अवसादी शैल (Sedimentary Rock)
अवसादी शैल (Sedimentary Rock) का निर्माण चट्टानों के टूटे हुए टुकड़ों (अवसादों) के जमा होने से होता है। “अवसादी” शब्द लैटिन भाषा के “सेडिमेंटम” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “नीचे बैठना”। यह शैल प्राचीन चट्टानों और खनिजों के कणों के संगठित होकर परतों में जमा होने से बनती है। अवसादी शैल को “परतदार चट्टान” भी कहा जाता है क्योंकि इनमें विभिन्न परतें स्पष्ट रूप से पाई जाती हैं।
अवसादी शैल बनने की प्रक्रिया (Formation of Sedimentary Rock)
अवसादी शैल (Sedimentary Rock) का निर्माण कई चरणों में होता है:
- चट्टानों का टूटना और अवसादों का बनना:
चट्टानों के अपक्षय (weathering) और अपरदन (erosion) के कारण टूटे हुए टुकड़े या कण (अवसाद) बनते हैं। ये कण मिट्टी, बालू और मलबे के रूप में होते हैं। - अवसादों का परिवहन और जमाव:
नदियों, हवा और हिमनदों जैसे प्राकृतिक कारक इन अवसादों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते हैं। यह जमाव सामान्यतः जलाशयों, नदियों के तल, सागरों और झीलों में होता है। - परतों का बनना:
अवसादों की अलग-अलग परतें एक के ऊपर एक जमती रहती हैं। भारी अवसाद नीचे बैठते हैं, और हल्के कण ऊपर रहते हैं। - दबाव और संयोजन:
जैसे-जैसे परतों का भार बढ़ता है, निचली परतें दबाव में आकर संगठित हो जाती हैं। सिलिका, कैल्साइट और लौह यौगिक जैसे संयोजक तत्व (cementing elements) इन परतों को जोड़ने में मदद करते हैं।
अवसादी शैल की संरचना और विशेषताएं
अवसादी शैलों (Sedimentary Rocks) की संरचना और गुण उन्हें अन्य चट्टानों से अलग बनाते हैं।
- जीवावशेषों की उपस्थिति:
- अवसादी शैलों (Sedimentary Rock) में अक्सर जीवाश्म (fossils) पाए जाते हैं, जो पुराने पौधों और जीवों के अवशेष होते हैं।
- इन जीवाश्मों के आधार पर शैल के निर्माण काल का पता लगाया जा सकता है।
- भूपृष्ठ पर अधिक विस्तार:
- अवसादी शैल पृथ्वी की सतह का लगभग 75% भाग कवर करती है।
- हालांकि, ये शैल पृथ्वी की क्रस्ट (भूपर्पटी) में मात्र 5% का ही योगदान देती हैं।
- परतदार संरचना:
- इन शैलों में अवसाद की विभिन्न परतें स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं।
- हालांकि, ये शैल रवेदार (क्रिस्टलीय) नहीं होती हैं।
- क्षैतिज स्थिति:
- यह शैल क्षैतिज रूप में बहुत कम मिलती है।
- दबाव के कारण इनकी परतों में मोड़ और दरारें देखी जाती हैं।
- मुलायम और कठोर शैलें:
- अवसादी शैलों (Sedimentary Rocks) में मुलायम प्रकार की शैलें, जैसे चीका मिट्टी और पंक पाई जाती हैं।
- कुछ शैलें कड़ी होती हैं, जैसे बालूका पत्थर।
- पानी की भेद्यता और अवशोषण:
- कुछ अवसादी शैलें, जैसे बालूका पत्थर, पानी को अवशोषित कर सकती हैं।
- जबकि अन्य, जैसे चीका मिट्टी, पानी को रोकती हैं।
- पंक फटन (Mud Crack):
- बाढ़ के बाद जलोढ़ मिट्टी सूखने पर उसमें बहुभुज आकार की दरारें पड़ती हैं।
- ये दरारें खेतों की मिट्टी को कठोर बना देती हैं।
- संयोजक तल और संस्तरण:
- दो परतों के मिलन बिंदु को “संयोजक तल” कहते हैं।
- दो परतों के संस्तरण के सहारे परतों के पारस्परिक अनुरूप सम्बन्ध को ‘समविन्यास (conformity) कहते हैं।
- जब झुकी हुई परतों के ऊपर क्षैतिज रूपों में परतों का जमाव होता है, तो ऊपरी परत तथा झुकी परतों के साथ कोणिक झुकाव होता है। परतों के इस प्रकार के सम्बन्ध को असमविन्यास (unconformity) कहते हैं।
- जब दो परतें समानान्तर होती हैं, परन्तु उनके स्वभाव एवं रचना में विषमता मिलती है, तो इस प्रकार के विन्यास को अपसमविन्यास’ (disconformity) कहते हैं।
अवसादी चट्रटान (Sedimentary Rock) का रचना सामग्री के आधार पर वर्गीकरण
अवसादी शैल (Sedimentary Rock) का निर्माण विभिन्न प्रकार के पदार्थों और अवसादों से होता है। अपक्षय की प्रक्रिया के कारण चट्टानों का विघटन और टूट-फूट होती है, जिससे वे छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो जाती हैं। इन टुकड़ों को चट्टान चूर्ण (Fragmental Rock Materials) या चट्टानों के टुकड़ों से प्राप्त अवसाद (Clastic Materials) कहते हैं।
इसके अतिरिक्त, कुछ खनिज पदार्थ जल में घुले होते हैं, जिन्हें घुलनशील रासायनिक पदार्थ कहा जाता है। साथ ही, कुछ अवसाद जीवों और वनस्पतियों के अवशेषों से बनते हैं, जिन्हें कार्बनिक पदार्थ या जैविक पदार्थ कहा जाता है।
इन तीन प्रकार के पदार्थों (चट्टान चूर्ण, घुलनशील रासायनिक पदार्थ, और कार्बनिक पदार्थ) के आधार पर अवसादी शैलों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है।
(1) चट्टान चूर्ण से निर्मित (clastic rock)
(2) रासायनिक पदार्थों से निर्मित (non-clastic rock)
(3) कार्बनिक तत्वों से निर्मित (carbonaceous rock)
1. शैलचूर्ण से निर्मित अवसादी शैल (Clastic or Mechanically Formed Rocks)
यांत्रिक अपक्षय की प्रक्रिया के कारण चट्टानों में विघटन होता रहता है, जिससे वे कमजोर होकर छोटे और बड़े टुकड़ों में टूट जाती हैं। यह विघटन अवसादी चट्टानों के निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराता है। जल, वायु, हिमनद, और सागरीय लहरों जैसे अपरदन साधन इन पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाकर जमा करते हैं। परिवहन के दौरान रगड़ से इन पदार्थों का आकार बदलता है। जब ये पदार्थ सागर, झील, या नदी में जमते हैं, तो परतें संगठित होकर शैल बन जाती हैं। इस प्रकार की चट्टानों में बालुका पत्थर, कांग्लोमेरेट, सिल्ट, चीका मिट्टी और लोयस प्रमुख हैं।
(i) बालुका पत्थर (Sandstone):
निर्माण प्रक्रिया:
बालुका पत्थर मुख्य रूप से बालू (रेत) के कणों से बनता है। बालू के कण क्वार्ट्ज खनिज से निर्मित होते हैं और इनके आकार परिवहन साधनों की शक्ति पर निर्भर करते हैं। बालू को इसके कणों के व्यास के आधार पर पाँच प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
बालू के प्रकार | कणों की व्यास (मिमी) |
बहुत बड़े कणों वाला | 1 |
बड़े कणों वाला | 1/2 |
मध्यम कणों वाला | 1/4 |
बारीक कणों वाला | 1/8 |
बहुत बारीक कणों वाला | 1/16 |
संयोजन एवं संगठन:
रेत के कण संयोजक पदार्थों (सिलिका, कैल्शियम, लोहे के ऑक्साइड, और चीका) द्वारा संगठित होकर बालुका पत्थर का निर्माण करते हैं। संयोजक पदार्थों की मात्रा के आधार पर बालुका पत्थर का रंग बदलता है।
- लोहे के ऑक्साइड से लाल या भूरे रंग का।
- कैल्शियम कार्बोनेट से सफेद या भूरा।
- सिलिका से निर्मित पत्थर अधिक कठोर और अपरदन-रोधी होता है।
कभी-कभी बालुका पत्थर कमजोर संगठित होता है, जिससे यह अपक्षय के कारण अपने कणों में टूटने लगता है। इसकी प्रवेश्य प्रकृति के कारण अधिकांश आर्टीज़ियन कुएं बालुका पत्थर में पाए जाते हैं।
(ii) कांग्लोमेरेट (Conglomerate):
निर्माण प्रक्रिया:
कांग्लोमेरेट का निर्माण रेत के साथ कंकड़ और चिकने गोल पत्थरों (पेब्बल) के सम्मिश्रण से होता है।
- कंकड़: चिकने पत्थर जिनकी व्यास 4 मिमी तक होती है।
- बोल्डर: बड़े पत्थर जिनकी व्यास 256 मिमी तक होती है।
चीका मिट्टी द्वारा इन कणों को जोड़ा जाता है। यदि संगठन क्वार्ट्ज खनिज से हो, तो कांग्लोमेरेट कठोर और अपरदन-रोधी बन जाता है। गोल कंकड़ से कांग्लोमेरेट और कोणीय कंकड़ से ब्रेसिया बनती है।
(iii) चीका मिट्टी एवं शेल (Clay Rock and Shale):
निर्माण प्रक्रिया:
चीका मिट्टी का निर्माण चट्टान-चूर्ण के बारीक कणों के निक्षेपण से होता है। यह प्रायः सागर, झील, या बाढ़ग्रस्त नदियों के किनारों पर बनती है।
- सिल्ट: कणों का व्यास 1/32 से 1/256 मिमी।
- चीका: कणों का व्यास 1/256 से 1/8192 मिमी।
चीका मिट्टी मुलायम और अप्रवेश्य होती है। इसका निर्माण काओलिन खनिज से होता है, जिससे यह रासायनिक अपक्षय के प्रति प्रतिरोधी होती है।
शेल:
सिल्ट और चीका के संगठित होने से शेल का निर्माण होता है। इसमें पतली परतें (लैमिना) पाई जाती हैं, जो आसानी से टूट जाती हैं। शेल की अप्रवेश्य प्रकृति के कारण विश्व के अधिकांश तेल भंडार इन्हीं चट्टानों के ऊपर पाए जाते हैं।
2. रासायनिक पदार्थों से बनी शैल
बहते हुए जल में कुछ रासायनिक घोलक पदार्थ मिल जाते हैं। जब यह जल अन्य चट्टानों (विशेषकर धरातल के नीचे) के संपर्क में आता है, तो चट्टानों के घुलनशील तत्व पानी में घुल जाते हैं। बाद में, जब दबाव कम होता है और जल वाष्पित हो जाता है या जल की प्रवाह गति धीमी हो जाती है, तो ये घुले हुए पदार्थ जमने लगते हैं। इसी प्रक्रिया से रासायनिक परतदार शैल का निर्माण होता है। शेलखरी (Gypsum) और नमक की चट्टान (Rock Salt) इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
3. कार्बनिक तत्वों से निर्मित शैल
ये शैल जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों के अवशेषों से बनती हैं। ये अवशेष उपयुक्त स्थानों पर धीरे-धीरे जमा होते हैं और समय के साथ ठोस चट्टानों का रूप ले लेते हैं। चूने और कार्बन की मात्रा के आधार पर इन शैलों को तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया है:
(i) चूना प्रधान शैल (Calcareous Rocks)
चूना प्रधान शैलों का निर्माण मुख्यतः जलाशयों, झीलों या सागरों में रहने वाले जीवों के अस्थिपंजर और वनस्पतियों के चूनेदार अवशेषों से होता है।
- निर्माण प्रक्रिया:
- जल में घुली कार्बन डाइऑक्साइड रासायनिक अपक्षय से कैल्शियम को अलग करके कैल्शियम बाईकार्बोनेट बनाती है।
- यह कैल्शियम बाईकार्बोनेट नदियों द्वारा सागर तक पहुँचता है, जहाँ प्रवाल (Corals) और अन्य जीव इसे ग्रहण करते हैं।
- इन जीवों की मृत्यु के बाद उनके अस्थिपंजर सागर में जमा होकर चूना पत्थर (Limestone) का निर्माण करते हैं।
- विशेषताएँ:
- चूना पत्थर पतली या मोटी परतों में पाया जाता है।
- इसके कण महीन या बड़े हो सकते हैं।
- यह जल में घुलनशील होने के कारण रासायनिक अपक्षय के लिए अत्यधिक संवेदनशील होता है, विशेषतः आर्द्र जलवायु में।
- जब इसमें मैग्नीशियम और कैल्शियम दोनों के कार्बोनेट होते हैं, तो इसे डोलोमाइट कहते हैं। डोलोमाइट, लाइमस्टोन की तुलना में कम घुलनशील होता है।
- भवन निर्माण में इनका व्यापक उपयोग होता है।
- खरिया मिट्टी (Chalk):
- यह लाइमस्टोन का मुलायम और प्रवेश्य प्रकार है।
- इसका निर्माण फोरामिनीफेरा जैसे सूक्ष्म जीवों के कैल्शियम कार्बोनेट से होता है।
- इसकी संरचना में जल शीघ्र प्रवेश करता है, जिससे चट्टान के ऊपरी भाग का अपरदन कम होता है।
(ii) कार्बन प्रधान शैल (Carbonaceous Rocks)
यह शैल मुख्यतः वनस्पतियों के अवशेषों के जमा होने और संगठित होने से बनती है।
- निर्माण प्रक्रिया:
- भूगर्भीय हलचलों के कारण वनस्पति का हिस्सा पृथ्वी के अंदर चला जाता है।
- इसके ऊपर लगातार तलछट जमा होने और अत्यधिक दबाव एवं ताप के कारण वनस्पति का रूप बदलकर ठोस चट्टान बनता है।
- इस प्रक्रिया में क्रमशः पीट → लिगनाइट → बिटुमिनस कोयला → एन्थ्रासाइट कोयला बनता है।
- विशेषताएँ:
- कोयला परतों (Coal Seams) में पाया जाता है।
- यह स्थलाकृति निर्माण में तो सहायक नहीं है, परंतु इसका आर्थिक महत्व अत्यधिक है।
(iii) सिलिका प्रधान शैल (Siliceous Rocks)
सिलिका प्रधान शैल मुख्यतः सिलिका की उच्च मात्रा वाले जीवों और पौधों के अवशेषों से बनती है।
- निर्माण प्रक्रिया:
- रेडियोलेरिया और स्पंज जीवों के साथ डायटम पौधों के अवशेष सिलिका प्रधान चट्टान बनाते हैं।
- गेसर के गर्म जल से निकला गेसराइट भी सिलिका का जमाव है।
- विशेषताएँ:
- इसका रंग जमा अशुद्धियों के कारण सफेद, भूरा या पीला हो सकता है।
- गेसराइट का जमाव मुख्यतः गेसर के आस-पास होता है
ये शैल न केवल भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि भवन निर्माण और अन्य आर्थिक गतिविधियों में भी अहम भूमिका निभाती हैं।
निर्माण में सहायक कारकों और जमाव स्थलों के आधार पर अवसादी चट्टान (Sedimentary Rock) का वर्गीकरण
परतदार शैल के जमाव के लिए विभिन्न प्रकार के अवसाद आवश्यक होते हैं। अपरदन और परिवहन की विभिन्न प्रक्रियाएँ इन पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाती हैं। आमतौर पर अवसादी शैल का जमाव झीलों, समुद्रों या नदियों के किनारों पर होता है। इन शैलों के जमाव में हवा, पानी, समुद्री लहरें और हिमानी जैसे कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी आधार पर अवसादी शैल को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है।
(i) जलीय अथवा जल निर्मित शैल (Argillaceous or Aqueous Sedimentary Rock)
जब नदियाँ तलछट को एक स्थान से बहाकर किनारे, झीलों या सागरीय क्षेत्रों में जमा करती हैं, तो जलज शैल का निर्माण होता है। इसे जलज (Aqueous) चट्टान इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका जमाव जल के भीतर होता है। ‘Aqueous’ शब्द लैटिन के ‘Aqua’ से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘जल’ होता है। जलज शैल को कभी-कभी आर्जीलैसियस शैल भी कहा जाता है क्योंकि इसमें चीका (Clay) की प्रधानता होती है। ‘Argill’ लैटिन का शब्द है, जिसका अर्थ ‘क्ले’ (चीका) होता है। तलछट का जमाव विभिन्न स्थानों पर होता है, जिसके आधार पर जलज शैल को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:
(अ) सागरीय जलज परतदार शैल
जब तलछट का जमाव सागर में होता है, तो इसे सागरीय जलज परतदार शैल कहते हैं। इसमें कणों का जमाव उनके आकार और वजन के अनुसार होता है। किनारे के पास बड़े कंकड़, मैनूल (Granules), बालू, सिल्ट, चीका और चूना जमा होते हैं, जबकि समुद्र की गहराई की ओर छोटे कण पानी में मिश्रित रूप में लटके रहते हैं।
(ब) झीलकृत शैल
जब तलछट का जमाव झील की तली में होता है, तो इस शैल को झीलकृत शैल कहते हैं। यह चट्टान तीन स्थितियों में सतह पर दिख सकती है: (1) जब झील का पानी सूख जाए, (2) जब झील की तली ऊपर उठ जाए, और (3) जब झील पूरी तरह से तलछट से भर जाए। झीलकृत शैल में कणों का क्रम सागरीय जमाव के समान होता है।
(स) नदी कृत शैल
जब तलछट का जमाव नदियों की घाटियों या उनके किनारे पर होता है, तो इसे नदी कृत शैल कहते हैं। बाढ़ के दौरान हर साल नदियों के किनारों पर जलोढ़ मिट्टी जमा हो जाती है। भारत में गंगा और यमुना के मैदानों में कांप का विस्तार इसी प्रकार के जमाव का प्रतीक है।
(ii) वायुनिर्मित शैल (एओलियन या वायुप्रेरित अवसादी शैल)
गर्म और शुष्क क्षेत्रों में यांत्रिक अपक्षय के कारण चट्टानों के विघटन और विखंडन से चट्टान का चूर्ण बनता है। वायु इसे एक स्थान से उड़ाकर दूसरे स्थान पर जमा कर देती है। इस परिवहन के दौरान कणों की आपस में टक्कर और रगड़ के कारण उनका आकार बारीक हो जाता है, जिससे हवा इन्हें आसानी से उड़ाकर दूरस्थ स्थानों पर जमा कर देती है। निरंतर जमाव के परिणामस्वरूप विभिन्न अवसादी परतें बन जाती हैं। कभी-कभी वायुनिर्मित शैल में परतों का कोई विशेष क्रम नहीं होता।
‘लोयस’
‘लोयस’ (Loess) वायुनिर्मित शैल का प्रमुख उदाहरण है। यह बहुत बारीक कणों का जमा हुआ ढेर होता है जो जमीन पर फैल जाता है। इसमें परतों का क्रम स्पष्ट रूप से नहीं होता और इसका संगठन भी ठीक से नहीं होता, जिससे यह प्रवेश्य और मुलायम चट्टान बन जाती है। इसमें पानी आसानी से प्रवेश करता है, जिससे अपरदन की प्रक्रिया तेज़ी से होती है।
इसकी एक विशेषता यह है कि यह लंबवत रूप में क्लिफ (दीवार) के आकार में खड़ा रहता है। लोयस का सबसे बड़ा विस्तार उत्तरी चीन में देखा जाता है, जहाँ इसकी गहराई काफी अधिक होती है और इसका रंग पीला होता है। चूना की अधिकता के कारण यह बारीक दोमट मिट्टी जैसी बन जाती है। जब नदियाँ लोयस से बहती हैं तो गहरी घाटियाँ बन जाती हैं और किनारे की दीवारें ढाल के रूप में दिखाई देती हैं।
इसके अलावा, लोयस का जमाव मध्य यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य क्षेत्र में भी पाया जाता है। वायुनिर्मित शैल को कभी-कभी एरोनैसियस या बालुका शैल भी कहा जाता है (जहाँ ‘एरेनासियस’ शब्द लैटिन शब्द ‘एरेना’ से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘बालू’ होता है)।
(iii) हिमानीकृत शैल (ग्लेशियल रॉक्स)
हिमनद द्वारा लाए गए पदार्थों में शिलाखंड, कंकड़, पत्थर, रेत, मिट्टी आदि शामिल होते हैं। इन सभी पदार्थों को मिलाकर ग्लेशियल ड्रिफ्ट कहा जाता है। हिमोड़ शब्द का उपयोग हिमनद द्वारा छोड़े गए पदार्थों की आकृति के लिए किया जाता है। हिमनद द्वारा छोटे और बड़े कणों वाले पदार्थों का मिश्रण होता है, इसलिए इनमें स्तर (stratification) नहीं होता, यानी इन पदार्थों में परतें नहीं मिलतीं। इन्हें टिल (till) कहते हैं, जो अवर्गीकृत (unsorted) होते हैं, मतलब छोटे-बड़े कण मिलकर एक साथ होते हैं।
हिम ड्रिफ्ट दरअसल हिमनद द्वारा छोड़े गए पदार्थों का समूह है। टिल, हिम डिफ्ट का एक रूप है। हिमानी पदार्थों के जमाव को तीन प्रकारों में बांटा जाता है:
- अन्तर्हिमानी मलवा – जो हिमनद के साथ चलता है।
- वाह्य हिमानी मलवा – जो हिमनद की ऊपरी सतह पर रहता है।
- उपहिमानी मलवा – जो हिमनद की तली में रहता है।
हिमनद द्वारा छोड़े गए मलवे को हिमोढ़ (moraines) कहते हैं। हिमोढ़ द्वारा बनी आकृति को हिमोढ़ कटक (morainic ridge) कहा जाता है। हिमोढ़ को चार प्रकारों में बांटा जाता है:
- अन्तिम हिमोढ़ (terminal moraines) – यह हिमनद के पिघलने पर उसके अग्रभाग में जमा होता है।
- पाश्विक हिमोढ़ (lateral moraines) – यह हिमनद के किनारों पर जमा होता है।
- मध्यस्थ हिमोढ़ (medial moraines) – यह दो हिमनदों के मिलने पर उनके पाश्विक हिमोढ़ों के मिल जाने से बनता है।
- तलस्थ हिमोढ़ (ground moraines) – यह हिमनद की तली में जमा हुआ मलवा होता है।
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