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अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट (Alexander von Humboldt) 

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अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट (Alexander von Humboldt)

उन्नीसवीं शताब्दी के महान भूगोलवेत्ता अनेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट एक युग प्रवर्तक और सर्वतोन्मुखी प्रतिभा वाले विद्वान थे जिन्होंने भूगोल और उसकी विभिन्न शाखाओं में ही नहीं बल्कि अन्य विज्ञानों जैसे भूगर्भ विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, प्राणि विज्ञान, जलवायु विज्ञान आदि में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने लगभग 64000 किमी. लम्बी खोज यात्राएं की थी और भौगोलिक तथ्यों का सूक्ष्म निरीक्षण और पर्यवेक्षण किया था। इस प्रकार एकत्रित किए गए तथ्यों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया और भूगोल को एक विज्ञान के रूप में स्थापित किया। 

हम्बोल्ट ने कई विज्ञानों में शिक्षा प्राप्त की थी। प्रारंभ में उनकी अभिरुचि प्राकृतिक विज्ञानों में अधिक थी किन्तु बाद में उनका झुकाव भौगोलिक चिन्तन की ओर हुआ और भूगोल ही उनका मुख्य कार्यक्षेत्र बन गया। हम्बोल्ट के नेतृत्व में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक भूगोल एक समग्र विज्ञान के रूप में स्थापित हो गया था। 

जीवन परिचय 

हम्बोल्ट का जन्म जर्मनी में प्रशा (Prusia) के एक धनी परिवार में हुआ था। हम्बोल्ट के पिता प्रशा की सेना में एक उच्च अधिकारी के रूप में कार्य करते थे। हम्बोल्ट की दस वर्ष की अवस्था में ही उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी और हम्बोल्ट तथा उनके बड़े भाई का पालन-पोषण तथा शिक्षा उनकी माता के संरक्षण में हुई थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा निजी शिक्षकों द्वारा उनके गृह नगर टेगेल में हुई थी। 18 वर्ष की आयु में हम्बोल्ट ने फ्रैंकफर्ट (Frankfurt ) विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया किन्तु छः महीने बाद ही वहाँ से घर वापस आ गए क्योंकि उनकी माता उन्हें बर्लिन में कारखाना प्रबंधन की शिक्षा दिलाना चाहती थीं। 

रुचि न होने के कारण उन्होंने कुछ ही महीने में कारखाना प्रबंधन की पढाई भी छोड़ दी और दूसरे वर्ष (1789) गाटिंगन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ भौतिक विज्ञान, दर्शनशास्त्र और पुरातत्व विज्ञान का अध्ययन आरंभ किया। गाटिंगन में उनकी मुलाकात प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी जार्ज फार्स्टर से हुई। फार्स्टर से प्रभावित होकर हम्बोल्ट की रुचि वनस्पतियों के अध्ययन में लगने लगी और उन्होंने वनस्पतियों के पारिस्थितिकीय अध्ययन को अपने चिंतन का मुख्य विषय बना लिया। 

गाटिंगन में पढाई के दौरान ही हम्बोल्ट ने जार्ज फार्स्टर के साथ राइन नदी से होते हुए नीदरलैण्ड और वहाँ से जलमार्ग द्वारा इंग्लैण्ड की यात्रा की। इस यात्रा से उनके जीवन में एक नया मोड़ आया और वे प्राकृतिक तत्वों के पारस्परिक सहअस्तित्व और उनके प्राकृतिक पर्यावरण के संदर्भ में अध्ययन की ओर प्रवृत्त हुए । 

हम्बोल्ट ने उच्च शिक्षा के लिए 1790 में हैम्बर्ग के एक वाणिज्य महाविद्यालय में प्रवेश लिया। वहाँ वाणिज्य, वनस्पति विज्ञान, खनिज विज्ञान और भूगोल उनके अध्ययन विषय थे। वाणिज्य महाविद्यालय में एक वर्ष शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् हम्बोल्ट ने खनिज विज्ञान की उच्च शिक्षा के लिए ‘फाइवर्ग अकेडमी आफ साइंस’ में प्रवेश लिया। इस संस्था में उन्होंने प्रसिद्ध भूविज्ञानी वर्नर (Werner) के निर्देशन में भूविज्ञान का अध्ययन किया। वहां उन्होंने खनिज विज्ञान के साथ-साथ प्राणि विज्ञान में भी रुचि बनाए रखी। 

उन्होंने खदानों में पाई जाने वाली वनस्पतियों पर वैज्ञानिक प्रयोग किए और उसके आधार पर लैटिन भाषा में एक पुस्तक (फ्लोराए फ्राइबर जेन्सिस) लिखी, जिसमें खदानों के भीतर पाई जाने वाली वनस्पतियों के विश्लेषण के साथ ही पारिस्थितिकीय अध्ययन भी सम्मिलित था। हम्बोल्ट ने लैटिन में भूगोल के लिए ‘जिओग्नाजिया’ शब्द का प्रयोग किया था जिसे जर्मन में ‘अर्डकुण्डे’ और अंग्रेजी में ज्योग्राफी कहा गया है। हम्बोल्ट की ‘जिओग्नाजिया’ नामक पुस्तक 1793 में प्रकाशित हुई जिसने आधुनिक भूगोल के अध्ययन के लिए एक माडल प्रस्तुत किया। 

1794 में हम्बोल्ट अपने बड़े भाई के पास जेना गए जहाँ वो गेटे, शिलर, शेलिंग, फीश्ते आदि अनेक विचारकों के सम्पर्क में आए। उनके विचारों से हम्बोल्ट बहुत प्रभावित हुए क्योंकि उनकी तरह वे स्वयं भी प्राकृतिक जीवन की समरसता में विश्वास करते थे। इसी सैद्धांतिक आधार पर उन्होंने वनस्पति भूगोल सम्बंधी शोध कार्य किए । 

हम्बोल्ट की खोज यात्राएं

हम्बोल्ट ने 1792 से 1796 के दौरान प्रशा राज्य के खनिज मंत्रालय में कार्य करने के पश्चात् सरकारी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। क्योंकि वे अपने अध्ययन और शोध कार्यों द्वारा बड़ा वैज्ञानिक बनना चाहते थे। वेस्ट इंडीज की शोध यात्रा करने से पहले हम्बोल्ट वियना, पेरिस और मैड्रिड गए। पेरिस में हम्बोल्ट का सम्पर्क प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक बोनप्लांड (Bonpland) से हुआ। दोनों वैज्ञानिक साथ-साथ मैड्रिड गए और वहाँ उन्होंने दक्षिण अमेरिका में स्पेन के उपनिवेश क्षेत्रों की यात्रा के लिए योजना बनाई। 

राजा से अनुमति लेने के बाद दोनों वैज्ञानिकों ने जून 1799 में दक्षिण अमेरिका की यात्रा के लिए प्रस्थान किया। वोनप्लांड के साथ हम्बोल्ट पहले वेनेजुएला के कुमाना नगर पहुंचे और वहां से अपनी खोज यात्रा आरंभ की। लगभग पांच वर्षों तक हम्बोल्ट घूमते रहे और इस खोज अभियान के दौरान लगभग 64000 किमी. से भी अधिक दूरी की यात्राएं की। हम्बोल्ट ने 1800 में ओरीनिको नदी की लगभग 2700 किमी. बेसिन का सर्वेक्षण किया। इस यात्रा की अवधि में उन्होंने उष्ण कटिबंधीय वनों के पेड़-पौधों तथा जीवाश्मों के नमूनों का भंडार एकत्रित किया। 

नवम्बर 1800 में हम्बोल्ट अपने सहयात्री बोनप्लांड के साथ कुमाना (Cumana) वापस पहुँच गए और वहाँ से क्यूबा की यात्रा पर निकल पड़े। 1801 में वे दोनों कोलम्बिया के बन्दरगाह कार्तेजेना पहुँचे। कार्तेजेना से उन दोनों ने एण्डीज पर्वत श्रेणी के सर्वेक्षण के लिए खोज यात्रा आरंभ किया।

वहाँ उन्होंने कोलम्बिया, इक्वेडोर और पेरू में एण्डीज पर्वत श्रृंखला का सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण द्वारा उन्होंने महत्वपूर्ण स्थानों के अक्षांश-देशांतर की माप किया और उनके तापमान और सागर तल से ऊंचाई आदि से सम्बंधित आंकड़े एकत्रित किया। पेरू के लीमा नगर पहुंच कर हम्बोल्ट ने समुद्र तट का सर्वेक्षण किया। उन्होंने पेरू तट के समानांतर दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहित होने वाली ठण्डी धारा का पता लगाया जिसे पेरू धारा या हम्बोल्ट धारा के नाम से जाना जाता है। 

मार्च 1803 में हम्बोल्ट ने गायाकिल (इक्वेडोर) से मैक्सिको के लिए प्रस्थान किया। मैक्सिको में लगभग एक वर्ष रहकर हम्बोल्ट ने मैक्सिको की प्राकृतिक दशा, अर्थव्यवस्था तथा जनसंख्या सम्बंधी आंकड़े एकत्रित किए जिसके आधार पर बाद में उन्होंने मैक्सिको के प्रादेशिक भूगोल पर एक लेख लिखा। 1804 में अपने सहयोगी वैज्ञानिक के साथ वे क्यूबा की राजधानी हवाना पहुँच गये। वहाँ से संयुक्त राज्य अमेरिका के फिलाडेल्फिया नगर होते हुए जून 1804 में बर्लिन (जर्मनी) के लिए प्रस्थान किया। 

1806 में नेपोलियन से पराजित होने के पश्चात् जर्मनी का जनजीवन काफी आंदोलित था और वहाँ की परिस्थितियां अनुसंधान के लिए उपयुक्त नहीं थीं। अतः हम्बोल्ट 1807 में पेरिस (फ्रांस) चले गये और 19 वर्षों तक वहाँ रहकर उन्होंने फ्रांसीसी भाषा में ‘नये महाद्वीप के भूमध्यरेखीय प्रदेशों की यात्रा’ शीर्षक से एक पुस्तक माला लिखी जो 30 अंकों में प्रकाशित हुई।

1827 में प्रशा की राज्य सभा में एक उच्च पद पर कार्य करने के लिए हम्बोल्ट बर्लिन वापस पहुँच गये। दो वर्ष पश्चात् रूस के शासक जार के आमंत्रण पर वे साइबेरिया में संसाधनों के अन्वेषण के लिए रूस के पीटर्सबर्ग गए। वहाँ से चलकर उन्होंने साइबेरिया के अल्टाई पर्वत श्रेणी तक के क्षेत्र का सर्वक्षेण किया और यहाँ की जलवायु और मिट्टी सम्बंधी आंकड़े एकत्रित किया। 

रूस से लौटकर 1830 में हम्बोल्ट बर्लिन वापस आ गए और जीवन के शेष 29 वर्ष बर्लिन में ही व्यतीत किए। बर्लिन वापस आने पर हम्बोल्ट को जर्मनी के राज्य सभा में सम्राट के वैज्ञानिक सलाहकार अधिकारी के पद पर नियुक्ति मिली जहाँ वे कई वर्षों तक कार्यरत रहे। 

हम्बोल्ट की रचनाएं 

हम्बोल्ट ने 1789 से लेकर मृत्यु पर्यंत (1859) अनेक लेख संग्रह और पुस्तकें प्रकाशित की। उनका सबसे अंतिम और महत्वपूर्ण ग्रंथ कॉसमॉस (Kosmos) है जिसके अंतिम खण्ड का प्रकाशन उनकी मृत्यु के पश्चात् 1862 में हुआ था। 

हम्बोल्ट की प्रमुख रचनाएं निम्नांकित हैं- 

राइनलेण्ड बेसाल्ट

यह हम्बोल्ट का शोध ग्रंथ है जिसका प्रकाशन 1789 में हुआ था। इसमें राइन बेसिन की शैलों और खनिजों की विशेषताओं का वर्णन है। 

जिओग्नाजिया

भूगोल के विषय क्षेत्र और अध्ययन पद्धति से सम्बंधित यह पुस्तक 1793 प्रकाशित हुई थी। 

नए महाद्वीप के भूमध्यरेखीय प्रदेश की यात्रा

फ्रांसीसी भाषा में लिखित यह पुस्तक 30 अंकों में 1815 से 1820 के मध्य प्रकाशित हुई। यह हम्बोल्ट की दक्षिणी अमेरिका की यात्रा पर आधारित थी। 

मध्य एशिया (Asia Centrale)

यह पुस्तक 1829 में दो खण्डों में प्रकाशित हुई थी। 

मैक्सिको और क्यूबा का प्रादेशिक भूगोल

कॉसमॉस (Kosmos)

कॉसमॉस हम्बोल्ट की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है जो 1845 से 1862 के मध्य पाँच खण्डों में प्रकाशित हुई थी। इसमें समस्त विश्व का विस्तृत वर्णन है। इसके प्रथम खण्ड में स्वरूप का सामान्य वर्णन है। दूसरे खण्ड में प्रकृति के चित्रण और वर्णन में मानवीय प्रयासों के इतिहास की चर्चा है। तीसरे खण्ड में खगोल विज्ञान का वर्णन है। चौथे और पाँचवें खण्डों में पृथ्वी ब्रह्माण्ड का मानव गृह के रूप में वर्णन है। इसमें पृथ्वी के भौतिक और जैविक नियमों के साथ ही मानव जीवन का वैज्ञानिक वर्णन भी सम्मिलित है। 

हम्बोल्ट का विधितंत्र (Methodology of Humboldt) 

हम्बोल्ट की अध्ययन विधि या विधितंत्र का मूल आधार वैज्ञानिकता थी। वे कल्पना पर नहीं बल्कि प्रत्यक्ष दर्शन पर विश्वास करते थे। उनके विधितंत्र के प्रमुख पक्ष निम्नांकित हैं

आनुभविक विधि (Empirical method) 

इसके द्वारा तथ्यों के प्रेक्षण, परीक्षण, मापन आदि प्रायोगिक क्रियाओं द्वारा जानकारी प्राप्त की जाती है। हम्बोल्ट की अध्ययन पद्धति आनुभविक और आगमनात्मक (inductive) थी। 

क्रमबद्ध विधि (Systematic method)

इसके द्वारा तथ्यों का अध्ययन वर्गीकृत विधि से विषयानुक्रम के अनुसार किया जाता है। 

तुलनात्मक विधि (Comparative method)

इसके अंतर्गत दृश्य घटनाओं या तथ्यों के वितरण प्रतिरूपों तथा प्रेक्षणों की तुलना करते हुए निष्कर्ष निकाला जाता है और सामान्यीकरण किया जाता है। 

रेखाचित्रीय विधि (Cartographic method)

इसके अनुसार तथ्यों के वितरण प्रतिरूपों को अधिक स्पष्ट करने के लिए मानचित्रों और आरेखों का प्रयोग किया जाता है। 

सूक्ष्मता और परिशुद्धता (Precision and Accuracy)

इसमें प्रेक्षण की सूक्ष्मता और यथार्थता पर विशेष ध्यान दिया जाता है और तथ्यों की माप सूक्ष्म ढंग से की जाती है । 

हम्बोल्ट अन्वेषण की आनुभविक विधि पर बल देते थे और काल्पनिक या अनुमानों पर आधारित तथ्यों एवं विचारों पर विश्वास नही करते थे। उन्होंने अध्ययन और वर्णन की क्रमबद्ध विधि को अपनाया था। कॉसमॉस में क्रमबद्ध विधि को ही अपनाया गया है। हम्बोल्ट तथ्यों और प्रदेशों की तुलना करते हुए किसी प्रदेश की विशेषताओं को समझाने का प्रयास करते थे। उनके निबन्धों में तुलनात्मक विधि को अपनाया गया है और उनमें तुलनाओं की बहुलता पायी जाती है। जटिल तथ्यों या विवरणों को समझाने के लिए वे मानचित्रों और आरेखों का भी सहारा लेते थे। 

हम्बोल्ट के अध्ययन विधि की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे पर्यवेक्षणों या मापों की शुद्धता पर बहुत ध्यान देते थे। हम्बोल्ट उन अग्रणीय वैज्ञानिकों में से एक थे जिन्होंने प्रथम बार कालमापी (Chronometer) का प्रयोग करके स्थान-स्थान की देशांतरों को निश्चित किया था। एण्डीज पर्वत पर ऊँचाइयों की माप के लिए उन्होंने वायुदाबमापी (Barometer) का प्रयोग किया था। इस प्रकार वे अपने समय तक ज्ञात तकनीकों का प्रयोग अपने सर्वेक्षणों में करते थे और सूक्ष्मता तथा परिशुद्धता पर अधिक बल देते थे। 

हम्बोल्ट ने अपनी खोजयात्राओं के दौरान विभिन्न स्थानों के तापमान, वायुदाब, पवनों की दिशा, अक्षांश और देशांतर, समुद्रतल से ऊँचाई, चुम्बकीय भिन्नता, शैलों की भिन्नता, वानस्पतिक प्रकारों आदि के निर्धारण में उच्च स्तरीय सूक्ष्मता और शुद्धता का परिपालन किया था। यही कारण था कि हम्बोल्ट की पर्यवेक्षण एवं वर्णन विधि भावी अन्वेषकों के लिए प्रेरणा स्रोत और मार्गदर्शिका बन गई थी। 

हम्बोल्ट की भौगोलिक संकल्पनाएं (Geographical Concepts of Humboldt) 

हम्बोल्ट ने एक वैज्ञानिक विषय के रूप में भूगोल को संस्थापित करने का अति महत्वपूर्ण और अग्रणीय कार्य किया था। उन्होंने भूगोल की कई संकल्पनाओं को प्रतिपादित किया था जो निम्नांकित हैं।

 (i) मानव के घर के रूप में भूतल (Earth’s surface as the home of man)

हम्बोल्ट का विचार था कि भूगोल में पृथ्वी के तल का अध्ययन माना के घर के रूप किया जाता है। पृथ्वी का अध्ययन इसलिए करते हैं क्योंकि वहाँ मनुष्यों का निवास है। हम्बोल्ट की यह संकल्पना तब से आज तक मान्य रही है। मानव गृह के रूप में पृथ्वी तल का अर्थ पृथ्वी के उस भूभाग से है जिस पर मानव का निवास है और जहाँ मानव क्रियाएं होती रहती हैं। 

(ii) स्थानिक वितरणों का विज्ञान (Science of spatial distributions)

हम्बोल्ट भूगोल को विश्व के स्थानिक वितरणों (क्षेत्रीय वितरणों) का विज्ञान मानते थे। परवर्ती भूगोलवेत्ताओं ने इस संकल्पना को स्वीकार किया और स्थानिक बितरण की संकल्पना भूगोल की मौलिक संकल्पना बन गयी। स्थानिक वितरण की संकल्पना ही भूगोल को अन्य क्रमबद्ध या वर्गीकृत बिज्ञानों में स्वतंत्र विषय के रूप में पृथक् स्थान प्रदान करती है। 

(ii) सामान्य भूगोल ही भौतिक भूगोल है (General geography is physical geography) 

वारेनियस द्वारा विश्लेषित सामान्य भूगोल के अंतर्गत प्राकृतिक तत्वों के साथ ही मानव का अध्ययन भी सम्मिलित होता था और तब तक भूगोल भौतिक और मानव भूगोल में वर्गीकृत नहीं था। हम्बोल्ट ने विश्व भूगोल या सामान्य भूगोल के लिए ‘भौतिक भूगोल’ शब्दावली का प्रयोग किया था किन्तु उनके भौतिक भूगोल में मानवीय अध्ययन भी सम्मिलित होता था । इस प्रकार हम्बोल्ट द्वारा प्रतिपादित भौतिक भूगोल सामान्य भूगोल का ही दूसरा नाम था। 

उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘कॉसमॉस‘ में लिखा है कि भौतिक भूगोल का उद्देश्य सजीव और निर्जीव प्रकृति के मध्य सम्बंध-श्रृंखला का अध्ययन करना है। इसमें आकाशीय पिण्ड से लेकर जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति और मानव समूह तक के वर्णन किये जाते हैं। हम्बोल्ट के पश्चात् मानवीय तथ्यों का अध्ययन भूगोल की एक पृथक् शाखा मानव भूगोल के अंतर्गत किया जाने लगा और भूगोल की दो प्रमुख शाखाएं बन गई – भौतिक भूगोल और मानव भूगोल । 

(iv) भूगोल भौतिक और मानवीय सम्बंधों का अध्ययन है (Geography is a study of physical and human relationships)

हम्बोल्ट के विचार से भूगोल में जैव (organic) और अजैव (inorganic) प्रकृति के सम्बंधों तथा मानव और प्रकृति के मध्य पाए जाने वाले सम्बंधों का विश्लेषण किया जाता है। उनके अनुसार इन सम्बंधों की खोज करना भूगोलवेत्ता का परम कर्त्तव्य है। हम्बोल्ट ने ‘कॉसमॉस‘ में भूगोल की प्रकृति बताते हुए लिखा है कि समस्त सजीव और निर्जीव तत्वों में पारस्परिक सम्बंध होता है। 

वनस्पतियों और जन्तुओं की तुलना में मनुष्य अधिक समर्थ होता है और वह मिट्टी, मौसमी दशाओं और अपने चारों और व्याप्त वायुमंडल पर अपेक्षाकृत कम निर्भर करता है। वनस्पतियों और जन्तुओं की तुलना में मानव पर प्रकृति का नियंत्रण अपेक्षाकृत कम होता है। फिर भी मनुष्य का पार्थिव जीवन के साथ अनिवार्य और घनिष्ठ सम्बंध है। भूगोल में इन्हीं सम्बंधों का विश्लेषण किया जाता है। 

(v) तथ्यों की विषमांगता (Heterogeneity of phenomena) 

हम्बोल्ट के अनुसार क्रमबद्ध विज्ञानों में अध्ययन किये जाने वाले तथ्यों में समरूपता और समांगता पाई जाती है किन्तु भूगोल में अध्ययन किये जाने वाले तथ्यों में विषमागता और मित्रता होती है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर विद्यमान तथ्यों में सामान्यतः कुछ न कुछ भिन्नता अवश्य पाई जाती है जिसका विश्लेषण करना भूगोलवेत्ता का कर्त्तव्य होता है। परवर्ती भूगोलवेत्ताओं ने भूगोल को क्षेत्रीय मित्रता का अध्ययन करने वाले विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया। 

(vi) पार्थिव एकता (Terrestrial Unity)

पार्थिव एकता में हम्बोल्ट का अटल विश्वास था। उनके अनुसार प्रकृति के जैविक और अजैविक सभी तथ्य परस्पर सम्बंधित होते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। इसलिए पृथ्वी की सही व्याख्या समष्टि रूप में ही की जा सकती है। सम्पूर्ण प्रकृति में एकता पाई जाती है और भूगोल में इसी एकता का अध्ययन किया जाता है। ब्रूंश के अनुसार हम्बोल्ट ने अपने एक मित्र को पत्र में लिखा था कि ‘उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक केवल एक ही आत्मा सम्पूर्ण प्रकृति को सजीव बनाए हुए है- केवल एक ही जीवन पत्थरों, वनस्पतियों, जन्तुओं और स्वयं मनुष्य में भी व्याप्त है।’ 

हम्बोल्ट प्रकृति को एक जैव इकाई (Biological unit) मानते थे जिसकी उत्पत्ति किसी विशेष क्षेत्र में जैव (चेतन) और अजैव (अचेतन) वस्तुओं के सुव्यवस्थित अंतर्सम्बंधों से होती है। इसीलिए वे एकीकृत विज्ञान में विश्वास रखते थे जिसमें समस्त भौतिक, जैविक और सामाजिक विज्ञान सम्मिलित रहते हैं 

निष्कर्ष 

भौगोलिक चिन्तन के इतिहासकार एकमत से हम्बोल्ट को आधुनिक भूगोल का संस्थापक मानते हैं। डिकिन्सन (1969) के अनुसार वे आधुनिक भौगोलिक चिन्तन के मार्गदर्शक के साथ ही भविष्य द्रष्टा भी थे। डि मार्तोन के अनुसार हम्बोल्ट ने भूगोल की दो मौलिक विशेषताओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया था- 

(1) कार्य-कारण का सिद्धांत, और 

(2) सामान्य भूगोल का सिद्धांत । 

हम्बोल्ट ने आनुभविक और आगमनात्मक अध्ययन पद्धति को अपनाया था और वे प्रेक्षण की सूक्षमता और परिशुद्धता पर विशेष बल देते थे। हम्बोल्ट भूगोल में क्रमबद्ध और प्रादेशिक अध्ययन को एक-दूसरे का विरोधी नहीं बल्कि पूरक मानते थे। हार्टशोर्न के अनुसार तुलनात्मक प्रादेशिक भूगोल के वास्तविक मार्गद्रष्टा हम्बोल्ट थे न कि कार्ल रिटर।

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