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भूकम्प का वर्गीकरण (Classification of Earthquakes)

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इस लेख में हम विभिन्न आधारों पर भूकम्प का वर्गीकरण विस्तारपूर्वक जानेंगे।

भूकम्प के कारणों की जानने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि भूकम्प के स्वभाव में पर्याप्त अन्तर देखने को मिलता  है। यदि हम संसार के विभिन्न भूकम्पों का अलग-अलग अध्ययन करें तो पाएंगे कि प्रत्येक भूकम्प की अपनी स्वयं की कुछ विशेषताएं होती हैं जो उसको दूसरे से अलग करती हैं। ये एक दूसरे से इतने भिन्न होते हैं कि इनको निश्चित श्रेणियों में विभाजित करना कठिन ही जाता है । फिर भी भूकम्पों की सामान्य विशेषताओं के आधार पर उन्हें निनिम्नलिखित रूपों में विभाजित किया जा सकता है।

Classification of Earthquakes
भूकम्प का वर्गीकरण

भूकम्प का वर्गीकरण (Classification of Earthquakes)

भूकम्प की उत्पत्ति में भाग लेने वाले कारकों के आधार पर वर्गीकरण 

प्राकृतिक भूकम्प

जब भूकम्प का उत्पत्ति प्राकृतिक कारणों अर्थात् पृथ्वी की वाह्य अथवा आन्तरिक शक्तियों से होती है तो उसे ‘प्राकृतिक भूकम्प’ कहा जाता है। प्राकृतिक भूकम्पों को  पुनः चार उपवर्गों में विभाजित किया जाता है

ज्वालामुखी भूकम्प

ज्वालामुखी विस्फोट के समय भयंकर भूकम्प का अनुभव किया जाता है । प्रायः ज्वालामुखी भूकम्प ज्वालामुखी क्षेत्रों में ही आते हैं। इस प्रकार के भूकम्पों की तीव्रता एवं प्रभाव ज्वालामुखी के उद्गार की तीव्रता पर आधारित होता है। उदाहरण के लिये 1883 ई० का क्राकाटोआ का ज्वालामुखी भूकम्प अधिक विनाशकारी था। जनवरी, 1968 ई० के एटना ज्वालामुखी के विस्फोट से उत्पन्न भूकम्प भी काफी घातक था। इस प्रकार के भूकम्प स्थल एवं जल दोनों भागों पर अनुभव किए जाते हैं। 

भ्रंशमूलक भूकम्प

पृथ्वी के भूपटल में भ्रंशन की क्रिया द्वारा चट्टानों में अचानक से होने वाली हलचल के कारण उत्पन्न होने वाले भूकम्प को ‘भ्रंशमूलक भूकम्प’ कहते हैं। इस प्रकार के भूकम्प अत्यधिक तीव्र तथा भयंकर होते हैं एवं इनका विस्तार भूपटल में 4.8 से 24 किमी० की गहराई तक पाया जाता है। सन् 1872 ई० का कैलीफोर्निया का भूकम्प इसका प्रमुख उदाहरण है। जापान का 1923 ई० का सगामी की खाड़ी का भूकम्प भी भ्रंशमूलक ही था। 

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संतुलनमूलक भूकम्प

संतुलन में अव्यवस्था उत्पन्न होने से उत्त्पन्न भूकम्प को संतुलन मूलक भूकम्प कहते हैं। इस प्रकार के भूकम्प प्रायः नवीन मोड़दार पर्वतीय क्षेत्रों में आते हैं। सन् 1949 ई० का हिन्दूकुश का भूकम्प संतुलनमूलक ही था। 

प्लूटानिक भूकम्प

धरातल से अत्यधिक गहराई पर उत्पन्न होने वाले भूकम्प को ‘प्लूटानिक भूकम्प’ कहते हैं। इनका उद्गम क्षेत्र धरातल से 240 से 672 किमी० की गहराई तक पाया जाता है। इस प्रकार के भूकम्प बहुत कम आते हैं। क्योंकि ये बहुत गहराई में उत्पन्न होते हैं, अतः इनके विषय में अभी तक विशेष जानकारी नहीं प्राप्त की जा सकी है। 

ये इतनी गहराई पर आते हैं कि वहाँ पर ऊपर स्थित चट्टानों का भार तथा दबाव बहुत अधिक होता है। अतः किसी भी प्रकार की चट्टानों में भ्रंशन की सम्भावना इतनी गहराई पर नहीं की जा सकती है। कुछ विद्वानों के अनुसार चट्टानों में स्थित रासायनिक खनिजों में विस्फोट, चट्टानों के खनिजों का पुनर्संगठन इत्यादि ही प्लूटानिक भूकम्पों के कारण बताये जा सकते हैं। 

कृत्रिम या अप्राकृतिक भूकम्प

जब मानव के रचनात्मक कार्यों (सुरंग खोदना, खानों की खुदाई, बड़े-बड़े भवनों का निर्माण, रेलपथ, जलाशय एवं बांधों का निर्माण) अथवा विनाशात्मक कार्यों (बमों का परीक्षण तथा विस्फोट आदि) द्वारा भूकम्प आता है तो उसे ‘मानवकृत भूकम्प’ अथवा ‘कृत्रिम भूकम्प’ कहते हैं। इनके उद्भव में प्राकृतिक कारणों का हाथ नहीं रहता है। 

यदि प्रायद्वीपीय भारत के कोयना भूकम्प का कारण कोयना बांध तथा जलाशय में एकत्रित जलीय भार को मान लिया जाय तो कोयना भूकम्प भी मानवकृत भूकम्प का उदाहरण बन सकता है, यद्यपि इसके कारण के विषय में मतैक्य नहीं है। जलाशय के जलीयभार से उत्पन्न भूकम्प को जलभण्डार जनित भूकम्प (reservoir-induced earthquake) कहते हैं । 

भूकम्पमूल की स्थिति के आधार पर वर्गीकरण 

अनेक विद्वानों ने विभिन्न क्षेत्रों में भूकम्प के कई झटकों का अध्ययन करके उन्हें श्रेणीबद्ध करने का प्रयास किया है। उदाहरण के लिए ओल्डहम ने इटली में भूकम्प के 5605 झटकों का अध्ययन तथा व्याख्या करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी के 90 प्रतिशत से अधिक भूकम्प धरातल से 8 किलोमीटर से कम गहराई पर उत्पन्न होते हैं, 8 प्रतिशत भूकम्प 18 से 30 किलोमीटर की गहराई पर तथा शेष अधिक गहराई पर उत्पन्न होते हैं। गुटेनबर्ग तथा रिटर के अनुसार “कम्पन की उत्पत्ति की प्रक्रिया प्रत्येक गहराई पर एक सी होती है” । भूकम्प की गहराई के आधार पर इन्होंने भूकम्प को तीन भागों में विभाजित किया है-

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साधारण भूकम्प

जब भूकम्पमूल की स्थिति धरातल से 0 से 50 किलोमीटर की गहराई तक होती है, तो उसे ‘साधारण प्रकार के भूकम्प’ कहते हैं।

मध्यवर्ती भूकम्प

जब भूकम्पमूल की गहराई धरातल से 50 से 250 किलोमीटर तक होती है तो उसे ‘मध्यवर्ती भूकम्प’ कहते हैं। 

अत्यधिक गहराई वाले भूकम्प 

जब भूकम्प का उत्पत्ति केन्द्र धरातल से 250 से 700 किलोमीटर की गहराई पर पाया जाता है तो उसे ‘गहरे भूकम्प मूल वाला भूकम्प’ कहते हैं। 

स्थिति के आधार पर वर्गीकरण

 स्थिति के आधार पर भूकम्प को दो भागों में विभाजित किया जाता है

स्थलीय भूकम्प (land earthquake)

भूकम्प स्थलभाग पर आता है तो उसे स्थलीय भूकम्प कहते हैं। इनकी संख्या सागरीय भूकम्प से बहुत अधिक होती है । 

सागरीय भूकम्प (marine earthquake)

इस प्रकार के भूकम्प समुद्र के भूगर्भ में आते हैं तथा इनसे अत्यधिक विनाशकारी सागरीय लहरें उत्पन्न होती हैं। इन सागरीय भूकम्पों द्वारा उत्पन्न लहरों को ‘सुनामिस लहर’ (tsunamis) कहते हैं । इनसे तटवर्ती भागों पर पर्याप्त क्षति होती है।

References

  1. भौतिक भूगोल, डॉ. सविन्द्र सिंह

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