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दक्षिणी दोलन (Southern Oscillation) एक महत्वपूर्ण जलवायु घटना है, जिसका अध्ययन भूगोल के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर जब वे प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे UGC-NET, UPSC, RPSC, KVS, NVS, DSSSB, HPSC, HTET, RTET, UPPCS, BPSC आदि की तैयारी कर रहे हों। यह घटना प्रशांत महासागर के वायुमंडलीय दाब में परिवर्तन को दर्शाती है और इसके प्रभाव को समझना विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के भूगोल विषय में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। इस लेख में हम दक्षिणी दोलन के विभिन्न पहलुओं, इसके प्रमुख घटकों और इसके वैश्विक जलवायु पर पड़ने वाले प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे, जो विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होगा।
Table of contents
दक्षिणी दोलन (Southern Oscillation) एक महत्वपूर्ण जलवायु घटना है जो प्रशांत महासागर के वायुमंडलीय दाब में परिवर्तन को दर्शाती है। इसे समझने के लिए हमें इसके निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना होगा।
दक्षिणी दोलन क्या है?
दक्षिणी दोलन एक प्रकार का जलवायु पैटर्न है जिसमें प्रशांत महासागर के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में वायुमंडलीय दाब में परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन समुद्र के सतही तापमान और वायुमंडलीय दाब में उतार-चढ़ाव के कारण होता है। इसे सबसे पहले सर गिल्बर्ट वॉकर ने 1920 के दशक में पहचाना था।
दक्षिणी दोलन के प्रमुख घटक
अल नीनो (El Niño)
परिभाषा: अल नीनो एक ऐसी घटना है जिसमें प्रशांत महासागर के पूर्वी हिस्से में समुद्र का सतही तापमान सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है।
प्रभाव: इससे वायुमंडलीय दाब कम हो जाता है और वैश्विक जलवायु पर प्रभाव पड़ता है। यह स्थिति आमतौर पर हर 2-7 साल में होती है और 9-12 महीने तक चल सकती है।
प्रभाव क्षेत्र: अल नीनो के दौरान दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर भारी वर्षा और बाढ़ आ सकती है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में सूखा पड़ सकता है।
ला नीना (La Niña)
परिभाषा: ला नीना अल नीनो के विपरीत स्थिति है, जिसमें प्रशांत महासागर के पूर्वी हिस्से में समुद्र का सतही तापमान सामान्य से ठंडा हो जाता है।
प्रभाव: इससे वायुमंडलीय दाब बढ़ जाता है और जलवायु पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। यह स्थिति भी हर 2-7 साल में होती है और 9-12 महीने तक चल सकती है।
प्रभाव क्षेत्र: ला नीना के दौरान दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर सूखा पड़ सकता है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में भारी वर्षा हो सकती है।
दक्षिणी दोलन का प्रभाव
दक्षिणी दोलन का प्रभाव वैश्विक जलवायु पर पड़ता है। यह विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा, तापमान और तूफानों की तीव्रता को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए:
भारत: अल नीनो के दौरान भारत में मानसून कमजोर हो सकता है, जिससे सूखा पड़ सकता है। वहीं, ला नीना के दौरान मानसून मजबूत हो सकता है, जिससे अधिक वर्षा हो सकती है।
अमेरिका: अल नीनो के दौरान अमेरिका के दक्षिणी हिस्सों में अधिक वर्षा हो सकती है, जबकि उत्तरी हिस्सों में सूखा पड़ सकता है।
अफ्रीका: अल नीनो के दौरान पूर्वी अफ्रीका में सूखा पड़ सकता है, जबकि दक्षिणी अफ्रीका में अधिक वर्षा हो सकती है।
दक्षिणी दोलन का मापन
दक्षिणी दोलन को मापने के लिए वायुमंडलीय दाब के अंतर को देखा जाता है। इसे दक्षिणी दोलन सूचकांक (Southern Oscillation Index, SOI) कहते हैं। SOI को ताहिती और डार्विन (ऑस्ट्रेलिया) के बीच वायुमंडलीय दाब के अंतर के आधार पर मापा जाता है। सकारात्मक SOI का मतलब ला नीना और नकारात्मक SOI का मतलब अल नीनो होता है।
जब ताहिती में वायुमंडलीय दाब कम और डार्विन में वायुमंडलीय दाब अधिक होता है, तो SOI नकारात्मक होता है, जो अल नीनो की स्थिति को दर्शाता है। जब ताहिती में वायुमंडलीय दाब अधिक और डार्विन में वायुमंडलीय दाब कम होता है, तो SOI सकारात्मक होता है, जो ला नीना की स्थिति को दर्शाता है
सारांश
दक्षिणी दोलन एक जटिल जलवायु घटना है जो प्रशांत महासागर के वायुमंडलीय दाब में परिवर्तन के कारण होती है। इसके दो प्रमुख घटक अल नीनो और ला नीना हैं, जो वैश्विक जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। यह घटना विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा, तापमान और तूफानों की तीव्रता को प्रभावित करती है।
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प्रश्न 1:
दक्षिणी दोलन किस महासागर के वायुमंडलीय दाब में परिवर्तन से संबंधित है?
a) अटलांटिक महासागर
b) प्रशांत महासागर
c) हिंद महासागर
d) आर्कटिक महासागर
प्रश्न 2:
अल नीनो के दौरान प्रशांत महासागर के किस हिस्से का सतही तापमान सामान्य से अधिक होता है?
a) पूर्वी
b) पश्चिमी
c) उत्तरी
d) दक्षिणी
प्रश्न 3:
ला नीना की स्थिति में वायुमंडलीय दाब किस प्रकार से प्रभावित होता है?
a) दाब घटता है
b) दाब बढ़ता है
c) दाब में कोई परिवर्तन नहीं होता
d) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4:
दक्षिणी दोलन का प्रमुख सूचकांक क्या कहलाता है?
a) ENSO
b) SOI
c) PDO
d) NAO
प्रश्न 5:
अल नीनो की स्थिति में भारत में मानसून पर क्या प्रभाव पड़ता है?
a) मानसून कमजोर होता है
b) मानसून मजबूत होता है
c) मानसून पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता
d) मानसून अधिक लंबा होता है
प्रश्न 6:
ला नीना के दौरान किस क्षेत्र में भारी वर्षा हो सकती है?
a) दक्षिणी अफ्रीका
b) ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया
c) उत्तरी अमेरिका
d) यूरोप
प्रश्न 7:
दक्षिणी दोलन की खोज सबसे पहले किसने की थी?
a) चार्ल्स डार्विन
b) अल्बर्ट आइंस्टीन
c) सर गिल्बर्ट वॉकर
d) न्यूटन
प्रश्न 8:
अल नीनो और ला नीना के प्रभाव को मापने के लिए किस सूचकांक का उपयोग किया जाता है?
a) वायुमंडलीय तापमान सूचकांक
b) समुद्र स्तर सूचकांक
c) दक्षिणी दोलन सूचकांक (SOI)
d) सौर विकिरण सूचकांक
प्रश्न 9:
अल नीनो की स्थिति में अमेरिका के दक्षिणी हिस्सों में क्या प्रभाव देखा जा सकता है?
a) सूखा
b) अधिक वर्षा
c) ठंडी हवाएँ
d) बर्फबारी
प्रश्न 10:
ला नीना के दौरान प्रशांत महासागर के पूर्वी हिस्से का सतही तापमान कैसा होता है?
a) सामान्य से अधिक गर्म
b) सामान्य से अधिक ठंडा
c) सामान्य से अधिक नम
d) सामान्य के बराबर
उत्तर:
- b) प्रशांत महासागर
- a) पूर्वी
- b) दाब बढ़ता है
- b) SOI
- a) मानसून कमजोर होता है
- b) ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया
- c) सर गिल्बर्ट वॉकर
- c) दक्षिणी दोलन सूचकांक (SOI)
- b) अधिक वर्षा
- b) सामान्य से अधिक ठंडा
FAQs
क्षिणी दोलन एक जलवायु घटना है, जिसमें प्रशांत महासागर के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में वायुमंडलीय दाब में परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन समुद्र के सतही तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण होता है। इसके दो प्रमुख घटक अल नीनो और ला नीना हैं। अल नीनो के दौरान पूर्वी प्रशांत में सतही तापमान बढ़ता है, जबकि ला नीना के दौरान यह घटता है। दक्षिणी दोलन का वैश्विक जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, जैसे मानसून, वर्षा और सूखा।
अल नीनो और ला नीना दक्षिणी दोलन के दो प्रमुख घटक हैं। अल नीनो के दौरान प्रशांत महासागर के पूर्वी हिस्से का सतही तापमान सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है, जिससे वैश्विक जलवायु में परिवर्तन होता है, जैसे कि भारत में कमजोर मानसून और दक्षिण अमेरिका में भारी वर्षा। दूसरी ओर, ला नीना के दौरान वही क्षेत्र सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है, जिससे मानसून मजबूत हो सकता है और दक्षिण-पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया में भारी वर्षा हो सकती है।
क्षिणी दोलन सूचकांक (SOI) एक मापन है जो दक्षिणी दोलन की तीव्रता और दिशा को दर्शाता है। यह सूचकांक ताहिती और डार्विन (ऑस्ट्रेलिया) के बीच वायुमंडलीय दाब के अंतर पर आधारित है। जब ताहिती में दाब कम और डार्विन में अधिक होता है, तो SOI नकारात्मक होता है, जो अल नीनो की स्थिति को दर्शाता है। जब ताहिती में दाब अधिक और डार्विन में कम होता है, तो SOI सकारात्मक होता है, जो ला नीना की स्थिति को इंगित करता है।
अल नीनो और ला नीना का भारत के मानसून पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। अल नीनो के दौरान प्रशांत महासागर के पूर्वी हिस्से में सतही तापमान बढ़ने से भारत में मानसून कमजोर हो सकता है, जिससे सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। दूसरी ओर, ला नीना के दौरान सतही तापमान घटने से मानसून मजबूत हो सकता है, जिससे सामान्य से अधिक वर्षा हो सकती है। यह प्रभाव कृषि, जल संसाधन और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है।