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शैलिकी की संकल्पना (Concept of Petrology)

Estimated reading time: 11 minutes

जो छात्र बी.ए, एम.ए, यूजीसी नेट, यूपीएससी, आरपीएससी, केवीएस, एनवीएस, डीएसएसएसबी, एचपीएससी, एचटीईटी, आरटीईटी, यूपीपीसीएस, बीपीएससी जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए शैलिकी की संकल्पना का ज्ञान महत्वपूर्ण है। शैलिकी हमें यह समझने में मदद करती है कि चट्टानों का निर्माण, उनके प्रकार और उनके परिवर्तनों के पीछे क्या कारण हैं। यह भूगर्भिक इतिहास को समझने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। “चट्टानें भूगर्भिक इतिहास की पुस्तके हैं तथा जीवावशेष उनके पृष्ठ हैं”। यह कथन इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे चट्टानें और जीवावशेष हमें पृथ्वी के इतिहास के बारे में जानकारी देते हैं। इस लेख में हम शैलिकी की चक्रीय प्रक्रिया और इसके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करेंगे, जो न केवल परीक्षाओं के दृष्टिकोण से बल्कि भूगर्भिक अध्ययन में भी सहायक सिद्ध होंगे

शैलिकी की संकल्पना (Concept of Petrology)

चट्टानें पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास की पुस्तकें हैं और जीवावशेष उनके पृष्ठ। यह कहना बिल्कुल उचित है क्योंकि चट्टानें हमें पृथ्वी के अतीत की जानकारी देती हैं। किसी चट्टान के निर्माण का समय, परिस्थितियाँ और प्रक्रियाएँ हमें यह बताती हैं कि उस समय पृथ्वी पर क्या घटनाएँ घटित हो रही थीं।

चट्टानों की चक्रीय प्रक्रिया

चट्टानों का निर्माण एक चक्रीय प्रक्रिया के रूप में होता है। इसका मतलब है कि चट्टानों के निर्माण, विघटन और पुनः निर्माण का एक चक्र चलता रहता है। उदाहरण के लिए, किसी पर्वत का निर्माण भूगर्भिक उत्थान से होता है और फिर वह अपरदन की शक्तियों द्वारा धीरे-धीरे नीचा हो जाता है। इस तरह का चक्र कई बार घटित होता है। अपलाचियन पर्वत श्रेणी इसका एक उदाहरण है जहाँ पर इस प्रकार के चार चक्र पूरे हो चुके हैं।

आग्नेय शैल का चक्रीय निर्माण

पृथ्वी की उत्पत्ति के समय वह तप्त एवं तरल अवस्था में थी। धीरे-धीरे ठंडा होने से प्रथम आग्नेय शैल का निर्माण हुआ। बाद में इस चट्टान के विघटन तथा वियोजन से प्राप्त अवसाद नदी, वायु, ग्लेशियर तथा सागरीय तरंगों द्वारा उपयुक्त स्थानों पर जमा कर दिये गये। फलस्वरूप परतदार चट्टानों का निर्माण हुआ। पर्वत निर्माणकारी क्रिया के समय अत्यधिक दबाव के कारण तथा ज्वालामुखी उद्‌गार के समय गर्म मैगमा के सम्पर्क के कारण परतदार शैल का रूपान्तरण हो गया तथा रूपान्तरित शैल का निर्माण हुआ।

इस चक्रीय प्रक्रिया को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है:

1. आग्नेय शैल का निर्माण

2. आग्नेय शैल का विघटन और वियोजन

3. अवसादों का संचय और परतदार शैल का निर्माण

4. रूपान्तरण और रूपान्तरित शैल का निर्माण

5. अति रूपान्तरण और पुनः आग्नेय शैल का निर्माण

परतदार (अवसादी) शैल का चक्रीय निर्माण

आग्नेय शैल के विघटन और वियोजन से प्राप्त चट्टान चूर्ण के जमाव से परतदार शैल का निर्माण होता है। ताप एवं दबाव के कारण इसका रूपान्तरण होकर रूपान्तरित शैल का निर्माण होता है। इसके बाद दो सम्भावनायें हो सकती हैं:

1. रूपान्तरित शैल के विघटन तथा वियोजन से प्राप्त मलवा के जमाव से पुनः परतदार शैल का निर्माण।

2. रूपान्तरित शैल का पुनः रूपान्तरण के कारण द्रव रूप होना और फिर ठोस होकर आग्नेय शैल बन जाना।

रूपान्तरित शैल का चक्रीय निर्माण

रूपान्तरण आग्नेय तथा परतदार शैल, दोनों का होता है। इस प्रकार इसका चक्र भी दो रूपों में हो सकता है:

1. परतदार शैल से रूपान्तरित शैल का निर्माण

2. आग्नेय शैल से रूपान्तरित शैल का निर्माण

यह प्रमाणित हो चुका है कि आग्नेय शैल पृथ्वी की सबसे प्राचीनतम शैल है परन्तु वर्तमान समय में जिन प्राचीनतम आग्नेय शैलों का पता लग सका है उनका भी प्रवेश या अतिक्रमण प्राचीन परतदार चट्टानों में पाया जाता है। इससे यह प्रकट होता है कि वर्तमान समय की ज्ञात प्राचीनतम आग्नेय शैल ही प्रथम आग्नेय शैल नहीं है वरन् उसके पहले की भी परतदार शैल मिलती है। 

चट्टानों के निर्माण के प्रमाण और उदाहरण

चूना पत्थर का निर्माण

वर्तमान समय में चूना पत्थर का निर्माण सागरीय जल में चूनेदार जीवों के अवशेष के संगठन से होता है। इसमें खासकर मूंगा पाया जाता है जो कि सागरीय जीव होता है। यदि स्थल भाग पर कहीं पर चूने का पत्थर मिलता है तो यह प्रमाणित होता है कि उक्त स्थल कभी सागरीय जल में निमज्जित था। भारत में ‘विन्ध्यन क्रम’ की चट्टानों में पर्याप्त मात्रा में लाइमस्टोन पाया जाता है जिसका जमाव सागर में हुआ माना जाता है।

लावा और ज्वालामुखी उद्‌गार

जहाँ पर लावा का विस्तार पाया जाता है, यह प्रकट होता है कि किसी न किसी समय उक्त स्थान पर ज्वालामुखी का उद्‌गार हुआ होगा। उदाहरण के लिए प्रायद्वीपीयं भारत की काली मिट्टी का क्षेत्र यह प्रकट करता है कि यहाँ पर क्रीटैसियस युग में ज्वालामुखी उद्‌गार के कारण वृहद् लावा प्रवाह हुआ था।

नमक की चट्टान

नमक की चट्टान का निर्माण सागरीय खारे जल के वाष्पीकरण के कारण होता है। यदि कहीं पर नमक की चट्टान पायी जाती है या नमकीन जल की झील पाई जाती है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उक्त स्थान पर पहले सागर का स्थान था। उदाहरण के लिए भारत के थार रेगिस्तान में नमक की चट्टानें तथा खारे जल की झीलें पाई जाती हैं। इससे यह साफ स्पष्ट होता है कि प्रारम्भ में राजस्थान सागर की गोद में था।

कोयले का निर्माण

कोयले का निर्माण वनस्पति के नीचे दब जाने से होता है। अगर कहीं पर कोयले की तहें पाई जाती हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उक्त स्थान पर प्रारम्भ में विस्तृत जंगल तथा दलदली भाग रहा होगा। उदाहरण के लिए अन्टार्कटिका महाद्वीप में कोयले का पता चला है। वर्तमान समय में यह भाग बर्फ से आच्छादित है परन्तु कोयले की स्थिति से यह पता चलता है कि प्रारम्भ में वहाँ पर घनी वनस्पति रही होगी।

हिमानी अवशेष

हिमानी द्वारा जमाव किये जाने वाले भागों में गोलाश्म (boulder) मृत्तिका प्रमुख है। अगर किसी स्थान पर चट्टानों के बीच अथवा नीचे गोलाश्म मृत्तिका के अवशेष पाये जाते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उक्त स्थान पर कभी हिमानी का फैलाव हुआ होगा। उदाहरण के लिये भारत के प्रायद्वीपीय भाग की चट्टानों के निचले स्तर में कई स्थानों पर हिमाच्छादन द्वारा प्राप्त होने वाले गोलाश्म पाये जाते हैं।

चट्टानों के अवशेष और जलवायु परिवर्तन

चट्टानों के अवशेष, जिनसे चट्टान की निर्माण क्रिया तथा निर्माण काल का पता लगाया जाता है, को ‘चट्टान अवशेष’ (rock fossils) कहा जाता है। इसी प्रकार मौसम तथा जलवायु सम्बन्धी अनेक लक्षण चट्टानों पर विद्यमान रहते हैं जिनके आधार पर यह बताया जा सकता है कि उस समय जलवायु एवं मौसम सम्बन्धी दशाएँ कैसी थीं। इस प्रकार के चिह्न अथवा अवशेष भाग को ‘मौसम अवशेष’ (fossil weather) कहते हैं।

उदाहरण: ग्रेट ब्रिटेन

ग्रेट ब्रिटेन में प्लीस्टोसीन युग के हिमानीकरण के अनेक जमाव पाये जाते हैं। बोरिंग द्वारा पता चला है कि इसके पहले की अत्यधिक प्राचीन मृत्तिका (older clay) अधिक गहराई पर वर्तमान है, जिसमें ऐसी वनस्पतियों के अवशेष तथा जीवावशेष पाये गये हैं जो कि वर्तमान समय में उष्ण कटिबन्ध में पाये जाते हैं। इससे प्रकट होता है कि शीतल जलवायु के पूर्व ग्रेट ब्रिटेन की जलवायु उष्णार्द्र रही होगी। और अधिक गहराई तक बोरिंग करने पर पता चला है कि प्राचीन मृत्तिका के नीचे ऐसी चट्टानें हैं जिनकी रचना रेगिस्तानी चट्टानों से मिलती है। अतः उस समय यहाँ की जलवायु उष्ण एवं शुष्क रही होगी।

भारत में जलवायु परिवर्तन

भारत में भी जलवायु चक्र के परिवर्तन को प्रमाणित करने के लिये उदाहरण लिये जा सकते हैं। गोंडवाना क्रम की चट्टानों में बिहार एवं उड़ीसा में कोयले की तहें पायी जाती हैं। तालचीर कोयले की तह के नीचे गोलाश्म मृत्तिका पाई जाती है। इससे प्रकट होता है कि गोंडवाना क्रम की चट्टान के निर्माण के पूर्व हिमाच्छादन हुआ था तथा जलवायु ठंडी थी। इसके बाद कोयले का पाया जाना उष्ण एवं आर्द्र जलवायु को प्रदर्शित करता है। इस कोयले की तह के बाद “iron stone shale” चट्टान की परत पायी जाती है। इस प्रकार का जमाव उष्ण एवं शुष्क जलवायु में होता है।

महाद्वीपीय प्रवाह और जलवायु परिवर्तन

महाद्वीपीय प्रवाह की संकल्पना के अनुसार प्रारम्भ में सभी स्थल भाग एक रूप में संलग्न थे जिसे पैंजिया कहा गया। यह एक ही सागर ‘पैन्थालासा’ से घिरा था। बाद में ‘महाद्वीपीय प्रवाह’ के कारण इसका विखण्डन हो गया। जलवायु सम्बन्धी दशाएँ सागरीय भाग की तुलना में महाद्वीपीय भाग में भिन्न रहती हैं। अतः एक स्थान के टुकड़े महाद्वीपीय प्रवाह के कारण जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच जाते हैं तो जलवायु दशाओं का भी परिवर्तन हो जाता है। महाद्वीपीय प्रवाह के कारण महाद्वीपीय स्थल भाग जब एक-दूसरे से पृथक् हो गये तब विभिन्न भागों के मौसम तथा जलवायु दशाओं में भी परिवर्तन हो गया।

ज्वालामुखीय उद्‌गार एवं जलवायु परिवर्तन

प्रायः प्रत्येक महाद्वीप पर किसी न किसी समय ज्वालामुखीय उद्‌गार हुआ है। लावा के प्रवाह के कारण भी पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन होता है। ज्वालामुखीय उद्‌गार के समय वायुमण्डल में विभिन्न गैसों का समावेश होता है। फलतः पृथ्वी के तापमान में परिवर्तन हो जाता है। इन ज्वालामुखीय उद्‌गारों के समय में पृथ्वी के भूगर्भीय काल का निर्धारण विभिन्न तरीकों से किया जाता है। 

चट्टानों के जीवाश्म और उनका महत्व

चट्टानों के अध्ययन में जीवाश्मों का विशेष महत्व है। जीवाश्मों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि विभिन्न युगों में किस प्रकार के जीवों का अस्तित्व था। जीवाश्मों से यह भी पता चलता है कि जीवों की विभिन्न प्रजातियाँ कैसे विकसित हुईं और किस प्रकार वे विलुप्त हो गईं। जीवाश्मों के आधार पर पृथ्वी की आयु, भूगर्भीय घटनाओं का समय, तथा जलवायु परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सकता है।

उदाहरण: डायनोसोर के जीवाश्म

डायनोसोर के जीवाश्मों का अध्ययन करके वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि लगभग 65 मिलियन वर्ष पहले इन विशाल जीवों का अस्तित्व था। इन जीवाश्मों से यह भी पता चलता है कि डायनोसोर किस प्रकार के वातावरण में रहते थे, उनकी भोजन की आदतें क्या थीं, और उनके विलुप्त होने के कारण क्या थे। 

निष्कर्ष

चट्टानें पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास की महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं। उनके अध्ययन से हम न केवल पृथ्वी के अतीत को समझ सकते हैं, बल्कि वर्तमान भूगर्भिक प्रक्रियाओं और जलवायु परिवर्तनों को भी जान सकते हैं। चट्टानों के विभिन्न प्रकार, उनके निर्माण की प्रक्रियाएँ, और उनमें पाए जाने वाले जीवाश्म हमें पृथ्वी के इतिहास की अद्भुत कहानियाँ सुनाते हैं। 

चट्टानों के अध्ययन से हमें यह भी पता चलता है कि पृथ्वी एक गतिशील ग्रह है, जहाँ भूगर्भिक प्रक्रियाएँ निरंतर चलती रहती हैं। इन प्रक्रियाओं के अध्ययन से हम भविष्य के जलवायु परिवर्तनों का अनुमान लगा सकते हैं और उनके प्रभावों को समझ सकते हैं। इस प्रकार, चट्टानों का अध्ययन न केवल भूगर्भशास्त्रियों के लिए बल्कि हमारे सभी के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें हमारे ग्रह के बारे में अद्भुत जानकारियाँ प्रदान करता है।

Test You Knowledge With MCQs

1. चट्टानों का निर्माण किस प्रकार की प्रक्रिया है?

(A) एक दिशा में चलने वाली प्रक्रिया

(B) चक्रीय प्रक्रिया

(C) वियोजक प्रक्रिया

(D) स्थिर प्रक्रिया

2. प्रारंभिक आग्नेय शैल किससे निर्मित होती है?

(A) जल के ठंडा होने से

(B) पृथ्वी की ठंडी होने से

(C) वायुमंडल के ठंडा होने से

(D) ज्वालामुखी उद्गार से

3. चूना पत्थर का निर्माण किससे होता है?

(A) लावा से

(B) ज्वालामुखी उद्गार से

(C) सागरीय जल में चूनेदार जीवों के अवशेष से

(D) वायुमंडलीय गैसों से

4. कोयले का निर्माण कैसे होता है?

(A) वनस्पति के नीचे दब जाने से

(B) ज्वालामुखी उद्गार से

(C) सागर के वाष्पीकरण से

(D) लावा के ठंडा होने से

5. ‘मौसम अवशेष’ क्या प्रकट करते हैं?

(A) चट्टानों की निर्माण प्रक्रिया

(B) चट्टानों का निर्माण काल

(C) उस समय की जलवायु एवं मौसम संबंधी दशाएँ

(D) चट्टानों के जीवाश्म

6. गोलाश्म मृत्तिका के अवशेष कहाँ पाए जाते हैं?

(A) लावा के बीच

(B) ज्वालामुखी उद्गार के नीचे

(C) चट्टानों के बीच या नीचे

(D) सागर के तल में

7. महाद्वीपीय प्रवाह किसे इंगित करता है?

(A) महाद्वीपों का संलग्न रहना

(B) महाद्वीपों का विखंडन और प्रवाह

(C) सागरीय जल का प्रवाह

(D) वायुमंडलीय प्रवाह

8. ज्वालामुखीय उद्गार के समय वायुमंडल में कौन सी चीजें समाहित होती हैं?

(A) जल वाष्प

(B) लावा

(C) विभिन्न गैसें

(D) नमक

9. जीवाश्मों का अध्ययन हमें क्या जानकारी देता है?

(A) चट्टानों की निर्माण प्रक्रिया

(B) भूगर्भीय घटनाओं का समय

(C) जीवों की भोजन की आदतें

(D) उपरोक्त सभी

10. डायनोसोर के जीवाश्मों का अध्ययन क्या प्रकट करता है?

(A) उनकी भोजन की आदतें

(B) उनका अस्तित्व लगभग 65 मिलियन वर्ष पहले था

(C) वे किस प्रकार के वातावरण में रहते थे

(D) उपरोक्त सभी


उत्तर:

  1. (B) चक्रीय प्रक्रिया
  2. (B) पृथ्वी की ठंडी होने से
  3. (C) सागरीय जल में चूनेदार जीवों के अवशेष से
  4. (A) वनस्पति के नीचे दब जाने से
  5. (C) उस समय की जलवायु एवं मौसम संबंधी दशाएँ
  6. (C) चट्टानों के बीच या नीचे
  7. (B) महाद्वीपों का विखंडन और प्रवाह
  8. (C) विभिन्न गैसें
  9. (D) उपरोक्त सभी
  10. (D) उपरोक्त सभी

FAQs

चट्टानें भूगर्भिक इतिहास की पुस्तके क्यों कहलाती हैं?

चट्टानें भूगर्भिक इतिहास की पुस्तकें कहलाती हैं क्योंकि वे पृथ्वी के निर्माण और विकास की कहानी को अपने अंदर समेटे हुए हैं। उनकी परतों और संरचनाओं में भूगर्भिक घटनाओं के निशान होते हैं, जिनसे भूगर्भिक इतिहास का पता चलता है।

चट्टानों के अध्ययन से भूगर्भिक इतिहास का पता कैसे चलता है?

चट्टानों के अध्ययन से उनकी परतों, संरचनाओं, और जीवावशेषों के आधार पर यह पता लगाया जा सकता है कि किसी चट्टान विशेष का निर्माण कब और किस परिस्थिति में हुआ था। इससे भूगर्भिक घटनाओं और पृथ्वी के इतिहास की जानकारी मिलती है।

चट्टानों में जीवावशेष क्या होते हैं?

जीवावशेष, चट्टानों में पाए जाने वाले प्राचीन जीवों के अवशेष होते हैं। ये जीवावशेष चट्टानों के निर्माण के समय जीवित जीवों के संरक्षित अवशेष होते हैं, जो भूगर्भिक इतिहास की जानकारी प्रदान करते हैं।

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