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सम्भववाद (Possibilism)

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सम्भववाद (Possibilism) का अर्थ

यह विचराधारा मानव-पर्यावरण के पारस्परिक सम्बंध की व्याख्या में मानव प्रयत्नों तथा क्रियाओं को अधिक महत्व देती है। बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में फ्रांसीसी मानव भूगोलवेताओं ने मनुष्य की स्वतंत्रता तथा उसकी कार्य कुशलता पर जोर दिया और मनुष्य पर प्राकृतिक शक्तियों का नियंत्रण बताने वाले नियतिवाद की कड़ी आलोचनाएं की। सम्भववाद के समर्थकों का मानना था कि मानव भी एक शक्तिशाली कारक है जो अपने क्रिया कलापों द्वारा प्राकृतिक भूदृश्य में परिवर्तन करता है और सांस्कृतिक दृश्यों का निर्माण करता है। 

गाँव, शहर, रेलमार्ग, सड़कें, पुल, नहरें, खेत, बागान, कारखाने आदि मनुष्य की कुशलता तथा किया-कलापों के ही परिणाम हैं। मनुष्य प्राकृतिक पर्यावरण से नियंत्रित नहीं है बल्कि उसने अपने विवेक एवं कुशलता से अनेक प्राकृतिक तत्वों पर विजय प्राप्त कर ली है। अतः मानव शक्ति को नकारा नहीं की जा सकता। मनुष्य के प्रयत्नों तथा क्रियाकलापों को प्रधानता प्रदान करने वाली इस विचारधारा को सम्भववाद के नाम से जाना जाता है।

सम्भववाद (Possibilism) की  विकास यात्रा

‘सम्भववाद’ (Possibilism) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसीसी विद्वान लुसियन फेब्रे (L. Febvre) ने सन् 1922 में किया था। उन्होंने इस विचारधारा का विस्तृत विवेचन अपनी पुस्तक ‘Geographical Introduction to History’ में किया है। फेब्रे ने प्राकृतिक पर्यावरण की अपेक्षा मानवीय प्रयत्नों तथा कार्यों को प्राथमिकता दी। सम्भववाद को स्पष्ट करते हुए उन्होंने लिखा है कि 

‘कहीं भी अनिवार्यता नहीं है, बल्कि सर्वत्र संभावनाएं विद्यमान हैं और मनुष्य इन सम्भावनाओं के स्वामी के रूप में उनके प्रयोग का निर्णायक’ (There is no necessities but everywhere possibilities and man as master of these possibilities is the judge of their use)

सम्भववादी विचारधारा के विकास का केन्द्र फ्रांस था जहाँ बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में बाइडल डी ता ब्लाश ने इसका जोरदार प्रतिपादन और समर्थन किया। रैटजेल और ब्लाश दोनों का पार्थिव एकता के सिद्धांत में अटूट विश्वास था किन्तु मानव – पर्यावरण सम्बंधों के विषय में दोनों के मत एक-दूसरे के विपरीत थे। रैटजेल की आस्था प्रकृति में थी और वे जीवन की प्रत्येक समस्या का हल प्रकृति (नियति) में ही ढूंढ़ते थे। इसके विपरीत बाइडल डी ला ब्लाश मनुष्य को प्राथमिकता देते थे और उनके मतानुसार मनुष्य स्वयं समस्या और हल दोनों ही है तथा प्रकृति उसकी उपदेशिका मात्र है।

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ब्लाश ने मनुष्य के विवेक, कौशल तथा क्रिया-कलापों को अधिक महत्वपूर्ण समझा और मानव शक्ति में आस्था व्यक्त की। उनका मत था कि प्रकृति ने कोई ऐसा निश्चित मार्ग नहीं तय कर रखा है जिस पर चलने के लिए मनुष्य को बाध्य होना पड़े बल्कि प्रकृति ने मनुष्य के सम्मुख अनेक साधन तथा सम्भावनाएं प्रस्तुत किया है जिसका प्रयोग करने के लिए मनुष्य स्वतंत्र है। मनुष्य अपनी क्षमता, कौशल तथा आवश्यकतानुसार उनका उपयोग कर सकता है।

प्रकृति द्वारा प्रस्तुत अनेक सम्भावनाओं में से वह अपनी क्षमता तथा आवश्यकतानुसार उपयोगी सम्भावना का चयन करता है। इस चयन में यह नियंत्रित नहीं बल्कि स्वतंत्र होता है। इस प्रकार वह भौतिक पर्यावरण को परिवर्तित करके सांस्कृतिक पर्यावरण का सृजन करता है। बाइडल डी ला ब्लाश के मतानुसार मनुष्य के लिए प्रकृति का स्थान एक सलाहकार से अधिक नहीं हो सकता (Nature is never more than an adviser)।

बाइडल डी ला ब्लाश की तरह ही जीन ब्रूंश(Brunhes) और डिमांजियाँ (Demangeon) ने भी मानवीय प्रयासों और कार्य-कलापों पर बल दिया। ब्रूंश मनुष्य और उसके कार्यों को ही प्रमुख मानते थे और प्रकृति का स्थान उनके लिए गौण था। ब्रूंश के अनुसार ‘मनुष्य एक निष्क्रिय प्राणी नहीं बल्कि एक क्रियाशील शक्ति है जो पर्यावरण को परिवर्तित करने में सतत प्रयत्नशील रहती है। मनुष्य जीवन पर्यंत क्रिया-प्रतिक्रिया में संलग्न रहता है’। डिमांजियां ने मानवीय क्रिया-कलापों की महत्ता पर जोर देते हुए स्पष्ट किया कि ‘उपजाऊ मिट्टी में तब तक अच्छी खेती नहीं की जा सकती जब तक कि मनुष्य अपनी शक्ति और तकनीक का प्रयोग नहीं करता’

सम्भववाद (Possibilism) के समर्थक अमेरिकी भूगोलविदों में ईसा बोमैन (Isaiah Bowman) का नाम विशेष उल्लेखनीय है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मनुष्य अपने क्रिया-कलापों के चयन के लिए स्वतंत्र है न कि प्रकृति के नियंत्रण में। उनका मत था कि प्राकृतिक पर्यावरण मानव समाज के स्वरूप को निर्धारित नहीं कर सकता। पर्यावरण के तत्व मनुष्य के सम्पर्क से परिवर्तित हो जाते हैं जिस प्रकार मानवता स्वयं भी परिवर्तनशील है।

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सम्भववाद (Possibilism) के पक्ष में तर्क देते हुए ईसा बोमैन ने लिखा है कि ‘मनुष्य दक्षिणी ध्रुव पर आरामदेय तथा प्रकाशयुक्त पूर्ण नगर का निर्माण करने में समर्थ है और वहाँ शिक्षा, रंगमंच, खेल आदि की व्यवस्था कर सकता है। मनुष्य सहारा में ऐसे कृत्रिम पर्वत का निर्माण कर सकता है जो वहाँ वर्षा होने के लिए विवश कर दे’

इस प्रकार सम्भववाद (Possibilism) के समर्थकों का मत है कि मनुष्य में इतनी शक्ति तथा कौशल विद्यमान है कि वह प्रकृति के नियंत्रण में नहीं रह सकता क्योंकि वह प्रकृति को अपनी आवश्यकता के अनुरूप मोड़ लेने या परिवर्तित करने में समर्थ है। उनका यह भी मानना है कि मनुष्य के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है, वह अपनी क्षमता तथा विवेक से सब कुछ सम्भव करने में समर्थ है। इतना अवश्य है कि मनुष्य प्रकृति से सहयोग प्राप्त करता है और उससे प्रभावित भी हो सकता है किन्तु उससे कदापि नियंत्रित नहीं है।

सम्भववाद (Possibilism) की आलोचना 

सम्भववादी विचारकों ने मनुष्य को सर्वशक्तिमान और प्रकृति का विजेता सिद्ध करने का प्रयास किया है जो निश्चय ही अतिशयोक्तिपूर्ण है। वास्तव में मनुष्य प्राकृतिक पर्यावरण का एक अभिन्न अंग है और उसके प्रभावों से पूर्णतया मुक्त नहीं हो सकता। मनुष्य ने विज्ञान और तकनीकों का विकास चाहे जितना कर लिया हो वह प्रकृति के प्रभावों से न तो एकदम छुटकारा पा सका है और न ही उस पर अपना पूर्ण आधिपत्य स्थापित कर पाया है। बिल्कुल अनुपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों में मानय क्रियाओं को उस प्रकार नहीं संचालित किया जा सकता है जिस प्रकार उपयुक्त दशाओं वाले प्रदेश में किया जाता है। 

मनुष्य की स्वतंत्रता अपरिमित नहीं बल्कि सीमित है और यह प्रकृति की पूर्ण अपहेलना और अपने मनमानी नहीं कर सकता। मनुष्य प्रकृति के विषय में जितना जान पाया है यह ज्ञान बहुत कम है। नयी-नयी खोजों द्वारा मनुष्य प्रकृति पर विजय प्राप्त करने का प्रयत्न कर सकता है किन्तु वह इतना व्यापक और अनंत है कि उसके प्रति मानव जिज्ञासा का कभी अंत हो पाना कठिन ही नहीं असम्भव प्रतीत होता है।

उत्तरी ध्रुव, ग्रीनलैंड तथा अंटार्कटिका के हिम से ढकी भूमि पर मनुष्य केला और गन्ने की खेती करने में सक्षम नहीं है क्योंकि यहाँ की भौगोलिक दशाएं इसके प्रतिकूल हैं। प्रकृति की प्रतिकूलता के कारण ही विश्व के बड़े-बड़े भूभाग अत्यधिक शीतलता (टुंड्रा), अत्यधिक आर्द्रता एवं उष्णता (भूमध्य रेखीय वन प्रदेश), अत्यधिक शुष्कता (मरुस्थलीय प्रदेश) आदि के कारण निर्जन प्राय हैं और उन प्रदेशों में जनसंख्या अधिक सघन बसी हुई है जहां जलवायु, मिट्टी, जलाशय, स्थलाकृति आदि मानव निवास के लिए उपयुक्त हैं। ये तथ्य प्रकृति के प्रभाव और मनुष्य की प्रकृति पर निर्भरता को सिद्ध करते हैं।

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मनुष्य गर्मी से बचाव के लिए मकानों को कृत्रिम रूप से शीतल कर सकता है और सर्दी से बचने के लिए उसे गर्म भी कर सकता है। कृत्रिम तापमान, आर्द्रता और प्रकाश आदि की व्यवस्था करके पौध गृह में मनचाही फसल के पौधे उगाने में मनुष्य सफल हो सकता है किन्तु किसी स्थान की जलवायु या मौसमी दशाओं को परिवर्तित कर पाना अभी मनुष्य के लिए सम्भव नहीं है। प्रतिकूल परिस्थितियों पर ध्यान न देकर या प्रकृति की अवहेलना करके मनुष्य अपनी ही क्षति करता है।

अतः उसे प्रकृति के साथ अनावश्यक छेड़-छाड़ नहीं बल्कि उससे आवश्यक सहयोग प्राप्त करना चाहिए। मानव जाति की भलाई के लिए प्रकृति पर विजय प्राप्त करने या उसके अंधाधुंध शोषण के स्थान पर उसके संरक्षण की आवश्यकता है। सम्भववादी विचार से पर्यावरण प्रदूषण तथा पर्यावरणी क्षति को प्रोत्साहन मिलता है जो किसी भी देश या मानव समुदाय के हित में नहीं है।

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