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बौद्ध धर्म: इतिहास, सिद्धांत, प्रसार और वैश्विक वितरण (Buddhism: history, doctrine, spread and global distribution)

बौद्ध धर्म (Buddhism) की स्थापना पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में हुई थी। इसके प्रवर्तक गौतम बुद्ध थे, जिन्होंने सामाजिक असमानता, अंधविश्वास और कर्मकांडों से मुक्त होकर एक व्यावहारिक धर्म की स्थापना की। यह धर्म अहिंसा, करुणा और ज्ञान की खोज पर आधारित है। वर्तमान में बौद्ध धर्म भारत से अधिक अन्य एशियाई देशों में प्रचलित है और दुनिया के कई हिस्सों में फैल चुका है।

Buddhism
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गौतम बुद्ध का जीवन परिचय

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के पास लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था, जो वर्तमान में नेपाल की तराई में स्थित है। उनका मूल नाम सिद्धार्थ था। उनके पिता शुद्धोधन शाक्य गणराज्य के शासक थे और माता महामाया थीं। बचपन से ही सिद्धार्थ विलासिता में पले-बढ़े, लेकिन उन्होंने जीवन के दुखों को देखकर सांसारिक मोह छोड़ने का निर्णय लिया।

29 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को छोड़कर गृह त्याग दिया। वे सत्य की खोज में निकल पड़े और कई वर्षों तक कठोर तपस्या की। गया में वट वृक्ष के नीचे सात दिनों तक ध्यान करने के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। तब वे ‘तथागत’ और ‘बुद्ध’ कहलाए। उन्होंने दुखों के मूल कारणों और उनसे मुक्ति पाने के उपायों को प्रतिपादित किया।

बौद्ध धर्म (Buddhism) के प्रमुख सिद्धांत

बौद्ध धर्म (Buddhism) के सिद्धांतों का मूल उद्देश्य मानव जीवन में दुखों का निवारण करना है। इसके लिए बुद्ध ने निम्नलिखित शिक्षाएँ दीं:

1. चार आर्य सत्य (Four Noble Truths)

बौद्ध धर्म का सार चार महान सत्यों में समाहित है:

  1. दुःख – सभी प्राणी किसी न किसी दुख से ग्रस्त हैं। जन्म, रोग, वृद्धावस्था, मृत्यु, प्रियजनों से वियोग, इच्छाओं की पूर्ति न होना आदि सभी दुखों के कारण हैं।
  2. दुःख का कारण – इच्छा, तृष्णा और आसक्ति ही सभी दुखों के मूल कारण हैं।
  3. दुःख से निवृत्ति – इच्छाओं पर नियंत्रण और तृष्णा का त्याग करने से दुखों का अंत संभव है।
  4. दुःख निवारण का मार्ग – अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path) को अपनाकर दुखों से मुक्ति पाई जा सकती है।

2. अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path)

बुद्ध ने दुखों से मुक्ति के लिए अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया, जिसमें निम्नलिखित आठ तत्व शामिल हैं:

  1. सम्यक दृष्टि – सत्य को समझना और अज्ञान को त्यागना।
  2. सम्यक संकल्प – अहिंसा और त्याग का पालन करना।
  3. सम्यक वाणी – झूठ, कटु वचन और व्यर्थ की बातों से बचना।
  4. सम्यक कर्म – नैतिक और सदाचारपूर्ण आचरण करना।
  5. सम्यक आजीविका – सही और ईमानदारी से जीवनयापन करना।
  6. सम्यक व्यायाम – मानसिक और शारीरिक अनुशासन का पालन करना।
  7. सम्यक स्मृति – आत्मनिरीक्षण और मन को नियंत्रित करना।
  8. सम्यक समाधि – ध्यान के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करना।

3. नैतिकता और शील

बौद्ध धर्म (Buddhism) में नैतिकता (शील) को अत्यधिक महत्व दिया गया है। इसमें सत्य बोलना, अहिंसा का पालन करना, चोरी न करना, व्यभिचार से दूर रहना और नशे से बचना शामिल है। इन सिद्धांतों का पालन करके व्यक्ति आत्मविकास कर सकता है।

4. कर्म और पुनर्जन्म

बौद्ध धर्म के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार फल प्राप्त होता है। अच्छे कर्म करने से व्यक्ति अच्छे जीवन की ओर बढ़ता है, जबकि बुरे कर्मों के कारण कष्ट सहने पड़ते हैं। पुनर्जन्म की अवधारणा के अनुसार, जब तक इच्छाएँ और तृष्णाएँ बनी रहती हैं, तब तक मनुष्य जन्म-मरण के चक्र में फंसा रहता है। इच्छाओं के अंत होने पर ही निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है।

5. निर्वाण

निर्वाण बौद्ध धर्म (Buddhism) का परम लक्ष्य है। जब व्यक्ति अपनी इच्छाओं और वासनाओं को समाप्त कर देता है, तो वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और परम शांति को प्राप्त करता है। इसे ही निर्वाण कहा जाता है।

बौद्ध धर्म का प्रसार और प्रभाव

बौद्ध धर्म (Buddhism) भारत में उत्पन्न हुआ, लेकिन समय के साथ यह पूरे एशिया में फैल गया। सम्राट अशोक ने इसे अपनाया और अपने शासनकाल में भारत से लेकर श्रीलंका, म्यांमार, चीन, जापान और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों तक प्रचारित किया।

1. चीन और जापान में बौद्ध धर्म

चीन में बौद्ध धर्म का समावेश कन्फ्यूशियसवाद और ताओवाद के साथ हुआ। हालांकि, चीन की साम्यवादी सरकार ने बौद्ध धर्म पर कई प्रतिबंध लगाए हैं। जापान में बौद्ध धर्म शिन्टो धर्म के साथ मिल गया, और दोनों धर्मों के अनुयायी एक-दूसरे के पवित्र स्थलों पर पूजन करते हैं।

2. दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म

थाईलैंड, म्यांमार, वियतनाम, कम्बोडिया और लाओस जैसे देशों में बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म के रूप में प्रचलित है। इन देशों में थेरवाद बौद्ध धर्म की प्रधानता है।

3. भारत में बौद्ध धर्म की स्थिति

बौद्ध धर्म की जन्मस्थली भारत में इसका प्रभाव धीरे-धीरे कम होता गया। हिंदू धर्म की मजबूत उपस्थिति के कारण यह दब गया, लेकिन 20वीं शताब्दी में डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा किए गए धर्मांतरण के कारण महाराष्ट्र और मध्य भारत में बौद्ध धर्म के अनुयायी फिर से बढ़े।

बौद्ध धर्म का विश्व वितरण

Pew Research Center की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, कई एशियाई लोग बौद्ध परंपराओं का पालन करते हैं, लेकिन वे इसे धर्म के रूप में नहीं अपनाते। वर्तमान में, लगभग 50.6 करोड़ लोग बौद्ध धर्म का पालन करते हैं, जो विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 6.6% है।

बौद्ध धर्म (Buddhism) के अनुयायियों की सर्वाधिक प्रतिशत वाले देश (Pew Research 2020)

नीचे उन देशों की सूची दी गई है, जहां कुल जनसंख्या के प्रतिशत के आधार पर बौद्ध धर्म के अनुयायी सबसे अधिक हैं:

  1. कंबोडिया – 96.8%
  2. थाईलैंड – 92.6%
  3. म्यांमार – 79.8%
  4. भूटान – 74.7%
  5. श्रीलंका – 68.6%
  6. लाओस – 64%
  7. मंगोलिया – 54.4%
  8. जापान – 33.2%
  9. सिंगापुर – 32.2%
  10. दक्षिण कोरिया – 21.9%

इनमें पहले सात देशों में बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म है, जहां 55% से अधिक जनसंख्या बौद्ध धर्म का पालन करती है। इसके अलावा, ताइवान, मलेशिया, चीन, मकाऊ, वियतनाम, हांगकांग, उत्तरी मारियाना द्वीप और नेपाल में भी बौद्धों की महत्वपूर्ण संख्या पाई जाती है।

बौद्ध धर्म (Buddhism) के अनुयायियों की सबसे बड़ी संख्या वाले देश (Pew Research 2020)

कुछ देशों में भले ही बौद्ध जनसंख्या का प्रतिशत कम हो, लेकिन वहां बौद्धों की कुल संख्या बहुत अधिक है। उदाहरण के लिए, चीन में लगभग 254 मिलियन (25.4 करोड़) बौद्ध हैं, जो विश्व की कुल बौद्ध जनसंख्या का लगभग आधा हिस्सा है। हालांकि, चीन में 51% से अधिक लोग किसी भी धर्म से जुड़े नहीं हैं, इसलिए इसे आमतौर पर बौद्ध देश नहीं माना जाता। नीचे वे देश सूचीबद्ध हैं, जहां बौद्धों की कुल संख्या सबसे अधिक है:

  1. चीन – 254.7 मिलियन
  2. थाईलैंड – 66.1 मिलियन
  3. म्यांमार – 41.4 मिलियन
  4. जापान – 41.4 मिलियन
  5. कंबोडिया – 15.7 मिलियन
  6. वियतनाम – 15.6 मिलियन
  7. श्रीलंका – 15.4 मिलियन
  8. दक्षिण कोरिया – 10.9 मिलियन
  9. भारत – 10.1 मिलियन
  10. मलेशिया – 5.2 मिलियन

निष्कर्ष

बौद्ध धर्म (Buddhism) केवल एक धार्मिक प्रणाली ही नहीं, बल्कि एक नैतिक और दार्शनिक जीवन पद्धति भी है। इसका उद्देश्य व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर ले जाना और समाज में शांति और समरसता स्थापित करना है। आज भी यह धर्म दुनिया भर में अपने विचारों के कारण लोगों को आकर्षित करता है और विश्व शांति के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।

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