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यदि आप भूगोल विषय में बी.ए., एम.ए., यूजीसी-नेट, यूपीएससी, आरपीएससी, केवीएस, एनवीएस, डीएसएसएसबी, एचपीएससी, एचटीईटी, आरटीईटी, यूपीपीसीएस, बीपीएससी जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, तो आपको लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना के बारे में जानकारी होना आवश्यक है। यह परिकल्पना न केवल सौरमंडल की उत्पत्ति के सिद्धांत को समझने में मदद करती है, बल्कि इससे संबंधित प्रश्न परीक्षा में भी पूछे जा सकते हैं। इस लेख में, हम लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना को सरल हिंदी में समझाएंगे, जिससे आपकी तैयारी और भी मजबूत हो सकेगी।
Table of contents
लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना, 1796 में फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान पियरे-साइमन लाप्लेस द्वारा प्रस्तुत की गई थी। इस परिकल्पना ने सौरमंडल की उत्पत्ति और विकास के बारे में एक नई सोच प्रस्तुत की, जिसे उनकी पुस्तक “Exposition of the World System” में विस्तार से समझाया गया है।
नीहारिका परिकल्पना की मूल बातें
लाप्लेस ने इस परिकल्पना में यह दावा किया कि प्रारंभ में सौरमंडल ठोस कणों से नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में एक गर्म और गैसीय नीहारिका से बना था। यह नीहारिका धीरे-धीरे ठंडी होने लगी और सिकुड़ने लगी, जिससे उसकी घूर्णन गति में वृद्धि हुई। गति विज्ञान के नियमानुसार सिकुड़ती हुई वस्तु की घूर्णन गति में वृद्धि होती है। घूर्णन बढ़ने से अपकेन्द्रीय बल में भी वृद्धि हुई। जब अपकेन्द्रीय बल बढ़ते-बढ़ते गुरुत्वाकर्षण बल के बराबर हो गया तो नीहारिका की विषुवत् रेखा का कुछ पदार्थ एक छल्ले के रूप में पृथक होकर भारविहीन हो गया। नीहारिका के और अधिक ठंडा होने तथा उसमें अपकेन्द्रीय बल में वृद्धि होने के कारण छल्ला इस नीहारिका से दूर चला गया और बाद में अनेक छल्लों में विभाजित हो गया। बाद में ये छल्ले ठगे होकर ग्रहों तथा उपग्रहों के रूप में विकसित हो गए। नीहारिका का अवशिष्ठ भाग हमारा वर्तमान सूर्य है।
लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना की विशेषताएँ
1. ग्रहों का घूर्णन और कक्षीय गति: लाप्लेस की परिकल्पना के अनुसार, ग्रहों का अपने अक्ष और सूर्य के गिर्द कक्षीय गति में घूमना इस सिद्धांत से आसानी से समझा जा सकता है।
2. एक ही तल में ग्रहों की गति: सौरमंडल के सभी ग्रह लगभग एक ही तल में गति करते हैं, जिसे लाप्लेस ने इस तथ्य से जोड़ा कि सभी ग्रह एक ही छल्ले से बने हैं।
3. पृथ्वी की उत्पत्ति: लाप्लेस के अनुसार, पृथ्वी एक गैसीय छल्ले से बनी जो बाद में ठंडी होकर ठोस हो गई। पृथ्वी के ऊपरी ठंडे भाग और आंतरिक गर्म भाग से इस बात की पुष्टि होती है।
4. समान तत्वों से ग्रहों की रचना: सौरमंडल के सभी ग्रह एक जैसे तत्वों से बने हैं, जो लाप्लेस की परिकल्पना का समर्थन करते हैं।
5. नीहारिकाओं की उपस्थिति: अन्तरिक्ष में नीहारिकाओं की उपस्थिति लाप्लेस की परिकल्पना को प्रमाणित करती है।
नीहारिका परिकल्पना पर उठी आपत्तियाँ
हालांकि लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना ने सौरमंडल की उत्पत्ति के कई पहलुओं को स्पष्ट किया, लेकिन इसके खिलाफ कुछ आपत्तियाँ भी उठाई गईं:
1. ग्रहों का आकार: इस परिकल्पना के अनुसार, ग्रहों का आकार सूर्य से दूरी के हिसाब से होना चाहिए, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। बृहस्पति और शनि बड़े ग्रह हैं जबकि अरुण और वरुण छोटे ग्रह हैं।
2. गोलाकार ग्रहों की उत्पत्ति: लाप्लेस ने यह स्पष्ट नहीं किया कि छल्लों के घनीभूत होने से गोलाकार ग्रह कैसे बने।
3. सूर्य पर उभार की अनुपस्थिति: लाप्लेस के अनुसार, सूर्य पर अब भी एक उभार होना चाहिए जिससे नए ग्रहों के बनने की संभावना हो, लेकिन ऐसा नहीं देखा गया।
4. उल्टी दिशा में उपग्रहों की गति: वरुण और शनि के कुछ उपग्रह विपरीत दिशा में गति करते हैं, जो इस परिकल्पना से मेल नहीं खाते।
5. कोणीय संवेग का वितरण: लाप्लेस की परिकल्पना के अनुसार, सौरमंडल का कुल कोणीय संवेग और सूर्य का कोणीय संवेग एक दूसरे के समान होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है।
6. छल्लों का निर्माण: लाप्लेस के अनुसार, छल्लों का निर्माण निरंतर होना चाहिए, जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं होता।
निष्कर्ष
लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना ने सौरमंडल की उत्पत्ति के बारे में महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रस्तुत किए, जो आधुनिक खगोल विज्ञान के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुए। हालांकि इस परिकल्पना पर कई आपत्तियाँ उठाई गईं, फिर भी यह वैज्ञानिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
Test Your Knowledge with MCQs
- लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना किस वर्ष प्रस्तुत की गई थी?
a) 1789
b) 1796
c) 1802
d) 1815 - लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना किस पुस्तक में वर्णित है?
a) Origin of Species
b) Exposition of the World System
c) Principia Mathematica
d) Cosmos - लाप्लेस की परिकल्पना के अनुसार, प्रारंभिक पदार्थ किस रूप में था?
a) ठोस कण
b) तरल पदार्थ
c) उष्ण एवं गैसीय नीहारिका
d) प्लाज्मा - लाप्लेस ने किस ग्रह को देखकर नीहारिका परिकल्पना की प्रेरणा प्राप्त की?
a) मंगल
b) बृहस्पति
c) शनि
d) अरुण - लाप्लेस की परिकल्पना के अनुसार, नीहारिका के सिकुड़ने पर उसकी घूर्णन गति में क्या हुआ?
a) कमी हुई
b) कोई परिवर्तन नहीं हुआ
c) वृद्धि हुई
d) समाप्त हो गई - लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना के अनुसार ग्रह और उपग्रह किससे बने?
a) छल्लों
b) उल्काओं
c) धूमकेतुओं
d) तारों - लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना का अवशिष्ट भाग कौन सा है?
a) पृथ्वी
b) सूर्य
c) चंद्रमा
d) मंगल - लाप्लेस की परिकल्पना के अनुसार, ग्रहों का आकार सूर्य से दूरी के हिसाब से कैसा होना चाहिए था?
a) छोटे से बड़े
b) बड़े से छोटे
c) सभी ग्रह समान आकार के
d) कोई विशेष क्रम नहीं - लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना के अनुसार कौन सा बल नीहारिका के छल्लों को ग्रहों में परिवर्तित करने में असमर्थ था?
a) गुरुत्वाकर्षण बल
b) अपकेन्द्रीय बल
c) कोणीय संवेग
d) गैस-अणुगति सिद्धांत - लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना के अनुसार सूर्य का कोणीय संवेग कुल सौरमंडल के कोणीय संवेग के कितने प्रतिशत के बराबर है?
a) 1%
b) 50%
c) 99%
d) 2%
उत्तर:
- b) 1796
- b) Exposition of the World System
- c) उष्ण एवं गैसीय नीहारिका
- c) शनि
- c) वृद्धि हुई
- a) छल्लों
- b) सूर्य
- a) छोटे से बड़े
- d) गैस-अणुगति सिद्धांत
- d) 2%
FAQs
लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना 1796 में फ्रांस के वैज्ञानिक पियरे-साइमन लाप्लेस द्वारा प्रस्तुत एक सिद्धांत है। इस परिकल्पना के अनुसार, सौरमंडल की उत्पत्ति एक गर्म और घूर्णनशील गैसीय नीहारिका से हुई थी। यह नीहारिका धीरे-धीरे ठंडी होकर सिकुड़ने लगी, जिससे छल्ले बने, जो बाद में ग्रहों और उपग्रहों के रूप में विकसित हो गए। इस परिकल्पना ने सौरमंडल के निर्माण और ग्रहों की गति को समझाने का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “Exposition of the World System” में वर्णित है। इस पुस्तक में लाप्लेस ने सौरमंडल की उत्पत्ति और विकास के बारे में अपने विचारों को विस्तार से प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक 1796 में प्रकाशित हुई थी और इसमें लाप्लेस ने सौरमंडल की उत्पत्ति को नीहारिका से जोड़कर समझाने का प्रयास किया। उनकी यह परिकल्पना खगोल विज्ञान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जाती है।
लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना पर कई आपत्तियाँ हैं, जिनमें प्रमुख हैं कि ग्रहों का आकार सूर्य से दूरी के अनुसार नहीं है, और गैसीय छल्लों से गोलाकार ग्रह बनने की प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है। इसके अलावा, सूर्य का कोणीय संवेग सौरमंडल के कुल संवेग के अनुपात में नहीं है। कुछ ग्रहों के उपग्रह विपरीत दिशा में गति करते हैं, जो इस परिकल्पना के विपरीत है। इन कारणों से यह परिकल्पना पूरी तरह स्वीकार्य नहीं मानी जाती।