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इस लेख में आप भूगोल में अपवादात्मकता (Exceptionalism in Geography) जिसको शेफ़र (Schaefer) ने हवा दी थी, के बारे में विस्तार से जानेंगे।
भूगोल में अपवादात्मकता (Exceptionalism in Geography)
इमानुएल काण्ट ने भूगोल व इतिहास दोनों को ही अपवादी कहा। उनके अनुसार ये दोनों व्यवस्थित विज्ञानों से भिन्न हैं। इनके अनूठेपन (Uniqueness) को काण्ट विज्ञानों में अपवादात्मक कहता था। भौगोलिक पद्धति की प्रधान विशेषता ही इस अपवादिता में केन्द्रित कही जाने लगी। हम्बोल्ट और रिटर ने इसका उपयोग किया। इसी प्रकार हैटनर ने और अंत में हार्टशोर्न ने भी इसका उपयोग किया था।
‘भूगोल में अपवादिता’ की शब्दावली को शेफ़र (Schaefer) ने हवा दी। शेफ़र जो नाजी जर्मनी से बचकर अमरीका आ गया था मूलतः अर्थशास्त्री था, और आयोवा (Iowa) विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग में भूगोल का अध्यापन करने वाले समूह से जुड़ा हुआ था।
शेफ़र ने हार्टशोर्न की पुस्तक The Nature of Geography की आलोचनात्मक समीक्षा करते हुए A.A.A.G. पत्रिका (Vol.43, सन् 1953) में एक लेख प्रकाशित किया – ‘Exceptionalism in Geography: A Methodological Examination.’
यह लेख नई पीढ़ी के मानव भूगोलवेत्ताओं के लिए संगठित होने का प्राणदायक-बिन्दु बना। शेफ़र के लेख ने हार्टशोर्न के द्वारा किए गए हेटनर व अन्य विद्वत्जनों की व्याख्या को चुनौती दी, और इस प्रकार हार्टशोर्न – शेफ़र विवाद, छिड़ गया। शेफ़र ने हार्टशोर्न की प्रादेशिक भूगोल की अनूठी अथवा अपवादी विचारधारा की आलोचना की।
भूगोल के लिए शेफ़र ने विज्ञान के प्रत्यक्षवाद सम्प्रदाय के दार्शनिक (Positivist School of Science) सोच पर आधारित पद्धति अपनाने पर ज़ोर दिया। शेफ़र का विकल्प और दावा भूगोल को अनूठी विशिष्टता के स्थान पर एकीकृत-विज्ञान (Integrating Science) मानने का है। वह प्रदेश अथवा क्षेत्र-इकाई के वर्णन को अनूठा कहना न तो सार्थक बताता था, न इसे भूगोल को विज्ञानों में सम्मिलित बनाने का प्रयास कहता था।
शेफ़र के अनुसार किसी विज्ञान की विशेषता उसकी व्याख्या-पद्धति है, और व्याख्या के लिए सामान्य नियमों का आधार आवश्यक है। अनूठी व्याख्या ‘विज्ञान’ नहीं है। “To explain the phenomena one has described means always to recognize them as instances of laws.”
शेफ़र की राय Analy में भूगोल की प्रधान सामान्य विशेषता व नियम उसके स्थानिक प्रारूपों (Spatial Patterns) का विश्लेषण है। स्थानिक दृश्य-वस्तुएँ नहीं बल्कि उनकी व्यवस्था के प्रारूप भूगोलविदो की शोध का विषय हैं। व्यवस्था के प्रारूप ही नियमों के निराकरण का आधार बनते हैं।
भूगोल की परिभाषा- ‘स्थानिक व्यवस्था’ के प्रारूपों’के विरुद्ध तर्कों को भूगोल की ‘अनूठी विशेषता’ (Exceptionalism) कहा गया था। प्रदेशों व स्थानों का अनूठा वर्णन वैसा ही माना गया जैसा कि इतिहास में समय अथवा काल-विशेष में घटित अनूठी क्रिया। परन्तु इनमें अध्ययन की विधियाँ (Methodologies) अन्य विज्ञानों जैसी नहीं हैं।
भूगोल में अनूठापन कोई विशेष बात नहीं है, क्योकि अन्य सभी विज्ञान भी अपने अपने क्षेत्र में अनूठे हैं। सभी का निजी व्यक्तित्व है। सभी विज्ञान नियमों में कसे हैं, और एकीकृत नियमों कारक द्वारा घटनाओं की व्याख्या करते हैं। अतः भूगोल द्वारा पंचमेल वस्तुओं, दृश्य-घटनाओं आदि के को एकीकरण कर प्रस्तुत करना विशेषता नहीं है। यही सभी विज्ञानों में घटित है।
अतः शेफ़र के अनुसार भूगोल में यह कोई अनोखी, असाधारण, आश्चर्यजनक और विलक्षण बात नहीं है। इसे शेफ़र न तो भूगोल में अनूठापन मानता और न उसे अपवादिता की श्रेणी में रखता था। भूगोल भी अन्य सामाजिक विज्ञानों जैसा ही विषय है। इसलिए शेफर प्रादेशिक-अनूठे-वर्णनी की संकल्पना को जिसे हार्टशोर्न ने The Nature of Geography में स्थान दिया, कट्टरपन बताकर अस्वीकार करता था।
इसके स्थान पर शेफर भूगोल को विधि-विज्ञानीय (Nomothetic) विषय कहता था जिसमें सामान्य, व्यवस्थित, सर्वव्यापी आकृतिकमूलक नियमों (Morphological Laws) द्वारा स्थानिक प्रारूपों को स्पष्ट करते हैं। प्रादेशिक व स्थानीय नियमों के स्थान पर भूगोल में स्थनिक प्रारूपों के बारे में सर्वमान्य नियमों की रचना करना उद्देश्य है। स्थानिक प्रारूप अथवा क्षेत्र में दृश्य-सत्ता का स्वरूप भूगोल का विषय है, जबकि गैर-स्थानिक संबन्धों की चर्चा अन्य विशेषज्ञ जैसे वनस्पति- विज्ञानी, भूगर्भ विज्ञानी, अर्थशास्त्र विज्ञानी, नृजाति विज्ञानी आदि करते हैं।
सारांश में यह कहा जा सकता है कि हार्टशोर्न और शेफर दोनों ही जर्मन-स्त्रोतों जैसे काण्ट, हम्बोल्ट व हेटनर से प्रभावित हुए। वे दोनों ही भूगोलवेत्ताओं की स्थानिक प्रारूपों के अध्ययन की ओर प्रेरित करते थे। वस्तुतः शेफर उन प्रथम भूगोल विद्वानों में से है जो क्रिस्टलर, वॉन थ्यूनेन और लॉश के विचारों के शिक्षण पर जोर देता था, परन्तु हार्टशोर्न ने उनमें कोई रुचि नहीं दर्शायी।
परन्तु वे विचार 1960 की दशाब्दी में मानव-भूगोल में औ महत्त्वपूर्ण बन उठे थे। शेफर मानव-भूगोल का स्थान प्राकृतिक विज्ञानों में न मानकर उसे सामाजिक विज्ञानों में ही रखता था। उसके अनुसार भूगोल अन्य सामाजिक विज्ञानों जैसा विषय है, उसमें कोई अनूठापन अथवा अपवादिता नहीं है। परन्तु इसमें कोई दो राय नहीं है कि नया-भूगोल विभिन्न प्रकार के सामाजिक क्रिया-कलापों से संयुक्त बन क्षेत्र के प्रारूपों (Areal Patterns) के विश्लेषण पर केन्द्रित बना।