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ढाल का अर्थ, महत्त्व एवं तत्त्व (Meaning, Importance and Elements of Slope)

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इस लेख को पढ़ने के बाद आप ढाल का अर्थ, महत्त्व एवं उसके तत्त्वों (Meaning, Importance and Elements of Slope) से परिचित होंगे।

ढाल का अर्थ एवं महत्त्व (Meaning and Importance of Slope)

ढाल धरातल पर पाए जाने वाले स्थलस्वरूपों के प्रमुख अंग हैं, जो कि पहाड़ी तथा घाटी के मध्य उपरिमुखी या अधोमुखी झुकाव होते हैं। इनका आकार अवतल, उत्तल, सरल रेखी (rectilinear), मुक्त पृष्ठ (free face) या तीव्र दीवालनुमा हो सकता है। समतल मैदानी भाग को छोड़कर ढाल सभी जगह देखे जा सकते हैं तथा पहाड़ी भागों में इनका विकास सर्वाधिक होता है। ढाल के आधार पर ही किसी क्षेत्र की आकृतिक विशेषताओं का निर्धारण किया जाता है। 

देखा जाए तो विभिन्न प्रकार के भौतिक स्थलरूप मुख्य रूप से कई प्रकार के ढालों के समूह मात्र होते हैं। इसी कारण से स्थलरूपों के अध्ययन तथा व्याख्या में ढाल एक कुञ्जी का कार्य करते हैं। इतना ही नहीं ढालों के कारण किसी भी स्थान विशेष के स्थलरूपों में ही विवधता का सूत्रपात होता है।

स्थलरूपों का निर्माण तथा विकास भी ढाल के आकार तथा उसके विकास की प्रक्रिया पर निर्भर होता है। इन्हीं कारणों से वर्तमान समय में भूआकृति विज्ञान के क्षेत्र में ढालों के विश्लेषण पर सर्वाधिक बल दिया जा रहा है।

ढाल के तत्त्व (Elements of Slope)

Elements of Slope

यदि किसी पहाड़ी ढाल या सागर तटीय ढाल की अनुदैर्ध्य परिच्छेदिका का अवलोकन किया जाय तो स्पष्ट हो जायेगा कि शीर्ष या ऊपर से तली या नीचे तक ढाल में समरूपता नहीं पायी जाती। कहीं पर ढाल का आकार उत्तल, कहीं पर तीव्र खड़ा, कहीं पर मन्द ढाल तथा कहीं पर अवतल दिखाई देता है। ढाल के इन विशिष्ट अंगों को ढाल का तत्त्व कहते हैं। 

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एक आदर्श पहाड़ी ढाल की अनुदैर्ध्य परिच्छेदिका के ऊपर से नीचे चार प्रमुख तत्त्व – उत्तलता (convexity), मुक्त पृष्ठता (free-face), सरल रेखात्मकता (rectilinearity) तथा अवतलता (concavity) पाये जाते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक ढाल में चारों तत्त्व उपस्थित हों ही। आइये अब इन ढाल के चारों तत्त्वों का वर्णन करते हैं:-

शिखरीय उत्तलता (Summital Convexity)

पर्वतीय ढाल के सबसे ऊपर वाले भाग में उत्तल ढाल पाया जाता है, जिस कारण इसे शिखरीय उत्तलता (summital convexity) कहा जाता है। यह भी सम्भाव्य है कि समूचा ढाल उत्तल हो परन्तु सामान्य रूप में उसके ऊपरी भाग में ही उत्तलता का होना अधिक स्वाभाविक होता है।

स्वभावतः उत्तलता नीचे की ओर तथा ऊँचाई में विस्तृत होती है तथा ढाल तीव्र होने लगता है। इसी आधार पर वाल्टर पेंक ने उत्तल ढाल को वर्द्धमान ढाल (waxing slope) की संज्ञा प्रदान की है। 

परन्तु यह नामावली भ्रामक है क्योंकि यह आवश्यक नहीं है कि सभी उत्तल ढाल आकार तथा ऊँचाई में बढ़ते ही हैं। उत्तल ढाल का निर्माण मुख्य रूप से अनाच्छादन के प्रक्रमों द्वारा होता है तथा जलोढ़ की झीनी चादर से ढका रहता है। इसी कारण से इसे ऊपरी (वृष्टि) धुलन ढाल (upper wash slope) कहते हैं। इनका विस्तार आर्द्र शीतोष्ण जलवायु वाले प्रदेशों की लाइमस्टोन तथा खरिया शैल पर सर्वाधिक होता है।

मुक्त पृष्ठ तत्त्व (free face)

मुक्त पृष्ठ दीवार सदृश खड़े ढाल वाला होता है, जो कि नग्न शैल से युक्त परन्तु किसी भी प्रकार के अवसादीय आवरण से मुक्त होता है। वास्तव में इसका ढाल इतना तीव्र होता है कि इस पर किसी भी प्रकार के शैल मलवा (scree) का रुकना कठिन होता है। इस ढाल से होकर शैल मलवा लुढक कर नीचे चला जाता है। इस आधार पर मुक्त पृष्ठ ढाल को निस्त्रावण ढाल (derivation slope) कहते हैं।

सरल रेखी तत्त्व (rectilinear element)

मुक्त हो पृष्ठ तथा अवतल ढाल के मध्य एक सीधी रेखा वाला ढाल होता है, जिसे सरल रेखी ढाल कहा जाता है। प्रारम्भ में इसका विस्तार सर्वाधिक होता है। समरूपता के कारण इसे सम ढाल या स्थिर ढाल (constant slope) कहते हैं। इस ढाल पर शैल मलवा का जमाव आसानी से हो जाता है। अतः इसे मलवा ढाल (debris slope) भी कहते हैं। इस ढाल का कोण उस पर स्थित मलवा पर आधारित होता है। 

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इसी आधार पर स्ट्रालर महोदय ने इसे रिपोज ढाल की संज्ञा प्रदान की है। परन्तु यह नामावली असंगत है क्योंकि इसके अनुसार सरलरेखी ढाल की उत्पत्ति सदैव मलवा के एकत्रीकरण से होनी चाहिए, परन्तु यह न्यायसंगत नहीं है क्योंकि कभी-कभी इसका निर्माण अपरदन के कारण चट्टान के नग्न हो जाने से भी होता है।

इसके अतिरिक्त उसके ऊपर मलवा की एक झीनी चादर भी हो सकती है परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वह स्थिर ही हो। प्रायः वह गुरुत्त्व के कारण नीचे सरकती रहती है। इसी कारण से इस ढाल को मलवा नियंत्रित ढाल (debris controlled slope) की भी संज्ञा प्रदान की जाती है।

अवतल तत्त्व (concave element)

किसी भी आदर्श ढाल परिच्छेदिका के सबसे निचले भाग में अवतल तत्त्व मिलता है, जो कि पहाड़ी का सबसे निचला हिस्सा होता है तथा शनैः शनैः घाटी की तली के रूप में विलीन हो जाता है।

जैसे-जैसे इसका विस्तार होता जाता है, ढाल कम हो जाता है, जिस कारण इसे क्षीयमाण ढाल (waning slope) कहते हैं। इसे घाटी तलागार ढाल (valley-floor basement slope) या अधः घुलन ढाल (lower wash slope) भी कहते हैं। इस ढाल का आविर्भाव प्रायः अनाच्छादन द्वारा होता है तथा ढाल या तो नग्न शैल वाला होता है या उस पर मलवा का एक आवरण होता है।

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