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कार्ल ऑस्कर सावर (Carl Oscar Sauer)

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Carl Oscar Sauer

इस लेख में आप कार्ल ऑस्कर सावर (Carl Oscar Sauer) के जीवन एवं उनके भौगोलिक विचारधाराओं के बारे में विस्तार से जानेंगे।

कार्ल ऑस्कर सावर: जीवन परिचय

कार्ल ऑस्कर सावर (1889-1975) बीसवीं शताब्दी के प्रमुख अमेरिकी भूगोलवेत्ता थे। कार्ल सावर का जन्म 1889 में संयुक्त राज्य अमेरिका में मिसौरी राज्य के वारेन्टन नगर में हुआ था। वारेन्टन कालेज से 1908 में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने 1915 में शिकागो विश्वविद्यालय से प्रख्यात् भूगोलवेत्ता सैलिसबरी के निर्देशन में डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की थी। सावर ने भूगोल, समाजशास्त्र, मानव शास्त्र और जीव विज्ञान का अध्ययन किया था और वे अंग्रेजी के साथ ही जर्मन और फ्रेंच भाषा के भी ज्ञाता थे।

पीएच०डी० की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् 1915 में साबर की नियुक्ति मिशिगन विश्वविद्यालय में भूगोल के प्राध्यापक पद पर हुई, जहाँ वे 1923 तक कार्यरत रहे। 1923 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में भूगोल का नया विभाग स्थापित हुआ और सावर भूगोल के प्रोफेसर और अध्यक्ष नियुक्त हुए, जहाँ वे 1957 (सेवा निवृत्ति) तक कार्य करते रहे। 

सक्रिय सेवा से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् सावर ने कुछ काल तक अमेरिटस प्रोफेसर के रूप में भी कार्य किया था। सावर अपने सम्पूर्ण शैक्षिक जीवन में भौगोलिक समस्याओं के अध्ययन, अध्यापन और शोध में संलग्न रहे। इस प्रकार सावर ने लगभग 40 वर्षों तक अमेरिकी भौगोलिक शोध का नेतृत्व किया था।

कार्ल ऑस्कर सावर की रचनाएं

कार्ल ऑस्कर सावर सांस्कृतिक भूगोल और ऐतिहासिक भूगोल के प्रतिष्ठित विद्वान थे। उन्होंने भूगोल में क्षेत्र वर्णन (Chorology) की संकल्पना और भूदृश्य की संकल्पना का प्रचार और विकास किया था। सावर उच्चकोटि के भौगोलिक चिन्तक और प्रतिभाशाली लेखक थे। उन्होंने अनेक पुस्तकें और शोध लेख प्रकाशित किये थे जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई। सावर की कुछ प्रमुख पुस्तकें निम्नांकित हैं-

(1) Human Use of Organic World (जैविक विश्व का मानव उपयोग), 1920.

(2) Ozark Highlands – A Study in Upland Geography (ओजार्क उच्चभूमि : पठारी भूगोल का अध्ययन), 1920.

(3) The Morphology of Landscape (भूदृश्य की आकारिकी), 1925.

(4) Cultural Geography (सांस्कृतिक भूगोल), 1931.

(5) Introduction to Geography (भूगोल परिचय), 1932.

(6) Aboriginal Population of North-West Mexico (उत्तरी-पश्चिमी मैक्सिको की आदिम जनसंख्या), 1935.

(7) Introduction to Historical Geography (ऐतिहासिक भूगोल का परिचय), 1941.

(8) Agricultural Origin and Dispersal (कृषि का उद्गम और प्रसार), 1952.

(9) Teaching of a Geographer (एक भूगोलवेत्ता का शिक्षण), 1956.

कार्ल ऑस्कर सावर की विचारधारा

कार्ल सावर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान भूगोल के विधि तंत्र के विकास से सम्बंधित है। सावर ने भौगोलिक अध्ययन में भूविस्तारीय या क्षेत्र विवेचन की संकल्पना (Concept of Chorology), भूदृश्य की संकल्पना (Concept of Landscape) और सम्भववाद (Possibilism) की विस्तृत व्याख्या की है जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नांकित है-

भूविस्तारीय संकल्पना (Concept of Chorology)

कार्ल ऑस्कर सावर प्रसिद्ध जर्मन भूगोलवेत्ता हेटनर के भूविस्तारीय संकल्पना से प्रभावित थे। उन्होंने हेटनर की भूविस्तारीय संकल्पना (Concept of Chorology) की नये प्रकार से व्याख्या की। सावर के अनुसार ‘भूगोल का उत्तरदायित्व क्षेत्रीय अध्ययन है। विद्यालय का प्रत्येक बच्चा जानता है कि भूगोल विभिन्न देशों के सम्बंध में सूचना देता है। किसी अन्य विषय ने क्षेत्रीय अध्ययन का दावा नहीं किया है।’ 

सावर ने हेटनर के क्षेत्रवर्णनी विज्ञान (Chorology) सम्बंधी दृष्टिकोण से प्रभावित होकर अपनी क्षेत्रीय भिन्नता सम्बंधी विचारधारा प्रस्तुत किया था। हेटनर के विचारों को उपयुक्त मानते हुए कार्ल सावर ने क्षेत्रीय भिन्नता की व्याख्या किया। उन्होंने बताया कि किसी प्रदेश में निरन्तर विकास प्रक्रिया में संलग्न रहते हुए मानव क्षेत्रीय भूदृश्य में परिवर्तन करता है जिसके फलस्वरूप क्षेत्रीय भिन्नता उत्पन्न होती है। 

‘क्षेत्रीय भिन्नता’ (Areal differentiation) शब्दावली का सर्वप्रथम (1925) प्रयोग कार्ल सावर ने ही किया था। बाद में हार्टशोर्न ने इसकी विस्तृत व्याख्या की।

भूदृश्य की संकल्पना (Concept of Landscape)

कार्ल ऑस्कर सावर ने 1925 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘The Morphology of Landscape’ (भूदृश्य की आकारिकी) में भूदृश्य की संकल्पना का विस्तृत विवेचन किया है। उन्होंने जर्मन शब्द लैण्डशाफ्ट (landshaft) के पर्याय के रूप में ‘लैण्डस्केप’ (Landscape) शब्दावली का प्रयोग किया था। उन्होंने भूदृश्य का प्रयोग दृष्ट तत्वों के समुच्चय और क्षेत्र (प्रदेश) दोनों अर्थों में किया है। हार्टशोर्न ने लिखा है कि सावर की भूदृश्य सम्बंधी विचारधारा जर्मन भूगोलवेत्ता हेटनर, श्ल्यूटर आदि के विचारों के सन्निकट है।

कार्ल ऑस्कर सावर ने भूदृश्य को दो वर्गों में विभक्त किया है- 

  1. प्राकृतिक भूदृश्य (Natural landscape), और 
  2. सांस्कृतिक भूदृश्य (Cultural landscape)  

उनके अनुसार सम्पूर्ण भूदृश्य में प्राकृतिक तत्वों के सम्मुच्चयिक स्वरूप को प्राकृतिक भूदृश्य और मानवकृत समस्त तत्वों के समुच्चयिक स्वरूप को सांस्कृतिक भूदृश्य कहा जा सकता है। भूदृश्य के इस द्वन्द्वात्मक वर्गीकरण में पूर्णतः प्रकृति द्वारा उत्पन्न भूदृश्य को प्राकृतिक भूदृश्य माना जाता है और मानव द्वारा निर्मित या संशोधित भूदृश्य को सांस्कृतिक भूदृश्य कहा जाता है। इसलिए मानव वसाब वाले या मानव की पहुँच वाले क्षेत्र में पूर्णतः प्राकृतिक भूदृश्य नहीं हो सकता। 

भूगोल में भूतल का अध्ययन मानव-गृह के रूप में किया जाता है। अतः भौगोलिक अध्ययन में सांस्कृतिक भूदृश्य ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। सांस्कृतिक भूदृश्य के अध्ययन से यह समझने में सहायता मिलती है कि पृथ्वी के तल (भूतल) के वर्तमान भूदृश्य का स्वरूप किस सीमा तक मानवीय क्रिया-कलापों का परिणाम है। इस प्रकार सावर ने सांस्कृतिक भूदृश्य की विस्तृत व्याख्या की और सांस्कृतिक भूगोल को स्थापित किया।

सम्भववाद की संकल्पना (Concept of Possibilism)

कार्ल ऑस्कर सावर मुख्यतः सम्भववादी विचारक थे किन्तु वे ग्रिफिथ टेलर के नवनियतिवाद (Neo Determinism) को भी महत्वपूर्ण मानते थे। उनके अनुसार किसी प्रदेश के भूदृश्य विशेषतः सांस्कृतिक भूदृश्य के विकास में मानव की सर्वाधिक सशक्त भूमिका होती है। मनुष्य अपनी संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था तथा अपने व्यावहारिक स्तर से भौतिक एवं जैविक पर्यावरण को रूपांतरित करके उन्हें अपनी रुचि एवं आवश्यकता के अनुकूल बनाने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है।

कार्ल ऑस्कर सावर के अनुसार भूतल पर स्थित सांस्कृतिक भूदृश्य जैसे खेत, गृह, खदान, कारखाना, अधिवास (ग्राम एवं नगर), सड़कें, रेलमार्ग, पत्तन आदि की स्थापना से उसके प्राकृतिक स्वरूप में अत्यधिक परिवर्तन हो गया है और यह सब निश्चित रूप से मानव के कार्यों और प्रयलों का ही प्रतिफल है। अतः मनुष्य को अन्य जैविक तत्वों की भाँति प्रकृति द्वारा नियंत्रित तत्व के रूप में नहीं प्रस्तुत किया जा सकता। वह निश्चित रूप से भूदृश्य का रूप परिवर्तक है।

सांस्कृतिक उद्गम स्थल (Cultural Hearth)

‘कल्चरल हर्थ’ (सांस्कृतिक उद्गम स्थल) का सर्वप्रथम प्रयोग कार्ल सावर ने कृषि पद्धतियों के उद्गम स्थल के संदर्भ में किया था। प्राचीन काल में भूतल के जिन भागों में विशिष्ट मानव संस्कृति या संस्कृति समूह की उत्पत्ति हुई थी, उसे सांस्कृतिक उद्गम स्थल के नाम से जाना जाता है। सावर के अनुसार मेसोपोटामिया, सिन्धु घाटी, ह्वांग हो घाटी, नील घाटी, ईजियन यूनानी, अफ्रीकी-सूडान, मध्य अमेरिकी, पेरू-एण्डीज आदि विश्व के प्रमुख सांस्कृतिक उद्गम स्थल थे। यहाँ से मानव संस्कृतियों का विसरण विश्व के अन्य क्षेत्रों में हुआ।

FAQs

कार्ल ऑस्कर सावर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

कार्ल ऑस्कर सावर का जन्म 1889 में मिसौरी राज्य के वारेन्टन नगर में हुआ था।

कार्ल सावर की प्रमुख पुस्तकें कौन-कौन सी हैं?

कार्ल सावर की प्रमुख पुस्तकें हैं: ‘The Morphology of Landscape’, ‘Cultural Geography’, ‘Introduction to Historical Geography’।

कार्ल सावर ने ‘कल्चरल हर्थ’ (Cultural Hearth) का प्रयोग किस संदर्भ में किया?

कार्ल सावर ने ‘कल्चरल हर्थ’ (Cultural Hearth) का प्रयोग कृषि पद्धतियों के उद्गम स्थल के संदर्भ में किया।

कार्ल सावर के अनुसार, सांस्कृतिक भूदृश्य क्या है?

कार्ल सावर के अनुसार, सांस्कृतिक भूदृश्य मानव द्वारा निर्मित या संशोधित भूदृश्य है, जैसे खेत, गृह, खदान, कारखाना, ग्राम, नगर, सड़कें, रेलमार्ग, आदि।

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