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ढालों का वर्गीकरण (Classification of Slopes)
ढालों के वर्गीकरण (Classification of Slopes) को लेकर विभिन्न विद्वान एकमत नहीं हैं। इसका प्रमुख कारण ढालों के तत्त्व तथा उनके रूपों में भ्रम का होना ही है। कुछ विद्वानों ने ढालों के प्रमुख तत्त्व (उत्तल, मुक्त पृष्ठ, सरलरेखी या समढाल या अवतल) को ही ढालों के प्रकार बताए हैं, जबकि कोई भी ढाल केवल उत्तल या अवतल नहीं हो सकता है, यद्यपि किसी एक तत्त्व का प्रभुत्व हो सकता है।
कुछ विद्वान सरलीकरण के लिए ढालों को क्लिफ ढाल, उत्तल, अवतल, सरल रेखी ढाल इत्यादि प्रकारों में विभाजित कर लेते हैं तथा जब इनमें से एक से अधिक ढाल एक साथ मिलते हैं तो उनको संयुक्त ढाल (composite slope) कहते हैं। यह विभाजन न्यायसंगत नहीं है, क्योंकि ये ढाल के प्रकार न होकर उनके तत्त्व या अंग होते हैं।
ढालों का वर्गीकरण उनकी उत्पत्ति के आधार पर अधिक वैज्ञानिक होगा। इस तरह के वर्गीकरण को जननिक वर्गीकरण (genetic classification) कहते हैं। ढालों का वर्गीकरण परिमाणात्मक (quantitative) भी हो सकता है। उपरोक्त चर्चा के बाद हम ढालों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर कर सकते हैं:
ढालों का जननिक वर्गीकरण
उत्पत्ति के आधार पर ढालों को निम्न तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है।
विवर्तनिक ढाल (tectonic slope)
विवर्तनिक ढाल का निर्माण मुख्य रूप से भूगर्भ में होने वाली हलचलों के कारण धरातल में होने वाले भ्रंशन तथा नमन के कारण होता है। इसमें कगार ढाल (scarp slope) अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं।
अपरदनात्मक ढाल
मुख्य रूप से नदियों, हिमनदियों तथा सागरीय तरंगों द्वारा अपरदन के कारण निर्मित ढालों को इस श्रेणी के में शामिल किया जाता है। नदियाँ अपरदन चक्र के दौरान अपनी घाटी के ढालों को विभिन्न रूप प्रदान करती हैं। तरुणावस्था में उत्तल, प्रौढ़ावस्था में लम्बवत् तथा जीर्णावस्था में अवतल ढालों का विकास होता है। सागरीय तरंगें तटीय भागों पर क्लिफ का निर्माण करती हैं, जो कि खड़े ढाल वाला होता है। शुष्क रेगिस्तानी भागों में जलीय अपरदन द्वारा ढालों के विभिन्न रूप देखे जाते हैं।
संचयनात्मक ढाल (slope of accumulation)
अपरदन के साधनों द्वारा निक्षेपण तथा विभिन्न अवसादों केज मा होने के कारण बने ढालों को संचयनात्मक या निक्षेपजनित ढाल कहते हैं। नदियों द्वारा निर्मित जलोढ़ पंख तथा जलोढ़ शंकु, वायु द्वारा, निक्षेपित बालुका स्तूप और हिमानी द्वारा निक्षेपित हिमोढ़ कटक के ढाल उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत किये जा सकते हैं। ज्वालामुखी के उद्गार के कारण निस्सृत पदार्थों के संचयन के कारण निर्मित शंकुओं के ढाल इस श्रेणी के प्रमुख उदाहरण हैं।
निर्माण की अवस्था के आधार पर ढालों का वर्गीकरण
निर्माण की अवस्था के आधार पर ढालों को निम्न दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है-
प्राथमिक ढाल (primary slope)
प्राथमिक ढाल का निर्माण नदी, हिमनदी, हवा, सागरीय तरंगों आदि के द्वारा अपरदन होने से होता है। नदी द्वारा V आकार की घाटी, गार्ज इत्यादि का निर्माण होता है, जिनके खड़े ढाल होते हैं। सागरीय तरंगें अपरदन द्वारा खड़े ढाल वाले क्लिफ तथा हिमनद U आकार की खड़े ढाल वाली घाटियों का निर्माण करते हैं। विवर्तनिक ढाल प्राथमिक ढाल के अन्तर्गत ही शामिल किए जाते हैं।
द्वितीयक ढाल (secondary slope)
जब प्राथमिक ढालों का निर्माण हो जाता है तो उनके ऊपर अपक्षय के कारण तथा धरातलीय अपरदन के द्वारा गौण अथवा उपढालों का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए भ्रंशन के कारण जब कगार ढाल का निर्माण हो जाता है तो अपक्षय के कारण उत्पन्न अवसादों (टालस) के कगार ढाल के आधार पर संचयन के कारण टालस शंकु का निर्माण होता है। इसी तरह नदियों की घाटियों की खड़ी दीवारों के ऊपरी भाग में अपक्षय के कारण गौण ढालों का निर्माण होता है। परिणामस्वरूप खड़े ढालों का विनाश होने लगता है तथा वे पीछे हटने लगते हैं और घाटी की चौड़ाई बढ़ने लगती है।
ढाल तत्त्व के आधार पर ढालों का वर्गीकरण
ढाल के चारों तत्त्वों का एक साथ सदैव पाया जाना यदि सैद्धान्तिक रूप में नहीं तो व्यावहारिक रूप में सम्भव नहीं है। कभी-कभी किसी विकसित पहाड़ी ढाल में ये चारों तत्त्व मिल जाते हैं परन्तु ऐसा प्रायः ही होता है। चूँकि ढाल के विभित्र तत्त्वों का विकास स्थानीय परिस्थितियों (चट्टान की प्रकृति, अपरदन का प्रक्रम, जलवायु आदि) पर आधारित होता है, अतः कभी-कभी एकाध या कई तत्त्वों का विकास नहीं हो पाता है।
उदाहरण के लिए जिस भाग में उच्चावच्च निम्न होते हैं, वहाँ पर मुक्त पृष्ठ ढाल तथा सरलरेखी ढाल सर्वथा अदृश्य होते हैं। इसके विपरीत यदि कहीं पर कठोर तथा मुलायम चट्टानें एकान्तर रूप (alternate) में पाई जाती हैं तो वहाँ पर मुक्त पृष्ठ ढाल तथा सरलरेखी ढाल की पुनरावृत्ति हो जाती है।
ढालों के विकास तथा उनके तत्त्वों की उपस्थिति में दूसरी मुख्य बात यह है कि अपरदन चक्र की अवस्था के अनुसार इनका क्रम बदलता रहता है। उदाहरण के लिए अपरदन चक्र की प्रथम अवस्था में उत्तलता की बहुलता रहती है। प्रौढ़ावस्था में जब कि घाटी का गहरा होना तथा चौड़ा होना प्रायः बराबर होता है तो सरल रेखी ढाल अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। चक्र के अन्त में जब कि निम्नवर्ती कटाव रुक जाता है, क्षीयमाण ढाल (अवतल) अधिक विस्तृत होता है।
इस आधार पर हम प्रत्येक तत्त्व को एक ढाल का ओहदा दे सकते हैं, परन्तु इस तरह के विशुद्ध ढाल कम ही होते हैं। कम से कम दो तत्त्व किसी भी ढाल में अवश्य विद्यमान होते हैं। इस तरह विशुद्ध के बजाए मिश्रित ढाल अधिक देखने कोप मिलते हैं। मिश्रित ढाल कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे:
- उत्तल – अवत्तल ढाल
- उत्तल – सरलरेखी – अवत्तल ढाल
- मुक्त पृष्ठ – सरलरेखी – अवत्तल ढाल
- उत्तल – सरलरेखी – मुक्त पृष्ठ – अवत्तल ढाल आदि।
ढालों का परिमाणात्मक (मात्रात्मक) वर्गीकरण
ढालों के मात्रात्मक वर्गीकरण का मुख्य आधार ढालों का कोण होता है, जिसे या तो क्षेत्र में मापन तथा परिकलन द्वारा या भूपत्रकों से परिकलन द्वारा ज्ञात किया जाता है। ढाल कोणों के आधार पर पहाड़ी ढाल को निम्न रूपों में विभाजित किया जाता है।
सामान्य वर्गीकरण
ढालों का सामान्य वर्गीकरण | ढाल का कोण |
---|---|
चौरस (flat) ढाल | (0 – 1)° |
मन्द ढाल (gently sloping) | (1 – 3)° |
सामान्य मन्द ढाल (moderately sloping) | (3 – 8)° |
तीव्र ढलुआ ढाल (strongly sloping) | (8 – 15)° |
सामान्य तीव्र (moderately steep) | (15 – 20)° |
अति तीव्र (very steep) | (30 – 90)° |
यंग द्वारा ढालों का वर्गीकरण
यंग का वर्गीकरण | ढाल का कोण |
---|---|
समतल से मन्द ढाल (level to gentle) (अ) समतल (level) (ब) प्रायः समतल (almost level) (स) अति मन्द (very gentle) | (0 – 0.5)° (0.5 – 1)° (1 – 2)° |
मन्द ढाल (gentle slope) | (2 – 5)° |
सामान्य ढाल (moderate slope) | (5 – 10)° |
सामान्य तीव्र (moderately steep) | (10 – 18)° |
तीव्र (steep) | (18 – 30)° |
अति तीव्र (very steep) | (30 – 45)° |
कगार से खड़ा ढाल (precipitous to vertical) (अ) कगार (precipitous)(ब) खड़ी दीवाल सदृश | (45 – 70)° (70 – 90)° |
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