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भूदृश्य की संकल्पना (Concept of Landscape)

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भूदृश्य की संकल्पना (Concept of Landscape)

भूदृश्य (Landscape) का अर्थ

हम जानते हैं कि पृथ्वी का धरातल एक समान नहीं है यहां पर कहीं तो ऊंचे-ऊंचे पर्वत है, कहीं पर पठारी भाग हैं,कहीं बड़े-बड़े मैदान हैं, कहीं पर गहरे जलीय भाग हैं, तो कहीं घने वन क्षेत्र देखने को मिलते हैं। इन प्राकृतिक भू आकृतियों के अतिरिक्त यहां मानव द्वारा बसाई गई बस्तियां, कृषि क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र आदि देखने को मिलते हैं।  किसी क्षेत्र या प्रदेश विशेष में इन भूआकृतियों, वनस्पतियों, मानव भूमि उपयोग तथा अन्य मानवीय तथ्यों के सम्पूर्ण योग को भूदृश्य (landscape) कहा जाता है।

उरोक्त तथ्यों को उनकी प्रकृति के अनुसार दो प्रमुख वर्गों में रखा जाता है- 

(1) प्राकृतिक भूदृश्य

(2) सांस्कृतिक भूदृश्य  

भूदृश्य (Landscape) के प्रकार

प्राकृतिक भूदृश्य (Physical landscape)

प्रकृति या प्राकृतिक शक्तियों द्वारा बनाए गए भूदृश्य जिन पर मानवीय क्रिया का प्रभाव नहीं पाया जाता है, प्राकृतिक भूदृश्य कहलाता है। पर्वत, पठार, मैदान, नदी घाटी, दरार घाटी, हिमनद, फियोर्ड तट, रियातट, वन आदि प्राकृतिक भूदृश्य के अंतर्गत आते हैं। 

सांस्कृतिक भूदृश्य (Cultural landscape)

मानव के संपर्क और मानव क्रिया के परिमामस्वरूप उत्पन्न और विकसित भूदृश्य को सांस्कृतिक भूदृश्य (Cultural landscape) कहा जाता है। सांस्कृतिक भूदृश्य मानव द्वारा निर्मित अथवा मानव द्वारा प्रभावित, रूपांतरित या संशोधित हो सकता है किन्तु यह प्राकृतिक प्रदेश से भिन्न होता है। 

एक प्रमुख भौगोलिक कारक के रूप में मनुष्य अपनी शक्ति तथा चयन द्वारा प्राकृतिक भूदृश्य में परिवर्तन करके सांस्कृतिक भूदृश्य का निर्माण करता है। मनुष्य द्वारा निर्मित घर, गाँव, नगर, यातायात मार्ग (सड़क, रेल, नहर आदि) खेत, फसलें, चारागाह, बाग-बगीचे, खेल के मैदान, कल-कारखाने, विद्यालय, कार्यालय, संग्रहालय आदि सांस्कृतिक भूदृश्य के प्रमुख घटक हैं। 

जर्मन शब्द ‘लैण्डशाफ्ट’ भूदृश्य (landscape) के संदर्भ में और उसके समानार्थी के रूप में प्रयुक्त होता है।  हार्टशोर्न ने लिखा है कि जर्मनी में आधुनिक भूगोल के इतिहास में लैण्डशाफ्ट एक महत्त्वपूर्ण संकल्पना मानी गई है परन्तु ब्रिटेन तथा अमेरिका में भौगोलिक विचारधारा और प्रादेशिक अध्ययनों में इसका व्यवहार बहुत बाद में हुआ। होमेयर, हम्बोल्ट, ओपेल, वियर, फ्रोबेल आदि जर्मन भूगोलवेत्ताओं ने लैण्डशाफ्ट का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थों में किया है। इसलिए लैण्डशाफ्ट के अंग्रेजी अनुवाद लैण्डस्केप (Landscape) का भी कई अर्थों में प्रयोग किया गया। 

जेम्स (P. E. James, 1934) ने सत्य ही लिखा है कि ‘जो भूगोलवेत्ता इस शब्द (लैण्डशाफ्ट) का प्रयोग करता है, अनायास ही एक नई परिभाषा दे देता है।’ वास्तव में लैण्डशाफ्ट की संकल्पना के प्रति बहुत भ्रांति है। बांज जैसे कुछ भूगोलवेत्ता इसका अर्थ केवल क्षेत्र के बाह्य रूप से लगाते हैं तो कुछ ने इसका प्रयोग प्रदेश के अर्थ में किया है। बापबेल ने लैण्डशाफ्ट का अर्थ ‘भूतल तथा आकाश का वह खण्ड जिसे एक विशिष्ट बिन्दु से देखा जा सके’ बताया। 

ग्रानो ने इसका अर्थ ‘दृश्यनीय भूदृश्य’ बताया जिसमें किसी विशेष क्षेत्र की ध्वनि, सुगंध तथा भावनाएँ भी सम्मिलित होती हैं। फेंक ने भूदृश्य में उन्हीं तथ्यों के सम्मिलित करने का सुझाव दिया जो दृश्य हैं और जो धरातल पर मनुष्य के प्रभाव की अभिव्यक्ति करते हैं। श्ल्यूटर ने मनुष्य को भी भूदृश्य का प्रमुख तत्व माना। हार्टशोर्न ने लिखा है कि आधुनिक जर्मन भूगोलवेत्ता ‘भूदृश्य’ की ऐसी परिभाषा देने का प्रयास कर रहे हैं जो दृश्यनीय भूदृश्य संकल्पना के समकक्ष हो और साथ ही भौगोलिक अध्ययन के तथ्यों की सही परिभाषा करता हो। 

इस प्रकार हम देखते है कि प्रत्येक भूगोलवेत्ता की भूदृश्य की संकल्पना उसकी भौगोलिक विचारधारा के अनुसार भिन्न हो सकती है। भूआकृति विज्ञान का विशेषज्ञ भूदृश्य की संकल्पना में दृश्य तथ्यों को सम्मिलित करना चाहेगा किन्तु इसके विपरीत सांस्कृतिक भूगोल का अध्येता मनुष्य को एक सक्रिय सांस्कृतिक कारक के रूप में देखने का प्रयत्न करेगा। 

अमेरिका में भूदृश्य की संकल्पना जर्मनी से ही पहुँची थी। कार्ल सावर ने भूदृश्य (landscape) की विशद विवेचना की है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘भूदृश्य की आकारिकी’ (Morphology of Landscape) में भूदृश्य का प्रयोग दृष्ट तत्वों के समुच्चय और क्षेत्र (प्रदेश) दोनों अर्थों में किया है। कार्ल सावर ने भूदृश्य को दो वर्गों में विभाजित किया- 

1. प्राकृतिक भूदृश्य (Natural landscape), और 2. सांस्कृतिक भूदृश्य (Cultural landscape)

उनके अनुसार सम्पूर्ण भूदृश्य में प्राकृतिक तत्वों के समुच्चयिक स्वरूप को प्राकृतिक भूदृश्य और मानवकृत समस्त तत्वों के समुच्चयिक स्वरूप को सांस्कृतिक भूदृश्य कहा जा सकता है। 

हार्टशोर्न अनुसार भूदृश्य के ये दोनों प्रकार एक-दूसरे से पृथक् नहीं बल्कि परस्पर ग्रंथित होते हैं, अतः एक को दूसरे से सर्वथा पृथक नहीं किया जा सकता। वास्तव में प्राकृतिक भूदृश्य और सांस्कृतिक भूदृश्य का भेद सैद्धांतिक संकल्पना है। जहाँ मनुष्य का प्रवेश हो गया है वहाँ प्राकृतिक भूदृश्य का सदा के लिए अंत हो गया है और वहाँ सांस्कृतिक भूदृश्य बन गया है। हार्टशोर्न के विचार से, संसार के बसे हुए क्षेत्रों के लिए प्राकृतिक भूदृश्य की कल्पना कोरी सैद्धांतिक है और कम से कम सभ्य संसार में किसी जीवित मनुष्य ने प्राकृतिक भूदृश्य के दर्शन नहीं किए हैं। 

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भूदृश्य का अभिप्राय किसी क्षेत्र की सम्पूर्ण विशेषताओं की समष्टि (योग) से है जिसे ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अनुभव किया जाता है। इस प्रकार भूदृश्य भूतल के बाह्य स्वरूप की ही अभिव्यक्ति है जिसकी रचना में स्थलरूप, वनस्पति और मानव विन्यास का योगदान होता है। हार्टशोर्न के शब्दों में, भूदृश्य की सार प्रकृति की अभिव्यक्ति उसके रंग और रूप में होती है जिसे देखा तथा अनुभव किया जा सकता है। 

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