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इस लेख के माध्यम से आप ज्वालामुखी उद्गार के संभावित कारणों के बारे में जानेंगे।
ज्वालामुखी उद्गार के कारण (Causes of Volcanic Eruption)
इतनी वैज्ञानिक उन्नति होने के बावजूद भी ज्वालामुखी क्रिया आज तक रहस्मयी घटना बनी हुई है। यह तो सर्व विदित है कि ज्वालामुखी का सम्बन्ध पृथ्वी के आंतरिक भाग से है, लेकिन भूगर्भ के विषय में आज तक ठीक जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है। जो भी जानकारी हमें प्राप्त है, वह तर्क एवं कल्पनाओं पर ही आधारित है। यही कारण है कि ज्वालामुखी के उद्गार से सम्बन्धित किसी भी वास्तविक कारण का अब तक पता नहीं लगाया जा सका है।
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तर्क एवं कल्पनाओं पर आधारित ज्वालामुखी के उद्गार के निम्नलिखित कारण हो सकतें हैं:
- यदि ज्वालामुखी के धरातल पर वितरण को देखें तो पाएंगे कि अधिकतर ज्वालामुखी भूपटल के कमजोर भागों में पाए जाते हैं तथा भूकम्प से इनका गहरा सम्बन्ध होता है । हालांकि हिमालय क्षेत्र इसके अपवाद हैं, क्योंकि यहाँ पर भूकम्प अधिकतर आते रहते हैं, लेकिन ज्वालामुखी घटनाएँ नगण्य हैं। ज्वालामुखियों का सागर तटों के सहारे पाया जाना इस बात ओर इशारा करता है कि जल एवं ज्वालामुखी के उद्गार में गहरा सम्बन्ध है। इसी प्रकार ज्वालामुखी एवं पर्वत निर्माण क्रिया तथा धरातलीय दरार निर्माण में गहरा सम्बन्ध है।
- ज्वालामुखी के दरारी उद्भेदन में बेसाल्ट की मात्रा अधिक होती है। डेली महोदय ने बताया है कि संसार के सभी दरारी उद्गार से निकलने वाले लावा का 90 से 95 प्रतिशत भाग बेसाल्ट का होता है। इस प्रकार दरारी उद्गार में बेसाल्ट की अधिकता का होना इस बात को प्रमाणित करता है कि ज्वालामुखी का उद्गार पृथ्वी के भीतर एक ऐसी परत से सम्बन्धित है जो (तरल या ठोस) बेसाल्ट की बनी है तथा इसी स्थान से लावा ऊपर आता है।
- केन्द्रीय उद्गार से निकलने वाले पदार्थों में हर प्रकार की आग्नेय चट्टान के टुकडे शामिल होते हैं। जो यह दर्शाता है कि ज्वालामुखी का उद्गार किसी विशेष प्रकार की चट्टान की परत से सम्बन्ध नहीं रखता है। और यह भी स्पष्ट है कि इस प्रकार के पदार्थों का निर्माण बहुत अधिक ताप के कारण कई प्रकार की चट्टानों के पिघलने से होता है ।
- केन्द्रीय अथवा दरारी उद्गार से लावा पदार्थ, गैस तथा विखण्डित पदार्थ धरातल पर प्रकट होते हैं। इनका उद्गम स्थल कहाँ है? किस प्रकार का है? इन प्रश्नों के विषय में विभिन्न विद्वान एकमत नहीं हैं।
- ज्वालामुखी के उद्गार के समय बहुत गर्म लावा पदार्थ निकलता है। इससे सिद्ध होता है कि जहाँ से लावा का उद्गार होता है, वहाँ पर बहुत अधिक तापमान होता है।
उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर ज्वालामुखी के उद्गार प्रक्रिया में चार अवस्थायें बतायी जा सकती हैं-
(i) भूगर्भ में ताप का अत्यधिक होना
(ii) अत्यधिक ताप के कारण लावा की उत्पत्ति (दबाव कम हो जाने पर)
(iii) गैस तथा वाष्प की उत्पत्ति
(iv) लावा का ऊपर की तरफ प्रवाहित होना ।
यहाँ पर यह बताना आवश्यक है कि उपरोक्त चारों क्रियाओं के साथ-साथ कार्य करने पर ही ज्वालामुखी क्रिया का प्रकटीकरण होता है ।
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