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अल्फ्रेड हेटनर (Alfred Hettner): जीवन परिचय
अल्फ्रेड हेटनर (1859-1941) बीसवीं शताब्दी के प्रमुख जर्मन भूगोलवेत्ता में से एक थे। डिकिन्सन (1969) के अनुसार उन्होंने अपने समकालीन किसी भी अन्य भूगोलवेत्ता से अधिक मात्रा में भूगोल को दार्शनिक और वैज्ञानिक आधार प्रदान किया था। भौगोलिक चिन्तन में रिचथोफेन ने जिस जीव भूविस्तरीय (chronological) दृष्टिकोण को पुनर्जीवित किया था उसे आगे बढ़ाने में हेटनर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1939 में प्रकाशित हार्टशोर्न की प्रसिद्ध पुस्तक ‘नेचर आफ ज्योग्राफी’ (Nature of Geography) में हेटनर (Hettner) की संकल्पना की विस्तृत विवेचना की गई थी।
‘नेचर आफ ज्योग्राफी’ पुस्तक के माध्यम से हेटनर (Hettner) की संकल्पना को आंग्लभाषी देशों में व्यापक मान्यता प्राप्त हुई और उनको ही भूविस्तरीय दृष्टिकोण को विकसित करने का श्रेय दिया जाने लगा। हेटनर की शिक्षा का मुख्य विषय भूगोल था। 1877-78 में हाले विश्वविद्यालय में जर्मन विद्वान किचफ से हेटनर ने भौगोलिक ज्ञान के सैद्धांतिक स्वरूप के विषय में स्पष्ट दृष्टिकोण प्राप्त किया था। वे रेटजेल और रिचथोफेन के भी शिष्य थे।
हेटनर (Hettner) उच्च शिक्षा के लिए हाले से बोन गए और वहाँ से स्ट्रासबर्ग गए। यहीं पर प्रोफेसर गारलैण्ड के निर्देशन में उन्होंने चिली की जलवायु पर अपना डाक्ट्रेट का शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया। स्ट्रासबर्ग में रहते हुए हेटनर का झुकाव भौगोलिक चिन्तन के दार्शनिक पक्ष की ओर हो गया। आगे चलकर भूगोल का दार्शनिक पक्ष ही उनके चिन्तन-मनन का मुख्य विषय बन गया।
हेटनर (Hettner) ने 1881 में डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की और इसके अगले वर्ष (1882) वे एक ब्रिटिश राजदूत के निजी शिक्षक के रूप में ब्रिटिश कोलम्बिया (दक्षिण अमेरिका) चले गए। दो वर्ष पश्चात् हेटनर (1884) लीपजिग आ गए और वहाँ रेटजेल के निर्देशन में अपनी शिक्षण उपाधि ‘हैबिलिटेशन‘ पूरा किया। 1888 में हेटनर (Hettner) पुनः दक्षिणी अमेरिका की यात्रा पर चले गए किन्तु दो वर्ष पश्चात् 1890 वे लीपजिग लौट आए और वहाँ विश्वविद्यालय में रेटजेल के विभाग में प्राध्यापक के रूप में कार्य करने लगे।
1899 में वे हाइडलबर्ग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बन गए और अपने शैक्षिक जीवन का शेष समय (1899-1928) वहीं व्यतीत किया।
हेटनर (Hettner) की रचनाएँ
अल्फ्रेड हेटनर (Hettner) ने अपने लम्बे शैक्षणिक जीवन में भूगोल के विभिन्न पक्षों पर अनेक लेखों और पुस्तकों को जर्मन भाषा में प्रकाशित किया था ।
हेटनर (Hettner) की प्रमुख रचनाएं हैं –
- कोलम्विया के एण्डीज क्षेत्र की यात्रा (1888)
- रूस का भूगोल (1905)
- यूरोप का प्रादेशिक भूगोल (1907)
- इंग्लैण्ड का विश्वव्यापी प्रभुत्व और युद्ध (1915)
- पृथ्वी के महाद्वीपों की स्थलाकृतियां ( 1921 1928)
- प्रादेशिक भूगोल के आधार (1924)
- पृथ्वी पर संस्कृति का प्रसार (1928-29)
- ‘तुलनात्मक प्रादेशिक भूगोल’ ग्रंथमाला के चार खण्ड (1933-35 )
- मानव भूगोल (मृत्यु के पश्चात् तीन खण्डों में प्रकाशित)
- हेटनर ने हाइडलबर्ग में 1895 में एक भौगोलिक पत्रिका की स्थापना की थी जिसका नाम था ‘जिओग्राफिशे जाइशिफ्ट’ (Geographiche Zeitshift )। इसका सम्पादन वे 1935 तक निरन्तर करते रहे। वे इस पत्रिका में भूगोल के सैद्धांतिक पक्षों पर लगातार लेख लिखते रहे। हेटनर ने इस पत्रिका में भौगोलिक चिन्तन पर प्रकाशित अपने लेखों को एक पुस्तक ‘भूगोल : इसका इतिहास, प्रकृति और अध्ययन पद्धति’ – के रूप में 1927 में प्रकाशित किया था।
अल्फ्रेड हेटनर (Hettner) की विचारधारा
हेटनर बीसवीं शताब्दी में भौगोलिक चिन्तन के प्रमुख विचारक और विधितंत्रवेत्ता (methodologist) थे। उनकी विचारधारा का संक्षिप्त वर्णन नीचे किया गया है:
क्षेत्रीय भिन्नता की संकलपना (Concept of Areal Differentiation)
हार्टशोर्न के अनुसार क्षेत्रीय भिन्नता की संकल्पना को हम्बोल्ट और रिटर के विचारों का संश्लेषण करके रिचथोफेन ने पुनर्जीवित किया था और इसकी विशद विवेचना हेटनर (Hettner) की रचनाओं में की गई है। हेटनर ने 1898 में लिखा था कि ‘प्राचीनतम काल से आधुनिक काल तक भूगोल भू-क्षेत्रों के ज्ञान का विषय रहा है जो एक-दूसरे से भिन्न हैं।’
उन्होंने 1905 में भूगोल को भू-विस्तारीय विज्ञान (Chorological science) बताया जिसमें पृथ्वी के क्षेत्रों तथा स्थानों का अध्ययन उनकी भिन्नताओं तथा भूसंबंधों के संदर्भ में किया जाता है। दूसरे शब्दों में, भूगोल भूतल का विज्ञान है जो उसकी प्रादेशिक भिन्नताओं का अध्ययन महाद्वीपों देशों, जनपदों तथा स्थानों के संदर्भ में करता है। इस प्रकार भूगोल यह जानने का प्रयत्न करता है कि पृथ्वी की भिन्न-भिन्न क्षेत्रीय इकाइयां एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं।
भौतिक तथा मानव भूगोल की एकता (Unity of Physical and Human Geography)
हेटनर (Hettner) भौगोलिक अध्ययन में भौतिक बनाम मानव भूगोल की द्वैधता को नहीं मानते थे । हेटनर ने जोर देकर कहा था कि क्षेत्रीय अध्ययन के रूप में भूगोल न तो प्राकृतिक विज्ञान है और न ही सामाजिक विज्ञान बल्कि यह एक साथ ही दोनों प्रकार का अध्ययन है। उनके विचार से मानव और प्रकृति दोनों ही भौगोलिक अध्ययन के समान महत्व वाले अनिवार्य पक्ष हैं। अतः इन दोनों को एक-दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता।
सामान्य और विशिष्ट भूगोल (General and Special Geography)
हेटनर (Hettner) के अनुसार अन्य विज्ञानों की भाँति भौगोलिक अध्ययन में सामान्य (क्रमबद्ध) और विशिष्ट (प्रादेशिक) दोनों ही अध्ययन के अनिवार्य पक्ष हैं। हेटनर की अधिकांश रचनाएं प्रादेशिक अध्ययन से सम्बंधित थीं किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वे सामान्य भूगोल या सैद्धांतिक अध्ययन को गौण समझते थे। उन्होंने अपने सैद्धांतिक लेखों में दोनों पक्षों को समान महत्व दिया था।
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