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इस लेख को पढ़ने के बाद आप डेविस के ढाल पतन सिद्धान्त (Slope Decline Theory by Davis) को विस्तार से जन पाएंगे।
डेविस महोदय ने ही ढालों के विकास में चक्रीय व्यवस्था को प्रतिपादित किया था। इनके अनुसार अपरदन चक्र की युवावस्था में नदी द्वारा निम्नवर्ती अर्थात् लम्बवत अपरदन तथा अपक्षय के कारण तीव्र उत्तल ढाल का विकास होता है। इस अवस्था में ढाल का निवर्तन कम होता है तथा पतन बिल्कुल नहीं होता है।
प्रौढ़ावस्था में नदी द्वारा पार्श्ववर्ती अपरदन अधिक सक्रिय हो जाता है, परन्तु जलविभाजकों के शीर्षों का भी अपरदन होता है। इस प्रकार जलविभाजकों के नाश (divide wasting) के कारण ढाल के कोण में कमी होने लगती है तथा निष्कोण वक्र (smooth curve) वाली परिच्छेदिका का विकास होने लगता है। इस अवस्था में ढाल प्रवणित (graded slope) हो जाता है, क्योंकि सब जगह ढाल इतना होता है कि अपक्षय से प्राप्त मलबा का परिवहन आसानी से हो जाता है।
जीर्णावस्था या वृद्धा अवस्था में ढालों का पतन इतना अधिक हो जाता है कि उनका कोण कहीं भी 5 से अधिक नहीं रह पाता है। समस्त भाग एक समप्राय मैदान में बदल जाता है, जिस पर अवतल ढाल का विकास हो जाता है।
डेविस ने आर्द्र जलवायु में ढाल के ऊपरी भाग में गोलाकार उत्तलता (rounded convexity) को देखने के बाद प्रतिपादित किया कि उक्त जलवायु में ढाल की शिखरीय उत्तलता (summital convexity) का निर्माण मृदा सर्पण (soil creep) के कारण होता है।
डेविस के अनुसार ढाल के ऊपरी भाग में गुरुत्त्व के कारण क्रम से एकान्तर रूप में मिट्टियों के आयतन में प्रसार (dilatation) एवं संकुचन (contraction) होने से ढाल परिच्छेदिका के निचले भाग की ओर मृदा सर्पण होता है। ढाल के ऊपरी भाग में वृष्टि धुलन (rain-wash, ऊपरी भाग से निचले भाग की ओर इसमें वृद्धि होती है) से मृदा सर्पण अधिक होता है जिस कारण पहाड़ी या जल विभाजक के शिखर पर उत्तलता का आविर्भाव होता है।
डेविस ने प्रवणित अपशिष्ट चादर (graded waste sheet, ढाल के ऊपर चट्टान चूर्ण का आवरण) तथा प्रवणित घाटी-पार्श्व (graded velley sides) की संकल्पना का भी प्रतिपादन किया है।
उनके अनुसार ढाल परिच्छेदिका से चट्टान चूर्ण के स्थानान्तरण के लिए आवश्यक परिवहन सामर्थ्य तथा परिवहन कारक के बल की वास्तविक सामर्थ्य में जब सन्तुलन हो जाता है तो उस स्थिति में शैल चूर्ण आवरण को प्रवणित अपशिष्ट चादर कहते हैं। क्लिफ ढाल से शैल चूर्ण का स्थानान्तरण तीव्र गति से होता है क्योंकि अपक्षय तथा ऊपरी भाग से मृदा सर्पण द्वारा प्राप्त शैलचूर्ण की मात्रा परिवहनात्मक बल की सामर्थ्य की तुलना में कम होती है। परिणामस्वरूप प्रवणित अपशिष्ट चादर की स्थिति ढाल की परिच्छेदिका के आधार से प्रारम्भ होती है तथा ऊपरी भाग की ओर क्रमशः अग्रसर होती है।
अपरदन चक्र की अन्तिम अवस्था में सम्पूर्ण ढाल परिच्छेदिका प्रवणित हो जाती है तथा पहाड़ी शीर्ष से ढाल के आधार तक का सम्पूर्ण मार्ग गतिशील (मन्दगति से) शैल चूर्ण आवरण से ढक जाता है तथा पहाड़ी शीर्ष समाप्त हो जाता है। इस तरह डेविस द्वारा संकल्पित प्रवणित ढाल की परिच्छेदिका के किसी भी भाग पर वहाँ पर अपक्षय से जितना पदार्थ प्राप्त होता है तथा ऊपरी ढाल से मृदा सर्पण द्वारा जितना प्राप्त होता है उन सभी का निचले ढाल की ओर स्थानान्तरण हो जाता है। इस तरह प्रवणित ढाल के हर बिन्दु पर मलवा आपूर्ति तथा उसके स्थानान्तरण में सामंजस्य रहता है।
प्रवणित ढाल परिच्छेदिका प्रारम्भिक अवस्था में तीव्र ढाल वाली होती है तथा उस पर शैल चूर्ण का आकार बड़ा होता है और उनकी तथा शैल चूर्ण आवरण की मोटाई सामान्य होती है। जैसे- जैसे अपरदन चक्र की अवस्था अग्रसर होती है वैसे-वैसे प्रवणित ढाल परिच्छेदिका मन्द ढाल वाली होती जाती है तथा उस पर मलवा आवरण की मोटाई अधिक होती जाती है।
इसी तरह घाटी पार्श्व ढाल की तीव्रता चक्र के अग्रसर होने पर घटती जाती है तथा ढाल शीर्ष के उत्तलता एवं निचले भाग पर अवतलता का विस्तार होता जाता है। इस तरह ढाल कोण में पतन होता है। उदाहरण स्वरूप एक मृदा आवरण एवं वनाच्छादित पर्वत, पहाड़ी या टीले को लिया जा सकता है। इनके शिखरीय उत्तल भाग से मृदा सर्पण द्वारा जितना पदार्थ प्राप्त होता है उतना ढाल के आधार से स्थानान्तरित नहीं हो पाता है अतः शिखर वाला भाग अत्यधिक अनाच्छादित (denude) हो जाता है और ढाल का कोण कम होता जाता है।
ज्ञातव्य है कि मलबा आवरण निचली शैल को अपक्षय के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है तथा मलबा आवरण की मोटाई निचले ढाल की ओर बढ़ती जाती है एवं ऊपरी भाग में कम होती है, अतः ऊपरी भाग का अपक्षय अधिक होता है। डेविस ने शुष्क प्रदेशों में ढाल के ऐसे निवर्तन का प्रतिपादन किया है जिसमें ढाल का कोण स्थिर रहता है तथा निचले भाग में पेडीमेण्ट का निर्माण होता है।
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