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इस लेख में जानिए एलेन चर्चिल सेम्पुल (Ellen Churchill Semple) के बारे में जिन्होंने मानव भूगोल के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और फ्रेडरिक रैटजेल की नियतिवादी विचारधारा का समर्थन किया।
कुमारी एलेन चर्चिल सेम्पुल (1863-1932) प्रसिद्ध जर्मन भूगोलवेत्ता फ्रेडरिक रैटजेल की शिष्या और उनके नियतिवादी विचारों की प्रवल समर्थक थी। मानव भूगोल के विकास में सेम्पुल का उत्कृष्ट योगदान रहा है। वे जर्मन और अंग्रेजी दोनों महत्वपूर्ण भाषाओं में समान रूप से पारंगत थीं। उन्होंने जर्मन भाषा में लिखित रैटजेल के विचारों को अग्रेजी भाषा में अत्यंत रोचक एवं सरल ढंग से प्रस्तुत किया और उन्हें आंग्लभाषी देशों में प्रचारित किया। सेम्पुल के लेखन के माध्यम से रैटजेल की भौगोलिक विचारधारा का व्यापक प्रचार हुआ ।
जीवन परिचय
एलेन चर्चिल सेम्पुल का जन्म 1863 में संयुक्त राज्य अमेरिका के केन्टुकी राज्य के लुइसविले नामक स्थान पर एक सम्भ्रांत परिवार में हुआ था। उन्होंने 1882 में बेसर कालेज (Vassar College) से स्रातक उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् लुइसविले के एक विद्यालय में शिक्षिका के रूप में कार्य किया। उन्होने बेसर कालेज से ही 1891 में इतिहास विषय में एम. ए. की उपाधि प्राप्त किया। भूगोल की उच्च शिक्षा के लिए वे 1891 में जर्मनी (लीपजिग विश्वविद्यालय) गयीं किन्तु उन्हें प्रवेश नहीं मिल पाया।
विशेष अनुरोध करने पर रैटजेल ने उन्हें अपनी कक्षा में व्याख्यान सुनने की अनुमति प्रदान कर दिया था। इस प्रकार दो वर्ष तक (1891 और 1892) एलेन चर्चिल सेम्पुल ने रैटजेल से मानव भूगोल की शिक्षा प्राप्त की। वे रैटजेल के विचारों से बहुत प्रभावित हुई और अमेरिका वापस लौटने के पश्चात् तीन वर्ष व्यतीत करके 1895 में वे पुनः जर्मनी गर्दा तथा रेटजेल के निर्देशन में भूगोल का अधिक गहन अध्ययन किया।
शिक्षण और अनुसंधान कार्य
सर्वप्रथम 1897 में एलेन चर्चिल सेम्पुल की नियुक्ति क्लार्क विश्वविद्यालय में प्राध्यापिका के पद पर हुई। उन्होंने वहाँ पृथक् भूगोल विभाग की स्थापना किया। उनके व्याख्यान बहुत रोचक, सारगर्भित और प्रभावशाली होते थे। वे पूर्णतः लेखन कार्य में प्रवृत्त होना चाहती थीं जिसके कारण उन्होंने कुछ वर्ष पश्चात् अध्यापन कार्य छोड़ दिया और मानव भूगोल का लेखन कार्य प्रारम्भ किया।
सेम्पुल ने 1911 में विश्व के भूमध्य सागरीय क्षेत्रों का अध्ययन करना आरम्भ किया और इसके लिए लगभग 20 वर्षों तक यूरोप, एशिया और अफ्रीका की कई बार यात्राएं किया और सर्वेक्षण द्वारा आवश्यक सामग्रियों को एकत्रित किया।
व्याख्यान और प्रतिष्ठान
एलेन चर्चिल सेम्पुल ने संयुक्त राज्य अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दिया था। 1906 से लेकर 1924 तक उन्होंने शिकागो विश्वविद्यालय और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में अनेक व्याख्यान दिये थे। उन्होंने दो वर्ष (1914 एवं 1915) आस्ट्रेलिया के एक महाविद्यालय (वेलेसली कालेज) में अध्यायन कार्य किया। सेम्पुल ने 1916 में कोलोरेडो विश्वविद्यालय में और 1925 में कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में भी अपनी सेवाएं प्रदान किया था।
एलेन चर्चिल सेम्पुल 1921 में क्लार्क विश्वविद्यालय के ‘ग्रेजुएट स्कूल आफ ज्योग्रााफी’ में भूगोल के प्रोफेसर पद पर नियुक्त हुई जहा वें 1929 तक कार्यरत रहीं। उन्होंने 1921 में ‘अमेरिकी भूगोलवेत्ता संघ’ (Association of American Geographers) के अध्यक्ष पद को भी सुशोभित किया था। क्लार्क विश्वविद्याल से सेवा निवृत्ति (1929) के पश्चात् सेम्पुल ने भूमध्य सागरीय प्रदेश पर पुस्तक लिखा जो उनकी मृत्यु के कुछ महीने पूर्व 1931 में प्रकाशित हो गयी थी।
एलेन चर्चिल सेम्पुल के ग्रंथ
एलेन चर्चिल सेम्पुल ने देश की भौगोलिक स्थिति के परिप्रेक्ष्य में अमेरिकी इतिहास की व्याख्या करने के उद्देश्य से 1903 में ‘American History and its Geographical Conditions’ (अमेरिकी इतिहास और इसकी भौगोलिक दशाएं) शीर्षक से एक महत्वपूर्ण ग्रंथ प्रकाशित किया जिसको विद्वत् समाज में काफी मान्यता एवं प्रतिष्ठा प्राप्त हुई।
1911 में एलेन चर्चिल सेम्पुलकी दूसरी पुस्तक ‘Influences of Geographic Environment’ (भौगोलिक पर्यावरण के प्रभाव) प्रकाशित हुई। इसमें उन्होंने रैटजेल के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘एन्थ्रोपोज्योग्राफी’ (मानव भूगोल) के प्रथम खण्ड (1882) में प्रतिपादित भौगोलिक विचारों तथा अध्ययन पद्धति का विश्लेषण लालित्यपूर्ण साहित्यिक भाषा और रोचक शैली में प्रस्तुत किया। इससे उन्होंने आंग्लभाषी देशों के समकालीन भूगोलवेत्ताओं और विद्यार्थियों में भौगोलिक अध्ययन के प्रति नवीन उत्साह उत्पन्न किया।
एलेन चर्चिल सेम्पुल की तीसरी पुस्तक ‘Geography of Mediterranean Regions: Its Relation to Ancient History’ (भूमध्यसागरीय प्रदेशों का भूगोल इसका प्राचीन इतिहास से सम्बंध) का प्रकाशन उनकी मृत्यु से कुछ महीने पूर्व 1931 में हुआ था। इसमें भूमध्यसागरीय प्रदेशों के इतिहास पर भौगोलिक पर्यावरण के प्रभावों की विवेचना की गयी है।
अपने उपर्युक्त तीन प्रमुख ग्रंथों के अतिरिक्त एलेन चर्चिल सेम्पुल ने अनेक शोध पत्र भी प्रकाशित किया था जिनमें प्रमुख निम्नांकित हैं-
1. औपनिवेशिक इतिहास का अपलेशियन अवरोधक (1897),
2. पूर्वी केन्टुकी उच्च प्रदेश के निवासी (1901),
3. भूमध्य सागरीय बेसिन की अवरोधक सीमा एवं उसकी उत्तरी घातक दरारें (1915),
4. प्राचीन भूमध्य सागरीय प्रदेश के 4 बंद अंतरीप (1927)
एलेन चर्चिल सेम्पुल की विचारधारा – पर्यावरण नियतिवाद
सेम्पुल जर्मन भूगोलवेत्ता रैटजेल के नियतिवादी चिन्तन से बहुत प्रभावित थीं। उन्होंने अपने व्याख्यानों, लेखों और पुस्तकों के माध्यम से रैटजेल की नियतिवादी विचारधारा को आंग्लभाषी देशों और भूगोलवेत्ताओं तक खूब प्रचारित किया। सेम्पुल रैटजेल की विचारधारा और अध्ययन पद्धति की प्रमुख प्रचारिका के रूप में विख्यात हैं।
सेम्पुल ने अपनी पुस्तक ‘भौगोलिक पर्यावरण के प्रभाव’ (Influences of Geographic Environment) में यह संदेश देने का प्रयास किया है कि पृथ्वी के तल पर मानव जीवन के सभी पक्ष (शारीरिक रचना, व्यवसाय, विचार, विश्वास आदि) उसके प्राकृतिक पर्यावरण के परिणाम हैं। आंग्ल भाषी विश्व में रैटजेल के विचारों को पहुँचाने का श्रेय कुमारी सेम्पुल को ही जाता है।
एलेन चर्चिल सेम्पुलकठोर नियतिवाद की अनुयायी थीं और उन्होंने इस विचारधारा को अपने प्रभावशाली लेखन शैली के द्वारा उच्चतम स्तर तक पहुँचा दिया। उनकी ‘भौगोलिक पर्यावरण के प्रभाव’ नामक सम्पूर्ण पुस्तक नियतिवादी विचारों से ओत-प्रोत है जिसमें रोचक उदाहरणों द्वारा मनुष्य पर प्रकृति के प्रभावों को समझाने का प्रयास किया गया है। इस पुस्तक का प्रथम अनुच्छेद सम्पूर्ण पुस्तक की लेखन शैली और उसके मौलिक संदेश को प्रकट कर देता है। पुस्तक के आरंभ में ही सेम्पुल ने लिखा है-
“Man is a product of the earth’s surface. This means not merely that he is a child of the earth, dust of her dust, but that the earth has mothered him, fed him, set him tasks, directed his thoughts, confronted him with difficulties that have strengthened his body and sharpened his wits, given him his problems of irrigation and navigation and at the same time whispered hints for their solution. She has entered into his bone and tissue, into his mind and soul.”
(मनुष्य भूतल की उपज है। इसका अभिप्राय केवल इतना ही नहीं है कि वह पृथ्वी का बच्चा है, उसकी मिट्टी की धूल है बल्कि यह भी है कि पृथ्वी माता ने उसे जन्म दिया है, उसका पालन-पोषण किया है, उसके लिए कार्य निर्धारित किया है, उसके विचारों को दिशा प्रदान की है, उसके सम्मुख कठिनाइयां उपस्थित की है जिन्होंने उसके शरीर को शक्तिशाली और बुद्धि को तीव्र बनाया है, उसको सिंचाई और नौकायन की समस्याएं उपस्थित किया है और इसके साथ ही उनके समधान के लिए धीरे से संकेतित कर दिया है। वह उसकी हड्डी और मांस में, उसके मस्तिष्क और आत्मा में प्रवृष्ट हो गयी है।)
इसी प्रकार के वक्तव्य सम्पूर्ण पुस्तक में भरे पड़े हैं। सेम्पुल ने लिखा है कि पर्वतों पर रहने वाले लोगों को प्रकृति ने मजबूत पैर दिये हैं जिससे वह ढालों पर चढ़ सके। इस प्रकार सेम्पुल ने मनुष्य के शारीरिक गठन, कार्यकुशलता तथा उसके सम्पूर्ण क्रिया-कलापों को प्राकृतिक पर्यावरण का परिणाम सिद्ध करने का प्रयास किया है। तत्कालीन परिस्थिति में सेम्पुल की विचारधारा समसामयिक थी और भूगोल जगत् पर उनकी विद्वता का व्यापक प्रभाव पड़ा था।
उल्लेखनीय है कि एलेन चर्चिल सेम्पुल ने रैटजेल की पुस्तक ‘एन्थ्रोपोज्योग्राफी’ के प्रथम खण्ड (1882) में प्रयुक्त अध्ययन पद्धति का अनुसरण किया जिसमें कठोर नियतिवाद की चर्चा की गयी है। उन्होंने इस पुस्तक के दूसरे खण्ड (1891) की अध्ययन पद्धति पर ध्यान नहीं दिया जिसमें रैटजेल ने मानव पर प्राकृतिक पर्यावरण के प्रभाव के साथ ही इस बात पर भी बल दिया है कि मानवीय विकास में एतिहासिक संस्कारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बाद के वर्षों में एलेन चर्चिल सेम्पुल भी मानव के प्रभावों को स्वीकार करने लगीं थीं। भूमध्यसागरीय प्रदेशों के भौगोलिक विवेचन में उन्होंने प्राकृतिक पर्यावरण के साथ ही मानवीय क्रिया-कलापों के प्रभावों की भी समीक्षा की है।
FAQs
सेम्पुल के प्रमुख शिक्षक प्रसिद्ध जर्मन भूगोलवेत्ता फ्रेडरिक रैटजेल थे।
सेम्पुल का पहला ग्रंथ ‘American History and its Geographical Conditions’ था, जो 1903 में प्रकाशित हुआ।
1911 में सेम्पुल की पुस्तक ‘Influences of Geographic Environment’ प्रकाशित हुई थी।
सेम्पुल ने क्लार्क विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की स्थापना की।
सेम्पुल की पुस्तक ‘Geography of Mediterranean Regions’ का प्रकाशन 1931 में हुआ था।
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