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ए. सी. बनर्जी की सिफीड परिकल्पना

Estimated reading time: 5 minutes

यदि आप भूगोल विषय में UGC NET, UPSC, RPSC, KVS, NVS, DSSSB, HPSC, HTET, RTET, UPPSC, या BPSC जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, तो ए. सी. बनर्जी की सिफीड परिकल्पना (Cepheid Hypothesis of A.C. Banerjee) आपके लिए एक महत्वपूर्ण टॉपिक हो सकता है। यह परिकल्पना ग्रहों की उत्पत्ति के रहस्यों को समझाने का प्रयास करती है और खगोल विज्ञान में एक महत्वपूर्ण योगदान मानी जाती है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम सिफीड तारों और उनकी विशेषताओं के साथ-साथ बनर्जी के इस सिद्धांत का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करेंगे, जिससे आपकी तैयारी और भी सुदृढ़ हो सके। आइए, इस रोचक और ज्ञानवर्धक यात्रा की शुरुआत करें।

परिचय

प्रो. ए. सी. बनर्जी ने 1942 में सिफीड परिकल्पना प्रस्तुत की। इस परिकल्पना के अनुसार, ग्रहों की उत्पत्ति सिफीड नामक तारों से हुई है। यह सिद्धांत खगोल विज्ञान में एक महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है, क्योंकि यह ग्रहों की उत्पत्ति के रहस्यों को समझाने का प्रयास करता है। बनर्जी का यह सिद्धांत उस समय के खगोल वैज्ञानिकों के लिए एक नई दिशा प्रदान करता है।

सिफीड तारे क्या हैं? 

सिफीड तारे सूर्य से 5 से 20 गुना बड़े होते हैं। ये तारे समय-समय पर संकुचित और प्रसारित होते रहते हैं, जिससे इनका प्रकाश भी घटता-बढ़ता रहता है। सिफीड तारों की यह विशेषता उन्हें अन्य तारों से अलग बनाती है। इन तारों का प्रकाश चक्रीय रूप से बदलता रहता है, जिससे खगोल वैज्ञानिक इनकी दूरी और अन्य गुणों का अध्ययन कर सकते हैं। सिफीड तारे ब्रह्मांड में एक प्रकार के मानक मोमबत्ती के रूप में कार्य करते हैं, जिनसे खगोल वैज्ञानिक ब्रह्मांड की दूरी माप सकते हैं।

सिफीड परिकल्पना का विवरण

बनर्जी के अनुसार, ग्रहों की उत्पत्ति सिफीड तारों से हुई। एक सिफीड तारे के पास से एक विशाल भ्रमणशील तारा गुजरा, जिससे सिफीड में ज्वार उत्पन्न हुआ। इस ज्वार के कारण कुछ पदार्थ पृथक होकर दूर तक फैल गया और इन पदार्थों से ग्रहों की रचना हुई। समीप आने वाला तारा अपने मार्ग पर चलता हुआ सौर-परिवार से दूर हो गया। यह प्रक्रिया बहुत ही जटिल और अद्वितीय है, जिसमें सिफीड तारे का गुरुत्वाकर्षण बल और भ्रमणशील तारे का प्रभाव शामिल है। इस परिकल्पना के अनुसार, ग्रहों की रचना एक प्राकृतिक और स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो ब्रह्मांड के विकास का हिस्सा है।

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प्रश्न 1: सिफीड तारे किस प्रकार के तारे होते हैं?

  1. सूर्य से छोटे तारे
  2. सूर्य के समान तारे
  3. सूर्य से 5 से 20 गुना बड़े तारे
  4. सूर्य से 100 गुना बड़े तारे

प्रश्न 2: सिफीड तारों की विशेषता क्या है?

  1. ये स्थिर रहते हैं
  2. ये समय-समय पर संकुचित और प्रसारित होते रहते हैं
  3. इनका प्रकाश स्थिर रहता है
  4. ये केवल नीले रंग के होते हैं

प्रश्न 3: ए. सी. बनर्जी की सिफीड परिकल्पना कब प्रस्तुत की गई थी?

  1. 1932 में
  2. 1942 में
  3. 1952 में
  4. 1962 में

प्रश्न 4: सिफीड तारों का प्रकाश कैसे बदलता है?

  1. यह स्थिर रहता है
  2. यह घटता और बढ़ता रहता है
  3. यह केवल बढ़ता है
  4. यह केवल घटता है

प्रश्न 5: बनर्जी के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति किससे हुई?

  1. सिफीड तारों से
  2. नीहारिकाओं से
  3. ब्लैक होल से
  4. सुपरनोवा से

प्रश्न 6: सिफीड तारे किस प्रकार के मानक के रूप में कार्य करते हैं?

  1. तापमान मापने के लिए
  2. दूरी मापने के लिए
  3. द्रव्यमान मापने के लिए
  4. समय मापने के लिए

प्रश्न 7: सिफीड तारे का पास से गुजरने वाला तारा क्या उत्पन्न करता है?

  1. ज्वार
  2. भूकंप
  3. तूफान
  4. विस्फोट

प्रश्न 8: सिफीड तारे के ज्वार से क्या पृथक होता है?

  1. प्रकाश
  2. पदार्थ
  3. ऊर्जा
  4. ध्वनि

प्रश्न 9: समीप आने वाला तारा सौर-परिवार से क्या करता है?

  1. जुड़ जाता है
  2. दूर हो जाता है
  3. स्थिर रहता है
  4. नष्ट हो जाता है

प्रश्न 10: सिफीड परिकल्पना किस विषय से संबंधित है?

  1. भूगोल
  2. खगोल विज्ञान
  3. जीव विज्ञान
  4. रसायन विज्ञान

उत्तर:

  1. 3
  2. 2
  3. 2
  4. 2
  5. 1
  6. 2
  7. 1
  8. 2
  9. 2
  10. 2

FAQs

ए. सी. बनर्जी की सिफीड परिकल्पना क्या है?

ए. सी. बनर्जी की सिफीड परिकल्पना 1942 में प्रस्तुत की गई थी। इस परिकल्पना के अनुसार, ग्रहों की उत्पत्ति सिफीड नामक तारों से हुई है। सिफीड तारे सूर्य से 5 से 20 गुना बड़े होते हैं और समय-समय पर संकुचित और प्रसारित होते रहते हैं। बनर्जी के अनुसार, एक सिफीड तारे के पास से एक विशाल भ्रमणशील तारा गुजरा, जिससे सिफीड में ज्वार उत्पन्न हुआ और कुछ पदार्थ पृथक होकर दूर तक फैल गया। इस पदार्थ से ग्रहों की रचना हुई।

सिफीड तारे क्या होते हैं?

सिफीड तारे सूर्य से 5 से 20 गुना बड़े तारे होते हैं। ये तारे समय-समय पर संकुचित और प्रसारित होते रहते हैं, जिससे इनका प्रकाश भी घटता-बढ़ता रहता है। सिफीड तारों की यह विशेषता उन्हें अन्य तारों से अलग बनाती है और खगोल वैज्ञानिक इनकी दूरी और अन्य गुणों का अध्ययन कर सकते हैं। सिफीड तारे ब्रह्मांड में एक प्रकार के मानक मोमबत्ती के रूप में कार्य करते हैं, जिनसे खगोल वैज्ञानिक ब्रह्मांड की दूरी माप सकते हैं।

सिफीड परिकल्पना का महत्व क्या है?

सिफीड परिकल्पना खगोल विज्ञान में एक महत्वपूर्ण योगदान मानी जाती है। यह परिकल्पना ग्रहों की उत्पत्ति के रहस्यों को समझाने का प्रयास करती है। बनर्जी का यह सिद्धांत उस समय के खगोल वैज्ञानिकों के लिए एक नई दिशा प्रदान करता है और ग्रहों की रचना की प्रक्रिया को एक प्राकृतिक और स्वाभाविक घटना के रूप में प्रस्तुत करता है। यह परिकल्पना आज भी खगोल वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है और ग्रहों की उत्पत्ति के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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