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ज्वालामुखी का विश्ववितरण (World Distribution of Volcanoes)

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इस लेख में आप ज्वालामुखी के विश्ववितरण को विस्तारपूर्वक पढ़ेंगे।

ज्वालामुखी के विश्ववितरण प्रतिरूप (global pattern) को सामान्तया को दो रूपों में व्यक्त किया जाता है:  (i) परम्परागत वितरण प्रतिरूप (traditional distribution pattern) जिसको प्लेट विवर्तनिकी (1960 से) के पहले तक प्रचलित था।   (ii) प्लेट किनारों के संदर्भ में वितरण प्रतिरूप  

(i) परम्परागत वितरण प्रतिरूप

यदि हम संसार के ज्वालामुखियों को विश्व मानचित्र पर अंकित करें तो इनका वितरण एक निश्चित क्रम में देखने को मिलेगा। विश्व के ज्वालामुखी वितरण तथा भूकम्प वितरण मानचित्र की तुलना करने पर इन दोनों में अधिकाधिक समानता देखने को मिलेंगी। जिससे से यह स्पष्ट होता है कि ज्वालामुखी घटना तथा भूकम्प की घटना के बीच चोली-दामन सा सम्बन्ध है । 

ज्वालामुखी विस्फोट या उद्गार के लिए जरूरी है कि वहाँ भूपटल कमजोर हो तथा गैसों के बनने के लिए जल की उपलब्ध होनी चाहिए। इस दृष्टि से देखें तो पर्वत निर्माण के क्षेत्र तथा सागर के तटवर्ती भाग ज्वालामुखी क्रिया के लिए अधिक आदर्श होते हैं। इस आधार पर यदि ज्वालामुखी के विश्ववितरण पर ध्यान दिया जाए तो यह साफ हो जाता है कि विश्व के अधिकांश ज्वालामुखी, नवीन वलित श्रेणियों के सहारे (राकी- एण्डीज श्रृंखला, आल्प्स हिमालय शृंखला), भूभ्रंश घाटियों के सहारे (अफ्रीकी भूभ्रंश घाटी), सागर तटीय भागों खासकर महाद्वीपीय मग्नतटों तथा मध्य महासागरीय कटक के सहारे पाए जाते हैं। 

उपरोक्त क्षेत्रों में ज्वालामुखी विस्फोट या उदगार के निम्न कारण होते हैं

नवीन वलित पर्वतीय क्षेत्रों में सम्पीडन तथा खिंचाव के कारण हलचलें होती रहती हैं, जिस कारण दरार पड़ जाने से भूपटल कमजोर हो जाता है तथा ज्वालामुखी का उद्गार होता रहता है। इसी प्रकार सागर के तटीय इलाकों में  महाद्वीपीय मग्नतटों के सहारे ज्वालामुखी का पाया जाना यह दर्शाता है कि सागर का जल रिसकर नीचे  चला जाता है । गहराई में अधिक ताप के कारण यह जल गैस में बदल जाता है और यह गैस ऊपर की धक्के लगाकर ज्वालामुखी के विस्फोट या उद्गार में सहायता करती है । 

यही कारण है कि विश्व के अधिकांश ज्वालामुखी प्रशान्त महासागर के दोनों तटीय भागों तथा समुद्र द्वीपों पर पाएजाते हैं। लेकिन इस तथ्य को एक नियम नहीं माना जा सकता है । पहले प्रायः ऐसा समझा जाता रहा है कि विश्व के लगभग सभी ज्वालामुखी सागर के नजदीक पाए जाते हैं, परन्तु वर्तमान समय में यह मत मान्य नहीं है।

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यद्यपि सागर जल, जो कि रिसकर अन्दर जाकर गैस तथा वाष्प बन जाता है, ज्वालामुखी के उद्गार में सहायक होता है परन्तु उसे ज्वालामुखी क्रिया का एकमात्र कारण नहीं माना जा सकता है। ऐसे अनेक प्रमाण हैं कि ज्वालामुखी का उद्गार ऐसे स्थानों पर हुआ है जो कि सागर से दूर रहे हैं। उदाहरण के लिए जुरैसिक, क्रीटैसियस तथा टर्शियरी युगों में अधिकांश ज्वालामुखी क्रियाएं महाद्वीपों के आंतरिक भागों में हुई थी । अटलांटिक तटीय भागों में ज्वालामुखी की न्यूनता भी इसी बात को पुष्ट करती है।

ज्वालामुखी का उद्गार वहीं पर हो सकता है, जहाँ पर उद्गार के लिए पृथ्वी की गहराई में पर्याप्त मैगमा मौजूद हो। परन्तु यह विषय भी विवादग्रस्त ही है। पृथ्वी के अन्दर मैगमा का कोई स्थायी भण्डार है ? ऐसा अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है।

इनको भी पढ़ें
1. ज्वालामुखी के प्रकार
2. ज्वालामुखियों का वर्गीकरण
3. विश्व की प्रमुख कोयला खानें
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(ii) प्लेट विवर्तनिकी के आधार पर वितरण प्रतिरूप

प्लेट विवर्तनिकी के आधार पर ज्वालामुखी क्रिया तथा प्लेट किनारों के बीच सहसम्बन्ध देखने को मिलता है। विश्वस्तर पर अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी प्लेट की सीमाओं के साथ सम्बन्धित हैं । विश्व के लगभग 15 प्रतिशत ज्वालामुखी रचनात्मक प्लेट किनारों (constructive plate margins), जहाँ पर (मध्य महासागरीय कटक) दो प्लेट विपरीत दिशाओं में अपसरित (diverge) होते हैं, के सहारे तथा 80 प्रतिशत विनाशी प्लेट किनारों (destruct tive plate margins), जहाँ पर दो प्लेट आमने-सामने से आकर टकराती या अभिसरित (converge)होती हैं तथा अपेक्षाकृत भारी प्लेट का हल्की प्लेट के नीचे क्षेपण (subduction) होता है, के सहारे आते हैं। 

इनके अतिरिक्त कुछ ज्वालामुखी में विस्फोट प्लेट के आन्तरिक भाग (intra-plate region) में भी होता है । जैसे – हवाई द्वीप के ज्वालामुखी प्रशान्त महासागरीय प्लेट के अन्दर, पूर्वी अफ्रीका की भूभ्रंश घाटी क्षेत्र के ज्वालामुखी अफ्रीकन प्लेट के अन्दर आदि। 

ज्वालामुखी का विश्ववितरण (World Distribution of Volcanoes)

ज्वालामुखी की परम्परागत वितरण प्रणाली तथा प्लेट विवर्तनिकी के आधार पर नवीन वितरण प्रणाली को मिला जुलकर ज्वालामुखियों के विश्ववितरण को निम्न रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है

World Distribution of Volcanoes
ज्वालामुखी का विश्ववितरण (World Distribution of Volcanoes)

परिप्रशान्त महासागरीय मेखला (Circum Pacific Belt) या विनाशी प्लेट किनारे के ज्वालामुखी 

विश्व के लगभग दो तिहाई ज्वालामुखी प्रशान्त महासागर के दोनों तटीय भागों, द्वीप चापों (island arcs) तथा समुद्रीय द्वीपों के सहारे पाए जाते हैं। ज्वालामुखी की इस मेखला को  ‘प्रशान्त महासागर का ज्वालावृत्त’ (fire girdle of the Pacific Ocean अथवा Fire Ring of Pacific) कहते हैं। यह पेटी अन्टार्कटिका के एरेबस पर्वत से शुरू होकर दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट के सहारे विशेष कर एण्डीज पर्वत माला के साथ-2 तथा उत्तरी अमेरिका के राकीज पर्वत के पश्चिमी भागों के सहारे होते हुए अलास्का तक पहुँचती है। 

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यहाँ से यह श्रृंखला मुड़कर एशिया महाद्वीप के पूर्वी तटीय भाग के सहारे जापान द्वीप समूह तथा फिलीपाइन द्वीप समूह के साथ -2 पूर्वी द्वीप समूह पहुँच कर वहाँ पर ‘मध्य महाद्वीपीय पेटी’ में मिल जाती है। विश्व के अधिकांश ऊंचे ज्वालामुखी पर्वत इसी पेटी में स्थित हैं। इस पेटी में अधिकांश ज्वालामुखी श्रृंखला के रूप में पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए अल्यूशियन, जापान द्वीप समूह तथा हवाईलैण्ड द्वीप के ज्वालामुखी, श्रेणी के रूप में पाए जाते हैं।

 विश्व के उन महत्वपूर्ण ज्वालामुखियों में जो कि समूह में स्थित हैं, इक्वेडर के ज्वालामुखी विश्वप्रसिद्ध हैं। यहाँ पर 22 प्रमुख ज्वालामुखी पर्वत समूह मैं पाये जाते हैं, जिनमें से 15 ज्वालामुखी ऐसे हैं, जिनकी ऊंचाई 15,000 फीट से अधिक है तथा कोटापैक्सी ज्वालामुखी पर्वत जिसकी ऊँचाई 19,613 फीट है, विश्व का सबसे ऊँचा ज्वालामुखी पर्वत है। 

इस मेखला में जापान का प्रसिद्ध ज्वालामुखी पर्वत फ्यूजीयामा, फिलापाइन का माउण्ट ताल, माउण्ट मेयान तथा पिनाटुबो, संयुक्त राज्य अमेरिका का शस्ता, रेनियर तथा हुड, तथा मध्य अमेरिका का चिम्बरेजो आदि शामिल हैं। इस मुख्य मेखला के अलावा प्रशान्त महासागर में फैले अनेक द्वीपों पर भी अनेक जाग्रत, प्रसुप्त एवं प्रशान्त ज्वालामुखी पाए जाते हैं । यहाँ ज्वालामुखियों का विस्फोट अमेरिकन तथा प्रशान्त महासागरीय प्लेटों तथा प्रशान्त महासागरीय एवं एशियाई प्लेटों के टकराव के कारण होता है । 

मध्य महाद्वीपीय मेखला (mid continental belt) या महाद्वीपीय प्लेट अभिसरण मेखला

इस मेखला की शुरुआत रचनात्मक प्लेट किनारों अर्थात् मध्य अटलाण्टिक महासागरीय कटक से होती है, हालांकि ज्यादातर ज्वालामुखी विनाशी प्लेट किनारों  के सहारे आते हैं क्योंकि यूरेशियन प्लेट तथा अफ्रीकन व इण्डियन प्लेट (दोनों महाद्वीपीय प्लेट) का टकराव या अभिसरण होता है। यह मेखला आइसलैण्ड  (जो कि मध्य अटलाण्टिक कटक के ऊपर स्थित है) के हेकला पर्वत से शुरू होती है तथा  स्काटलैण्ड होती हुई कनारी द्वीप (आन्ध्र महासागर) पर पहुँचती है। 

यहाँ पर इसकी दो शाखायें हो जाती हैं। पहली शाखा अंध महासागर से होती हुई पश्चिमी द्वीप समूह तक जाती है। दूसरी शाखा की एक उपशाखा अफ्रीका में चली जाती है जहाँ पर ज्वालामुखी, पूर्वी अफ्रीका की भूभ्रंश घाटी के सहारे पाए जाते हैं तथा दूसरी मुख्य शाखा, स्पेन, इटली होती हुई काकेशिया पहुँचती है। यहाँ से यह हिमालय पर्वत के सहारे बर्मा तक जाती है। यहाँ से दक्षिण की तरफ मुड़कर दक्षिणी-पूर्वी द्वीप में जाकर प्रशान्त महासागरीय पेटी से मिल जाती है। 

यह मेखला मुख्य रूप से अल्पाइन-हिमालय पर्वत शाखा के सहारे चलती है। भूमध्य सागर के ज्वालामुखी भी इसी पेटी में शामिल होते हैं। भूमध्य सागर के प्रसिद्ध ज्वालामुखी स्ट्राम्बोली, विविस, एटा तथा एजियन सागर के ज्वालामुखी इस मेखला के महत्वपूर्ण अंग हैं। इसके अलावा ईरान का देवबन्द, कोह सुल्तान, काकेशस का एलबुर्ज, आर्मीनिया का अरारात तथा बलूचिस्तान के ज्वालामुखी महत्वपूर्ण हैं। भारत का एक मात्र बैरन द्वीप ज्वालामुखी इसी मेखला में आता है।

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मध्य अटलाण्टिक मेखला या महासागरीय कटक ज्वालामुखी

मध्य महासागरीय कटक (mid oceanic ridges) के सहारे दो प्लेट का अपसरण (divergence) होता है जिस कारण कटक के सहारे दरार या भ्रंशन का निर्माण होता है। जहाँ क्रस्ट के नीचे दुर्बलता मण्डल से लावा दरारी उद्भेदन के रूप में प्रकट होता है जो दो बराबर भागों में विभक्त होकर दरार या भ्रंश के दोनों तरफ फैल जाता या अपसरित (diverging) हो जाता तथा ठंडा होकर नवीन क्रस्ट का निर्माण करता है। 

अत: मध्य महासागरीय कटक के पास नवीनतम लावा होता है तथा इससे (कटक से) जितना दूर हटते जाते हैं, लावा उतना ही पुराना  होता जाता है। इस तरह की ज्वालामुखी क्रिया सबसे अधिक मध्य अटलाण्टिक कटक के सहारे होती है। इस मेखला की सभी ज्वालामुखी क्रिया तथा दरारी उद्गार हमें दिखाई नहीं देती हैं क्योंकि अधिकांश क्रियायें जल के नीचे होती हैं । 

मध्य अटलाण्टिक मेखला में आइसलैण्ड, ज्वालामुखी क्रिया का सबसे अधिक महत्वपूर्ण सक्रिय क्षेत्र है। 1783 के लाकी उद्भेदन के बाद 1974 का हेकला तथा 1973 का हेल्गाफेल उद्गार महत्वपूर्ण है। लेसर एण्टलीस तथा दक्षिणी आन्ध्र महासागर एवं एजोर द्वीप तथा सेण्ट हेलना उत्तरी आन्ध्र महासागर के प्रमुख ज्वालामुखी क्षेत्र हैं। सुदूर उ०- प० में जान मायेन द्वीप पर सक्रिय ज्वालामुखी पाए जाते हैं। 

अन्तरा प्लेट ज्वालामुखी (intraplate volcanism)

प्लेट सीमाओं के अतिरिक्त प्लेट के अन्दर वाले भागों में भी ज्वालामुखी क्रियायें होती हैं जिनके वास्तविक कारणों एवं उद्गार की प्रक्रियाओं के विषय में अभी तक विद्वान एकमत नहीं हो पाए हैं। । अन्तरा प्लेट ज्वालामुखी का प्रमुख उदाहरण  प्हवाई द्वीप से प्रारम्भ होकर लगभग उ० प० दिशा में कमचटका तक जाने वाली श्रृंखला है।

यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि हवाई द्वीप पर सक्रिय ज्वालामुखी पाए जाते हैं तथा इस द्वीप से जो श्रृंखला उत्तर-पश्चिम दिशा में कमचटका प्रायद्वीप की ओर अग्रसर होती है उसमें द्वीप के केन्द्र से क्रमश: प्राचीन, शान्त (extinct), अपरदित तथा जलमग्न ज्वालामुखियों का क्रम पाया जाता है। मात्र हवाई द्वीप पर ही भूकम्प (ज्वालामुखी उद्भेदन द्वारा), आते हैं तथा सम्पूर्ण श्रृंखला भूकम्प रहित है। इसी कारण इसे भूकम्प रहित कटक (aseismic ridge) कहते हैं। इस प्रकार यह कटक भूकम्प युक्त मध्य महासागरीय कटकों (seismic mid-oceanic ridges) से भिन्न है। 

विश्व प्रसिद्ध ज्वालामुखी

Sr. No. Volcano Name (ज्वालामुखी का नाम) Location (स्थान)Height (ऊचाई) Major Characteristic (प्रमुख विशेषता)
1 Mauna Loa                       Hawaii, USA     4,169 m (13,678 ft) Shield volcano 
2 Mount Kilimanjaro               Tanzania        5,895 m (19,341 ft) Highest in Africa
3 Mount Fuji                       Japan           3,776 m (12,389 ft) Stratovolcano
4 Vesuvius                        Italy           1,281 m (4,203 ft) Famous for Pompeii
5 Mount St. Helens                USA             2,550 m (8,365 ft) Erupted in 1980
6 Mount Rainier                   USA             4,392 m (14,411 ft) Stratovolcano in Washington
7 Krakatoa                        Indonesia       813 m (2,667 ft)   Infamous 1883 eruption
8 Mount Etna                      Italy           3,329 m (10,922 ft) Europe’s most active
9 Mount Vesuvius                  Italy           1,281 m (4,203 ft) Historic eruptions
10 Mount Tambora                    Indonesia       2,722 m (8,930 ft) 1815 eruption changed climate
11 Popocatépetl                    Mexico          5,426 m (17,802 ft) Active stratovolcano
12 Mount Cotopaxi                  Ecuador         5,897 m (19,347 ft) Second highest in Ecuador
13 Mount Shasta                    USA             4,322 m (14,179 ft) Cascade Range volcano
14 Mount Merapi                    Indonesia       2,930 m (9,613 ft) Active stratovolcano
15 Mount Nyiragongo                DR Congo        3,470 m (11,384 ft) World’s most active lava lake
16 Mount Hood                      USA             3,429 m (11,249 ft) Stratovolcano in Oregon
17 Mount Agung                     Indonesia       3,031 m (9,944 ft) Sacred volcano in Bali
18 Mount Cotacachi                 Ecuador         4,939 m (16,207 ft) Extinct stratovolcano
19 Mount Elbrus                    Russia          5,642 m (18,510 ft) Highest in Europe
विश्व प्रसिद्ध ज्वालामुखी

References

1.भौतिक भूगोल, सविन्द्र सिंह

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