बिहार सरकार ने सोमवार, दिनांक 02 अक्तूबर, 2023 गाँधी जयंती के अवसर पर लोकसभा चुनाव, 2024 के ठीक पहले एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, बहुप्रतीक्षित जाति-आधारित सर्वेक्षण (caste based survey) के नतीजे जारी किए, जिसके बाद राजनीतिक वाद-प्रतिवाद शुरु हो गया। क्योंकि ये नतीजे आने वाले लोकसभा चुनाव को किसी न किसी रूप में प्रभावित कर सकते हैं। ऐसा इसलिए सम्भव है कि विभिन्न राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए बहुसंख्यक जाति समुदाय के वोट पाने के लिए ध्रुवीकरण करने की कोशिश करेंगी। जो शुद्ध लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होगा।
आइए अब जानते हैं बिहार में जाति-आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट की कुछ खास बातें
- जाति-आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2023 के अनुसार बिहार राज्य की कुल 13 करोड़ आबादी में 63 प्रतिशत अन्य पिछड़ी जातियां (OBC) शामिल हैं।
- पिछड़ा वर्ग (BC) जनसंख्या का 27 प्रतिशत भाग है, जबकि अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) 36 प्रतिशत है।
- इस सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जाति (SC) की हिस्सेदारी 19 प्रतिशत से कुछ अधिक और अनुसूचित जनजाति (ST) की हिस्सेदारी 1.68 प्रतिशत है।
- जाति-आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2023 के अनुसार बिहार की आबादी में सामान्य वर्ग (GENERAL) की हिस्सेदारी 15.52 प्रतिशत है।
- सबसे बड़ा समुदाय यादवों का है, जो बिहार राज्य की कुल आबादी का 14 प्रतिशत है। इसके बाद ब्राह्मण 3.66 प्रतिशत, मुसहर 3 प्रतिशत, कुर्मी 2.87 प्रतिशत casteऔर भूमिहार 2.86 प्रतिशत हैं।
- 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण इस तरह का पहला सर्वेक्षण है। आखिरी बार ऐसी जाति जनगणना 1931 में, स्वतंत्रता से पहले की गई थी। पहली जाति जनगणना 1881 में अंग्रेजों द्वारा आयोजित की गई थी।
- जाति-आधारित सर्वेक्षण, जिसे बिहार जाति आधारित गणना के रूप में भी जाना जाता है, वर्तमान वर्ष के जनवरी महीने में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा प्रारंभ किया गया था।
- जाति-आधारित सर्वेक्षण पिछड़े समुदायों के उत्थान और कल्याणकारी योजनाओं के बेहतर कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- सर्वेक्षण का विरोध हुए आलोचकों ने तर्क दिया कि बिहार सरकार ने जाति-आधारित सर्वेक्षण करके संवैधानिक अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है। उन्होंने तर्क दिया कि व्यापक जनगणना करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है। लेकिन कानूनी बाधाएं आने के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने सर्वेक्षण के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करने से मना कर दिया और पटना उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यह सर्वेक्षण वैध और कानूनी है।
- बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण के नतीजे 2024 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले आए हैं। अत: सर्वेक्षण के नतीजे संभावित रूप से बिहार में राजनीतिक परिदृश्य को नया स्वरूप दे सकते हैं, जहां बिहार राज्य राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), जनता दल (यूनाइटेड) (जेडीयू) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जैसे राजनीतिक दलों के प्रभुत्व वाला राज्य है। संसद में 40 सांसद भेजने वाले बिहार राज्य में इन पार्टियों के लिए ओबीसी के वोट महत्वपूर्ण हैं।
- राज्य की जाति संरचना, किसी भी पार्टी की रणनीतियों और नीतियों को प्रभावित कर सकती है, विशेष रूप से सामाजिक न्याय और कल्याण से संबंधित।
- कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) सहित विपक्षी दलों की ओर से राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना की मांग की गई थी, जो इसे सत्ताधारी भाजपा से मुकाबला करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में देखते हैं।
- पिछले महीने (सितम्बर, 2023) चुनावी राज्य छत्तीसगढ़ में एक रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस से सांसद राहुल गांधी ने जाति जनगणना का आह्वान किया था और कहा था कि यह भारत का “एक्स-रे” है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस तरह की कवायद से “ओबीसी, दलितों, आदिवासियों और महिलाओं की भागीदारी” सुनिश्चित होगी।
उन्होंने कहा, “जाति जनगणना भारत का एक्स-रे है। इससे प्रत्येक जाति की जनसंख्या का पता चल जाएगा। एक बार डेटा सार्वजनिक हो जाएगा, तभी सभी समुदाय इसमें शामिल होंगे।”
राहुल गांधी ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर डरने का आरोप लगाया क्योंकि उसने सत्ता में रहने के दौरान कांग्रेस द्वारा कराई गई जाति जनगणना के आंकड़े जारी नहीं किए। - जुलाई, 2023 में, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने यह सुनिश्चित करने के लिए देशव्यापी जाति जनगणना की मांग की कि सभी समुदायों को विकास में उचित हिस्सेदारी मिले। दिवंगत कुर्मी नेता सोनेलाल पटेल की 74वीं जयंती के दौरान संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “यह असमानता तभी खत्म होगी जब जाति जनगणना कराई जाएगी और सभी समुदायों के लोगों को उनका उचित सम्मान और सम्मान मिलेगा।”