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पुनर्जागरण काल के प्रमुख खोजयात्री (Main Explorers of Renaissance Period)
उत्तर मध्यकाल या पुनर्जागरण काल में पश्चिमी यूरोपीय देशों के शासकों तथा जनता के प्रोत्साहन तथा सहायता से अनेक खोज यात्रियों (नाविकों) ने नये-नये महासागरीय मार्गों और महाद्वीपों, द्वीपों, देशों आदि का पता लगाया। इस युग के खोजयात्रियों में मार्को पोलो, कोलम्बस, वास्को-डी-गामा, मैगेलन, कुक, अमेरिगो बस्पुक्की, जोन्स डीमांट, फ्रांसिस ड्रेक, हडसन आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। कुछ प्रमुख खोज यात्रियों की यात्राओं का संक्षिप्त विवरण अग्रांकित है।
मार्को पोलो (Marco Polo)
मार्को पोलो (1254-1324 ई०) तेरहवीं शताब्दी का महान खोज यात्री था जिसने वेनिस (इटली) से चलकर पश्चिमी एशिया और मध्य एशिया होते हुए पूर्वी चीन तक की तथा चीन से वियतनाम, मलाया, ब्रह्मा, श्रीलंका और भारत होते हुए अफगानिस्तान तक की यात्रा पूरी की थी। वहाँ से वह अंततः वेनिस लौट आया था। वह प्रथम महान यात्री था जिसने एशिया के पश्चिम से पूर्व की ओर के मार्ग की खोज की थी।
मार्को पोलो का जन्म (1254 ई०) बेनिस के एक सम्भ्रांत व्यापारी परिवार में हुआ था। उसके पिता निकाला और चाचा माफिओ दूर-दूर तक एशियाई देशों में व्यापारिक यात्राओं पर जाया करते थे। उन लोगों ने चीन तक की यात्रा की थी। सत्रह वर्ष की आयु में मार्को पोलो अपने पिता और चाचा के साथ बोनों को यात्रा पर निकला जहाँ तत्कालीन शासक कुबलाई खान ने उन्हें आमंत्रित किया था।
वेनिस से यात्रा आरंभ करके ये तीनों पहले फिलिस्तीन गये और वहाँ से ऐक्रे (टर्की) पहुँचे। ऐक्रे से ये लोग पूर्व की ओर मुड़ गये और उत्तरी ईरान से होते हुए फारस की खाड़ी पर स्थित हरेरमुज पहुँचे। वहाँ से ये लोग मंगोल की राजधानी के लिए उत्तर-पूर्व की ओर चल दिये और अफगानिस्तान में बदकशां पहुँचे जो अतिथियों के स्वागत-सत्कार के लिए प्रसिद्ध था।
बदकशां से प्रस्थान करके मार्को पोलो पामीर पठार से उत्तर-पूर्व की ओर उतरते हुए काश्गर (सिक्यांग प्रांत) पहुँचे। वहाँ से ये लोग तकलामकान के दक्षिणी-पूर्वी मरुद्यान से होते हुए कांसू (चीन) और अंततः मंगोल राजधानी पहुँचे और वहाँ के शासक कुवलाई खान को जेरूसलेम का पवित्र तेल और पोप का पत्र प्रदान किया।
लगभग 17 वर्षों तक तीनों यात्री कुबलाई खान के राज्य में रहे। मार्को पोलो को कई बार साम्राज्य के दूरवर्ती प्रदेशों में तथ्यों का पता लगाने के लिए भेजा गया। इससे उसने पूर्वी एशिया से सम्बद्ध विस्तृत जानकारी प्राप्त की थी। 1292 ई० के आस-पास एक मंगोल राजकुमारी को समुद्र मार्ग से फारस के सम्राट अरगुन खान के पास उनकी साम्राज्ञी बनने हेतु भेजना था।
सम्राट कुवलाई की अनुमति से मार्को पोलो भी अपने पिता और चाचा सहित उस जहाजी बेड़े के साथ अपने गृहोन्मुख यात्रा पर चल पड़ा। वह जहाजी बेड़ा वियतनाम, अनेक द्वीपों तथा मलाया प्रायद्वीप होते हुए सुमात्रा द्वीप पर पहुँचा जहाँ विपरीत दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवाओं से बचने के लिए लगभग 5 महीने रुकना पड़ा था। वह जहाजी बेड़ा निकोबार द्वीपों से होकर श्रीलंका, भारत के पश्चिमी तट और फारस के तट से होता हुआ अंततः सममुज पहुँचा।
वहाँ पहुँचने पर जब अरगुन खान के मृत्यु का समाचार मिला तो राजकुमारी को अरगुन खान के पुत्र महमूद गजनी को सौंपने के लिए खोरासन जाना पड़ा। वहाँ से मार्को पोलो यूरोप के लिए रवाना हुआ और कुस्तुनतुनिया होते हुए 1295 ई० में वेनिस वापस पहुँच गया। उस समय वेनिस और जिनोवा के बीच युद्ध चल रहा था।
मार्को पोलो को एक समुद्री बेड़े का कमांडर बनाकर भेजा गया जहाँ उसे बन्दी बनाकर जेल भेज दिया गया। जेल में रहकर मार्को पोलो ने फ्रांसीसी भाषा में एक पुस्तक लिखवाया था जिसका नाम था ‘विभिन्न साहसों की पुस्तक’ (Book of Various Enterprises)। उसकी एक दूसरी पुस्तक ‘दि मिलियन’ (The Million) का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद ‘मार्को पोलो की यात्राएं’ (Travels of Marco Polo) नाम से प्रकाशित हुआ।
क्रिस्टोफर कोलम्बस (Christopher Columbus)
अमेरिका के अन्वेषक के रूप में प्रसिद्ध क्रिस्टोफर कोलम्बस (1451-1506 ई०) का जन्म इटली के जिनोवा नगर में हुआ था। नौ संचालन में कोलम्बस की बड़ी रुचि थी। वह अल्पायु में सागर तटीय व्यापारिक यात्राओं पर जाने लगा था। लगभग 25 वर्ष की आयु में वह लिसबन (पुर्तगाल) में बस गया या और अपने भाई के साथ रहने लगा जो एक मानचित्रकार था।
लिसबन में रहते हुए कोलम्बस ने नौसंचालन और मानचित्रांकन में काफी अनुभव प्राप्त किया। उसने अगले कुछ वर्षों में आइसलैण्ड (1477), मदीरा (1478) और अफ्रीका के पश्चिमी तट (1483) की समुद्री यात्राएं की। कोलम्बस पियरे द एली की पुस्तक ‘इमेजिओमुंडी’ से काफी प्रभावित था जिसमें यह बताया गया था कि पृथ्वी गोलाकार है और पृथ्वी के सभी सागरीय भाग परस्पर जुड़े हुए हैं।
उस समय तक टालमी द्वारा पृथ्वी के आकार (परिधि) की गणना मान्य थी जो वास्तविक से बहुत कम थी। इस प्रकार कोलम्बस को विश्वास हो गया था कि पश्चिम की ओर समुद्री यात्रा करके जापान, चीन, भारत आदि देशों को पहुँचा जा सकता है। वह भारत से होने वाले मसाले के व्यापार के लिए लघु समुद्री मार्ग की खोज करना चाहता था किन्तु वित्तीय प्रबंध के अभाव में यह संभव नहीं था।
उसकी इस साहसिक अभियान की योजना जानने पर स्पेन की साम्राज्ञी ईसाबेला ने कोलम्बस के इस अभियान के लिए पूरी सहायता प्रदान की। कोलम्बस अपने 90 नाविक साथियों को लेकर 3 अगस्त 1492 को स्पेन के पालोस (Palos) समुद्रपत्तन से भारत के लिए प्रस्थान किया। उसके जहाजी बेड़ा में ‘सांता मारिया’ और दो अन्य छोटे जहाज ‘पिन्टा’ और ‘दीना’ सम्मिलित थे। वह कनारी द्वीपों से होते हुए पश्चिम की ओर आगे बढ़ता गया। 12 अक्टूबर 1492 बीचयाह बहामा के बाल्टिंग द्वीप पहुँचा और वहाँ से दक्षिण की ओर अनेक द्वीपों की खोज की जिनका नाम पश्चिमी द्वीप समूह (West Indies) रखा गया।
वहाँ से वह उत्तरी क्यूबा के तट से होता हुआ हिस्पेनीओला (केटी) पहुँचा। वहाँ बस्ती बसाने के उद्देश्य से अपने 44 साथियों को छोड़कर स्वदेश के लिए प्रस्थान किया। कोलम्बस का विश्वास था कि उसने भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज कर ली है क्योंकि यह वेस्ट इंडीज को ही भारत (India) समझ रहा था। कोलम्बस 15 मार्च 1493 को वापस पालोस पहुँचा जहाँ उसकी सफलता से उत्साहित नागरिकों और सरकार ने उसका जोरदार स्वागत-सत्कार किया।
24 सितम्बर, 1493 को कोलम्बस पश्चिमी द्वीप समूह के लिए दूसरी यात्रा पर निकला। अब की बार वह 17 जलयान, लगभग 1500 व्यक्तियों और प्रभूत मात्रा में खाद्य एवं अन्य सामग्री लेकर निकला था। डोमिनिका, मेरी गेलान्टे, ग्वाडेलुप, एण्टीगुआ, सान्ताक्रूज, पोर्टीरिको, वर्जिन आदि द्वीपों का पता लगाते हुए वह पुनः हस्पेनीओला (हैटी) पहुँचा किन्तु वहां बस्ती बसाने में असफल रहा और पास के एक अन्य द्वीप पर प्रथम यूरोपीय बस्ती बसाया जिसका नाम अपनी साम्राज्ञी के नाम पर ‘ईसा बेला’ रखा।
पश्चिम की ओर यात्रा करते हुए वह क्यूबा पहुँचा और उसे ही एशिया महाद्वीप की मुख्य भूमि माना। इसके पश्चात् वह स्वदेश लौट आया और मार्च 1496 को स्पेन पहुँच गया। स्पेन में दो वर्ष रुकने के पश्चात् कोलम्बस ने तीसरी समुद्री यात्रा पर पहले से अधिक दक्षिण के लिए प्रस्थान किया और त्रिनिदाद तथा ओरोनीको नदी के मुहाने तक की यात्रा की और हैती लौट आया जहाँ उसे स्थानीय विद्रोह और विश्वासघात का सामना करना पड़ा। उसे बन्दी बनाकर स्पेन ले जाया गया किन्तु साम्राज्ञी ईसाबेला ने कोलम्बस के कार्यों को देखते हुए उसे क्षमा कर दिया।
एशिया के समुद्री मार्ग की खोज में कोलम्बस ने चौथी समुद्री यात्रा 9 मई 1502 को आरंभ किया और हाण्डूरास की खोज करते हुए पनामा जा पहुँचा। अनेक कठिनाइयों के कारण वहाँ से कोलम्बस 1504 में स्पेन लौट आया। तब तक साम्राज्ञी ईसावेला की मृत्यु हो चुकी थी। वह अर्थाभाव से पीड़ित और बीमार रहने लगा था और दो वर्ष पश्चात् 1506 में कोलम्बस की मृत्यु हो गयी। उसका जीवन कठिन परिश्रम और जोखिम से पूर्ण था। कोलम्बस भारत का खोज करने निकला था। वह भारत तो नहीं किन्तु नये संसार (अमेरिका) की खोज करने में सफल रहा और विश्व प्रसिद्ध हो गया।
वास्को-डी-गामा (Vasco-De-Gama)
वास्को-डी-गामा (1460-1524) एक पुर्तगाली नाविक था जिसका जन्म साइनस (Sines) नामक स्थान पर हुआ था। उसने पुर्तगाल की सेना में रहकर नौचालन का कुशल प्रशिक्षण प्राप्त किया था। पुर्तगाली शासक भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज कराना चाहते थे और उन्होंने इसके लिए वास्को-डी-गामा को चुना । वास्को-डी-गामा ने चार लघु जहाजी बेड़ा के साथ 1497 में भारत के लिए अपने अभियान पर रवाना हुआ। वह 96 दिनों तक बिना भूमि दिखे लगभग 7200 किमी. (4500 मील) की समुद्री यात्रा करने के पश्चात् अफ्रीका के दक्षिणी-पश्चिमी तट पर सेन्ट हेलना की खाड़ी में पहुँचा।
वहाँ उसे स्थानीय हाटेन्टाट निवासियों के विरोध और संघर्ष का सामना करना पड़ा जिसके कारण वहां से आगे यात्रा पर बढ़ गया। अफ्रीका के दक्षिणी छोर उत्तमाशा अंतरीप का चक्कर लगाते हुए वह जेम्बजी नदी के मुहाने तक पहुँच गया। वहां यात्री दल एक महीना तक रुक गया और बहुत से यात्री स्कर्वी की बीमारी से पीड़ित रहे। जब यह बेड़ा मोज़ाम्बिक के तट पर पहुँचा तव उन्होंने अरब व्यापारियों के चार जलयान देखे जो सोना, मोती, माणिक्य, चाँदी, लॉग, पीपल, अदरक आदि से भरे थे।
अरब व्यापारियों ने इनकी सहायता की और यह दल उनकी सहायता से मोम्बासा पहुँचकर वहां के शासक से भेंट की। मोम्बासा से वास्को-डी-गामा अपने यात्री दल के साथ अरब सागर को पार करते हुए भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट बन्दरगाह पर पहुँचा। पुर्तगाल से कालीकट पहुँचने में वास्को-डी-गामा को कुल सात महीने का समय लगा था।
28 मई 1498 को कालीकट के सम्राट ने वास्को-डी-गामा से भेंट की और उसे व्यापार के लिए आमंत्रित किया। तदन्तर वास्को-डी-गामा भारतीय गरम मसालों को लेकर स्पेन के लिए प्रस्थान किया। इस यात्रा में बीमारी आदि के कारण उसके यात्री दल के 160 व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी थी किन्तु वास्को-डी-गामा भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज करने में पूर्णतया सफल रहा।
वास्को-डी-गामा ने अपनी दूसरी समुद्री यात्रा 1502 में आरंभ की और वह अपने पूर्व ज्ञात मार्ग में मोज़ाम्बिक और भारत पहुंचा। 1524 में उसे एशिया में पुर्तगाली बस्तियों का सर्वोच्च अधिकारी (वायसराय) बना दिया गया किन्तु उसी वर्ष 24 दिसम्बर 1524 को कोच्चि (कोचीन) में उसका देहावसान हो गया। वास्को-डी-गामा द्वारा खोजे गये इस नये मार्ग ने समुद्री व्यापार के लिए एक विशाल क्षेत्र प्रदान किया। आगे चलकर इसी समुद्री मार्ग से पुर्तगाली, फ्रांसीसी, ब्रिटिश और डच व्यापारियों ने दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों (भारत, श्रीलंका, ब्रह्मा, हिन्दचीन, हिन्देशिया आदि) और आस्ट्रेलिया में अपनी-अपनी व्यापारिक बस्तियों की स्थापना की थी।
फर्डीनन्ड मैगेलन (Ferdinand Magellan)
प्रसिद्ध समुद्री यात्री फर्डीनन्ड मैगेलन (1480-1521) का जन्म पुर्तगाल में सबरोसा (Subrosa) नामक स्थान पर हुआ था। वह पूर्वी द्वीप समूह में पुर्तगाली सेना में एक सैनिक था जिसने पुर्तगाल द्वारा मलक्का विजय में भाग लिया था। 1514 में उसने पुर्तगाल छोड़कर स्पेन की नागरिकता स्वीकार कर ली थी। मैगेलन ने राजकीय सहायता से 230 नाविकों के दल के साथ पूर्वी द्वीप समूह के लिए पश्चिम की ओर से समुद्री मार्ग की खोज करने के उद्देश्य से 20 सितम्बर 1519 को स्पेन के सेविले (Seville) बन्दरगाह से प्रस्थान किया।
ब्राजील के पूर्वी तट से दक्षिण की ओर आगे बढ़ते हुए वह चालक दल अक्टूबर 1520 में दक्षिणी अमेरिका के दक्षिणी छोर पर स्थित जलसंधि से होकर प्रशांत महासागर में प्रवेश किया। इस के नाम पर इस जलसंधि को मैगेलन जलसंधि कहा जाता है। प्रशांत महासागर में मैगेलन का चालक दल 110 दिनों तक बिना किसी तूफानी प्रतिरोध के लगातार यात्रा करता रहा किन्तु अभी एशिया तक नही पहुँच पाया था। खाद्य सामग्री समाप्त हो चुकी होने के कारण वे लोग भूख से बेहाल रहने लगे। उसी बीच स्कर्वी बीमारी फैलने से यात्री दल के 19 लोगों की मृत्यु हो गयी और अनेक कमजोर और काम करने असमर्थ हो गये।
98 दिन तक निरन्तर यात्रा करने के पश्चात् चालक दल एक द्वीप पर पहुंचा जहाँ लोगों ने ताजा भोजन एकत्रित किया और राहत की सांस ली। वहां पर लुटेरी आदिम जातियां रहती थी, सम्भवतः इसीलिए मैगेलन ने उसका नाम ‘लुटेरों का द्वीप’ रखा था। यात्रा में आगे बढ़ते हुए बैगेलन का यात्री दल एक द्वीप समूह पर पहुंचा जिसे स्पेन के सम्राट फिलिप के नाम पर फिलीपीन्स नाम दिया गया। बैगेलन ने वहाँ के स्थानीय शासक को मित्र बना लिया और उसे ईसाई धर्म की दीक्षा दी।
एक अन्य स्थानीय शासक ने पुर्तगालियों को भगाने के लिए आक्रमण कर दिया जिसमें मैगेलन घायल हो गया और अंततः 17 अप्रैल 1521 को उसकी मृत्यु हो गयी। चालक दल के शेष 115 लोग ‘विक्टोरिया’ और ‘ट्रिनिडाड’ नामक जलयानों पर सवार होकर स्पेन के लिए प्रस्थान किये और मसालों के द्वीप (हिन्देशिया) से पश्चिम की ओर बढ़ते हुए उत्तमाशा अंतरीप पहुँचे जहाँ से उत्तर की बढ़ते हुए सितम्बर 1522 को सेविले (स्पेन) वापस पहुँच गये। इस प्रकार मैगेलन के चालक दल द्वारा पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर ली गयी।
अन्य खोजयात्री (Other Explorers)
पुनर्जागरण काल में पन्द्रहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य कई अन्य साहसी नाविकों ने समुद्री यात्राएं करके नये-नये मार्गों, द्वीपों, देशों आदि की खोज किया। उनमें से कुछ प्रमुख खोजयात्री निम्नांकित हैं:
जान केबोट (John Cabot)
अंग्रेज खोज यात्री जान केबोट ने 1497 में न्यूफाउण्डलैण्ड (उत्तरी अमेरिका) के रास अंतरीप (Cape Race) तक समुद्री यात्रा की थी।
अमेरिगो वस्पुक्की (Amerigo Vespucci)
पुर्तगाली खोजयात्री अमेरिगो वसपुक्की ने 1500 में अटलांटिक महासागर को पार करते हुए अंटार्कटिक महासागर के निकट स्थित दक्षिणी जार्जिया की खोज की थी और वहाँ अपना झण्डा लहराया था। इस खोज अभियान में वह पुर्तगाल से दक्षिण की ओर बढ़ता हुआ दक्षिण अमेरिका के ब्राजील तट पहुँचा और वहाँ से दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट से होता हुआ प्लेट नदी के एस्चुअरी (ज्चारनदमुख) तक की यात्रा की और एक विशाल महाद्वीप की मुख्य भूमि पर पैर रखने बाला प्रथम यूरोपीय बन गया। इसीलिए अमेरिगो वसपुक्की के नाम पर नयी दुनिया (New World) का नाम अमेरिका (America) रखा गया।
फ्रांसिस ड्रेक (Francis Drake)
अंग्रेज खोजयात्री फ्रांसिस ड्रेक ने समुद्री मार्ग से 1572 में सम्पूर्ण पृथ्वी का एक चक्कर लगाया। उसकी यात्रा से अटलांटिक, प्रशांत और हिन्द महासागर के आर-पार यात्राओं के लिए अन्य नाविक भी प्रोत्साहित हुए।
हडसन (Hudson)
हडसन नामक यूरोपीय अन्वेषक ने 1608 में उत्तरी अमेरिका के उत्तरी-पूर्वी भाग की खोज की थी जिसके नाम पर ही हडसन खाड़ी का नामकरण किया गया है।
तस्मान (Tasman)
डच यात्री तस्मान ने 1649 में जावा (पूर्वी द्वीप समूह) से चलकर आस्ट्रेलिया के दक्षिण में स्थित तस्मनिया द्वीप की खोज की थी। उसने वहाँ से न्यूजीलैण्ड तक की यात्रा की और न्यूजीलैण्ड से जावा वापस हो गया था।
कप्तान जेम्स कुक (Captain James Cook)
जेम्स कुक का जन्म 1728 में पार्कशायर (ब्रिटेन) के पार्टन नगर में हुआ था। वह 1755 में ब्रिटिश सेना में भर्ती हो गया और आठ वर्षों (1759-1767) तक कनाडा के पूर्वी तटों का सर्वेक्षण किया। उसने तीन बार महान समुद्री यात्राएं एवं खोजें की थी। प्रथम यात्रा (1768-71) के दौरान वह समुद्री बेड़ा के साथ इंग्लैण्ड से चलकर दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी छोर से होकर न्यूजीलैण्ड पहुँचा और वहाँ से आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट से होता हुआ जावा तथा वहाँ से उत्तमाशा अंतरीप होते हुए लंदन लौट गया।
दूसरी यात्रा (1772-75) में उसने अंटार्कटिका महाद्वीप के तटों का चक्कर लगाया। तीसरी यात्रा (770-80) है। यह उत्तमाशा अंतरीप से होकर न्यूजीलैण्ड गया और वहाँ से चलकर उत्तरी प्रशीतरी यात्रा (1776) हवाई द्वीप समूह) की खोज किया और उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट की विस्तृत खोजयात्रा किया।