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पवन के निक्षेप कार्य द्वारा बनाई गई स्थलाकृतियाँ 

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पवन, पृथ्वी की सतह पर लगातार परिवर्तन लाने वाली एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक शक्ति है। पवन का प्रमुख कार्य तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है – अपरदन (erosion), परिवहन (transportation), और निक्षेपण (deposition)। जब पवन की गति कम हो जाती है, तो वह अपने साथ लाई गई धूल, रेत, और अन्य सूक्ष्म कणों को सतह पर जमा कर देती है। यह निक्षेपण कार्य विभिन्न प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण करता है, जिनमें बालुका स्तूप (sand dunes), लोयस (loess), और तरंग चिन्ह (ripple marks) जैसी भू-आकृतियाँ प्रमुख हैं। इस ब्लॉग में हम पवन के निक्षेपण कार्य और उससे उत्पन्न स्थलीय रूपों का गहन अध्ययन करेंगे।  

पवन का निक्षेपण कार्य कैसे होता है?  

पवन का निक्षेपण कई कारकों पर आधारित होता है, जिनमें मुख्यतः पवन की गति, परिवहन की क्षमता, और मार्ग में अवरोधों की उपस्थिति शामिल हैं:  

1. पवन की गति: जब पवन तेज गति से चलती है, तो वह रेत और अन्य कणों को उठाकर लंबी दूरी तक ले जा सकती है। जैसे ही पवन की गति धीमी होती है, उसकी कणों को उठाने और ले जाने की क्षमता घट जाती है, जिससे वह अपने साथ लाई सामग्री को सतह पर छोड़ने लगती है। इस प्रकार, निक्षेपण प्रक्रिया पवन की गति में गिरावट के साथ शुरू होती है।

2. पवन का परिवहन सामर्थ्य: तीव्र गति वाली पवन अधिक मात्रा में सामग्री को अपने साथ ले जा सकती है, जबकि धीमी पवन द्वारा कम सामग्री का परिवहन होता है। जब पवन की गति घटती है, तो कण एक स्थान पर जमा हो जाते हैं।

3. मार्ग में अवरोध: पवन की दिशा में अवरोधों का होना भी निक्षेपण के लिए आवश्यक है। झाड़ियाँ, वृक्ष, चट्टानें, या अन्य प्राकृतिक संरचनाएँ पवन की गति को कम कर देती हैं, जिससे कण जमा होने लगते हैं। इन अवरोधों के कारण पवन द्वारा लाई गई सामग्री स्थिर होकर एकत्रित हो जाती है।  

पवन द्वारा निक्षेपित स्थलरूप  

तरंग चिन्ह (Ripple Marks)  

जब पवन रेगिस्तानी क्षेत्रों में रेत को ले जाती है, तो सतह पर छोटे-छोटे लहरदार चिन्ह बनते हैं, जिन्हें तरंग चिन्ह या उर्मिका कहते हैं। इनका निर्माण तब होता है जब पवन की गति सतह पर एक समान नहीं होती। यह चिन्ह समुद्र की लहरों के समान दिखाई देते हैं, हालांकि इनकी ऊँचाई कुछ सेंटीमीटर तक ही होती है।  

तरंग चिन्ह मुख्यतः पवन की दिशा के समकोण पर बनते हैं, और पवन की दिशा में परिवर्तन होने पर इनके आकार और स्वरूप में भी बदलाव होता है। रेगिस्तानी क्षेत्रों में यह एक सामान्य भू-आकृति है, जो यह दर्शाती है कि पवन क्षेत्र में किस प्रकार से सक्रिय है। तरंग चिन्हों की संरचना, पवन की दिशा और गति का सूचक होती है, और इसका अध्ययन भूगोल के विद्वानों के लिए महत्वपूर्ण है। 

Ripple Marks Wind depositional landform

बालुका स्तूप (Sand Dunes)  

बालुका स्तूप या रेत के टीले, पवन द्वारा लाई गई रेत के निक्षेपण से बनने वाली स्थलरूप हैं। यह स्थलरूप रेगिस्तानी क्षेत्रों में प्रमुखता से देखे जाते हैं, लेकिन तटीय क्षेत्रों, झीलों के किनारों, और अन्य शुष्क भागों में भी बालुका स्तूपों का निर्माण हो सकता है। इनका निर्माण तब होता है जब पवन द्वारा उठाई गई रेत किसी अवरोध के कारण जमने लगती है।  

बालुका स्तूप विभिन्न प्रकार के आकार और आकार-प्रकार में होते हैं, जिनमें नवचंद्राकार, अर्धवृत्ताकार, और अनुवृत्ताकार प्रमुख हैं। यह स्तूप कुछ मीटर से लेकर 20 मीटर तक ऊँचे हो सकते हैं, और कुछ स्तूपों की लंबाई 5-6 किलोमीटर तक हो सकती है। बालुका स्तूपों के दोनों तरफ ढाल होते हैं – पवनाभिमुखी ढाल (पवन की दिशा के साथ) मृदु और हल्का (5 से 15 डिग्री तक) होता है, जबकि पवन विमुखी ढाल (पवन की विपरीत दिशा में) अधिक तीव्र (20 से 30 डिग्री तक) होता है।  

संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलोराडो प्रांत की लुइस घाटी में 1,000 फीट से भी अधिक ऊँचे बालुका स्तूपों के उदाहरण देखे गए हैं। बालुका स्तूपों का निर्माण एक गतिशील प्रक्रिया है, क्योंकि पवन के वेग और दिशा में परिवर्तन के साथ ये स्थलरूप भी बदलते रहते हैं। 

SAND DUNES

बालुका स्तूपों का निर्माण  

बालुका स्तूपों का निर्माण पवन द्वारा लाई गई रेत के जमने से होता है। जैसे ही पवन की गति कम होती है या मार्ग में अवरोध आता है, रेत जमा होने लगती है। यह जमा हुआ रेत धीरे-धीरे एक टीले का रूप धारण कर लेता है और समय के साथ बालुका स्तूप बन जाता है।  

बालुका स्तूपों के निर्माण के लिए चार मुख्य शर्तें होती हैं:

1. रेत की अधिकता: बालुका स्तूपों के निर्माण के लिए रेत का प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होना आवश्यक है। रेगिस्तानी और तटीय क्षेत्रों में यह रेत प्राकृतिक रूप से उपलब्ध होती है।

2. तीव्र पवन वेग: पवन की गति जितनी तेज होगी, उतनी ही अधिक मात्रा में रेत को स्थानांतरित किया जा सकेगा। तीव्र पवन रेत को उड़ाकर लंबी दूरी तक ले जा सकती है।

3. मार्ग में अवरोध: पवन की दिशा में आने वाले अवरोध, जैसे पेड़, झाड़ियाँ, चट्टानें, या अन्य वस्तुएँ पवन के वेग को कम करती हैं, जिससे रेत का जमाव होता है।

4. प्रशस्त स्थान: बालुका स्तूपों के निर्माण के लिए पर्याप्त स्थान का होना आवश्यक है। जलाशय या गहरी नदियाँ इसके निर्माण में बाधक होती हैं।

लोयस (Loess)  

लोयस पवन द्वारा लाई गई अत्यधिक बारीक धूल और मिट्टी के कणों के निक्षेपण से निर्मित स्थलरूप है। यह मिट्टी मुख्यतः सिल्ट, मृत्तिका (clay), और कुछ मात्रा में रेत के कणों से मिलकर बनती है। लोयस का जमाव आमतौर पर रेगिस्तानों से दूर और उन क्षेत्रों में होता है जहां पवन का प्रभाव कम होता है।  

लोयस का सर्वप्रथम अध्ययन जर्मन विद्वान फान रिक्टोफेन द्वारा उत्तरी-पश्चिमी चीन में किया गया था। यह मिट्टी अत्यधिक पारगम्य होती है और इसमें परतें नहीं पाई जाती हैं, लेकिन इसकी संरचना मुलायम होती है। इसका रंग प्रायः पीला होता है, और इसमें क्वार्ट्ज, फेल्सपार, अभ्रक और कैलसाइट खनिज पाए जाते हैं।  

लोयस का जमाव चीन, जर्मनी, बेल्जियम, फ्रांस, और संयुक्त राज्य अमेरिका में पाया जाता है। इसका उपयोग कृषि के लिए महत्वपूर्ण होता है, और उत्तरी चीन और अमेरिका के कई हिस्सों में इस मिट्टी पर सफलतापूर्वक कृषि की जाती है।  

लोयस का वितरण और आर्थिक महत्व  

लोयस का विस्तार चीन के उत्तरी-पश्चिमी भागों में सबसे अधिक है। यहाँ यह मध्य एशिया के रेगिस्तानों से उड़ाई गई धूल से बनी है। लोयस की गहराई 300 से 1000 फीट तक हो सकती है। यूरोप के जर्मनी, बेल्जियम, और फ्रांस में भी लोयस के बड़े निक्षेप पाए जाते हैं, जहां इसे ‘लिमन’ कहा जाता है।  

आर्थिक दृष्टिकोण से, लोयस मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है और इसका उपयोग कृषि कार्यों में किया जाता है। उत्तरी चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका में लोयस पर आधारित कृषि को व्यापक रूप से अपनाया गया है। इसके अलावा, लोयस मिट्टी का उपयोग ईंट बनाने और निर्माण कार्यों में भी किया जाता है। चीन में लोयस का उपयोग मकानों के निर्माण में भी होता है, लेकिन भूकंप के समय इसके गिरने से बड़ी क्षति हो सकती है।

निष्कर्ष  

पवन का निक्षेपण कार्य पृथ्वी की सतह पर विविध स्थलरूपों का निर्माण करता है। बालुका स्तूप और लोयस जैसी भू-आकृतियाँ न केवल भौगोलिक महत्व रखती हैं, बल्कि इनका आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। इन भू-आकृतियों का अध्ययन हमें पवन की शक्ति और उसके प्रभाव को समझने में मदद करता है।

Test your Knowledge with MCQs

1. पवन का निक्षेपण कार्य मुख्य रूप से किस कारण होता है?  

a) पवन की गति बढ़ने पर  

b) पवन की दिशा बदलने पर  

c) पवन की गति कम होने पर  

d) रेत की कमी होने पर  

2. बालुका स्तूप किससे बनते हैं?  

a) जल द्वारा निक्षेपण  

b) हिम द्वारा निक्षेपण  

c) पवन द्वारा रेत का निक्षेपण  

d) पृथ्वी की गति से  

3. तरंग चिन्ह (Ripple Marks) का निर्माण किस प्रकार होता है?  

a) तेज गति से चलने वाली पवन से  

b) जल के अपरदन से  

c) पवन की असमान गति से  

d) बर्फ के जमाव से  

4. निम्नलिखित में से कौन सा स्थलरूप पवन के निक्षेपण से नहीं बनता है?  

a) लोयस  

b) बालुका स्तूप  

c) तरंग चिन्ह  

d) हिमानी  

5. पवन के मार्ग में अवरोध उत्पन्न होने से क्या होता है?  

a) पवन की गति बढ़ती है  

b) पवन द्वारा अधिक कण उठाए जाते हैं  

c) कणों का निक्षेपण होने लगता है  

d) पवन द्वारा भूमि अपरदन किया जाता है  

6. बालुका स्तूप का पवनाभिमुखी ढाल कैसा होता है?  

a) तीव्र और सीधा  

b) हल्का और मृदु  

c) अर्धवृत्ताकार  

d) खड़ा और तीव्र  

7. किस प्रकार की मिट्टी का निर्माण पवन द्वारा उड़ाई गई धूल से होता है?  

a) पलीसर  

b) मोरेन  

c) लोयस  

d) कछार  

8. लोयस के निर्माण के लिए कौन सा तत्व सबसे महत्वपूर्ण है?  

a) रेतीली मिट्टी  

b) पवन द्वारा धूल का परिवहन  

c) नदियों का प्रवाह  

d) ज्वालामुखीय राख  

9. निम्नलिखित में से कौन से देश में लोयस का सबसे बड़ा विस्तार पाया जाता है?  

a) भारत  

b) चीन  

c) ऑस्ट्रेलिया  

d) अर्जेंटीना  

10. पवन द्वारा रेत और धूल के निक्षेपण से बनने वाले स्थलीय रूप क्या कहलाते हैं?  

a) हिमानी स्थलरूप  

b) अपरदन स्थलरूप  

c) निक्षेपण स्थलरूप  

d) चट्टानी स्थलरूप  

 उत्तर:  

1. c) पवन की गति कम होने पर  

2. c) पवन द्वारा रेत का निक्षेपण  

3. c) पवन की असमान गति से  

4. d) हिमानी  

5. c) कणों का निक्षेपण होने लगता है  

6. b) हल्का और मृदु  

7. c) लोयस  

8. b) पवन द्वारा धूल का परिवहन  

9. b) चीन  

10. c) निक्षेपण स्थलरूप  

FAQs

पवन का निक्षेपण कार्य क्या है?  

जब पवन की गति कम हो जाती है, तो वह अपने साथ लाई गई धूल, रेत, और अन्य कणों को जमीन पर जमा कर देती है। इसे पवन का निक्षेपण कार्य कहते हैं। इस प्रक्रिया से बालुका स्तूप (sand dunes) और लोयस (loess) जैसी भू-आकृतियाँ बनती हैं। पवन का निक्षेपण तब होता है जब पवन की परिवहन क्षमता घट जाती है या उसके मार्ग में अवरोध आता है।

पवन द्वारा बालुका स्तूप कैसे बनते हैं?

बालुका स्तूप पवन द्वारा रेत के जमने से बनते हैं। जब पवन किसी अवरोध से टकराती है या उसकी गति कम होती है, तो वह अपने साथ लाई हुई रेत को नीचे गिरा देती है। इस तरह, समय के साथ रेत के टीले का निर्माण होता है, जिसे बालुका स्तूप कहते हैं। ये स्थलरूप मुख्य रूप से रेगिस्तानी और तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

लोयस क्या है और इसका निर्माण कैसे होता है? 

लोयस (Loess) पवन द्वारा लाई गई धूल और मिट्टी के कणों का जमाव है। इसका निर्माण तब होता है जब पवन अपनी धूल को जंगलों, झाड़ियों, या अन्य अवरोधों के कारण जमा कर देती है। लोयस की मिट्टी आमतौर पर उपजाऊ होती है और इसका रंग पीला होता है। यह स्थलरूप चीन, जर्मनी, और अमेरिका जैसे देशों में पाया जाता है और इसका उपयोग कृषि और निर्माण कार्यों में किया जाता है।

तरंग चिन्ह क्या होते हैं?

तरंग चिन्ह (Ripple Marks) वे लहरदार आकृतियाँ होती हैं, जो पवन द्वारा रेगिस्तानी क्षेत्रों में रेत के जमाव से बनती हैं। ये चिन्ह समुद्र की लहरों की तरह दिखते हैं और इनकी ऊँचाई कुछ सेंटीमीटर तक होती है। पवन की गति और दिशा में परिवर्तन होने पर इन तरंग चिन्हों का आकार बदलता रहता है। ये स्थलरूप पवन की अपरदन और निक्षेपण प्रक्रियाओं का सूचक होते हैं।

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