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जर्मन भौगोलिक विचारधाराएं (German Geographic Thoughts) 

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इस लेख में आप जर्मनी की महत्वपूर्ण भौगोलिक विचारधाराओं (Important German Geographic Thoughts) के बारे में जानेंगे।

जर्मन भौगोलिक विचारधाराएं (German Geographic Thoughts)

आधुनिक वैज्ञानिक भूगोल का विकास सर्वप्रथम जर्मन भगोलवेत्ताओं हम्बोल्ट, रिटर, रैटजेल, रिचथोफेन, हेटनर आदि भूगोलवेत्ताओं ने किया। जर्मन भूगोलवेत्ताओं द्वारा प्रतिपादित और विकसित प्रमुख भौगोलिक विचारधाराएं एवं संकल्पनाएं हैं- वैज्ञानिक भूगोल, क्रमबद्ध भूगोल, प्रादेशिक भूगोल, नियतिवाद, क्षेत्रवर्णनी विज्ञान, भूदृश्य या लैण्डशाफ्ट, भूराजनीति, अवस्थिति सिद्धांत आदि। इनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है। 

वैज्ञानिक भूगोल (Scientific Geography) 

रीनहोल्ड फार्स्टर और उनके पुत्र जार्ज फार्स्टर ने वैज्ञानिक भूगोल की आधारशिला अठारहवीं शताब्दी में ही रख दी थी। उन्होंने पृथ्वी के विभिन्न भागों के भौगोलिक तथ्यों का पर्यवेक्षण वैज्ञानिक ढंग से किया । तथ्यों और आंकड़ों को एकत्रित करने के बाद उन्होंने उनकी तुलना, वर्गीकरण और विश्लेषण किया तथा अंत में  सामान्यीकरण किया (निष्कर्ष निकाला)। आगे चलकर उन्नीसवीं शताब्दी में अलेक्जेण्डर वान हम्बोल्ट और कार्ल रिटर ने भौगोलिक अध्ययन में वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करते हुए भूगोल को वास्तविक वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। 

क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography) 

आधुनिक भूगोल के संस्थापक अलक्जेण्डर वान हम्बोल्ट क्रमबद्ध भूगोल के अग्रणीय और सर्वप्रथम भूगोलवेत्ता थे। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘कॉसमॉस’ (Kosmos) में विश्व का वर्णन क्रमबद्ध विधि से किया है। यह क्रमबद्ध भूगोल का सबसे अच्छा उदाहरण है। हम्बोल्ट ने अपनी अन्य रचनाओं में भी क्रमबद्ध प्रणाली को ही अपनाया है। हम्बोल्ट से पूर्ववर्ती भूगोलवेत्ताओं – रीनहोल्ड फार्स्टर, जार्ज फार्स्टर और कांट ने भी क्रमवद्ध पद्धति का ही प्रयोग किया था। इसके अंतर्गत सम्पूर्ण पृथ्वी (विश्व) अथवा सम्पूर्ण अध्ययन क्षेत्र को एक पूर्ण क्षेत्रीय इकाई मानकर उसके विभिन्न भौगोलिक तथ्यों का क्रमानुसार अध्ययन किया जाता है। 

प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography) 

प्रादेशिक भूगोल का आरंभिक विकास जर्मनी में हुआ था। रिटर की प्रसिद्ध ग्रंथमाला ‘अर्डकुण्डे’ (Erdkunde) में उन्नीस खण्ड हैं जिनमें एशिया और अफ्रीका के अनेक प्रदेशों और देशों के प्रादेशिक वर्णन हैं। यह प्रादेशिक भूगोल का प्रथम महान ग्रंथ है। रिचथोफेन ने चीन का प्रादेशिक भूगोल लिखा था। हेटनर ने 1907 में ‘यूरोप का प्रादेशिक भूगोल’ प्रकाशित किया था। इसके पश्चात् अनेक जर्मन भूगोलवेत्ताओं ने विश्व के विभिन्न भागों के प्रादेशिक अध्ययन किये जिनमें सीगफ्रीड पस्सार्गे, फिलिप्सन, हैसिंगर, सेपर, लाटेन्साच आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। 

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नियतिवाद या पर्यावरण नियतिवाद (Determinism or Environmental Determinism)

मानव और पर्यावरण के पारस्परिक सम्बंधों के संदर्भ में जर्मन भूगोलेवत्ताओं ने पर्यावरण नियतिवाद का प्रतिपादन और समर्थन किया था। नियतिवाद जर्मन भूगोलवेत्ताओं की सर्वप्रमुख विचारधारा है जिसके अनुसार मावन जीवन और उसके सम्पूर्ण क्रियाकलापों, संस्कृति आदि का निर्धारण प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार होता है। यद्यपि सभी भूगोलवेत्ता भौतिक तत्वों को प्रमुख मानते थे किन्तु मानव पर्यावरण के संदर्भ में रेटजेल नियतिवाद के प्रबल समर्थक थे। रेटजेल ने अपने ‘मानव भूगोल’ (Anthropogeography) के प्रथम खण्ड में प्राकृतिक पर्यावरण के प्रभावों की विस्तृत विवेचना की है। 

क्षेत्रवर्णनी विज्ञान (Chorological Science)

भूगोल के विषय क्षेत्र और अन्य क्रमबद्ध विज्ञानों के मध्य भूगोल की स्थिति की विवेचना करते जर्मन भूगोलवेत्ता रिचथोफेन और हेटनर को इस विचारधारा का प्रतिपादक और प्रबल समर्थक माना जाता है। रिचथोफेन ने बताया था कि भूगोल में क्षेत्रीय भिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है (Geography is the study of areal differentiation on the earth’s surface)| उन्होंने भूगोल को पृथ्वी के तल का विज्ञान बताते हुए इसे क्षेत्रवर्णनी विज्ञान (chorological science) माना था।

हेटनर जो वीसवीं शताब्दी के अग्रणीय विधितंत्रवेत्ता (Methodologist) थे, ने भूगोल को एक क्षेत्रीय विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया। उनके अनुसार भूगोल एक क्षेत्रवर्णनी विज्ञान (chorological science) है, जिसमें भूतल के क्षेत्रों का अध्ययन उनकी भिन्नताओं और स्थानिक सम्बंधों के संदर्भ में किया जाता है। इस प्रकार रिचथोफेन और हेटनर ने भूगोल को एक क्षेत्रवर्णनी या क्षेत्रीय विज्ञान के रूप में विकसित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया । 

लैण्डशाफ्ट या भूदृश्य (Landschaft or Landscape) 

‘लैण्डशाफ्ट’ जर्मनी की एक प्रमुख भौगोलिक संकल्पना है। जर्मन भूगोलवेत्ताओं के अनुसार भूगोल लैण्डशाफ्ट का अध्ययन है। लैण्डशाफ्ट भूगोल (Landschaft geographic) का सर्वप्रथम प्रयोग पस्सार्गे (Passarge) ने 1919 में किया था। लैण्डशाफ्ट एक जर्मन शब्द है जिसका प्रयोग भूदृश्य (Landscape) और प्रदेश (Region) दोनों के लिए किया जाता है। भूदृश्य के अंतर्गत प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों प्रकार के भूदृश्य (या दृश्यभूमि) सम्मिलित होते हैं। 

लैण्डशाफ्ट शब्द अंग्रेजी के लैण्डस्केप (भूदृश्य) से अधिक विस्तृत है। जर्मन भूगोलवेत्ता इसका अर्थ ‘सादृश्य प्रदेश’ (Region with the appearance) या ‘प्रदेश जैसा दिखायी पड़ते हैं’ (Regions as per see) से लगाते हैं। उनके अनुसार लैण्डशाफ्ट भूगोल का केन्द्र बिन्दु है (Landschaft is the core of geography)। विभिन्न जर्मन भूगोलवेत्ताओं ने लैण्डशाफ्ट का प्रयोग विविध उद्देश्यों एवं प्रसंगों के अनुसार भिन्न-भिन्न अर्थों में किया है जिसके कारण इसका अर्थ कम स्पष्ट है। 

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भूराजनीति (Geopolitics) 

भूराजनीतिक विचारधारा का जन्म जर्मनी में बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में हुआ था। यह भूतल के विभिन्न प्रदेशों की राजनीतिक प्रणाली विशेषरूप से अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर भौगोलिक कारकों के प्रभावों के अध्ययन से सम्बंधित है। इस प्रकार के अध्ययन का आरंभ सर्वप्रथम जर्मनी में द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व राजनीतिज्ञों द्वारा किया गया था। 

एक संकल्पना के रूप में इसका मूलाधार जातीय श्रेष्ठता (Race superiority) और निवास भूमि के लिए एक राज्य की आवश्यकता का होना है। इसका प्रयोग नाजी सरकार के विस्तारवादी उद्देश्यों के सत्यापन हेतु किया गया था। वर्तमान में यह संकल्पना अपने मूलरूप में नहीं रह गयी है और संशोधित रूप में ही पायी जाती है। 

द्वितीय विश्वयुद्ध से पूर्व और युद्ध की अवधि में जर्मन लोगों ने अपनी जातीय और सांस्कृतिक श्रेष्ठता का दावा करते हुए ‘निवास स्थान’ या लेबेन्स्राम (Lebensraum) का नारा लगाया था जिसके आधार पर भूराजनीति का विकास हुआ था। सर्वप्रथम रेटजेल ने 1897 में प्रकाशित अपने राजनीतिक भूगोल में इस संकल्पना का बीजारोपण किया था। रैटजेल ने अपने जैविक राज्य सिद्धांत (Organic state theory) की व्याख्या करते हुए जोर देकर कहा था कि एक राज्य को सामान्य जीव की भाँति विकास करना चाहिए अथवा उसे समाप्त हो जाना चाहिए क्योंकि वह कभी स्थिर नहीं रह सकता। 

‘निवास स्थान’ (Living space or Lebensraum) पर आधारित उनके दर्शन ने श्रेष्ठ और हीन प्रजातीय विवादों को जन्म दिया जिसका अंतिम परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध था । ‘जियोपालिटिक्स’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग स्वेडिश राजनीति विज्ञानी रूडोल्फ जेलेन (Rudolf Kjellen) ने 1917 में किया था। भूराजनीति के विकास में सूपन (Supan) और कार्ल हाशोफर (Karl Haushofer) का महत्वपूर्ण योगदान था। 

मुंचेन (Munchen) विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर रहे हाशोफर ने ‘भूराजनीति पत्रिका’ (Zeitschrift for Geopolitik) की स्थापना की थी जिसमें देश-विदेश के बड़े-बड़े राजनीतिक भूगोलवेत्ताओं और विचारकों के लेख प्रकाशित होते थे। यह पत्रिका नाजी सरकार की धर्म पत्रिका बन गयी थी । हाशोफर ने भूराजनीति के विकास के लिए कई लेख और पुस्तकें लिखा था। हाशोफर के कई सहयोगियों माल (Maul), लाटेन्साच (Lantensach), कार्ल सेपर (Karl Sapper), हासिंगर (H. Hassinger) आदि ने भूराजनीति पर अनेक लेख तथा कुछ पुस्तकें लिखा था। 

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भूराजनीतिक विचारधारा से प्रेरित हिटलर की नाजी पार्टी ने नारा लगाया कि जर्मन लोगों को रहने का स्थान या वास स्थान (Lebensraum) मिलना ही चाहिए। इसके लिए जर्मन लोग चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, बेल्जियम आदि पेड़ोसी राज्यों पर अधिकार कर लेने के लिए उद्यत हुए और उन पर आक्रमण कर दिया था। इसके परिणामस्वरूप 1939 से 1945 तक द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया और अंततः जर्मनी की बुरी तरह पराजय हुई थी। 

अवस्थिति सिद्धांत (Location Theories) 

जर्मन अर्थशास्त्रियों तथा आर्थिक भूगोलवेत्ताओं ने कृषि क्षेत्रों, औद्योगिक केन्द्रों, सेवा केन्द्रों या केन्द्रस्थलों आदि की अवस्थितियों के सम्बंध में कुछ सिद्धांत प्रतिपादित किए थे जिनका प्रयोग परवर्ती भूगोलवेत्ताओं ने विश्व के विभिन्न देशों और प्रदेशों पर किया। इनमें प्रमुख अवस्थितिक सिद्धांत निम्नांकित हैं- 

वॉन थ्यूनेन का कृषि अवस्थिति सिद्धांत (Von Thunen’s Agricultural Location Theory)

जर्मन अर्थशास्त्री वान थ्यूनन (1783-1850) ने इस सिद्धांत को प्रतिपादित किया था। इसके अनुसार एक नगर के चारों ओर विभिन्न प्रकार की संकेन्द्रीय कृषि पेटियों (concentric agricultural belts) का विकास होता है। 

क्रिस्टालर का केन्द्रस्थल सिद्धांत (Christaller’s Central Place Theory)

जर्मन अर्थशास्त्री और आर्थिक भूगोलवेत्ता वाल्टर क्रिस्टालर ने दक्षिणी जर्मनी के केन्द्रस्थलों का अध्ययन करते हुए 1933 में केन्द्रस्थल सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। इसमें केन्द्रस्थलों के आकार, पदसोपान, उनके बीच की दूरी, सहायक क्षेत्रों के आकार, आकृति आदि का व्यवस्थित विश्लेषण किया गया है। बाद में लॉश आदि कुछ विद्वानों ने इसमें महत्वपूर्ण संशोधन भी किये। 

बेवर का औद्योगिक अवस्थिति सिद्धांत (Weber’s Industrial Location theory)

प्राग तथा हाइडलबर्ग विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रह चुके अल्फ्रेड बेवर ने 1909 में उद्योगों की अवस्थिति का सिद्धांत प्रतिपादित किया। उनके अनुसार किसी उद्योग के कारखाने की अवस्थिति उस स्थान पर उपयुक्त होती है जहाँ परिवहन की लागत, श्रम लागत आदि न्यूनतम हो और एकत्रीकरण का लाभ प्राप्त होता हो। बाद में लॉश आदि कुछ अन्य विद्वानों ने भी इससे सम्बंधी विचारों को प्रस्तुत किया और उन्होंने वेबर के सिद्धांत में आवश्यक संशोधन भी किया।

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