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इस लेख में हम भौतिक भूगोल की परिभाषा एवं विषयक्षेत्र के बारे में विस्तारपूर्वक जानेंगे।
भौतिक भूगोल की परिभाषा (Definition of Physical Geography)
भौतिक भूगोल, भूगोल की दो प्रमुख शाखाओं में से एक प्रमुख शाखा है जिसमें हम प्राकृतिक तत्वों का भौगोलिक एवं वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं। कुछ विद्वान ने भूगोल को दो प्रमुख शाखाओं भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल में विभाजित करने पर जोर दिया, लेकिन मानवीय तत्वों को भौतिक भूगोल से अलग रखना कहीं से भी उचित नहीं लगता। भौतिक व मानवीय तत्व एक दूसरे से इस प्रकार अंतर्संबंधित हैं कि इनका अलग-2 अध्ययन करना अपने आप में निरर्थक है।
अत: पिछले कुछ दशकों में भौतिक भूगोल की परिभाषा, विषय क्षेत्र तथा अध्ययन विधि एवं उद्देश्यों में सुधार या परिमार्जन होते रहे हैं। प्रारम्भ में तो भौतिक पर्यावरण ( उच्चावच, जल तथा वायु) के क्रमबद्ध अध्ययन को ही भौतिक भूगोल समझा जाता रहा जैसे आर्थर होम्स ने कहा है कि ‘भौतिक पर्यावरण का अध्ययन ही भौतिक भूगोल है जो कि ग्लोब के धरातलीय उच्चावच (भूआकृति विज्ञान), सागर तथा महासागरों (समुद्र विज्ञान) तथा वायु (जलवायु विज्ञान) के विवरणों का अध्ययन करता है’।
भौतिक भूगोल को मौसम विज्ञान तथा जलवायु विज्ञान, समुद्र विज्ञान, भूगर्भशास्त्र, मृदा विज्ञान, वनस्पति विज्ञान तथा भूआकृति विज्ञान आदि का समूह मात्र समझा जाता रहा है जैसे ‘भौतिक भूगोल सामान्य रूप में कई भूविज्ञानों का अध्ययन एवं समन्वय है जो कि मनुष्य के पर्यावरण पर सामान्य प्रकाश डालते हैं। स्वयं में विज्ञान की स्पष्ट शाखा न होकर भौतिक भूगोल भूविज्ञान के आधारभूत सिद्धान्तों का, जिनका चयन भूतल पर स्थानिक रूप में परिवर्तनशील पर्यावरण प्रभावों की व्याख्या के लिए किया जाता है, का समन्वय हैं’।
उपरोक्त चर्चाओं के निष्कर्ष रूप में भौतिक भूगोल को निम्न रूप से परिभाषित किया जा सकता है:
“भौतिक भूगोल पृथ्वी के भौतिक पर्यावरण का क्रमबद्ध अध्ययन करने वाला विज्ञान है जिसके अन्तर्गत स्थलमण्डल, जलमण्डल, हिममण्डल, वायुमण्डल एवं जीवमण्डल का व्याख्यात्मक विवेचन किया जाता है।”
सविन्द्र सिंह, 2009
इनको भी पढें 1. पृथ्वी का भूगर्भिक इतिहास (Geologic History of the Earth) 2. पर्वत के रूप (Form of Mountain) |
भौतिक भूगोल का विषय क्षेत्र (Scope of Physical Geography)
किसी भी विषय के विषयक्षेत्र से अभिप्राय है कि उसमें किन तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, भौतिक भूगोल में हम पृथ्वी के पांच प्रमुख मण्डलों स्थलमण्डल, जलमण्डल, हिममण्डल, वायुमण्डल, जीवमण्डल का अध्ययन करते हैं। वर्तमान समय में भौतिक भूगोल अन्य विज्ञानों से चुने गए कुछ तथ्यों का समूह मात्र ही नहीं है बल्कि यह भौतिक पर्यावरण एवं मानव के पारस्परिक क्रियाओं के प्रतिरूपों (patterns of interactions) का भी अध्ययन करता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भौतिक भूगोल, भूगोल की प्रमुख शाखा के रूप में पर्यावरणीय तत्वों (जल, स्थल, वायु आदि) के स्थानीय प्रतिरूपों (spatial patterns) तथा उनके आपसी सम्बन्धों व धरातल पर इन प्रतिरूपों के कारणों की व्याख्या भी करता है। साथ ही साथ इन पर्यावरणीय तत्वों में स्थान व समय के साथ आने वाले परिवर्तनों की व्याख्या तथा उनके कारणों का भी अध्ययन करता है।
अत: स्पष्ट है कि भौतिक भूगोल के अध्ययन का मूल केन्द्र पृथ्वी पर स्थित जीव मण्डल (life layer) है जो वायु, स्थल तथा जल का आवरण है जिसमें वनस्पति तथा प्राणिजगत का जीवन सम्भव हो पाता है। इसमें हम उन सभी भौतिक तत्वों एवं कारकों का अध्ययन करते हैं जो जीवन मण्डल के जीवों (वनस्पति तथा प्राणि जगत) के रहने हेतु सुयोग्य क्षेत्र प्रदान करते हैं।
हम जानते हैं कि जीव मण्डल की गुणवत्ता (quality) भौतिक पर्यावरण द्वारा ही निर्धारित होती है तथा भौतिक पर्यावरण की गुणवत्ता पृथ्वी के अन्तर्जात (पृथ्वी के अन्दर से उत्पन्न) एवं बहिर्जात (वायुमंडल से उत्पन्न) कारकों, बलों तथा ऊर्जा द्वारा निर्धारित होती है। पृथ्वी की ठोस सतह (क्रस्ट) जीवमण्डल के लिए आवासीय क्षेत्र (habitats) प्रदान करती है। पृथ्वी के अन्तर्जात बलों द्वारा धरातल पर बनने वाली स्थलाकृतियाँ जैसे पर्वत, पठार, मैदान आदि आवासीय क्षेत्रों में विविधता लाती हैं।
ये भी देखें 1. ज्वालामुखी व ज्वालामुखी क्रिया में क्या अन्तर होता है? (What is the difference between Volcano and Vulcanicity?) 2. रिफ्ट घाटी (Rift Valley) |
हमें पृथ्वी की बाहरी ठोस सतह से ही जीवमण्डल के लिए पोषक तत्व (nutrient elements) भी प्राप्त होते हैं। दूसरी ओर वायुमण्डल एक तरफ तो जीवमण्डल को आवश्यक तत्व जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन आदि प्रदान करता है तो दूसरी तरफ धरातल पर विभिन्न प्रकार की जलवायु का निर्माण करता है। वायुमंडल के कारण अर्थात् बहिर्जात प्रक्रमों द्वारा वायुमंडल तथा भूतल के बीच ऊष्मा तथा जल का आदान- प्रदान होता है तथा भूतल पर अनाच्छादनात्मक क्रियाओं द्वारा विभिन्न प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण होता है जो जीवमण्डल के आवासीय क्षेत्रों में और अधिक विविधता पैदा करते हैं।
इस तरह एक तरफ तो भौतिक पर्यावरण जीवमण्डल में वनस्पति तथा प्राणि जगत के जीवन रूपों को प्रभावित तथा नियन्त्रित करता है तो दूसरी तरफ मानव भी अपने क्रियाकलापों द्वारा इन भौतिक पर्यावरण में परिवर्तन तथा परिमार्जन करता रहता है।
अत: स्पष्ट है कि भौतिक भूगोल में भौतिक पर्यावरण के क्रमबद्ध अध्ययन के साथ ही साथ भौतिक पर्यावरण तथा मानव के बीच पारस्परिक क्रियाओं का भी अध्ययन किया जाने लगा है। पिछले दशकों में भौतिक भूगोल के विषयवस्तु तथा अध्ययन प्रणाली में निम्न कारणों से आमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिले हैं-
(i) भौतिक भूगोल को मानव कल्याण के लिए अधिक से अधिक सार्थक बनाने की चाह तथा मानव भूगोल को इससे अधिकाधिक सम्बन्धित करके भूगोल के बिखरते रूप को पुनः संवारने के प्रयास।
(ii) प्राकृतिक प्रकोप (natural hazards) के प्रति अधिकाधिक झुकाव तथा मानव द्वारा भौतिक पर्यावरण में परिवर्तन के कुप्रभाव एवं उनसे जनित पर्यावरणीय समस्याओं का मूल्यांकन तथा निवारण पर ध्यान ।
(iii) प्रक्रमों की क्रियाविधि, मापन तथा गणितीय विश्लेषण पर विशेष बल ।
(iv) भौतिक भूगोल के कुछ विशिष्ट पहलुओं जैसे पारिस्थितिकी, जलविज्ञान, प्लेट विवर्तनिकी आदि के अध्ययन की ओर अधिक झुकाव ।
स्पष्ट है कि वर्तमान समय में भौतिक भूगोल के अध्ययन के अन्तर्गत स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल तथा जीवमंडल के क्रमबद्ध अध्ययन तथा इनके मध्य पारस्परिक क्रियाओं एवं अन्तर्सम्बन्धों के अध्ययन को शामिल किया जाता है।
References
- भौतिक भूगोल, सविन्द्र सिंह
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