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Manav Parjatiyon Ka Vaishvik Parsar aur Vitaran

मानव प्रजातियों के वैश्विक प्रसार और वितरण (Manav Parjatiyon Ka Vaishvik Parsar aur Vitaran) में ग्रंथियों के रस, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक चयन, भौगोलिक अंतर और प्रजातियों के मेल का सबसे बड़ा योगदान रहा है। दुनिया की सभी मानव प्रजातियों को उनकी उत्पत्ति और विकास के आधार पर निम्नलिखित बड़े समूहों में बांटा जाता है –

  1. नीग्रोइड प्रजाति (Negroid race)
  2. आस्ट्रेलियाई प्रजाति (Australoid Race)
  3. काकेशाइड प्रजाति (Caucasoid race)
  4. मंगोलाइड प्रजाति (Mongoloid race)

आइए, इन मानव प्रजातियों के वैश्विक प्रसार और वितरण (Manav Parjatiyon Ka Vaishvik Parsar aur Vitaran) के बारे में विस्तार से जानते हैं:

1. नीग्रोइड प्रजाति (Negroid Race)

नीग्रोइड प्रजाति सबसे पुरानी मानव प्रजाति मानी जाती है। ‘नीग्रो’ शब्द लैटिन भाषा के ‘नीगर’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ ‘काला’ (black) होता है। यह प्रजाति मुख्य रूप से अफ्रीका महाद्वीप में पाई जाती है, खासकर सहारा रेगिस्तान के दक्षिणी हिस्से में। इसलिए, मध्य और दक्षिणी अफ्रीका को ‘काला अफ्रीका’ (Black Africa) भी कहा जाता है।

इस प्रजाति के लोगों की त्वचा, बाल और आँखों का रंग काला होता है। इनके बाल घुँघराले या लहरदार होते हैं। इनकी नाक चौड़ी और जबड़ा थोड़ा आगे की ओर निकला हुआ होता है। इनके होंठ मोटे होते हैं, और ऊपरी होंठ थोड़ा बाहर निकला होता है।

नीग्रोइड प्रजाति के लोगों में उनके शरीर की लंबाई, त्वचा का रंग, होंठ और नाक की बनावट, तथा बालों की घुँघरालपन जैसी विशेषताओं में अंतर पाया जाता है। इन्हीं भिन्नताओं के आधार पर इस प्रजाति को कई वर्गों और उपवर्गों में बाँटा गया है। नीग्रोइड प्रजाति को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता है:

अ.  प्रधान नीग्रोइड प्रजाति

ब.   गौण या परिवर्तित नीग्रोइड प्रजाति

Negroid Race
नीग्रोइड प्रजाति के लोग

(अ) प्रधान निग्रोइड प्रजातियां

(1) जंगली नीग्रो (Forest Negro)

जंगली नीग्रो मुख्य रूप से अफ्रीका के सूडान क्षेत्र में पाए जाते हैं। इनके उत्तर में सहारा मरुस्थल और दक्षिण में घने भूमध्यरेखीय वन फैले हुए हैं। इन्हें “सूडानी नीग्रो” भी कहा जाता है। इस प्रजाति में निग्रोइड जाति की सबसे स्पष्ट विशेषताएँ देखी जाती हैं, इसलिए इन्हें “वास्तविक नीग्रो” भी कहा जाता है।

ऐसा माना जाता है कि यह प्रजाति नवपाषाण युग से ही पश्चिमी अफ्रीका और कांगो बेसिन के जंगलों में निवास कर रही है। यह प्रजाति दुनिया के अन्य हिस्सों में शायद ही पाई जाती है।

इनकी कुछ खास शारीरिक विशेषताएँ होती हैं, जैसे – लंबा और ऊँचा सिर, लंबा चेहरा, उभरा हुआ जबड़ा, मोटे होंठ, चौड़ी नाक, काले छल्लेदार बाल, गहरी भूरी या चॉकलेटी त्वचा और औसत कद (168-172 सेमी)। इनके शरीर और चेहरे पर बहुत कम बाल होते हैं।

(2)नीग्रिटो (Negritos) प्रजाति

नीग्रिटो प्रजाति के लोग मुख्य रूप से अफ्रीका के कांगो बेसिन और पूर्वी द्वीप समूह के कुछ हिस्सों में बहुत कम संख्या में पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रागैतिहासिक काल में ये लोग एक बड़े क्षेत्र में फैले हुए थे, लेकिन अब इनकी उपस्थिति कुछ ही स्थानों तक सीमित रह गई है। वर्तमान में ये अफ्रीका में कांगो बेसिन, एशिया में अंडमान द्वीप समूह, मलाया प्रायद्वीप, फिलीपींस और न्यूगिनी द्वीपों में देखे जाते हैं। इन्हें “आदि नीग्रो” का निकटतम पूर्वज माना जाता है।

नीग्रिटो लोगों की शारीरिक बनावट छोटी होती है। इनका कद सामान्यतः 142 से 152 सेंटीमीटर तक होता है, इसलिए इन्हें “पिग्मी” या “बौना” कहा जाता है। इनका रंग चॉकलेटी से काला होता है। इनके चेहरे आगे निकले होते हैं, जबड़े उभरे हुए होते हैं, होंठ सामान्य रूप से मोटे होते हैं, और नाक पतली होती है। इनके बाल काले, छोटे और घुंघराले होते हैं, जबकि आंखें गहरे भूरे रंग की होती हैं।

अफ्रीका में रहने वाले पिग्मी समुदाय को “नीग्रील्लो” कहा जाता है, जबकि एशिया में इन्हें “नीग्रिटो” कहते हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि ये प्रजाति सभी मानवों की प्राचीन पूर्वज हो सकती है। 

(ब) गौण या परिवर्तित निग्रोइड प्रजातियां

(1) बुशमैन प्रजाति

बुशमैन अफ्रीका महाद्वीप के कालाहारी मरुस्थल और उसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाली एक विशेष मानव प्रजाति है। शारीरिक विशेषताओं के आधार पर, इन्हें पिग्मी जनजाति के अधिक निकट माना जाता है। इसलिए, बुशमैन को नीग्रिटो का परिवर्तित रूप समझा जाता है।

यूरोपीय उपनिवेशवादियों के आने के बाद, इस समुदाय की संख्या बहुत कम हो गई। वर्तमान में, केवल कुछ हजार बुशमैन ही कालाहारी मरुस्थल और पश्चिम में आरेंज और कूनेन नदियों के बीच स्थित नामीब मरुस्थल में बचे हैं। कुछ मानवशास्त्रियों का मानना है कि महाहिम युग में बुशमैन पूरे दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका में फैले हुए थे। लेकिन नीलोटिक प्रजाति के आक्रमणों के कारण, वे धीरे-धीरे दक्षिण की ओर मरुस्थलीय क्षेत्रों तक सीमित हो गए।

बुशमैन आमतौर पर नाटे कद (152-155 सेमी०) के होते हैं। इनके मोटे होंठ, कत्थई रंग की आंखें और अन्य विशेषताएं दर्शाती हैं कि वे निश्चित रूप से अफ्रीकी नीग्रोइड प्रजाति का ही हिस्सा हैं।

(2) नीलोटिक नीग्रो (Nilotic Negro)

नीलोटिक नीग्रो प्रजाति मुख्य रूप से उत्तर-पूर्वी अफ्रीका, पूर्वी सूडान, इथियोपिया और सोमालीलैंड के पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है। इसे नीग्रोइड और भूमध्य सागरीय (काकेशाइड) प्रजातियों का मिश्रण माना जाता है।

इस प्रजाति की सबसे खास पहचान इसका बहुत ही काला रंग और लंबा शरीर (175 सेंटीमीटर से अधिक) है। अन्य नीग्रोइड प्रजातियों की तुलना में इसके कुछ अलग शारीरिक लक्षण होते हैं। इनमें लंबा और ऊँचा सिर, लंबा चेहरा लेकिन कम निकला हुआ जबड़ा, गहरे भूरे रंग की आंखें, काले और छल्लेदार बाल, तथा चौड़ी नाक प्रमुख हैं।

(3) महासागरीय नीग्रो (Oceanic Negro)

महासागरीय नीग्रो प्रजाति न्यूगिनी और मेलानेशिया में पाई जाती है। कुछ मानव वैज्ञानिक इसे नीग्रिटो, प्राचीन काकेशियन और मंगोलियन प्रजातियों का मिश्रण मानते हैं। 

इस प्रजाति के कुछ सामान्य शारीरिक लक्षण होते हैं। इनके सिर लंबे और ऊँचे होते हैं, जबड़ा थोड़ा उभरा हुआ होता है। इनकी आँखें गहरे भूरे या काले रंग की होती हैं। इनकी नाक पतली होती है और होंठ साधारण से थोड़े मोटे होते हैं। इनका कद औसतन 165 से 170 सेंटीमीटर के बीच होता है।

(4) अमेरिकी नीग्रो (American Negro)

जब यूरोपीय लोग अमेरिका की खोज के बाद वहां बसने लगे, तो उन्होंने अफ्रीका से बड़ी संख्या में नीग्रो लोगों को पकड़कर उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका लाया। इन लोगों को वहां दास (गुलाम) बनाकर रखा गया और उन्हें खेतों में काम करने के लिए मजबूर किया गया। पश्चिमी द्वीप समूह, दक्षिण अमेरिका, मैक्सिको और ब्राजील जैसे देशों में इन्हें बागानी खेती में लगाया गया।

समय के साथ, यहां के नीग्रो पूरी तरह से शुद्ध अफ्रीकी नस्ल के नहीं रहे। वे अन्य जातियों के संपर्क में आए, जिससे उनका मिश्रण हुआ और एक नई अमेरिकी नीग्रो जाति का निर्माण हुआ। संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले नीग्रो लोगों का विकास मुख्य रूप से नीग्रो, रेड इंडियन और यूरोपीय (काकेशियन) जातियों के मिश्रण के रूप में हुआ। कुछ विद्वानों जैसे हर्सकोविट्स (Herskovits) का मानना है कि यह मिश्रण नीग्रो, काकेशियन और मंगोलाइड प्रजातियों के बीच हुआ।

ब्राजील में नीग्रो लोगों की स्थिति पर डोनाल्ड पियर्सन (Donald Pierson) ने लिखा कि वहां अफ्रीकी लोगों का आयात सबसे अधिक हुआ। हालांकि, धीरे-धीरे उनकी नस्लीय पहचान कम होती गई, और वे यूरोपीय आबादी में घुल-मिल गए। इसके कारण एक स्थायी मिश्रित नस्ल का विकास हुआ।

अमेरिकी नीग्रो के कुछ प्रमुख शारीरिक लक्षण होते हैं, जैसे – लंबा चेहरा, कम उभरा हुआ जबड़ा, कम मोटे होंठ, हल्के घुंघराले काले-भूरे बाल, हल्की से गहरी भूरी आंखें, जैतूनी या गहरे भूरे रंग की त्वचा और लंबा कद।

2. ऑस्ट्रेलियाई प्रजाति (Australoid Race) 

ऑस्ट्रेलियाई प्रजाति को ओशेनियाई प्रजाति भी कहा जाता है। इस प्रजाति के लोग मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड (ओशेनिया) में रहते हैं। ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी बहुत पहले एशिया की मुख्य भूमि से दूर होकर एक छोटे और संसाधन-विहीन महाद्वीप में अलग-थलग रह गए। इसी कारण उनके शारीरिक और सांस्कृतिक विकास में विशेष भौगोलिक प्रभाव पड़ा। 

वैज्ञानिकों का मानना है कि ये लोग नीग्रोइड प्रजाति से जुड़े हुए हैं, जबकि कुछ विशेषज्ञ इन्हें काकेशियन (श्वेत) प्रजाति का एक पुराना रूप मानते हैं। वर्तमान समय में शुद्ध ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों की संख्या लगभग 40,000 है, जबकि पहले इनकी संख्या लगभग 3 लाख थी। इनके कई छोटे समूह भी हैं।

Australoid Race
ऑस्ट्रेलियाई प्रजाति के लोग

शारीरिक विशेषताएँ
ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के शरीर की कुछ खास विशेषताएँ होती हैं। इनकी त्वचा गहरे कत्थई या चॉकलेटी रंग की होती है। इनके बाल घुंघराले होते हैं और शरीर तथा चेहरे पर घने बाल पाए जाते हैं। इनका चेहरा लंबा, संकरा और थोड़ा चपटा होता है। इनकी भौहें घनी होती हैं, आँखों का रंग गहरा कत्थई होता है, और होंठ मोटे होते हैं। इनके जबड़े आगे की ओर निकले होते हैं और ठुड्डी कम विकसित होती है। इनके सिर की आकृति लंबी होती है और इनका कद औसत से अधिक लंबा होता है।

इतिहास और विस्तार
कुछ मानवशास्त्रियों का मानना है कि प्राचीन पाषाणकाल में दक्षिण-पूर्वी एशिया में ऑस्ट्रेलियाई और मेलानेशियाई (Melanesian) प्रजातियों का मूल निवास था। बाद में, इनके पूर्वज उत्तरी पाषाणकाल में स्थानांतरित होकर मलक्का द्वीप समूह, सेरांग और न्यू गिनी होते हुए ऑस्ट्रेलिया पहुँचे। ऐसा भी माना जाता है कि वे जावा, सेलेबिस और तिमोर द्वीपों से होते हुए ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी तट पर पहुंचे थे। जब ये लोग ऑस्ट्रेलिया पहुँचे, तब वहाँ तस्मानियाई प्रजाति के लोग रहते थे।

ऑस्ट्रेलियाई लोगों के आगमन के बाद तस्मानियाई लोगों को वहाँ से बाहर निकाल दिया गया। कुछ तस्मानियाई लोग बास जलसंधि पार करके तस्मानिया द्वीप चले गए, लेकिन जो ऑस्ट्रेलिया में ही रह गए, उन्हें ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने समाप्त कर दिया। तस्मानियाई लोग ओशेनिया के मूल निवासी थे, लेकिन 19वीं शताब्दी में अंग्रेज उपनिवेशवादियों ने उन्हें नष्ट कर दिया।

प्रोटो-ऑस्ट्रेलाइड प्रजाति
ऑस्ट्रेलियाई प्रजाति के समान, लेकिन उनसे पहले विकसित होने वाले मानव समूहों को ‘प्रोटो-ऑस्ट्रेलाइड’ (Proto-Australoid) कहा जाता है। दक्षिण भारत के द्रविड़ (Dravidian), श्रीलंका के वेद्दा (Vedda), और जापान के आइनू (Ainu) अथवा कुरील (Kureel) प्रजाति भी इसी समूह में आती हैं। द्रविड़ों में कुछ विशेषताएँ पाई जाती हैं, जो इथियोपियाई समूह से मिलती-जुलती हैं। 

कुछ सोवियत मानवशास्त्रियों के अनुसार, आइनू मूल रूप से एक ऑस्ट्रेलाइड प्रजाति थी, लेकिन बाद में दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी एशिया के मंगोलॉयड प्रजातियों के साथ मिश्रण के कारण इसमें नए शारीरिक लक्षण विकसित हुए।

3. काकेशाइड प्रजाति (Caucasoid Race)

काकेशाइड प्रजाति को यूरोपीय महाप्रजाति के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रजाति के लोग मुख्य रूप से यूरोप, दक्षिण और दक्षिण-पश्चिमी एशिया तथा उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते हैं। अमेरिका की खोज के बाद, इस प्रजाति के लोग उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया में भी फैल गए। प्रारंभ में, काकेशाइड प्रजाति के लोग दक्षिणी यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिण-पश्चिमी एशिया में रहते थे। समय के साथ, ये लोग उत्तर पाषाण काल या उसके बाद पूरे यूरोप और उत्तरी अफ्रीका में फैल गए।

इस प्रजाति के लोगों की त्वचा का रंग हल्के गुलाबी (गेहुँआ) से लेकर भूरे रंग तक होता है। इनके शरीर पर बाल अधिक होते हैं और चेहरे के बाल भी घने होते हैं। इनके सिर के बाल मुलायम होते हैं, जो हल्के लहरदार या सीधे हो सकते हैं। बालों का रंग हल्के भूरे से गहरे (काले) तक हो सकता है। इनका माथा सीधा या हल्का ढलवां होता है, और ऊपरी पलक पर वली कम विकसित होती है।

काकेशाइड प्रजाति के लोगों की आंखें आमतौर पर भूरे रंग की होती हैं, लेकिन कुछ लोगों की आंखें धूसर, हल्की नीली या गहरी नीली भी हो सकती हैं। इनकी नाक पतली और ऊँची होती है, जबकि होंठ पतले होते हैं। इनका चिबुक मध्यम या अधिक विकसित होता है। काकेशाइड प्रजाति को दो मुख्य वर्गों में बांटा गया है –

अ. प्रमुख काकेशाइड प्रजातियां

ब. गौण या परिवर्तित काकेशाइड प्रजातियां

Caucasoid Race
काकेशाइड प्रजाति के लोग

(अ) प्रमुख काकेशाइड प्रजातियां

काकेशाइड प्रजाति दो मुख्य शाखाओं में विभाजित है – (1) दक्षिणी शाखा (भारत-भूमध्यसागरीय) और (2) उत्तरी शाखा (अटलांटिक-बाल्टिक)।

1. दक्षिणी शाखा (भारत-भूमध्यसागरीय) की प्रजातियां

इस शाखा में भारतीय, ताजिक, आर्मेनियाई, यूनानी, अरब, इतालवी और स्पेनी लोग आते हैं। इनके बाल काले और लहरदार होते हैं, आंखें कत्थई होती हैं और चेहरा लंबा होता है। इनकी नाक उभरी हुई होती है, लेकिन सिर की बनावट में विभिन्नता पाई जाती है। इस शाखा की दो प्रमुख प्रजातियां हैं –

(i) भूमध्यसागरीय प्रजाति (Mediterranean Race)
यह प्रजाति भूमध्यसागर के तटीय क्षेत्रों – दक्षिणी यूरोप, पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका में पाई जाती है। साथ ही, मध्य यूरोप, काकेशिया, मध्य एशिया और भारत के उत्तरी भागों में भी इस प्रजाति के लोग मिलते हैं। वर्तमान में, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, तुर्की, मिस्र, उत्तरी अफ्रीका, अरब देशों और भारत में इनके प्रतिनिधि पाए जाते हैं।

(ii) आर्मीनाइड प्रजाति (Armenoid Race)
यह प्रजाति मुख्य रूप से तुर्की के आर्मीनिया, दक्षिण-पूर्वी यूरोप और ईरान में पाई जाती है। बी.एस. गुहा के अनुसार, इस प्रजाति के लोग भारत में भी मौजूद हैं।

2. उत्तरी शाखा (अटलांटिक-बाल्टिक) की प्रजातियां

इस शाखा का विकास अपेक्षाकृत देर से हुआ। जब दक्षिणी यूरोप में मानव प्रजातियां विकसित हो रही थीं, तब उत्तरी यूरोप बर्फ से ढका हुआ था। जब यह बर्फ पिघली, तब दक्षिण से लोग उत्तर की ओर प्रवास करने लगे। हजारों वर्षों में, इन लोगों की त्वचा, बाल और आंखों का रंग हल्का हो गया, जो ठंडे वातावरण के अनुकूलन का परिणाम था।

इस शाखा के प्रमुख प्रतिनिधि रूस, बेलारूस, नार्वे, जर्मनी, ब्रिटिश द्वीप समूह और अन्य उत्तरी यूरोपीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इनके हल्के रंग की त्वचा, हल्के भूरे या सुनहरे बाल, नीली आंखें और लंबी नाक होती है। इस शाखा की दो प्रमुख प्रजातियां हैं –

(i) नार्डिक प्रजाति (Nordic Race)
इसे बाल्टिक प्रजाति भी कहा जाता है। यह मुख्य रूप से उत्तरी-पश्चिमी यूरोप, स्कैंडिनेविया, बाल्टिक क्षेत्र और उत्तरी जर्मनी में पाई जाती है। डॉ. बी.एस. गुहा के अनुसार, भारत में भी इस प्रजाति के लोग थे, जिससे आर्य सभ्यता का विकास हुआ।

(ii) अल्पाइन प्रजाति (Alpine Race)
यह प्रजाति मध्य और दक्षिण-पूर्वी यूरोप में पाई जाती है। यह अपेक्षाकृत नई प्रजाति है, जिसमें चौड़े सिर, सीधे बाल, पतली नाक और हल्की या गहरी त्वचा होती है। इसकी दो उपशाखाएं हैं –

  1. पश्चिमी शाखा – इसके लोग अधिक गोरे होते हैं, जिनमें स्विस, स्लाव और आर्मेनियाई प्रमुख हैं।
  2. पूर्वी शाखा – इनमें कुछ पीलापन होता है, और इनमें फिन्स, मागयार (Magyars) और सिआक्स (Siaux) शामिल हैं।

(ब) गौण या परिवर्तित काकेशाइड प्रजातियां

यूरोप में काकेशाइड प्रजाति की उत्तरी और दक्षिणी शाखाओं के अलावा कुछ अन्य मिश्रित समूह भी पाए जाते हैं। ये समूह उत्तरी और दक्षिणी शाखाओं के निवास क्षेत्रों के बीच बसे हुए हैं। इन समूहों को परिवर्तित काकेशाइड प्रजातियां कहा जाता है। प्रमुख परिवर्तित काकेशाइड प्रजातियां निम्नलिखित हैं—

1. पूर्वी बाल्टिक प्रजाति (Eastern Baltic Race)

यह प्रजाति नार्डिक, अल्पाइन और मंगोलियन प्रजातियों के मिश्रण से बनी है। इसमें नार्डिक प्रजाति की तरह बाल, त्वचा और आंखों का रंग होता है। अल्पाइन प्रजाति की तरह इनके सिर की बनावट, ललाट और शरीर की ऊंचाई होती है, जबकि मंगोलियन प्रजाति की तरह इनका चेहरा, आंखें और नाक होती है। इस प्रजाति के लोग मुख्य रूप से बाल्टिक क्षेत्र, फिनलैंड, बेलारूस और दक्षिणी जर्मनी में पाए जाते हैं।

2. दिनारिक प्रजाति (Dinaric Race)

यह प्रजाति नार्डिक और आम्रींनाइड प्रजातियों के मिश्रण से बनी है। यह मुख्य रूप से पूर्वी आल्प्स क्षेत्र में पाई जाती है। इस प्रजाति के लोगों के सिर का आकार गोल होता है, इसलिए इसे “लघु कापालिक प्रजाति” कहा जाता है।

3. पोलीनेशियन प्रजाति (Polynesian Race)

इस प्रजाति का निर्माण भूमध्य सागरीय, मंगोलियन और नीग्रोइड प्रजातियों के मिश्रण से हुआ माना जाता है। इसके लोग मध्य और दक्षिणी प्रशांत महासागर के पोलीनेशिया तथा माइक्रोनेशिया द्वीप समूहों में रहते हैं। इस प्रजाति की उत्पत्ति को लेकर अलग-अलग मत हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि भूमध्य सागरीय प्रजाति के लोग दक्षिण-पूर्व दिशा में यात्रा करते हुए भारत और मलाया प्रायद्वीप होते हुए इंडोनेशिया पहुंचे। रास्ते में उनका नीग्रोइड और मंगोलाइड प्रजातियों से संपर्क हुआ, जिससे यह प्रजाति बनी। बाद में ये लोग न्यूजीलैंड और पूरे पोलीनेशिया क्षेत्र में फैल गए।

4. इंडो-द्रविड़ (Indo-Dravidians)

इंडो-द्रविड़ प्रजाति के लोग दक्षिण भारत और श्रीलंका में रहते हैं। यह प्रजाति भूमध्य सागरीय, नीग्रोइड और प्रोटो-आस्ट्रेलाइड प्रजातियों के मिश्रण से विकसित हुई है। इनके त्वचा का रंग हल्के से गहरा भूरा होता है, बाल काले और हल्के लहरदार होते हैं। इनकी नाक सीधी और सामान्य चौड़ाई वाली होती है, जबकि सिर मध्यम से लंबा होता है। इनके शरीर और चेहरे पर बहुत कम बाल होते हैं। इस प्रजाति के लोगों की औसत ऊंचाई 160 से 165 सेमी तक होती है।

मंगोलाइड प्रजाति (Mongoloid Races)

इस प्रजाति को एशियाई अमेरिकी प्रजाति भी कहा जाता है। ग्रिफिथ टेलर के अनुसार, यह मानव जाति की नवीनतम प्रजातियों में से एक है, जो प्राचीन काल में एशिया के केंद्रीय भाग में निवास करती थी। समय के साथ, यह प्रजाति पश्चिम में तुर्किस्तान और पूर्व में समुद्री तटों तक फैल गई। आज, विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 37% हिस्सा इस प्रजाति से संबंधित है, जिनमें से आधे लोग चीन में रहते हैं। यह प्रजाति मुख्य रूप से उत्तरी, मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में पाई जाती है। इसके अलावा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी इसके कुछ प्रतिनिधि मिलते हैं।

मंगोलाइड प्रजाति की शारीरिक विशेषताएँ

इस प्रजाति के लोगों का सिर गोल और छोटा होता है, और इसका सिर सूचकांक 80 से अधिक होता है। इनकी त्वचा का रंग पीला से लेकर भूरा तक हो सकता है। इनके बाल सीधे, कड़े और काले होते हैं। इनकी नाक पतली, चेहरा चपटा, और दाढ़ी-मूंछें कम विकसित होती हैं। शरीर पर कम बाल पाए जाते हैं।

मंगोलाइड प्रजाति की प्रमुख शाखाएँ

इस प्रजाति को तीन मुख्य समूहों में बांटा जाता है:

  1. उत्तरी मंगोलाइड (Northern Mongoloid)
  2. दक्षिणी मंगोलाइड (Southern Mongoloid)
  3. अमेरिकी इंडियन (American Indian)

1. उत्तरी मंगोलाइड (Northern Mongoloid)

यह प्रजाति मुख्य रूप से उत्तरी, मध्य और पूर्वी एशिया में पाई जाती है। इसका मुख्य केंद्र मंगोलिया है, और यहां के निवासी मंगोल इसके प्रमुख उदाहरण हैं। साइबेरिया में भी कई मंगोलाइड समूह पाए जाते हैं, जिनमें याकूत, चुकची, तुंगस, दुवाई, अल्टाइन गिल्याक, अल्यूक और एस्किमो प्रमुख हैं।

शारीरिक विशेषताएँ:

  • चेहरा थोड़ा आगे निकला हुआ होता है।
  • गाल की हड्डियाँ उभरी हुई होती हैं।
  • आँखें भूरी होती हैं।
  • नाक मध्यम चौड़ी होती है।
  • होंठ पतले या मध्यम आकार के होते हैं।
  • ऊपरी होंठ थोड़ा आगे निकला रहता है।
  • शरीर मध्यम ऊँचाई का होता है।

आज के समय में, यूराल पर्वत, कैस्पियन-अरल सागर क्षेत्र, ईरान, अफगानिस्तान और भारत के उत्तरी पहाड़ी इलाकों में भी इस प्रजाति के लोग मिलते हैं।

Mongoloid Races
मंगोलाइड प्रजाति के लोग

2. दक्षिणी मंगोलाइड (Southern Mongoloid)

इस शाखा का विकास मंगोलाइड और काकेशियन (श्वेत) या नीग्रोइड (अश्वेत) प्रजातियों के मिश्रण से हुआ है। यह प्रजाति मुख्य रूप से इंडोनेशिया, मलाया, हिंद चीन, म्यांमार, उत्तर-पूर्वी भारत, तिब्बत और दक्षिणी चीन में पाई जाती है। इसे इंडोनेशिया-मलय प्रजाति भी कहा जाता है।

प्रमुख उदाहरण:

  • मलय, जावाई और सुंडा समूह

शारीरिक विशेषताएँ:

  • त्वचा गहरे रंग की होती है।
  • शरीर का कद छोटा होता है।
  • चेहरा संकरा और नीचा होता है।
  • नाक चौड़ी होती है।
  • बाल सीधे या लहरदार होते हैं।
  • दाढ़ी हल्की होती है।

कुछ विद्वानों का मानना है कि दक्षिणी मंगोलाइड प्रजाति का संबंध ऑस्ट्रेलाइड प्रजाति से भी है। श्रीलंका के वेदा जनजाति और मलक्का के सेनोआ जनजाति को भी इस समूह के नजदीक माना जाता है।

3. अमेरिकी इंडियन (American Indian)

इस प्रजाति को रेड इंडियन के नाम से भी जाना जाता है। यह उत्तरी मंगोलाइड प्रजाति का एक उपसमूह है। विद्वानों का मानना है कि हिमयुग के दौरान, जब बेरिंग जलसंधि पर बर्फ थी, तब यह प्रजाति एशिया से उत्तरी अमेरिका पहुंची। लगभग 25,000-30,000 साल पहले, मंगोलाइड लोग उत्तर-पूर्वी एशिया से अमेरिका आए और धीरे-धीरे पूरे महाद्वीप में फैल गए।

शारीरिक विशेषताएँ:

  • बाल कड़े, सीधे और काले होते हैं।
  • त्वचा हल्की भूरी होती है।
  • आँखें कत्थई रंग की होती हैं।
  • चेहरा चौड़ा और ललाट सीधा होता है।
  • नाक सीधी और हल्की आगे निकली होती है।
  • होंठ मध्यम से मोटे हो सकते हैं।
  • शरीर का आकार क्षेत्र के अनुसार भिन्न होता है।

कुछ अमेरिकी इंडियन समूहों में विशिष्ट विशेषताएँ भी देखी गई हैं। उदाहरण के लिए, सिरिओनो जनजाति (दक्षिण अमेरिका) में घुँघराले बाल, अधिक शरीर के बाल, गहरी त्वचा और चौड़ी नाक होती है। कुछ मानव वैज्ञानिकों के अनुसार, अमेरिकी इंडियन प्रजाति उत्तरी और दक्षिणी मंगोलाइड प्रजातियों के मिश्रण से बनी है

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