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इस लेख में आप भूकम्प के विश्व वितरण को उदाहरणों व मानचित्र की सहायता से जानेंगे।
वैसे तो भूकम्पीय घटनाएँ पृथ्वी के धरातल पर व्यापक स्तर पर देखने को मिलती है फिर भी विश्व के भूकम्प मानचित्र को देखने से पता चलता है कि इसका सम्बन्ध स्थल के कुछ खास क्षेत्रों से है। भूकम्प के कारणों को जानने के बाद यह पता है कि भूकम्प क्षेत्रों चल जाता है कि भूकंप का सम्बन्ध भूपटल के कमजोर तथा अव्यवस्थित भागों से है।
संसार के अधिकतर भूकम्प निम्नलिखित क्षेत्रों में ही अधिकतर आते हैं
(1) जहां पर नवीन वलित पर्वत स्थित हैं। क्योंकि पर्वत निर्माण की क्रिया के कारण भूपटल के संतुलन में अव्यवस्था होने से ये भाग अस्थिर तथा कमजोर होते हैं। विश्व के 50 प्रतिशत से अधिक भूकम्प नवीन वलित पर्वतीय क्षेत्रों में आते हैं।
(2) अधिकतर भूकंप वहाँ आते हैं जहाँ पर महाद्वीपीय मग्न ढाल काफी खड़े तथा तीव्र ढाल वाले हो। भूमण्डल के लगभग 40 प्रतिशत भूकम्प सागर तथा महाद्वीपों या द्वीपों के मिलन बिन्दु पर पाये जाते हैं। यहाँ पर सागरीय जल आसानी से स्थल के नीचे रिसकर पहुँच जाता है तथा अधिक ताप के कारण गर्म होकर गैस का रूप धारण करके भूकम्प का कारण बनता है। यहाँ पर महाद्वीपीय ढाल के खड़े होने के कारण इस भाग के टूटकर गिरने से भी भूकम्प आने की संभावना रहती है।
(3) भूकंपीय घटनाएँ वहाँ अधिक होती हैं, जहाँ पर ज्वालामुखी क्षेत्र पाये जाते हैं। हालांकि ज्वालामुखी क्षेत्र तथा भूकम्प क्षेत्र एक नहीं हैं, फिर भी अधिकांश ज्वालामुखी उद्गार भूकम्प को जन्म देते हैं।
(4) जहाँ पर दरार अथवा भूपटल भ्रंश की क्रिया सक्रिय रहती है, जैसे अफ्रीका का पूर्वी भाग, वहाँ पर भूकंप ज्यादा आते हैं।
माण्टीसस डी वेलोर ने विभिन्न भूकंपों का अध्ययन करने के पश्चात यह निष्कर्ष निकाला है कि सागरीय किनारे पर पाए जाने वाले पर्वतों के वाह्य ढाल अर्थात् सागर की तरफवाले ढाल पर अधिक संख्या में भूकम्प आते हैं क्योंकि सागर की ओर इनका ढाल अधिक खड़ा होता है। दोनों अमेरिका के पश्चिमी तट तथा एशिया के पूर्वी तट इसके प्रमुख प्रमाण हैं।
वैसे तो भूपटल का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जो भूकम्प से सुरक्षित कहा जा सके। कभी-कभी तो ऐसे स्थानों पर भी भूकम्प आ जाते हैं जिनके विषय में पहले से जरा भी संभावना नहीं रहती। उदाहरण के लिए सन् 1929 ई० में नोवास्कोशिया तथा न्यूफाउण्डलैण्ड के बीच कैबेट जलडमरूमध्य में आया भूकम्प पूर्ण रूप से अप्रत्याशित ही था।
इसी प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका के मोण्टाना प्रान्त का हेलना भूकम्प भी अचानक ही अनुभव किया गया था। 11 दिसम्बर, सन् 1967 का प्रायद्वीपीय भारत का कोयना भूकम्प जहाँ पर अनुभव किया गया था, वहाँ पर पहले भूकम्प की आशंका तक नहीं थी, क्योंकि यह भाग भूपटल का प्राचीनतम दृढ़ तथा व्यवस्थित स्थिर भूखण्ड माना जाता है।
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि भूकम्प के क्षेत्र अनिश्चित होते हैं हालांकि भूकम्प क्षेत्रों को कुछ निश्चित पेटियों में विभाजित अवश्य कर सकते हैं। वर्तमान समय में भूकम्प क्षेत्रों तथा प्लेट सीमाओं में गहरा सम्बन्ध स्थापित किया गया है। वैसे भी अधिकांश भूकम्प प्लेटों की सीमाओं के सहारे ही आते हैं।
इनको भी पढ़ें 1. भूकंप: अर्थ एवं कारण 2. ज्वालामुखी का विश्व वितरण |
भूकम्प का विश्व वितरण (World Distribution of Earthquakes)
प्रशान्त महासागर तटीय पेटी
प्रशान्त महासागर के दोनों तटीय भागों में असंख्य भूकम्प आते हैं। यह पेटी विश्व का यह सबसे व्यापक भूकम्प क्षेत्र है, जहाँ पर पुरे विश्व के 63 प्रतिशत भूकम्प आते हैं। ऐसा यहाँ भूकम्प के लिए होने वाली निम्नलिखित दशाओं के कारण संभव है –
- यह क्षेत्र सागर तथा स्थल का मिलन बिन्दु है।
- यह पेटी नवीन वलित पर्वतों का क्षेत्र है।
- ज्वालामुखी क्षेत्र होने के कारण भूकंप आते हैं।
- यहां विनाशी प्लेट सीमाओं का अपसरण होता है।
आइए इन कारणों को उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं। उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तटीय किनारे पर उत्तर में अलास्का से लेकर दक्षिण में चिली तक नवीन मोड़दार पर्वत राकीज तथा एण्डीज हैं। ये पर्वतीय क्षेत्र ज्वालामुखी क्षेत्र भी हैं, अतः इस भाग में प्रतिवर्ष कई भूकम्प आते हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि समस्त पश्चिमी तट (अमेरिका) भूकम्प से प्रभावित है। पनामा जलडमरूमध्य, उत्तरी मेक्सिको, दक्षिणी कैलिफोर्निया, ओरेगन, वाशिंगटन तथा ब्रिटिश कोलम्बिया अब तक भूकम्प अप्रभावित हैं।
प्रशान्त महासागर तटीय पेटी की दूसरी शाखा एशिया के पूर्वी भाग में कमचटका से शुरू होकर एशिया महाद्वीप के पूर्वी तटीय भाग को शामिल करके क्यूराइल द्वीप, जापान द्वीप तथा फिलीपाइन द्वीप को मिलाती हुई पूर्वी द्वीपसमूह तक पहुँचती है। वहाँ से पूर्व की तरफ मुड़कर न्यूजीलैण्ड तक जाती है। इसमें जापान भूकम्प के लिए अधिक प्रसिद्ध है। एक अनुमान के अनुसार जापान में हर वर्ष 1500 भूकम्प अनुभव किए जाते हैं। यही कारण है कि यहाँ पर मकान लकड़ी तथा दफ्ती के बनाए जाते हैं।
इन दो प्रमुख शाखाओं के अतिरिक्त प्रशान्त महासागर के अनेक द्वीपों के भूकम्पों को भी इसी पेटी में शामिल किया जाता है।
मध्य महाद्वीपीय पेटी
इस पेटी को भूमध्य सागरीय पेटी भी कहते हैं। इस क्षेत्र में सन्तुलनमूलक तथा भ्रंशमूलक भूकम्पों का अंकित किए जाते हैं। विश्व के लगभग 21 प्रतिशत भूकम्प इस क्षेत्र में आते हैं। यह पेटी स्थलीय भाग के बीच से होकर गुजरती है, जिसमें यूरोप महाद्वीप के आल्प्स तथा एशिया के हिमालय पर्वत एवं बर्मा (मयमार) की पहाड़ियों के भूकम्प और भूमध्य सागर के भूकम्प क्षेत्र शामिल किए जाते हैं।
मध्य महाद्वीपीय पेटी पश्चिम में केप वर्डे द्वीप से प्रारम्भ होता है तथा पुर्तगाल से होकर भूमध्य सागर, आल्प्स के भूकम्पों को शामिल करते हुए एशिया माइनर पहुँचती है। आगे हिमालय के सहारे होते हुए, बर्मा के सहारे दक्षिण की ओर झुक जाती है तथा अन्त में पूर्वी द्वीप समूह में जाकर प्रशान्त महासागरीय भूकम्प क्षेत्र से मिल जाती है। हिमालय के पास इस प्रमुख शाखा से एक उपशाखा अलग होकर तिब्बत से होकर चीन तक चली जाती है। इसमें कुनलुन, त्यानशान तथा शिगलिंगशान पर्वतीय भागों के भूकम्प शामिल किए जाते हैं।
इस पेटी के सबसे प्रमुख भूकम्प क्षेत्र इटली, चीन, एशिया माइनर तथा बालकन प्रायद्वीप है। भारत का भूकम्प क्षेत्र इसी पेटी में शामिल किया जाता है। यहाँ पर भूकम्पीय प्रभाव वाले क्षेत्र उत्तर में कश्मीर से लेकर आसाम तक एवं कच्छ के रन तक सीमित हैं। विनाशकारी तथा बड़े पैमाने के भूकम्प हिमालय के सहारे आते हैं।
मध्य अटलाण्टिक पेटी
मध्य अटलाण्टिक पेटी मध्य अटलाण्टिक कटक (ridge) के सहारे स्थित है। यहाँ पर भूकम्प मुख्य रूप से प्लेटों के अपसरण (divergence) के कारण रूपान्तर भ्रंश (transform fault) के निर्माण एवं दरारी ज्वालामुखी उद्गार के कारण आते हैं। यह पेटी उत्तर में स्पिट बर्जेन तथा आइसलैण्ड से प्रारम्भ होकर दक्षिण में बोवेट द्वीप के साथ विस्तृत है। ज्यादातर भूकम्प भूमध्य रेखा के पास आते हैं।
मध्य महाद्वीपीय पेटी की ही एक शाखा नील नदी से होकर अफ्रीका के पूर्वी भाग में दक्षिण तक फैली है। इस पेटी में पूर्वी अफ्रीका के दरार घाटी क्षेत्र के भूकम्प शामिल किए जाते हैं। यहाँ पर खासकर भ्रंशमूलक भूकम्प आते हैं। अदन की खाड़ी से एक अन्य उपशाखा अरब सागर में जाती है। हिन्दमहासागर के भूकम्प भी इसी पेटी में शामिल किए जाते हैं।
References
- भौतिक भूगोल, डॉ. सविन्द्र सिंह
FAQs
प्रशान्त महासागर तटीय पेटी में भूकम्प अधिक इसलिए आते हैं क्योंकि यह क्षेत्र सागर और स्थल का मिलन बिन्दु है, और यहां नवीन वलित पर्वत और ज्वालामुखी क्षेत्र पाये जाते हैं। इसके अलावा, यहाँ विनाशी प्लेट सीमाओं का अपसरण होता है, जिससे भूकम्प उत्पन्न होते हैं।
मध्य महाद्वीपीय पेटी, जिसे भूमध्य सागरीय पेटी भी कहा जाता है, में भूकम्प मुख्य रूप से सन्तुलनमूलक और भ्रंशमूलक कारणों से होते हैं। इस क्षेत्र में यूरोप के आल्प्स, एशिया के हिमालय, और बर्मा की पहाड़ियों के भूकम्प शामिल हैं।
विश्व में सबसे अधिक भूकम्प प्रशान्त महासागर तटीय पेटी में आते हैं। यहाँ पर पुरे विश्व के 63 प्रतिशत भूकम्प आते हैं, जो इस क्षेत्र को सबसे व्यापक भूकम्पीय क्षेत्र बनाता है।
हिमालय क्षेत्र में भूकम्प अधिक इसलिए आते हैं क्योंकि यह क्षेत्र प्लेट टक्कर क्षेत्र में स्थित है। भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट की टक्कर से यहाँ भूगर्भीय गतिविधियाँ होती हैं, जिससे भूकम्प आते हैं।
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