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जर्मन भूगोलवेत्ता फ्रेडरिक रेटजेल (1844-1904) हम्बोल्ट और रिटर के बाद आधुनिक युग के तीसरे प्रमुख भूगोलवेत्ता थे। रैटजेल प्रथम भूगोलवेत्ता थे जिन्होंने भौगोलिक अध्ययन में मानव को स्थायी और महत्वपूर्ण स्थान दिलाने में अग्रणीय कार्य किया। उन्होंने मानव भूगोल को एक पृथक् विज्ञान के रूप में स्थापित किया। इसीलिए रैटजेल को मानव भूगोल का जनक (Father of human geography) के रूप में जाना जाता है।
फ्रेडरिक रेटजेल (Friedrich Ratzel): जीवन परिचय
- फ्रेडरिक रैटजेल (Friedrich Ratzel) का जन्म 1844 में जर्मनी के कार्ल्सरूह नामक स्थान पर एक साधारण परिवार मे हुआ था। स्थानीय विद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने जर्मनी के कई विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण की।
- रैटजेल (Ratzel)ने हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय, जेना विश्वविद्यालय और बर्लिन विश्वविद्यालय में अध्ययन किया था। प्राणि विज्ञान (Zoology), भू विज्ञान (Geology) और तुलनात्मक शरीर विज्ञान (Comparative Anatomy) उसके प्रमुख विषय थे। उन्होंने भौतिक विज्ञानों के साथ ही इतिहास, मानव विज्ञान (Anthropology) और राजनीति विज्ञान में भी शिक्षा प्राप्त की थी।
- 1870 में फ्रांस-प्रशा युद्ध (Franco- Prussian War) आरंभ होने पर देश भक्ति से प्रेरित होकर रैटजेल प्रशा की सेना में भर्ती हो गए और युद्ध में दो बार घायल भी हुए।
- जर्मनी के एकीकरण (1871) के पश्चात् वे जर्मन प्रवासियों की जीवन शैली के अध्ययन में लग गए। इसी उद्देश्य से उन्होंने हंगरी और ट्रांसिलवेनिया की यात्रा की थी।
- रेटजेल (Ratzel) ने 1872 में आल्पस को पार करके इटली की भी यात्रा की थी। रेटजेल ने 1874-75 में संयुक्त राज्य अमेरिका और मैक्सिको की यात्रा किया। वहाँ उन्होंने रेड इण्डियन, नीग्रो, चीनी आदि मानव वर्गों के आवासीय, आर्थिक तथा सामाजिक दशाओं का अध्ययन किया। संयुक्त राज्य अमेरिका और मैक्सिको में अपना क्षेत्र अध्ययन पूरा करके वे 1875 में जर्मनी लौट आए।
- 1876 से रेटजेल (Ratzel) म्युनिख के एक तकनीकी संस्थान में अध्यापक के रूप में कार्य करने लगे। इसके पाँच वर्ष पश्चात् 1880 में उनकी नियुक्ति भूगोल के प्रोफेसर के रूप में म्युनिख विश्वविद्यालय में हो गई।
- 1886 में रैटजेल ने म्युनिख छोड़कर लीपजिग विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के प्रोफेसर पद का कार्यभार संभाला और वहाँ मृत्यु पर्यन्त (1904) कार्यरत रहे ।
रेटजेल (Ratzel) की पुस्तकें और लेख
रेटजेल (Ratzel) एक विद्वान प्राध्यापक और प्रभावशाली वक्ता के साथ ही एक अत्यंत कुशल लेखक थे । केसपर्सन के अनुसार रेटजेल ने 24 पुस्तकें, 540 से अधिक लेख, 600 से अधिक पुस्तक समीक्षा और 146 लघु जीवन वृत्तांत लिखा था। उन्होंने 1240 तथ्यों की संदर्भग्रंथ सूची (Bibliography) तैयार की थी। रेटजेल की प्रमुख रचनाएं निम्नांकित हैं।
- डार्विन के विकासवादी सिद्धांत की समालोचना (1869 )
- भूमध्यसागरीय तट के जीव (1870)
- एक प्रकृतिविज्ञानी की यात्राएं (1872)
- चीनी उठप्रवास (Chinese Emigration, 1876)
- उत्तरी अमेरिका का भौतिक एवं सांस्कृतिक भूगोल ( प्रथम खण्ड 1878, और द्वितीय खण्ड) 1880)
- मानव भूगोल (Anthropogeographie ) – प्रथम खण्ड 1882 में और द्वितीय खण्ड 1891 में प्रकाशित
- मानवजाति का इतिहास (Volkerkunde)- तीन खण्ड क्रमशः 1885, 1886 और 1888 में प्रकाशित
- संयुक्त राज्य का राजनीतिक भूगोल (1893)
- राजनीतिक भूगोल (Politische Geographie, प्रथम खण्ड 1897 और द्वितीय खण्ड 1903)
- जर्मनी का प्रादेशिक भूगोल (Germany Deutschland, 1898)
- पृथ्वी और जीवन एक तुलनात्मक अध्ययन (1901-1902)
- राज्य, व्यापार और युद्ध का भूगोल (1903)
उपर्युक्त पुस्तकों के अतिरिक्त रेटजेल (Ratzel) ने कई लोकप्रिय पुस्तकें सामान्य जनता की रुचि को ध्यान में रखते हुए लिखीं। उन्होंने भूविज्ञान, जीव विज्ञान, मानवजाति विज्ञान, भौतिक भूगोल, मानव समाज आदि से सम्बद्ध अनेक लेख प्रकाशित किए थे।
मानव भूगोल (Anthropogeographie)
यह रेटजेल (Ratzel) का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित ग्रंथ है जो दो खण्डों में प्रकाशित हुआ। मानव भूगोल के प्रथम खण्ड (ऐतिहासिक अध्ययन में भौगोलिक सिद्धांत का प्रयोग) का प्रकाशन 1882 में हुआ था। इसमें डार्विन के विकासवाद से मिलता-जुलता विचार व्यक्त किया गया है और विभिन्न प्रदेशों के मानव समाजों के इतिहास पर प्राकृतिक पर्यावरण के प्रभावों की व्याख्या की गई है। इसमें इतिहास पर भूगोल के प्रभाव (impact of geography on history) को दर्शाया गया है।
इसका द्वितीय खण्ड (मानव जाति का भौगोलिक वितरण) 1891 में प्रकाशित हुआ जिसमें सांस्कृतिक पर्यावरण, अधिवासों, जनसंख्या प्रवास और सांस्कृतिक लक्षणों के विसरण (diffusion of culture traits) का भौगोलिक वर्णन किया गया है।
राजनीतिक भूगोल (Politische geographie)
मानव भूगोल की भाँति रेटजेल (Ratzel) की राजनीतिक भूगोल की पुस्तक भी दो खण्डों में प्रकाशित हुई थी। इसका प्रथम खण्ड 1897 में और द्वितीय खण्ड 1903 में प्रकाशित हुआ। इसके माध्यम से मानव भूगोल के वैज्ञानिक अध्ययन में राजनीतिक भूगोल के रूप में एक नवीन अध्याय जुड़ गया। इसमें उन्होंने यह विचार प्रतिपादित किया है कि राज्य भी एक जैविक इकाई है और अन्य जैविक इकाइयों की भांति राज्य भी क्रमिक विकास की चक्रीय प्रक्रिया का अनुसरण करता है। आगे चलकर ये विचार जर्मन राजनीति की ‘लेबेन्स्राम’ (रहने को स्थान) संकल्पना के मूलाधार बन गए।
रेटजेल (Ratzel) की विचारधारा
रेटजेल विश्व के प्रथम पूर्ण मानव भूगोलवेत्ता थे। उन्होंने मानव भूगोल को एक विज्ञान के रूप में संस्थापित किया और अपने नवीन विचारों से उसे पोषित किया। रेटजेल की विचारधारा के प्रमुख पक्ष निम्नांकित हैं
नियतिवाद या पर्यावरण नियतिवाद (Determinism or Environmental Determinism)
रेटजेल (Ratzel) मानव और पर्यावरण के पारस्परिक सम्बंधों में पर्यावरण के प्रभावों को अधिक महत्वपूर्ण मानते थे। उन्होंने अपने मानव भूगोल (Anthropogeographie ) के प्रथम खण्ड में डार्विन के विकासवाद की पुष्टि की थी और मत व्यक्त किया था कि भौगोलिक पर्यावरण के अनुसार ही मानव समाजों के इतिहास का निर्माण होता है। इसीलिए रेटजेल को नियतिवाद का प्रतिपादक माना जाता है।
रेटजेल ने मानव भूगोल के अंतर्गत मानव जीव की व्याख्या पर्यावरण के संदर्भ में प्रस्तुत किया और विभिन्न प्रादेशिक उदाहरणों द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि मनुष्य के रहन-सहन, उसकी आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्रियाएं तथा संस्कृति आदि भौतिक पर्यावरण के अनुसार ही निर्धारित होती हैं ।
पार्थिव एकता का सिद्धांत (Principle of Terrestrial Unity)
पार्थिव एकता या अंतर्सम्बन्धों के सिद्धांत में रेटजेल (Ratzel) की पूर्ण आस्था थी। उन्होंने मानव भूगोल के विश्लेषण में पार्थिव एकता के सिद्धांत को ही प्रमुखता प्रदान की थी। वे सम्पूर्ण विश्व को उसके व्यक्तिगत तत्वों के रूप में नही बल्कि सभी तत्वों की समष्टि रूप को देखते थे। वे पार्थिव एकता के सिद्धांत को मानव भूगोल की आधारशिला मानते थे।
इस सिद्धांत के अनुसार प्रकृति के सभी तत्व परस्पर सम्बंधित होते हैं और कोई भी भूदृश्य इन तत्वों के मिले जुले स्वरूप को प्रकट करता है। अतः किसी भूदृश्य या प्रदेश के भौगोलिक अध्ययन के लिए विभिन्न तत्वों के पारस्परिक सम्बंधों और अंतर्निर्भरताओं का विश्लेषण आवश्यक है।
राज्य का जैविक सिद्धांत (Organic Theory of State)
रेटजेल (Ratzel) ने अपने ‘राजनीतिक भूगोल’ नामक ग्रंथ में राज्य के जैविक सिद्धांत का समर्थन किया है।उन्होंने राज्य को एक जैविक इकाई माना है। उनके मतानुसार अन्य जैविक इकाइयों की भांति राज्य के लिए भी आवश्यक है कि यह सतत प्रगतिशील बना रहे क्योंकि ठहराव प्रकृति के नियम के विपरीत और मृत्यु का पर्याय है। अन्य जैविक इकाइयों की भाँति स्वायत्त राजनीतिक इकाइयां भी आत्म रक्षा के निरन्तर संघर्ष में संलग्न रहती हैं। इसी के आधार पर ‘रहने को स्थान’ या ‘शरण स्थल’ (लेबेन्स्राम) की संकल्पना का विकास हुआ।
इसके अनुसार अधिक शक्ति सम्पन्न राज्यों द्वारा अपने निर्बल पड़ोसी राज्यों की भूमि पर अधिकार कर लेना प्रकृति के अनुकूल विकास प्रक्रिया है और इसमें किसी प्रकार की अनैतिकता नहीं है। इस प्रकार लेबेन्स्राम की संकल्पना भूराजनीति की प्रमुख संकल्पना बन गई जिसका प्रयोग आगे चलकर युद्धकाल में हुआ
सांस्कृतिक भूदृश्य की संकल्पना (Concept of Cultural Landscape)
रेटजेल (Ratzel) प्रथम भूगोलवेत्ता थे जिन्होंने सांस्कृतिक दृश्य की संकल्पना को स्पष्ट वैचारिक आधार प्रदान किया। वे सांस्कृतिक भूदृश्य को ऐतिहासिक भूदृश्य कहते थे। उनके अनुसार यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो सांस्कृतिक भूदृश्य क्षेत्र विशेष में मानव बसाव की ऐतिहासिक विकास प्रक्रिया का प्रतिफल है।
निष्कर्ष
भूगोल विशेषरूप से मानव भूगोल के विकास में रेटजेल (Ratzel) का योगदान अविस्मरणीय है ये प्रथम भूगोलवेत्ता थे जिन्होंने मानवीय पक्षों के भौगोलिक अध्ययन के लिए एक पृथक् विषय के रूप में मानव भूगोल की स्थापना की और उसके विषय क्षेत्र का निर्धारण किया। सर्वप्रथम उन्होंने ही मानवीय पक्ष के भौगोलिक अध्ययन के लिए ‘ऐन्थ्रोपोज्योग्राफी’ (Anthropogeographie) शब्द का प्रयोग किया था।
उन्होंने भूगोल में भौतिक पक्षों पर अत्यधिक बल दिए जाने की प्रवृत्ति को कम करके भूगोल का एक संतुलित दृष्टिकोण स्थापित किया था। किन्तु बीसवीं शताब्दी में उनके कठोर नियतिवाद की तीव्र आलोचनाएं होने लगीं और फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं ने इसके विपरीत सम्भववाद (Possibilism) का प्रचार-प्रसार किया ।रेटजेल ने भूगोल में प्रादेशिक अध्ययन पर कम ध्यान दिया और क्रमबद्ध अध्ययन को रोचक बनाने में अपना पूर्ण योगदान प्रदान किया था।
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