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सांस्कृतिक भूदृश्य (Cultural Landscape)

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Cultural-Landscapes

सांस्कृतिक भूदृश्य (Cultural Landscape) का अर्थ

भूदृश्य की संकल्पना परम्परागत भूगोल का अभिन्न अंग रही है। जर्मन भाषा में भूदृश्य के समानार्थी के रूप में ‘लैण्डशाफ्ट’ (Landshaft) शब्दावली प्रयुक्त होती है। पृथ्वी के किसी भूभाग या प्रदेश में दृश्य आकृतियों, वनस्पतियों, जलाशयों, मानव भूमि उपयोग तथा अन्य भौतिक एवं मानवीय तत्वों के सम्पूर्ण योग को भूदृश्य या दृश्यभूमि (landscape) कहा जाता है। 

जर्मन भूगोलवेत्ताओं ने लैण्डशाफ्ट शब्दावली का प्रयोग विभिन्न अर्थों में किया है जिसके कारण यह संकल्पना अधिक स्पष्ट नहीं है। जर्मनी में लैण्डशाफ्ट का प्रयोग अधिकांशतः दो अर्थों में किया गया है- 

(1) किसी क्षेत्र के दृश्य सामान्य स्वरूप के लिए, और 

(2) किसी परिसीमित क्षेत्र के लिए। 

इनमें प्रथम की अभिव्यक्ति भूदृश्य द्वारा होती है और द्वितीय की प्रदेश या क्षेत्र (region or area) के द्वारा। लैण्डशाफ्ट शब्दावली का व्यवहार समस्त दृष्ट तत्वों के समुच्चय के अतिरिक्त एक निश्चित आकार एवं विस्तार वाले क्षेत्र या राजनीतिक प्रदेश के लिए भी किया जाता है। इस प्रकार जर्मन ‘लैण्डशाफ्ट‘ की संकल्पना अत्यन्त व्यापक तथा भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त होने के कारण बिल्कुल सुनिश्चित और स्पष्ट नहीं है।

कार्ल सावर के विचार

अमेरिकी भूगोलवेत्ता कार्ल सावर (Carl O. Sauer) ने भूदृश्य की विस्तृत विवेचना की है। सर्वप्रथम सावर ने ही आंग्लभाषी देशों में भूदृश्य की संकल्पना का प्रचार किया उन्होंने 1925 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘The Morphology of Landscape’ (भूदृश्य की आकारिकी) में भूदृश्य की विस्तृत व्याख्या किया है। 

सावर ने जर्मन शब्दावली ‘लैण्डशाफ्ट’ के समानार्थी के रूप में ‘लैण्डस्केप’ (भूदृश्य) शब्दवली का प्रयोग किया है। उन्होंने भूदृश्य का प्रयोग दृष्ट तत्वों के समुच्चय तथा प्रदेश (या क्षेत्र) दोनों अर्थों में किया है। हार्टशोर्न ने लिखा है कि सावर की भूदृश्य सम्बन्धी विचारधारा जर्मन भूगोलवेत्ता हेटनर, स्ल्यूटर आदि के विचारों के सन्निकट है।

कार्ल सावर ने भूदृश्य को दो वर्गों में विभक्त किया है- 

(1) प्राकृतिक भूदृश्य (Physical landscape) और 

(2) सांस्कृतिक भूदृश्य (Cultural landscape)

उनके अनुसार सम्पूर्ण भूदृश्य में प्राकृतिक तत्वों के समुच्चयिक स्वरूप को प्राकृतिक भूदृश्य और मानवकृत समस्त तत्वों के समुच्चयिक स्वरूप को सांस्कृतिक भूदृश्य कहा जा सकता है। भूदृश्य के इस द्वन्द्वात्मक वर्गीकरण में पूर्णतः प्रकृति द्वारा उत्पन्न भूदृश्य को प्राकृतिक भूदृश्य माना जाता है और मानव द्वारा निर्मित या संशोधित भूदृश्य को सांस्कृतिक भूदृश्य कहा जाता है। 

इसलिए मानव बसाव वाले या मानव की पहुँच वाले क्षेत्र में पूर्णतः प्राकृतिक भूदृश्य नहीं हो सकता। भूगोल में भूतल का अध्ययन मानव गृह के रूप में किया जाता है, अतः भौगोलिक अध्ययन में सांस्कृतिक भूदृश्य ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। 

सांस्कृतिक भूदृश्य के अध्ययन से यह समझने में सहायता मिलती है कि पृथ्वी के तल (भूतल) के वर्तमान भूदृश्य का स्वरूप किस सीमा तक मानवीय क्रिया-कलापों का परिणाम है। इस प्रकार कार्ल सावर ने सांस्कृतिक भूदृश्य की विस्तृत व्याख्या की और सांस्कृतिक भूगोल को संस्थापित करने का अग्रणीय कार्य किया।

पर्वत, पठार, मैदान, नदी घाटी, हिमनद, समुद्र, समुद्री लहरें एवं धाराएं, प्रवाल भित्ति, ज्वालामुखी आदि प्राकृतिक भूदृश्य के घटक हैं। इसके विपरीत मनुष्य द्वारा निर्मित गृह, अधिवास (ग्राम एवं नागर), मार्ग, सड़कें, खेत, बाग-बगीचे, कल-कारखाने, खेल ल के के मैदान, पार्क, लहरें आदि सांस्कृतिक भूदृश्य के घटक हैं। 

प्राकृतिक भूदृश्य केवल वहीं मिल सकता है जो भू-भाग मानव से पूर्णतया अछूता और मानवीय प्रभाव से मुक्त रहा हो। अतः वर्तमान विश्व में पूर्णतः प्राकृतिक भूदृश्य अत्यन्त सीमित हैं। सांस्कृतिक भूदृश्य की पहचान भूतल पर मानव की छाप से होती है जिसका आकार तथा विस्तार असीमित होता जा रहा है। मानव की पहुँच के कारण सदैव हिमाच्छादित अण्टार्कटिका महाद्वीप तथा एवरेस्ट चोटी पर भी मानव प्रभाव रहित पूर्णतः प्राकृतिक भूदृश्य कायम नहीं रह गया है।

प्राकृतिक भूदृश्य, सांस्कृतिक भूदृश्य के विकास के लिए आधार प्रस्तुत करता है। एक प्रमुख एवं सक्रिय भौगोलिक कारक के रूप में मनुष्य अपनी शक्ति तथा चयन द्वारा प्राकृतिक भूदृश्य में परिवर्तन करके सांस्कृतिक भूदृश्य का निर्माण करता है। वास्तव में मनुष्य कोई स्वतन्त्र सृजन नहीं करता है बल्कि प्राकृतिक तत्वों में परिमार्जन तथा रूपान्तरण करके वह सांस्कृतिक तत्वों का निर्माण करता है। 

जिस देश या प्रदेश में मानव सभ्यता तथा प्रौद्योगिकी का जितना अधिक विकास हुआ है वहाँ सांस्कृतिक भूदृश्यों की महत्ता उतनी ही अधिक है। पश्चिमी यूरोपीय देशों तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के अनेक बड़े-बड़े नगरों में तथा उनके सीमांत क्षेत्रों में कोई भी तत्व प्राकृतिक नहीं रह गया है। यहाँ तक कि जल और वायु भी शुद्ध नहीं रह गये हैं। इसके विपरीत पर्वतीय सघन वनों तथा अन्य दुर्गम क्षेत्रों में प्राकृतिक भूदृश्य की प्रमुखता पायी जाती है।

सांस्कृतिक भूदृश्य भूतल पर मानवीय प्रभाव की अमिट छाप का द्योतक है। इसका विकास मानव विकास के साथ सम्बद्ध रहा है। मानव सभ्यता के विकास के साथ जैसे-जैसे मानवीय ज्ञान तथा आवश्यकताएं बढ़ती गयी, मनुष्य उन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्राकृतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अधिकाधिक शोषण करने लगा। 

इसके लिए विभिन्न भू-भागों में मानव समूहों द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण में परिवर्तन तथा परिमार्जन किया जाता रहा है जिससे सांस्कृतिक भूदृश्यों का निरन्तर विस्तार होता गया।

सांस्कृतिक भूदृश्य के घटक

सांस्कृतिक भूदृश्य के घटकों को निम्नलिखित श्रेणियों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है :-

1. गृह एवं अधिवास (Houses and Settlements) – इसके अन्तर्गत सभी प्रकार के मानव निर्मित गृह या मकान तथा ग्रामीण एवं नगरीय अधिवास आते हैं।

2. जनसंख्या (Population) – जनसंख्या का वितरण, घनत्व, संघटन, प्रवास, वृद्धि आदि।

3. परिवहन के साधन (Means of transportation) – इसके अन्तर्गत यातायात के सभी साधन जैसे सड़क, रेलमार्ग, ट्राम वे, रज्जु मार्ग आदि तथा सवारी एवं भारवाहन के साधनों जैसे बास, ट्रैक्सी, ट्रक, रेलगाड़ी, जलयान, वायुयान, हेलीकाप्टर, तांगा, रिक्सा, बैलगाड़ी आदि को सम्मिलित किया जाता है।

4. कृषि सम्बन्धी तत्व (Agriculture related elements) – इसके अन्तर्गत ग्रामीण भूमि-उपयोग से सम्बन्धित तत्व सम्मिलित होते हैं जैसे खेत, फसलें, खलिहान, बाग-बगीचे, चारागाह, कम्पोस्ट गड्‌ढे, तालाब, कुएं, सार्वजनिक भूमि आदि।

5. उद्योग सम्बन्धी तत्व (Industry related elements) – इसके अन्तर्गत कुटीर, लघु तथा बृहत् सभी प्रकार के उद्योग धन्धों से सम्बन्धित भूदृश्य (औद्योगिक भूदृश्य) सम्मिलित किये जाते हैं। कल-कारखाने, वर्कशाप (कार्यशालाएं), श्रमिक कालोनियां, औद्योगिक उत्पादन आदि सम्मिलित होते हैं।

6. खनन सम्बन्धी तत्व (Mining related elements) – इसमें खनन तथा उत्खनन (mining and quarrying) से सम्बद्ध क्रियाओं तथा भूदृश्यों को सम्मिलित किया जाता है।

7. विद्युत तथा संचार सम्बन्धी तत्व – विद्युत संयंत्र, बिजली के खम्भे एवं तार, बिजली घर, राडार, टेलीफोन के खम्भे एवं तार, रेडियो तथा दूरदर्शन केन्द्रो में लगे टावर आदि सांस्कृतिक भूदृश्य के अन्तर्गत आते हैं।

8. व्यापार सम्बन्धी तत्व – इसके अन्तर्गत दूकानें, संग्रहालय, मण्डियां, विनिमय केन्द्र आदि आते हैं।9. सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक संस्थाएं – इसके अन्तर्गत शिक्षण संस्थाएं, सरकारी कार्यालय, मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा आदि धार्मिक स्थल, चिकित्सालय, न्यायालय, पुलिस स्टेशन, सैनिक छावनियां आदि सम्मिलित होती हैं।

FAQs

सांस्कृतिक भूदृश्य क्या है?

सांस्कृतिक भूदृश्य (Cultural Landscape) किसी भूभाग में मानव द्वारा निर्मित या संशोधित तत्वों के समुच्चयिक स्वरूप को दर्शाता है। इसमें मानव निर्मित गृह, अधिवास, सड़कें, खेत, बाग-बगीचे, और कल-कारखाने शामिल होते हैं।

भूदृश्य और सांस्कृतिक भूदृश्य में क्या अंतर है?

भूदृश्य (Landscape) में दृश्य आकृतियों, वनस्पतियों, जलाशयों, और अन्य भौतिक तत्वों का समावेश होता है, जबकि सांस्कृतिक भूदृश्य (Cultural Landscape) में मानव द्वारा निर्मित और संशोधित तत्व शामिल होते हैं, जो मानव क्रियाकलापों का परिणाम होते हैं।

प्राकृतिक भूदृश्य और सांस्कृतिक भूदृश्य में क्या अंतर है?

प्राकृतिक भूदृश्य (Physical Landscape) में प्रकृति द्वारा निर्मित तत्व होते हैं जैसे पर्वत, नदियाँ, और जंगल। सांस्कृतिक भूदृश्य (Cultural Landscape) में मानव द्वारा निर्मित और संशोधित तत्व शामिल होते हैं, जैसे मकान, सड़कें, और उद्योग।

सांस्कृतिक भूदृश्य का भूगोल में क्या महत्त्व है?

सांस्कृतिक भूदृश्य का भूगोल में महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह भूतल के वर्तमान स्वरूप को समझने में मदद करता है और यह दर्शाता है कि मानव क्रियाकलापों का पर्यावरण पर कितना गहरा प्रभाव पड़ता है।

सांस्कृतिक भूदृश्य का मानव सभ्यता से क्या संबंध है?

सांस्कृतिक भूदृश्य का मानव सभ्यता से गहरा संबंध है। यह मानव विकास और प्रौद्योगिकी के साथ बदलता और विकसित होता है, जिससे मानव क्रियाकलापों के प्रभावों को भूभाग पर देखा जा सकता है।

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