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सतत् पोषणीय विकास की मुख्य विशेषताएँ (Salient Features of Sustainable Development)
सतत् पोषणीय विकास की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
प्राकृतिक संसाधनों का दक्ष उपयोग (Efficient Use of Natural Resources)
सतत् पोषणीय विकास का यह अर्थ बिल्कुल नहीं कि भावी पीढ़ियों की चिन्ता में वर्तमान पीढ़ी को प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से बिल्कुल वंचित कर दिया जाए, बल्कि इसका अर्थ यह है कि वर्तमान पीढ़ी इन संसाधनों का प्रयोग ऐसी दक्षता से करे कि आने वाली पीढ़ियों को भी ये संसाधन उपलब्ध होते रहें।
भावी पीढ़ी के जीवन की गुणवत्ता से समझौता न हो (No Compromise in the Quality of Life of the Future Generation)
सतत् पोषणीय विकास का उद्देश्य वर्तमान पीढ़ी के जीवन-स्तर में सुधार करना तो है ही, परन्तु साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि प्राकृतिक संसाधनों एवं पर्यावरण का इस प्रकार उपयोग किया जाए कि भावी पीढ़ी के जीवन-स्तर में गिरावट न आए।
विकास पर्यावरण के अनुकूल हो (Development should be Environment Friendly)
सतत् पोषणीय विकास की संकल्पना प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग और पर्यावरण के प्रदूषण की पक्षधर नहीं है। अतः विकास की यह अवधारणा पर्यावरण के अनुकूल (Environmental Friendly) नई तकनीकी के प्रयोग की हिमायती है।
आर्थिक विकास को सीमित नहीं करती (Does not Limit Economic Development)
सतत् पोषणीय विकास का उद्देश्य आर्थिक विकास को सीमित करना नहीं है, बल्कि यह इस बात के पक्ष में है कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग पर्यावरण की सहनीय सीमा में किया जाए ताकि वर्तमान पीढ़ी के विकास के बावजूद भी भावी पीढ़ी के हितों को हानि न हो।
वितरण संबंधी साम्यता (Distribution Equity)
सतत् पोषणीय विकास की संकल्पना संसाधनों के समान वितरण पर बल देती है, अर्थात् संसाधनों का वितरण विभिन्न पीढ़ियों में अथवा एक ही पीढ़ी के विभिन्न घटकों में एक-समान होना चाहिए ताकि प्रत्येक व्यक्ति को विकास का पूरा अवसर मिल सके।
पूँजी का संरक्षण (Preservation of Capital)
इस संकल्पना के अनुसार पूँजी तीन प्रकार की होती है-
- मानवीय पूँजी (शिक्षा, तकनीकी प्रगति आदि)
- भौतिक पूँजी (मशीनों, औजार आदि)
- प्राकृतिक पूँजी (प्राकृतिक संसाधन, शुद्ध वायु, स्वच्छ जल आदि)।
यह संकल्पना इन तीनों प्रकार की पूँजी के संरक्षण पर बल देती है।
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