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हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर (Halford John Mackinder)

Estimated reading time: 10 minutes

इस लेख में आप हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर (Halford John Mackinder) के जीवन, उनकी रचनाओं तथा हृदयस्थल संकल्पना के बारे में विस्तार से जानेंगे।

हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर: जीवन परिचय

हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर (1861-1947) का जन्म लंकाशायर (इंग्लैण्ड) में हुआ था। उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से 1883 में प्राकृतिक विज्ञान में आनर्स और 1884 में इतिहास में स्नातक उपाधि प्राप्त करने पश्चात् कानून (Law) की शिक्षा ग्रहण की और 1886 से वकालत करने लगे। 

भूगोल में उनकी विशेष रुचि थी। उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रसार आंदोलन (Extension Movement) का नेतृत्व किया तथा अनेक नगरों में ‘नया भूगोल’ विषय पर लगभग 600 भाषण, दिये और भौगोलिक ज्ञान सामान्य जनता तक पहुँचाने और इसके प्रति उनमें रुचि उत्पन्न करने का सराहनीय कार्य किया। 

हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर ने 1887 में रायल ज्यो ग्राफिकल सोसाइटी (लंदन) के समक्ष ‘भूगोल का विषय क्षेत्र एक विधियां’ विषय पर सारगर्भित तथा प्रभावशाली भाषण दिया। मैकिण्डर की विद्वता और भाषण से प्रभावित होकर रायल ज्योग्राफिकल सोसाइटी ने 1887 में उन्हें आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में रीडर नियुक्त किया और वहाँ भूगोल का एक स्वतंत्र विभाग स्थापित करने का उत्तरदायित्व उन्हें ही सौंपा गया। यह विश्वविद्यालय स्तर पर प्रथम स्वायत्त शिक्षण विभाग था। 

1899 में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ‘स्कूल आफ मोग्राफी’ (School of Geography) की स्थापना हुई और हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर को इसका प्रथम प्रोफेसर नियुक्त किया गया। मैकिन्डर ने 1905 से लेकर 1908 तक ‘लन्दन स्कूल आफ इकनामिक्स’ के निदेशक पद पर भी कार्य किया और वे लन्दन विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर रहे। इसके पश्चात् 1910 से 1922 तक मैकिण्डर ने ब्रिटिश पार्लियामेंट के सदस्य के रूप में अपनी बहुमूल्य सेवाएँ अर्पित की थी।

‘एक अच्छे भूगोलवेत्ता को अन्वेषक और साहसिक कार्य करने वाला व्यक्ति होना चाहिए’ इस ब्रिटिश मान्यता को पूरा करने के उद्देश्य से मैकिण्डर ने पूर्वी अफ्रीका की खोजयात्रा किया और अपना नाम कीनिया पर्वत पर चढ़ने वाले प्रथम व्यक्ति के रूप में अंकित कराया।

हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर की रचनाएं

  • Britain and the British Seas, 1902. (ब्रिटेन और ब्रिटिश सागर, 1902)
  • The Geographical Pivot of History, 1904. (इतिहास की भौगोलिक धुरी, 1904)
  • Democratic Ideals and Realities, 1919. (लोकतांत्रिक आदर्श एवं यथार्थ, 1919)
  • Nations and Modern World, 1924. (राष्ट्र और आधुनिक विश्व, 1924)
  • Round World and Winning of the Peace, 1943. (पूर्ण विश्व एवं शान्ति की विजय, 1943)

हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर  के भौगोलिक विचार (Mackinder’s Geographical Thoughts)

मैकिण्डर जर्मन भूगोलवेत्ता रिचथोफेन और रैटजेल के विचारों से बहुत प्रभावित थे। वे नियतिवाद के समर्थक थे और उन्होंने ब्रिटेन में नियतिवादी विचारधारा का प्रचार किया। उनके विचार से किसी स्थान के पर्यावरण के विषय में बिना समझे वहाँ की ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन नहीं किया जा सकता। 

उनके अनुसार किसी स्थान के राजनीतिक भूगोल का निर्माण वहाँ के भौतिक पर्यावरण या भौतिक भूगोल पर आधारित होता है। मैकिण्डर की विशेष रुचि ऐतिहासिक और राजनीतिक भूगोल में थी और इसीलिए उन्होंने इसी क्षेत्र में अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य किया। वे पक्के देशभक्त थे और ब्रिटेन को विश्व में सर्वोच स्थान दिलाना चाहते थे। इसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने अपनी प्रसिद्ध ‘हृदयस्थल संकल्पना’ (Heartland (concept) प्रतिपादित किया। 

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उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध से पहले ही ब्रिटेन को आगाह किया था कि उसे नौसेना के साथ ही स्थल शक्ति के विकास पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि यूरोप के पूर्वी क्षेत्र पर अधिकार स्थल शक्ति के द्वारा ही किया जा सकता है। उन्होंने ब्रिटेन को विश्वशक्ति के रूप में ऊपर उठने और पूर्वी क्षेत्र पर अधिकार स्थापित करने हेतु अपने भाषणों, लेखों और पुस्तकों के माध्यम से प्रोत्साहित करने का प्रयास किया।

मैकिण्डर का दृढ़ विश्वास था कि भौगोलिक ज्ञान के अभाव में अन्य विषयों का ज्ञान अपूर्ण और अनुपयोगी है। इसीलिये वे ब्रिटेन के सभी नागरिकों के लिए भूगोल के अध्ययन को अनिवार्य विषय बनाने के पक्षधर थे। इसी उद्देश्य से उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ‘स्कूल आफ ज्योग्राफी’ को स्थापित कराकर भूगोल के शिक्षकों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था कराने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। मैकिण्डर की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण देन ‘हृदयस्थल संकल्पना’ है जिसका विवरण अग्रांकित है।

हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर की हृदयस्थल संकल्पना (Mackinder’s Heartland Concept)

विश्व के सामरिक महत्त्व के क्षेत्रों तथा शक्तिशाली क्षेत्रों के सम्बंध में मैकिण्डर के विचार सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। मैकिण्डर के विचार को उनके द्वारा प्रतिपादित ‘हृदयस्थल संकल्पना’ (Heartland concept) के नाम से जाना जाता है। उन्होने अपने विचार को कई लेखों तथा पुस्तकों द्वारा प्रस्तुत किया और समय-समय पर उनमें कुछ संशोधन भी किये।

मैकिण्डर ने सर्वप्रथम 25 जनवरी 1904 को ‘रायल ज्योग्राफिकल सोसाइटी’ के समक्ष एक शोध पत्र प्रस्तुत किया जिसका शीर्षक था ‘The Geographical Pivot of History’ (इतिहास की भौगोलिक धुरी)। बाद में भौगोलिक पत्रिका में इसका प्रकाशन भी हुआ। इस शोध पत्र में मैकिण्डर ने इतिहास के केन्द्र की भौगोलिक (क्षेत्रीय) विशेषताओं से सम्बद्ध करते हुए व्याख्या की थी। 

मैकिण्डर ने अपने इस लेख में बताया था कि इतिहास की भौगोलिक धुरी यूरेशिया का विस्तृत भूक्षेत्र है जहाँ नदियाँ या तो आंतरिक सागरों में अथवा हिमाच्छादित आर्कटिक सागर में गिरती हैं जिसके कारण जलयान और सामुद्रिक शक्तियां यहाँ प्रवेश नहीं कर सकती हैं। मैकिण्डर ने इसे मानचित्र में प्रदर्शित किया है। 

मानचित्र में ‘धुरी क्षेत्र’ के पश्चिम, दक्षिण और पूर्व स्थित भूक्षेत्र को उन्होंने आंतरिक तथा सीमांत अर्ध्वचन्द्राकार क्षेत्र (Inner and Marginal Crescent) की संज्ञा दी है। इस क्षेत्र की नदियां महासागरों में गिरती हैं अतः यह क्षेत्र सामुद्रिक आक्रमणों से भेद्य है। इसका विस्तार सम्पूर्ण पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिणी-पश्चिमी, दक्षिणी, दक्षिणी-पूर्वी तथा पूर्वी एशिया पर है। इस आंतरिक एवं सीमांत अर्द्धचन्द्राकार क्षेत्र के बाहर स्थित पेटी में द्वीपीय भाग आते हैं जिसमें ब्रिटेन, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, जापान आदि सम्मिलित हैं। ये सभी क्षेत्र समुद्र द्वारा पृथक् हैं और समुद्री मार्ग द्वारा परस्पर संयुक्त हैं।

Mackinder's Heartland Concept
हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर की हृदयस्थल संकल्पना

मैकिण्डर ने जब यह विचार प्रस्तुत किया था तब रेलमार्ग का विस्तार अत्यंत सीमित था और ब्रिटेन में सामुद्रिक शक्ति की प्रधानता थी। उस समय तक हवाई परिवहन का भी विकास नहीं हुआ था। घोड़े और ऊँट ही स्थलीय परिवहन के प्रमुख साधन थे। मैकिण्डर ने अपने लेख में बताया था कि यूरोपीय सभ्यता का विकास पाँचवीं से सोलहवीं शताब्दियों के मध्य एशिया के स्टेपी प्रदेश (मध्य एशिया) से होने वाले आक्रमणों एवं प्रवासों का परिणाम है। 

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इसका प्रभाव यूरोप ही नहीं बल्कि पुरानी दुनिया में अन्य सीमावर्ती देशों- चीन, भारत, ईरान, मेसोपोटामिया, मिस्त्र आदि पर भी पाया जाता है। मैकिण्डर ने एशिया, यूरोप और अफ्रीका महाद्वीप को सम्मिलित रूप से विश्व द्वीप (World Island) के रूप में प्रस्तुत किया।

प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् 1919 में मैकिण्डर की प्रसिद्ध पुस्तक ‘Democratic Ideals and Reality’ (लोकतांत्रिक आदर्श एवं यथार्थ) प्रकाशित हुई। इसमें उन्होंने अपने पूर्ववर्ती विचारों को विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया और साथ ही कुछ नवीन विचार भी प्रस्तुत किये। इसी पुस्तक में मैकिण्डर ने अपना ‘हृदयस्थल सिद्धान्त’ (Heartland Theory) प्रस्तुत किया। उन्होंने यूरेशिया के ऐसे क्षेत्र को हृदयस्थल (Heartland) कहा जहाँ जलमार्ग (जलशक्ति) से प्रवेश सम्भव नहीं था। मैकिण्डर ने अपने विचार के सारतत्व को निम्नांकित शब्दों में प्रकट किया-

“जो पूर्वी यूरोप पर शासन करता है, हृदयस्थल को नियंत्रित करता है। 

जो हृदयस्थल पर शासन करता है, विश्वद्वीप को नियंत्रित करता है।

जो विश्वद्वीप पर शासन करता है, विश्व को नियंत्रित करता है।”

(Who rules east Europe, commands the heartland.

Who rules the heartland, commands the world island.

Who rules the world island, commands the world.)

मैकिण्डर का विचार था कि पूर्वी यूरोप (जर्मनी और स्लाव क्षेत्र) पहले हृदयस्थल पर, उसके पश्चात् विश्वद्वीप पर और अंततः सम्पूर्ण विश्व पर नियंत्रण स्थापित करेगा। यहाँ उन्होंने विश्वद्वीप का प्रयोग आंतरिक सीमांत अर्द्धचन्द्राकार मेखला के लिए ही किया है। 

मैकिण्डर ने हृदयस्थल को पूर्णतया अभेद्य या आक्रमणों से पूर्णतया सुरक्षित नहीं माना था। उनके मतानुसार जो भी शक्ति हृदयस्थल पर अधिकार करना चाहेगी वह पश्चिम से ही प्रवेश कर सकती है क्योंकि हृदयस्थल सभी ओर से प्राकृतिक अवरोधों के कारण अजेय दुर्ग की भाँति है। इस क्षेत्र में केवल बाल्टिक सागर और कार्पेथियन पर्वत के मध्य स्थलीय क्षेत्र से होकर ही प्रवेश सम्भव है।

मेकिण्डर के हृदयस्थल सिद्धान्त के प्रकाशन के पश्चात् जर्मनी और रूस के मध्य उभय राज्य (Buffer State) के रूप में स्लाविक राज्यों का गठन अधिक शीघ्रता से हुआ। इसके परिणामस्वरूप पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया, आस्ट्रिया, रोमानिया और हंगरी राज्यों का गठन हुआ। 

यह राजनीतिक संगठन मैकिण्डर के विचार के अनुकूल था। मैकिण्डर के मत की पुष्टि का दूसरा तथ्य यह है कि 1917 में जब जर्मन सेना ने रूस पर आक्रमण किया था, वह अधिक अंदर तक प्रवेश नहीं कर पायी थी। मैकिण्डर ने अपने विचारों में परिवर्तित परिस्थितियों के अनुकूल समय-समय पर परिवर्तन भी किया था। 

उन्होंने 1904 में प्रकाशित अपने विचारों में उल्लेखनीय संशोधन करते हुए 1919 में हृदयस्थल सिद्धांत प्रस्तुत किया और 24 वर्ष पश्चात् द्वितीय विश्वयुद्ध की अवधि (1943) में एक लेख (The Round World and the Winning of the Peace) के द्वारा पूर्वोक्त ‘हृदयस्थल’ की सीमाओं में कुछ परिवर्तन किया। अब की बार उन्होंने एनेसी नदी के पूर्व में स्थित कोणधारी वन क्षेत्र को हृदयस्थल से अलग कर दिया और उसे लीना भूमि (Lena land) की संज्ञा दिया। 

मैकिण्डर ने इस लेख में उत्तरी अटलांटिक, पश्चिमी यूरोप और पूर्वी संयुक्त राज्य के सम्मिलित क्षेत्र के लिए ‘मध्य क्षेत्र बेसिन’ (Midland Basin) शब्द का प्रयोग किया। उनके अनुसार हृदयस्थल और मध्यक्षेत्र बेसिन (मिडलैंड बेसिन) के मध्य अनेक मरुस्थल एवं असमान भूभाग स्थित हैं।

हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर के सिद्धांत की आलोचनाएं 

मैकिण्डर की ‘भौगोलिक धुरी’ और ‘हृदयस्थल’ की संकल्पना प्रारंभ से ही अत्यधिक विवाद का विषय रही है। तार्किक तथा राजनीतिक आधार पर की गयी इसकी प्रमुख आलोचनाएं निम्नलिखित हैं-

  • मैकिण्डर ने हृदयस्थल सिद्धांत का प्रतिपादन तत्कालीन प्रौद्योगिकी और साधनों के आधार पर प्रस्तुत किया था। वर्तमान समय में वायु परिवहन युग में हृदयस्थल सिद्धान्त का महत्व समाप्त हो गया है। वर्तमान समय में हिमाच्छादित आर्कटिक क्षेत्र ‘नया हृदयस्थल’ वन गया है।
  • स्पाइक मैन (Spykman) ने ‘रिमलैण्ड संकल्पना’ (Rimland concept) का प्रतिपादन करते हुए मैकिण्डर के हृदयस्थल को शक्ति का केन्द्र न मानकर उनके द्वारा व्यक्त आंतरिक अर्द्धचन्द्राकार पेटी को शक्ति का केन्द्र माना जो वास्तविकता के अधिक निकट है क्योंकि इस पेटी में जनसंख्या अधिक है, संसाधनों की प्रचुरता है और सागरीय मार्ग से पहुँच की सुविधा है। 
  • मैकिण्डर द्वारा निर्धारित हृदयस्थल का अधिकांश भाग जनसंख्या विहीन या अत्यल्प जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र है जो विश्व शक्ति के रूप में स्थापित नहीं हो सकता।
  • मैकिण्डर का हृदयस्थल सामुद्रिक आक्रमणों से सुरक्षित हो सकता है किन्तु वर्तमान हवाई युग में वह सुरक्षित नहीं हो सकता। अधिक दूर तक मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र के प्रयोग से आज आंतरिक भाग भी सुरक्षित नहीं रह गये हैं। वायुशक्ति के संदर्भ में मैकिण्डर का हृदयस्थल ‘दुर्बल क्षेत्र’ बन गया है।
  • मैकिण्डर ने आर्कटिक क्षेत्र को हिमाच्छादित होने के कारण जल परिवहन के लिए अनुपयुक्त बताया किन्तु वायु परिवहन के विकास से यह क्षेत्र उत्तरी अमेरिका (कनाडा एवं संयुक्त राज्य) के बहुत निकट और सम्मुख (आर्कटिक मार्ग से) आ गया है जो सामरिक दृष्टि से सुरक्षित नहीं हो सकता।
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उपर्युक्त आलोचनाओं का तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि मैकिण्डर के विचार महत्वहीन हैं बल्कि उनके विचारों का आज भी काफी महत्व है भले ही वे पहले जितना यथार्थ नहीं रह गये हैं। यह परिवर्तनशील परिस्थितियों के कारण है। आज वायु परिवहन के विकास तथा नवीन प्रक्षेपास्त्रों के प्रयोग के युग में भी मेकिण्डर का हृदयस्थल क्षेत्र सामरिक दृष्टिकोण से अन्य भागों से अपेक्षाकृत् अधिक सुरक्षित है।

FAQs

हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर का जन्म कब और कहां हुआ था?

हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर का जन्म 1861 में लंकाशायर, इंग्लैण्ड में हुआ था।

मैकिण्डर की ‘हृदयस्थल संकल्पना’ क्या है?

‘हृदयस्थल संकल्पना’ के अनुसार, जो पूर्वी यूरोप पर शासन करता है, हृदयस्थल को नियंत्रित करता है; जो हृदयस्थल पर शासन करता है, विश्वद्वीप को नियंत्रित करता है; और जो विश्वद्वीप पर शासन करता है, विश्व को नियंत्रित करता है।

मैकिण्डर ने किस पुस्तक में ‘हृदयस्थल सिद्धान्त’ प्रस्तुत किया था?

मैकिण्डर ने ‘हृदयस्थल सिद्धान्त’ अपनी पुस्तक ‘Democratic Ideals and Reality’ (लोकतांत्रिक आदर्श एवं यथार्थ) में 1919 में प्रस्तुत किया था।

मैकिण्डर ने अपनी प्रमुख पुस्तक ‘The Geographical Pivot of History’ में किस क्षेत्र को ‘इतिहास की भौगोलिक धुरी’ कहा है?

मैकिण्डर ने ‘The Geographical Pivot of History’ में यूरेशिया के विस्तृत भूक्षेत्र को ‘इतिहास की भौगोलिक धुरी’ कहा है।

मैकिण्डर के भौगोलिक विचारों में किस जर्मन भूगोलवेत्ता के विचारों का प्रभाव था?

मैकिण्डर के भौगोलिक विचारों में जर्मन भूगोलवेत्ता रिचथोफेन और रैटजेल के विचारों का प्रभाव था।

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