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हम अन्तर्जात बलों की मंद गति से उत्पन्न होने वाले पटलविरूपणी संचलन (diastrophic movement) के बारे में भूसंचलन (Earth Movements) नामक लेख में पहले ही जान चुके हैं। हमें यह भी ज्ञात हो चुका है कि क्षेत्रीय विस्तार की दृष्टि से पटलविरूपणी संचलन को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है
(अ) महादेशीय संचलन (epeirogenetic movement)
(ब) पर्वत निर्माणकारी संचलन (orogenetic movement)
इस लेख में हम पर्वत निर्माणकारी संचलन (orogenetic movement) के बारे में विस्तार से जानेंगे।
पर्वतीय संचलन (orogenetic movement)
Orogenetic शब्द ग्रीक भाषा के शब्दों ‘ओरोज’ (oros) जिसका अर्थ ‘पर्वत’ है तथा ‘जेनेसिस (genesis)’ जिसका अर्थ ‘उत्पत्ति’ मिलकर बना है। अत: पर्वतीय संचलन (orogenetic movement) का संबंध पर्वतों के निर्माण प्रक्रिया से है। इसको संक्षेप में पर्वतन बल या पर्वतन भी कहा जाता है।
पर्वतीय संचलन में बल प्रायः क्षैतिज रूप (धरातल के समांतर) में कार्य करता है, इसीलिए इसको क्षैतिज बल या स्पर्श रेखीय बल (tangential force) कहते हैं। क्षैतिज बल दो रूपों में कार्य करता है। जब बल दो विपरीत दिशाओं (एक दूसरे से दूर) में कार्य करता है तो चट्टानों में तनाव (tension) की स्थिति पैदा होती है, जिसके कारण इसे तनावमूलक बल कहा जाता है। तनाव के कारण ही धरातल में भ्रंश (fault), दरार (fracture) तथा चटकनें (cracks) पड़ जाती हैं।
जब क्षैतिज बल आमने-सामने (एक दूसरे की ओर) कार्य करता है तो चट्टानों में संपीडन होने लगता हैं जिसके कारण यह संपीडनात्मक बल (compressional force) कहलाता है। संपीडनात्मक बल के कारण ही धरातलीय चट्टानों में संवलन (warp) तथा (वलन (folds) पड़ जाते हैं।
आइए संवलन (warp) तथा (वलन (folds) की क्रिया को थोड़ा विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं:
संवलन (warp)
संवलन में धरातल का बहुत बड़ा भाग या तो ऊपर उठ जाता है या नीचे धँस जाता है। जब कभी संपीडनात्मक बल के कारण धरातल का बीच का भाग गुम्बद के आकार में ऊपर उठ जाता है तो उसे उत्संवलन (upwarps) कहते हैं और जब धरातलीय भाग नीचे की ओर मुड़कर धँस जाता है। तथा बेसिन या गड्ढे का निर्माण होता है तो उसे अवसंवलन (downwarps) कहते हैं। और जब धरातलीय चट्टानों में ऊपर उठने या नीचे धँसने की क्रिया हजारों किलोमीटर की लम्बाई में होती हैं तो उसे वृहद संवलन (broad warp) कहते हैं।
वलन (fold)
जब कभी अन्तर्जात बलों के कारण पैदा होने वाले क्षैतिज संचलन द्वारा चट्टानों में संपीडन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो चट्टानों में लहरनुमा मोड़ पड़ जाते हैं। इस तरह के मोड़ों को ही ‘वलन’ कहा जाता है। वलन में कुछ भाग ऊपर उठ जाता है और कुछ भाग नीचे धँस जाता है। ऊपर उठे भाग को अपनति (anticlines) तथा नीचे धँसे भाग को अभिनति (synclines) कहते हैं।
इस प्रकार देखा ऐ तो वास्तव में वलन वृहद संवलन का ही छोटा रूप होता है। प्रत्येक वलन में दोनों ओर के भागों को वलन की भुजाएँ (limbs of fold) कहते हैं। वलन की दोनों भुजाओं के बीच अपनति के सबसे ऊँचे या अभिनति के सबसे निचले भाग से गुजरने वाली काल्पनिक रेखा को वलन का अक्ष (axis of fold) कहते हैं। वलन के मध्य में स्थित कल्पित तल को अक्षीय तल (axial plane) कहते हैं।
References
- भौतिक भूगोल, डॉ. सविंद्र सिंह
- भूआकृतिक विज्ञान, बी. सी. जाट
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