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यदि आप भूगोल विषय में B.A, M.A, UGC NET, UPSC, RPSC, KVS, NVS, DSSSB, HPSC, HTET, RTET, UPPCS, या BPSC जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, तो भूकम्प (Earthquake) के विषय में जानकारी अति महत्वपूर्ण है। भूकम्प न केवल भूगर्भीय घटनाओं का एक प्रमुख हिस्सा है, बल्कि यह भूगोल की परीक्षाओं में एक प्रमुख टॉपिक भी है। इस लेख में, हमने भूकम्प के अर्थ, इसके कारणों, और इसके विभिन्न पहलुओं को एक सरल और संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है, ताकि आप परीक्षा में इस विषय से संबंधित सभी प्रश्नों का उत्तर आसानी से दे सकें। |
Table of contents
इस लेख के माध्यम से हम भूकम्प (Earthquake) का अर्थ एवं भूकंपों के कारणों केबारे में जाननें का प्रयास करेंगे।
भूकम्प का अर्थ (meaning of earthquake)
साधारण शब्दों में भूकम्प (Earthquake) वह घटना है, जिसके द्वारा पृथ्वी के धरातल के ऊपर व नीचे दोनों जगह हलचल पैदा हो जाती है तथा कम्पन होने लगती है।
भूकम्प (Earthquake) को निम्न शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है:
“जब किसी ज्ञात अथवा अज्ञात बाह्य अथवा अन्तर्जात कारणों से पृथ्वी के भूपटल में तीव्र गति से कम्पन पैदा हो जाती है तो उसे ‘भूकम्प’ कहते हैं”। दूसरे शब्दों में, “भूकम्प भूपटल की कम्पन अथवा लहर है जो धरातल के नीचे अथवा ऊपर चट्टानों के लचीलेपन या गुरुत्वाकर्षण की समस्थिति में क्षणिक अव्यवस्था होने पर उत्पन्न होती है।” (“An earthquake is a vibration or oscillation of the surface of the earth, caused by a transient disturbance of the elastic or gravitational equilibrium of the rocks at or beneath the surface.”) (A.N. Strahler)
आइए इसको एक उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास करता हैं। यदि हम किसी तालाब के शान्त जल में पत्थर का टुकड़ा फेंकेंगे तो जल के अंदर गोलाकार लहरें केन्द्र (जहां पत्थर फेंका था) से चारों तरफ बाहर की ओर चलने लगेंगी। ठीक उसी प्रकार जब धरातल के नीचे किन्हीं कारणों से कम्पन उत्पन्न होती है तो उत्पत्ति केन्द्र से ऊर्जा रूपी लहरें निकलकर बाहर की तरफ चारों ओर फैल जाती हैं। जैसे-जैसे ये केन्द्र से दूर होती जाती हैं, इनकी शक्ति तथा तीव्रता कम होती जाती है।
भूकम्प मूल (seismic focus)
भूकम्प के उत्पत्ति स्थल अर्थात् भूकम्प का सर्वप्रथम जहाँ पर आविर्भाव होता है, उसे ‘भूकम्प मूल’ (focus) कहते हैं।
भूकम्प केन्द्र (epicenter)
धरातल के ऊपर जिस स्थान पर भूकम्प की लहरों का सबसे पहले अनुभव होता है, उसे ‘भूकम्प केन्द्र’ (epicenter) कहते हैं।
भूकम्प के कारण (causes of earthquake)
भूकम्प, पृथ्वी की संतुलन अवस्था में परिवर्तन या अव्यवस्था उत्पन्न होने से आते हैं। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्व के अधिकतर भूकम्प (Earthquake) प्रायः कमजोर धरातल एवं अव्यवस्थित भूपटल के नजदीक ही आते हैं। लेकिन यह बात सदैव सच हो ऐसा भी नहीं है क्योंकि अपेक्षकृत प्राचीन एवं स्थिर भू-भागों में भी भूकम्प आते हैं। जैसे 11 दिसम्बर सन् 1967 ई० में कोयना भूकम्प तथा 30 सितम्बर, 1993 के लातूर में भूकम्प (महाराष्ट्र, भारत) आए जो दक्षिण के पठारी भाग (भारत) में स्थित हैं जो एक स्थिर भूखण्ड है।
विभिन्न भूकम्प (Earthquake) क्षेत्रों के अध्ययन के आधार पर भूकम्प के कई कारण बताए गए हैं, जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है:
ज्वालामुखी क्रिया
भूकम्प (Earthquake) के मुख्य कारणों में से एक है ज्वालामुखी क्रिया। भूकम्प व ज्वालामुखी क्रिया का एक दूसरे से गहन रूप से संबंधित हैं, क्योंकि ज्वालामुखी विस्फोट के साथ भूकंप अवश्य आता है। हालांकि भूकंप की तीव्रता एवं प्रभाव ज्वालामुखी उद्गार या विस्फोट के प्रकार पर निर्भर करता है। कभी-कभी भूकम्प (Earthquake) के कारण ज्वालामुखी का उद्गार भी होता है। ज्वालामुखी क्रिया में जब गैस एवं वाष्प धरातल के निचले भाग से बाहर निकलने के लिए जोर लगाती है तो भूपटल में अचानक जोरों से कम्पन पैदा हो जाती है, जिससे हमें भूकम्प का अनुभव होता है।
ज्वालामुखी क्रिया के कारण आने वाले भूकम्पों का प्रभाव सामान्य तौर पर 160 से 240 किमी तक के क्षेत्रों में महसूस किया जाता है। हालांकि इस प्रकार के भूकंपों का प्रभाव अधिक दूरी तक भी देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए सन् 1883 ई० में जब सुण्डा जलडमरूमध्य (जावा तथा सुमात्रा के बीच) के क्राकाटोआ द्वीप पर भयंकर ज्वालामुखी का विस्फोट हुआ तो इतना विनाशकारी तथा तीव्र भूकम्प आया था कि उसका प्रभाव वहाँ से 12,800 किमी० दूर दक्षिणी अमेरिका के हार्न अन्तरीप तक देखा गया था।
भूपटल भ्रंश (Faulting)
धरातल के नीचे होने वाली हलचलों (tectonic forces) से भूपटल पर भ्रंश तथा वलन संबंधी क्रियाएं होती रहती हैं। भ्रंश तथा वलन के प्रमुख कारण खिंचाव (tension) तथा सम्पीडन (compression) की शक्तियाँ हैं, जिसके कारण धरातल पर तरह-2 के बदलाव देखने को मिलते हैं। उदाहरण के लिए जब चट्टानों में खिंचाव की शक्तियाँ (तनावज़नित बल) काम करती हैं तो भूपटल में दरार, रिफ्टघाटी, ब्लाक पर्वत का निर्माण होता है। इन क्रियाओं का फलस्वरूप धरातलीय भागों का अगल-बगल या ऊपर-नीचे की तरफ खिसकाव होता है। जिसके कारण धरातल पर आकस्मिक परिवर्तन होते हैं, जिससे भूकंप (Earthquake) की उत्पत्ति होती है।
इसी प्रकार सम्पीडन की शक्ति के कारण भूपटल में मोड़ पड़ जाता है तथा मोड़दार वलित पर्वतों की रचना होती है। यह क्रिया जब तीव्रता के साथ अचानक सम्पन्न होती है तो भूकम्प (Earthquake) का अनुभव किया जाता है। यही कारण है कि अधिकांश भूकम्प नवीन मोड़दार पर्वतों (आल्प्स, हिमालय, राकीज तथा एण्डीज) की पेटी में आते रहते हैं ।
उदाहरण के लिए
- अफ्रीका की दरार घाटी में भी अनेक भूकम्प अनुभव किये जाते हैं ।
- आसाम (भारत) में सन् 1950 ई० का भयंकर भूकम्प दरार के कारण धरातल में अव्यवस्था उपस्थित होने से ही आया था।
- बिहार राज्य (भारत) का सन् 1934 का भूकम्प (Earthquake) भी भूपटल में खिसकाव तथा अव्यवस्था द्वारा ही आया था। 26 जनवरी, 2001 का भुज (गुजरात) का प्रलयंकारी भूकम्प सतह के नीचे दरारों के सक्रिय हो जाने के कारण आया।
- अरब सागर का निर्माण टर्शियरी युग में अफ्रीका तथा गोंडवानालैण्ड के बीच ४०/ -के स्थलभाग के नीचे धँसकने से हुआ। वास्तव में यह एक विस्तृत दरार घाटी का ही निर्माण था। फलस्वरूप अब तक प्रायद्वीपीय भारत का पश्चिमी भाग अस्थिर है तथा चट्टानों में पुनर्व्यवस्था (readjustment) का कार्य क्रियाशील है। इसी कारण कभी-कभी पठारी भाग पर भी भूकम्प आ जाते हैं।
- सन् 1872 ई० के कैलिफोर्निया के प्रचण्ड भूकम्प (Earthquake) का प्रमुख कारण एक विशाल दरार का निर्माण ही था।
- जापान की सगामी खाड़ी का 1923 का भयंकर भूकम्प दरार के निर्माण के कारण ही घटित हुआ था।
धरातलीय सन्तुलन में अव्यवस्था (Isostatic Disturbances)
हम जानते हैं कि धरातल के विभिन्न भाग सामान्यतया सन्तुलन की अवस्था में हैं। जब कभी इस सन्तुलन में क्षणिक अथवा दीर्घकालिक परिवर्तन या अव्यवस्था उत्पन्न होती है तो भूकम्प (Earthquake) का अनुभव किया जाता है। परन्तु सदैव भूकम्प का अनुभव किया जाए ऐसा जरुरी नहीं है। भूकंप (Earthquake) तभी महसूस होते हैं, जब भूसन्तुलन में अव्यवस्था अचानक होती है। आइए भूसन्तुलन में होने वाली अव्यवस्था को उदाहरण के जरिए समझने का प्रयास करते हैं:
हम जानते हैं कि किसी भी पर्वत के निर्माण के बाद उस पर अनाच्छादन की शक्तियाँ (अपरदन और अपक्षय) कार्य करने लगती हैं। अपरदन क्रिया द्वारा पर्वतीय भाग कट कर बहते हुए जल (नदियों) द्वारा सागरीय भाग अथवा झीलों में जमा होने लगता है। जिसके फलस्वरूप दो प्रकार की क्रियाएं घटित होती हैं। एक तो पर्वतीय भाग अपरदन के कारण नीचा होने लगता है, जिससे उसके भार में कमी होने लगती है। दूसरा, सागर या झील में लगातार अवसाद के जमा होने से उस हिस्से के भार में वृद्धि हो जाती है।
इन दोनों क्रियाओं के कारण भूसंतुलन समाप्त हो जाता है। लेकिन, इस संतुलन को पुन: स्थापित करने के लिए सागर या झील की तली नीचे की तरफ खिसकने लगती है तथा भार में कमी होने के कारण पर्वतीय भाग ऊपर उठने लगते हैं। जब तक यह क्रिया धीरे-धीरे होती है, तब उसको महसूस नहीं किया जाता है। परन्तु जब यह क्रिया शीघ्रता से घटित होती है तो भूकंप (Earthquake) आता है।
इस प्रकार के भूकम्प (Earthquake) सामान्य तौर पर नवीन मोड़दार पर्वतीय क्षेत्रों में आते हैं, जहाँ पर पर्वत निर्माणकारी क्रिया के कारण भूपटल में अभी तक संतुलन स्थापित नहीं हुआ है। इस प्रकार उत्पन्न होने वाले भूकम्प (Earthquake) सामान्य तौर पर साधारण तथा हल्के होते हैं एवं उनका प्रभाव सीमित होता है। 4 मार्च, सन् 1949 ई० को हिन्दूकुश में इसी प्रकार संतुलन मूलक भूकम्प आया था। इसका प्रभाव पश्चिमी पाकिस्तान के लाहौर तक अनुभव किया गया था।
जलीय भार
कुछ विद्वानों का मानना है कि धरातलीय भाग पर जब जल की बहुत बड़ी राशि एक स्थान पर इकट्ठा हो जाती है, तो उससे पैदा होने वाले अत्यधिक भार व दबाव के कारण जलराशि की तली के नीचे स्थित चट्टानों में बदलाव होने लगता है। जब यह परिवर्तन शीघ्रता से होता है तो भूकम्प (Earthquake) का अनुभव किया जाता है। यहाँ यह याद रखना आवश्यक है कि जलराशि से अभिप्राय स्थायी जलभण्डारों से नहीं है क्योंकि ये जलराशि जैसे सागर, झील आदि अपना संतुलन स्थापित कर चुके हैं। यहाँ पर जलराशि का अभिप्राय धरातल पर मानव द्वारा बनाए गए जलाशयों व बांधों से है।
उदाहरण के तौर पर मानव बहुमुखी योजनाओं तथा नदी-बांध योजनाओं के लिए नदियों पर बड़े-बड़े बांध बनाता है, जिससे बहुत बड़ी मात्रा में जलराशि एकत्र हो जाती है। जिसके कारण भूपटल पर अत्यधिक भार तथा दबाव अचानक बढ़ जाता है और भूअसंतुलन होने लगता है। जिसके फलस्वरूप भूकम्प का अनुभव किया जाता है । 11 दिसम्बर, 1967 के भारत के कोयना भूकम्प के अनेक सम्भावित कारणों में एक कारण कोयना बांध तथा जलभण्डार द्वारा उत्पन्न अव्यवस्था को भी बताया जाता है । अन्य उदाहरण के तौर पर कोलोरैडो नदी पर बांध बनने तथा मीड नामक जलाशय के बन जाने के बाद उस क्षेत्र में आने वाले भूकम्प (Earthquake) को लिया जा सकता है।
भूपटल में सिकुड़न
पृथ्वी के ‘संकुचन सिद्धान्त’ जिसका प्रतिपादन सर्वप्रथम अमेरिकी भूगर्भशास्त्री डाना ने 1847 ईo में तथा यूरोप के विद्वान इली डी० ब्यूमाउण्ट ने 1852 ई० में किया था, कहा जाता है कि पृथ्वी का तापमान विकिरण की क्रिया के फलस्वरूप निरन्तर कम हो रहा है। जिसके कारण भूपटल शीतल होने लगता है। इस प्रकार पृथ्वी के ठंडे होने से उसकी पपड़ी (crust) में सिकुड़न होता है जो कि पर्वत निर्माणकारी क्रिया को जन्म देती है। संकुचन तथा सिकुड़न जब शीघ्र एवं तीव्रता से होती है तो भूपटल में कम्पन पैदा हो जाती है तथा भूकम्प अनुभव किया जाता है।
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त के समर्थक इस विचार के कटु आलोचक हैं। इन विद्वानों का कहना है कि पृथ्वी कैम्ब्रियन युग के बाद शीतल नहीं हुई है, परन्तु भूकम्प तो प्रायः आते ही रहते हैं। आधुनिक अनुसंधानों के आधार पर यह बताया जाता है कि पृथ्वी के अन्दर अनेक रेडियो सक्रिय पदार्थ (radioactive elements) विद्यमान हैं, जिनके विघटन के कारण अत्यधिक मात्रा में ताप की उत्पत्ति होती है।
प्राय: यह अनुमान किया जाता है कि विकिरण द्वारा कम हुए ताप की पूर्ति इन रेडियो सक्रिय पदार्थों द्वारा उत्पन्न ताप से हो जाती है। अतः पृथ्वी में ताप ह्रास की समस्या ही नहीं उठती है। इस प्रकार अधिकांश विद्वान भूपटल में शीतलता के कारण संकुचन में विश्वास नहीं रखते हैं। अतः इस आधार पर भूकम्प की सम्भावना इन विद्वानों के अनुसार न्यायसंगत नहीं है।
गैसों का फैलाव
भूपटल के नीचे जब किसी कारण से जल पहुँच जाता है तो वह अत्यधिक ताप के कारण जल वाष्प अथवा गैस में बदल जाता है। जब इनकी मात्रा बहुत अधिक हो जाती है, तो ये गैंसें अथवा वाष्प ऊपर जाने का प्रयास करती हैं। फलस्वरूप भूपटल के नीचे धक्के लगाने लगती हैं, जिस कारण भूपटल में कम्पन उठने लगती हैं तथा साधारण भूकम्प का अनुभव किया जाता है। कभी-कभी ऊपरी दबाव कम हो जाता है, तो अचानक संकुचित गैस में प्रसार या फैलाव होने लगता है जिस कारण पृथ्वी में कम्पन हो जाती है।
प्लेट टेक्टानिक सिद्धान्त
अधिकांश भूकम्प विभिन्न प्लेट किनारों (रचनात्मक, विनाशी एवं संरक्षी) के सहारे आते हैं। रचनात्मक प्लेट किनारों (constructive plate margins) का निर्माण मध्य महासागरीय कटकों (mid oceanic ridges) के सहारे होता है जहाँ पर दो प्लेट टूटकर विपरीत दिशाओं में गतिशील होती हैं । इस कारण दाब मुक्ति होने से मध्य महासागरीय कटक के नीचे ऊपरी मैण्टिल का भाग पिघल जाता है तथा मैगमा का निर्माण होता है जो ज्वालामुखी के दरारी उद्भेदन के रूप में ऊपर आता है। इस प्रक्रिया के कारण भूकम्पन होती है। चूँकि मैगमा के ऊपर उठने की दर मन्द होती है अतः भूकम्प साधारण एवं कम गहराई वाले (shallow focus earthquake) होते हैं जिनका भूकम्प मूल (focus) प्राय: 25 किमी०-35 किमी० की गहराई तक होता है।
विनाशी प्लेट किनारे (destructive plate margins) आपस में टकराते हैं (दो प्लेट के आमने-सामने गतिशील होने के कारण) जिस कारण अपेक्षाकृत अधिक घनत्व वाले प्लेट किनारे का कम घनत्व वाले प्लेट किनारे के नीचे क्षेपण (subduction) हो जाता है। परिणामस्वरूप क्षेपित भाग (subduction zone OR Benioff Zone) नीचे मैण्टिल में चला जाता है। 100 किमी० या उससे अधिक गहराई में (मैण्टिल में) जाकर अत्यधिक ताप के कारण क्षेपित भाग पिघलकर मैगमा बनकर ज्वालामुखी के केन्द्रीय उद्भेदन के रूप में धरातल पर प्रकट होने के कारण तीव्र भूकम्प आते हैं।
इस प्रकार के भूकम्पों के भूकम्प मूल (focus) की गहराई 700 किमी० तक हो सकती है। अब तक 720 किमी० की अधिकतम गहराई वाले भूकम्प आचुके हैं। इस तरह के भूकम्प परिप्रशान्त मेखला एवं मध्य महाद्वीपीय पेटी में आते रहते हैं। प्रशान्त महासागरीय प्लेट का अमेरिकन प्लेट के नीचे बेनी ऑफ मण्डल के सहारे क्षेपण (subduction) हो रहा है जिस कारण क्षेपित भाग के नीचे जाने से उत्पन्न रगड़ (friction) के कारण इस क्षेत्र में (उ० तथा दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी सीमान्त भागों में) तीव्र भूकम्प आते हैं।
एशिया के पूर्व में महासागरीय क्रस्ट का महाद्वीपीय प्लेट के नीचे क्षेपण होने से पूर्वी एशिया में द्वीप चाप एवं तोरपा (island arcs and festoons) के सहारे (खासकर जापान) तीव्र भूकम्प आते हैं। इसी तरह अफ्रीकी प्लेट के यूरोपीय प्लेट के नीचे एवं भारतीय प्लेट के एशियाई प्लेट के नीचे क्षेपण होने के कारण मध्य महाद्वीपीय पेटी (आल्प्स-हिमालय श्रृंखला) के भूकम्प आते हैं। 26 जनवरी, 2001 के भुज (गुजरात) के प्रलयंकारी भूकम्प का मुख्य कारण भारतीय प्लेट के एशिया प्लेट के नीचे (हिमालय के नीचे) क्षेपण तथा उसके कारण सतह के नीचे दरार का पुनः सक्रिय होना बताया गया है
जहाँ पर दो प्लेट एक दूसरे के अगल-बगल सरकते हैं वहाँ पर संरक्षी प्लेट किनारे (conservative plate margins) का निर्माण होता है एवं रूपान्तर भ्रंश (transform faults) का निर्माण होता है। परिणामस्वरूप यहाँ पर तीव्र भूकम्प आते हैं। सैन एण्ड्रियास भ्रंश इसका प्रमुख उदाहरण है। यहाँ पर (कैलिफोर्निया) एक स्थल भाग द० पू० तथा दूसरा भाग उ० पू० दिशा में एक दूसरे के सन्दर्भ में भ्रंश तल (fault plane) के संदर्भ में खिसकता है जिस कारण भूकम्प प्रायः आते रहते हैं ।
सामान्य भूकम्प के कारण
हमने ऊपर जिन कारणों का जिक्र किया है उनके कारण विनाशकारी तथा भयंकर भूकम्पों का जन्म होता है, परन्तु कुछ ऐसे भी साधारण प्रकार के भूकंप भी होते हैं, जिनका अनुभव या तो केवल ‘भूकम्प लेखन यंत्र’ (seismograph) द्वारा ही हो पाता है या इतने हलके होते हैं, जिनसे किसी भी प्रकार की क्षति की आशंका नहीं होती है। इस प्रकार के भूकम्पों (Earthquake) को सामान्य भूकम्प कहते हैं। इनकी उत्पत्ति के निम्न कारण बताये जा सकते हैं-
- सागर तटीय भागों पर सागरीय लहरों के कटाव के कारण जब महाद्वीप का तटीय भाग टूटकर सागर में गिरता है तो समीपवर्ती भागों में साधारण प्रकार की कम्पन का अनुभव किया जाता है।
- प्रचण्ड सागरीय भूकम्प द्वारा जब सुनामी (tsunami) लहरें उत्पन्न होती हैं तो उनके तट से टकराने पर आस-पास के भागों में भूकम्प आ जाता है। कभी-कभी साधारण प्रकार की वेगवती लहरों के टकराने से भी कम्पन होती है।
- चूने की चट्टानों वाले प्रदेश में कन्दराओं की छत जब टूटकर नीचे गिरती है तो साधारण प्रकार के भूकम्प अनुभव किए जाते हैं । लोयस मिट्टी वाले क्षेत्रों में मिट्टी के ढेर के खिसकने से कम्पन पैदा हो जाती है। चीन में इस तरह के भूकम्प प्रायः आए दिन आते रहते हैं।
- अपक्षय की क्रियाओं से प्रभावित होकर पहाड़ी भागों में कमजोर बड़े-बड़े शिलाखण्ड जब टूटकर नीचे की तरफ तेजी से गिरते हैं तो भूकम्प का अनुभव किया जाता है।
- जब ग्लेशियर पर्वतीय भाग से नीचे की तरफ सरकता है तो बीच में तीव्र ढाल के आ जाने से बड़े-बड़े हिमखण्ड टूटकर नीचे की तरफ गिरने लगते हैं, जिस कारण सामान्य भूकम्प समीपवर्ती क्षेत्रों में आते हैं।
- पृथ्वी अपनी धुरी पर घूर्णन (परिभ्रमण) करती है। इस घूर्णन के कारण भी कभी-कभी कमजोर भागों में भूकम्प अनुभव किया जाता है
- वर्तमान समय में अणुबमों के विस्फोट तथा परीक्षणों द्वारा भी भूकम्प उत्पन्न हो जाते हैं। कुछ विद्वानों का कथन है कि प्रायद्वीपीय भारत के कोयना भूकम्प (11 दिसम्बर, 1967), का एक कारण संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ भूमिगत आणविक बम का परीक्षण भी बताया जा सकता है, परन्तु इस परीक्षण का प्रभाव इतनी दूर तक हो सकता है, ऐसा सम्भव नहीं जान पड़ता। सुरंग खोदने तथा खानों में छत आदि के गिर जाने से भी भूकम्प (Earthquake) आते हैं ।
References
- भौतिक भूगोल, डॉ. सविन्द्र सिंह
Test Your Knowledge with MCQs
उत्तर अंत में दिए गए हैं:
Question 1: भूकम्प क्या है?
a) पर्वतों का निर्माण
b) पृथ्वी की सतह का हिलना
c) समुद्र की लहरें
d) वायुमंडल में बदलाव
Question 2: भूकम्प की तीव्रता को मापने के लिए किस यंत्र का उपयोग किया जाता है?
a) बैरोमीटर
b) थर्मामीटर
c) सिस्मोग्राफ
d) हाइग्रोमीटर
Question 3: रिक्टर स्केल किसके मापन के लिए प्रयोग होता है?
a) भूकम्प की गहराई
b) भूकम्प की अवधि
c) भूकम्प की तीव्रता
d) भूकम्प का समय
Question 4: भूकम्प के केंद्र (Epicenter) के ऊपर सतह पर स्थित बिन्दु को क्या कहते हैं?
a) हाइपोसेंटर
b) फोकस
c) फॉल्ट लाइन
d) शॉक वेव
Question 5: निम्नलिखित में से कौन सा क्षेत्र भूकम्प संभावित क्षेत्र नहीं है?
a) हिमालय
b) जापान
c) कैलिफोर्निया
d) सहारा रेगिस्तान
Question 6: भूकम्प तरंगों का मापन किसके द्वारा किया जाता है?
a) वायुमंडलीय दबाव
b) समुद्र तल की उंचाई
c) सिस्मोग्राफ
d) मौसम विज्ञान केंद्र
Question 7: भूकम्प की तीव्रता के मापन के लिए कौन सा पैमाना प्रयोग होता है?
a) सैलिनिटी स्केल
b) रिक्टर स्केल
c) केल्पिन स्केल
d) सीस्मिक स्केल
Question 8: पृथ्वी की सतह के नीचे भूकम्प उत्पन्न होने वाले बिंदु को क्या कहा जाता है?
a) एपिसेंटर
b) फॉल्ट लाइन
c) हाइपोसेंटर
d) प्लेट बाउंड्री
Question 9: किस प्रकार के फॉल्ट में भूकम्प उत्पन्न होते हैं?
a) नार्मल फॉल्ट
b) स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट
c) रिवर्स फॉल्ट
d) उपरोक्त सभी
Question 10: भूकम्प के कारण उत्पन्न होने वाली समुद्री लहरों को क्या कहा जाता है?
a) समुद्री लहरें
b) ज्वार
c) सूनामी
d) बाढ़
उत्तर:
- b) पृथ्वी की सतह का हिलना
- c) सिस्मोग्राफ
- c) भूकम्प की तीव्रता
- a) हाइपोसेंटर
- d) सहारा रेगिस्तान
- c) सिस्मोग्राफ
- b) रिक्टर स्केल
- c) हाइपोसेंटर
- d) उपरोक्त सभी
- c) सूनामी
FAQs
भूकम्प के मुख्य कारण टेक्टोनिक प्लेटों का टकराना, फॉल्ट लाइनों के टूटना, ज्वालामुखीय गतिविधियां, और भूमिगत विस्फोट हैं।
भूकम्प की तीव्रता को रिक्टर स्केल पर मापा जाता है। यह स्केल 0 से 10 तक होता है, जहां 0 सबसे कमजोर और 10 सबसे मजबूत भूकम्प को दर्शाता है।
भूकम्प के केंद्र (Epicenter) वह स्थान होता है जो सतह पर भूकम्प का प्रभाव सबसे अधिक महसूस करता है, जबकि हाइपोसेंटर वह बिंदु है जहां भूकम्प उत्पन्न होता है, जो सतह के नीचे होता है।
भूकम्प से बचाव के लिए मजबूत निर्माण सामग्री का उपयोग, भूकम्प-रोधी डिजाइनों का पालन, और आपातकालीन योजना बनाना आवश्यक है। भूकम्प के दौरान, सुरक्षित स्थान पर शरण लेना और सिर को ढक कर रखना चाहिए।
सूनामी एक बड़ी समुद्री लहर होती है जो समुद्र के अंदर भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट या भूस्खलन के कारण उत्पन्न होती है। यह तटवर्ती क्षेत्रों में भारी विनाश कर सकती है।
भूकम्प मापन के लिए सिस्मोग्राफ नामक उपकरण का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण पृथ्वी की सतह पर होने वाले कंपन को मापता है और रिकॉर्ड करता है।
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