व भी उत्तर-आधुनिक साहित्य से संबन्धित है। नारीत्व भूगोल आर्थिक, सामाजिक ओर सांस्कृतिक रूप में दैनिक जन-जीवन से अन्तर्सम्बन्धित है। दूसरे रूप से व्यक्त करें तो यह लिंग-कारक है जो आजकल असमानता और प्रताड़ना जैसे सामाजिक अभिशाप का शिकार है। जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में नारी के प्रति भेदभाव किया जाता है, और नारी-दमन समाज में व्यापक बन चुका है। नारी विषयक भेदभाव को उजागर बनाना और उसका विरोध भूगोल- पेशावरों में अध्ययन के अनेक उद्देश्यों में से एक उद्देश्य है।
जॉनसन (1989) के अनुसार नारीवाद भूगोल में महिलाओं के सामान्य अनुभवों की पहचान करना, पुरुषों द्वारा दमन के प्रति उनका प्रतिरोध और उसको अन्त करने की प्रतिबद्धता आदि विषय सम्मिलित है। नारीवाद भूगोल का उद्देश्य ‘नारी अभिव्यक्ति को प्रकट बनाना और अपने को नियंत्रित करना’ है। भूगोल का सोच और भौगोलिक अभ्यास प्रधानरूप से लिंग-दोष से ग्रसित बना है। भूगोल में केन्द्रित पितृ सत्ता और लैंगिकता केन्द्रित रहे हैं। इनसे मुक्ति राजनीतिक उपायों से मिलेगी।
रोज (Rose, 1993) जैसे नारीवादी भूगोलवेत्ताओं ने जोर देते हुए व्यक्त किया है कि-
1. भूगोल का व्यवस्थित विषय ऐतिहासिक रूप से पुरुष-प्रधान है।
2. भूगोल-पेशे में महिलाओं को मात्र निरीह माना है और इसी रूप में संरक्षित किया। वस्तुतः महिलाओं को भूगोल ने हाशिए पर लाकर उनकी उपेक्षा की और उनको सताया है।
3. ‘नारीवाद’ भूगोल के प्रोजेक्टों एवं शोध-विषयों से अछूता विषय बना रहा, और
4. पुरुषों द्वारा भूगोल में प्रभुत्त्व के कारण इसके दूरगामी दुष्परिणाम निकले हैं। स्थानों अथवा क्षेत्रों और भू-दृश्य जगत् के निवर्चन एकांगी हैं। जहाँ प्रेक्षणों व आनुभविक ज्ञात केवल पुरुष-दृष्टि-प्रधान है।
अतएव, नियमानुरूप भूगोल विज्ञान (The Discipline of Geography) पुरुष- प्रधान (Masculinist) ही है जिसमें महिलाओं से संबन्धित सोच की उपेक्षा है। लिंग भेदभाव, वस्तुतः मानवीय कृत्य है। समाज के प्रभुत्वशाली समूहों ने समाज में अपने ही दृष्टिकोण से दृश्य-जगत् एवं प्रकृति को देखा और निवर्चित किया। यह भी कहें तो अत्युक्ति नहीं है कि पुरुषों ने अपने द्वारा की गई धरातल की व्याख्या को समाज पर थोपा है। उनके भौगोलिक विवरण स्त्री-पुरुष भेदभाव की ओर इंगित नहीं बने हैं। वे केवल जाति-प्रजाति और वर्गों तथा यौन-उन्मुख भेदों से भरे हैं।
उत्तरआधुनिक मानव भूगोलवेत्ताओं ने इस दिशा में निम्नांकित रूप-रेखा शोध हेतु प्रस्तुत की। इसके प्रधान विषय हैं-
1. नीति-संगत दार्शनिकता, नैतिक भूगोल और भूगोलवेत्ताओं का सदाचरण (Moral Philosophy, Moral Geographies and the Geographer’s Morality): इसके अन्तर्गत भूगोल में आर्थिक केन्द्र बिन्दु के स्थान पर जीवनोपयोगी नैतिक-संरचना को विकसित बनाना है।
2. सामाजिक भेदभाव की प्रक्रियाएँ (Social Differentiation): इसमें जाति, प्रजाति, वर्ग, यौनाचरण, आयु व स्वास्थ्य विषयक सराहना की और ध्यानाकर्षण द्वारा स्थानिक विभिन्नताओं एवं परिवर्तनशीलता का निवर्चन करना सम्मिलित है।
3. ताक (टांड) की रचना और सीमांकन (Shelf Construction): भूगोलविदों द्वारा इसमें विभिन्न श्रेणियों के व्यक्ति-व्यक्तियों में परस्पर संबन्ध और मनोविश्लेषणात्मक साहित्य में ऐसे विषयों की चर्चा जिनका पूर्व में उल्लेख नहीं हुआ है।
4. भूमण्डलीयता और प्रदेशीयता (Globality and Territoriality): इसमें स्थानों में व्यक्तियों व समूहों की अवस्थिति विषयक चर्चा और उनके सांस्कृतिक अभ्यासों का निवर्चन सम्मिलित है, और
5. समाज, संस्कृति और प्राकृतिक वातावरण (Society, Culture and Natural Environment): इसके अन्तर्गत विषयों में ‘प्रकृति’ एवं ‘वातावरण’ की सामाजिक रचना की व्याख्या, और वातावरणीय समस्याओं के निराकरण हेतु अपनाए गए अभिगमों की महत्ता का उल्लेख होना चाहिए।
उत्तरआधुनिकता और तर्क प्रधान उत्तरकालीन नारीवाद का मन्तव्य है कि भूगोल में एक प्रथक श्रेणी के रूप में महिलाओं की स्थिति, समस्या और स्थानिक निवर्चन को अलग-अलग समूहों से जोड़ा जाए तथा भिन्न उनकी आवश्यकताओं और अनुभवों की व्याख्या की जाए जो अभी तक भूगोल-साहित्य में नदारद-सामग्री है।