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इस लेख में आप अविख्यात जर्मन भूगोलवेत्ताओं (Noted German geographers) जैसे अल्ब्रेक्ट पेंक, वाल्थर पेन्क, कार्ल हाशोफर, वाल्टर क्रिस्टालर, आटो श्ल्यूट, कार्ल ट्राल के बारे में जानेंगे।
अविख्यात जर्मन भूगोलवेत्ता (Noted German Geographers)
अल्ब्रेक्ट पेंक (Albrecht Penck)
- अल्ब्रेक्ट पेन्क (1858-1945) बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में एक प्रमुख जर्मन भूगोलवेत्ता और भूविज्ञानी थे जिन्हें भू-आकृति विज्ञान, हिमनद विज्ञान और भौतिक भूगोल के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है।
- अल्ब्रेक्ट पेन्क का जन्म 25 सितंबर, 1858 को जर्मनी के रिडनिट्ज़ में हुआ था।
- उन्होंने लीपज़िग विश्वविद्यालय में प्राकृतिक विज्ञान और भूगोल का अध्ययन किया और बाद में 1884 में भूविज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
- वे पहले भूगोलवेत्ता थे जिन्होंने भूआकृति विज्ञान के विचारों को सूत्रबद्ध किया था। वे बर्लिन विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर थे। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘हिमयुग में आल्पस’ (The Alps in the Ice Age) 1910 में प्रकाशित हुई थी।
- पेन्क के शोध और हिमनद भू-आकृतियों, जैसे मोराइन और ड्रमलिन्स के मानचित्रण ने ऐतिहासिक हिमनद घटनाओं के बारे में हमारी समझ को आगे बढ़ाने में मदद की।
- पेन्क ने आल्प्स क्षेत्र के स्थलाकृतिक मानचित्र विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- उनके महत्वपूर्ण प्रकाशनों में “मॉर्फोलॉजिकल एनालिसिस ऑफ लैंडफॉर्म्स” (1924) और “द आइस एज प्रॉब्लम” (1929) शामिल किया जाता है।
- अंटार्कटिका में “पेनक ग्लेशियर” का नाम उनके सम्मान में रखा गया था।
वाल्थर पेन्क (Walther Penck)
- वाल्थर पेन्क (1888-1923) एक प्रमुख जर्मन भूविज्ञानी और भू-आकृतिविज्ञानी तथा अल्ब्रेक्ट पेन्क के पुत्र थे।
- उनका जन्म 1888 में जर्मनी के रिडनिट्ज़ में जन्म।
- उन्होंने लीपज़िग विश्वविद्यालय में प्राकृतिक विज्ञान, भूगोल और भूविज्ञान का अध्ययन किया तथा 912 में भूविज्ञान में डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी की।
- उन्होंने अपने लेखों में भूआकृतिक प्रक्रमों तथा स्थलाकृतियों के निर्माण की वैज्ञानिक व्याख्या की थी।
- उन्होंने डेविस के सामान्य अपरदन चक्र को अस्वीकार कर दिया था और यह सिद्ध किया था कि ज्यों ही कोई स्थल खण्ड ऊपर उठने लगता है उस पर अपरदन के प्रक्रम क्रियाशील हो जाते हैं। उनके अनुसार भू-उत्थान और अपरदन साथ-साथ चलते हैं।
- वाल्थर पेन्क के प्रमुख लेखों में “डाई मॉर्फोलॉजी एनालिसिस” (मॉर्फोलॉजिकल एनालिसिस) और “थ्योरी डेर एर्डबिल्डुंग” (पृथ्वी निर्माण का सिद्धांत) को शामिल किया जाता है।
कार्ल हाशोफर (Karl Haushofer)
- कार्ल हॉशोफ़र (1869-1946) एक प्रमुख जर्मन भूगोलवेत्ता, भू-राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद् थे।
- हॉशोफ़र को भू-राजनीति के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण प्रभाव के लिए जाना जाता है, जो भूगोल, राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के बीच संबंधों की जांच करता है।
- उनकी पुस्तक “जियोपोलिटिक” (1924) ने देश की विदेश नीति को आकार देने में भौगोलिक कारकों के महत्व पर जोर देते हुए भू-राजनीति में प्रमुख अवधारणाओं को रेखांकित किया।
- हॉशोफ़र ने म्यूनिख विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की उपाधि प्राप्त की तथा 1924 में चेन विश्वविद्यालय (Munchen University) में भूगोल के प्रोफेसर नियुक्त हुए थे
- भूराजनीति के क्षेत्र में हॉशोफ़र का विशिष्ट योगदान है। उन्होंने भूराजनीति पर एक प्रतिष्ठित पत्रिका (Zeitschrift for Geopolitik) की स्थापना की थी जिसमें तत्कालीन देश-विदेश के बड़े-बड़े विद्वानों के लेख प्रकाशित होते थे।
- उन्होंने भूराजनीति से सम्बंधित तीन पुस्तकें लिखीं: मीन कैफ (Mein kampf), प्रशांत महासागर की सीमाओं की भूराजनीति (Geopolitik of the Pacific Ocean Boundaries), और भूराजनीति की कोण शिलाएं (Cornerstones of Geopolitics)
वाल्टर क्रिस्टालर (Walter Christaller)
- प्रसिद्ध जर्मन अर्थशास्त्री और आर्थिक भूगोलवेत्ता वाल्टर क्रिस्टालर (1893-1910) ने दक्षिणी जर्मनी के सर्वेक्षण के आधार पर केन्द्र स्थल सिद्धांत (Central Place Theory) का प्रतिपादन किया था जो अधिवास भूगोल और नगरीय भूगोल का प्रमुख सिद्धांत है।
- उनकी शिक्षा एर्लांगेन विश्वविद्यालय और म्यूनिख विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ उन्होंने अपना केंद्रीय स्थान सिद्धांत विकसित किया।
- 1930 के दशक में विकसित क्रिस्टालर का केंद्रीय स्थल सिद्धांत बताता है कि किसी भौगोलिक क्षेत्र में शहर और कस्बों जैसी मानव बस्तियां कैसे और कहां वितरित होती हैं।
- उनके कुछ प्रमुख कार्यों में “दक्षिणी जर्मनी में केंद्रीय स्थान” और “सुडेउत्शलैंड में डाई ज़ेंट्रालेन ओर्टे” (जर्मन भाषा में) शामिल हैं।
- परवर्ती विद्वानों ने इसी के आधार पर अनेक नियमों, सिद्धांतों, माडलों आदि का निर्माण किया।
आटो श्ल्यूटर (Otto Schluter)
- ओटो श्ल्यूटर एक प्रसिद्ध जर्मन भूविज्ञानी और जीवाश्म विज्ञानी थे।
- श्ल्यूटर (1872-1952) का जन्म 23 जुलाई 1894 को वेस्टफालिया प्रांत में हुआ था।
- श्ल्यूटर 1911 से लेकर 1951 तक हाले विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर के रूप में सेवारत रहे।
- जर्मन भाषा में प्रकाशित अपने एक लेख (1906) ‘मानव भूगोल के उद्देश्य’ (Objectives of the Geography of Man) में उन्होंने भूगोल की एक नयी संकल्पना प्रस्तुत की जिसके अनुसार ‘भूगोल भूदृश्यों का अध्ययन है।’
- श्ल्यूटर ने भूदृश्यों को दो वर्गों में विभक्त किया था -(i) प्राकृतिक भूदृश्य और (ii) सांस्कृतिक भूदृश्य ।
- मध्य यूरोप के अधिवासों का उन्होंने गहराई से अध्ययन किया और अधिवास भूगोल की आधारशिला रखी थी। इसीलिए शल्यूटर की अधिवास भूगोल का जनक माना जाता है।
- उन्होंने जीवाश्मों और पुराजलवायु विज्ञान के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
कार्ल ट्राल (Karl Troll)
- कार्ल ट्राल (1899-1968) बीसवीं शताब्दी के प्रमुख जर्मन भूगोलवेत्ताओं में से एक थे।
- वे 1937 से 1965 तक बोन विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर और 1960 से 1964 तक अंतर्राष्ट्रीय भौगोलिक संघ (International Geographical Union-IGU) के अध्यक्ष थे।
- उन्होंने वनस्पति विज्ञान, भूगोल तथा अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की शिक्षा प्राप्त की थी।
- कार्ल ट्राल ने 1921 में वनस्पति विज्ञान में डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की थी।
- उन्होंने अनेक खोज यात्राएं और अन्वेषण कार्य किए थे। ट्राल ने 1921 में रिचथोफेन के साथ आर्कटिक की अन्वेषण यात्रा की थी। इसके पश्चात् वे 1924 में उत्तरी यूरोप, 1926 में एण्डीज क्षेत्र, 1933-34 में अफ्रीका और 1937 में हिमालय क्षेत्र की यात्रा पर गये थे।
- कार्ल ट्राल (1899-1968) बीसवीं शताब्दी के प्रमुख जर्मन भूगोलवेत्ताओं में से एक थे।
- वे 1937 से 1965 तक बोन विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर और 1960 से 1964 तक अंतर्राष्ट्रीय भौगोलिक संघ (International Geographical Union-IGU) के अध्यक्ष थे।
- उन्होंने वनस्पति विज्ञान, भूगोल तथा अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की शिक्षा प्राप्त की थी।
- कार्ल ट्राल ने 1921 में वनस्पति विज्ञान में डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की थी।
- उन्होंने अनेक खोज यात्राएं और अन्वेषण कार्य किए थे। ट्राल ने 1921 में रिचथोफेन के साथ आर्कटिक की अन्वेषण यात्रा की थी। इसके पश्चात् वे 1924 में उत्तरी यूरोप, 1926 में एण्डीज क्षेत्र, 1933-34 में अफ्रीका और 1937 में हिमालय क्षेत्र की यात्रा पर गये थे।
- कार्ल ट्राल एक प्रादेशिक परिस्थितिविज्ञानी (Regional ecologist) और प्रसिद्ध भूआकृति विज्ञानी (Geomorphologist) थे।
- उनके प्रमुख शोध कार्य एवं रचनाएँ का निम्नलिखित हैं:
- उन्होंने 1924 में अल्पाइन अग्रभूमि के हिमनद सम्बंधी अध्ययन का प्रकाशन हुआ।
- 1925 में मध्य यूरोप की वनस्पतियों का अन्वेषण किया
- 1926 में जर्मन आल्पस की वनस्पति तथा हैंटूशाफ्ट पर शोध पुस्तिका प्रकाशित हुई।
- 1930 में बावेरिया की हिमनदीय भूआकृतिकी (Glacial Morphology of Baveria) नामक पुस्तक प्रकाशित हुई।
- 1930 में दक्षिणी अमेरिका पर अनेक शोध पत्र प्रकाशित हुए।
- 1939 से 1943 के मध्य भूगोल के विधि तंत्र पर कई शोध पत्र प्रकाशित हुए।
- 1944 में ‘संरचनात्मक मृदा, मृदा अपरदन और पृथ्वी की भूतकालीन जलवायु’ (Structural Soils, Solifluction and Post-climates of the Earth) नामक पुस्तक प्रकाशित हुई।
- 1948 में परिहिमानी तथ्यों (Periglacial phenomena), भूकाल (Geochronology) और जलवायु परिवर्तन (climatic change) विषयों पर शोध पत्र प्रकाशित हुए।
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