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Table of contents
- थॉर्नवेट के जलवायु प्रदेश (Thornthwaite’s Climatic Regions) के आधार
- थॉर्नवेट के जलवायु प्रदेश (Thornthwaite’s Climatic Regions): वर्षण-प्रभाविता सूचकांक पर आधारित
- थॉर्नवेट के जलवायु प्रदेश (Thornthwaite’s Climatic Regions): तापीय दक्षता सूचकांक पर आधारित
- थॉर्नवेट के अनुसार भारत में पाए जाने वाले जलवायु प्रदेश या विभाग
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थॉर्नवेट के जलवायु प्रदेश (Thornthwaite’s Climatic Regions) के आधार
अमेरिकी विद्वान् थॉर्नवेट ने विश्व के जलवायु प्रदेशों की योजना सन् 1933 में प्रस्तुत की। थॉर्नवेट का विश्वास था कि जलवायु के तत्त्वों का सम्मिलित प्रभाव वनस्पति के रूप में आँका जा सकता है। उनके अनुसार जिस प्रकार मौसम विज्ञान के यन्त्र विभिन्न प्रकार के परिणामों को सूचित करते हैं, ठीक उसी प्रकार प्राकृतिक रूप से उपस्थित एक पौधा जलवायु का सूचक होता है।
थॉर्नवेट ने अपनी विधि में वनस्पति, मिट्टी तथा जल-प्रवाह का निरीक्षण करके जलवायु के प्रकारों तथा उनकी सीमाओं का निर्धारण किया। पौधों की बढ़ोत्तरी मूल रूप से वर्षण-प्रभाविता (Precipitation Effectiveness) पर निर्भर होती है। किसी माह विशेष की कुल वृष्टि को उसी माह के वाष्पीकरण द्वारा विभाजित करने से वर्षण-प्रभाविता अनुपात (P.E. Ratio) प्राप्त होता है, जिसके द्वारा वर्षण-प्रभाविता का कुल परिणाम अंकित किया जाता हैं।
कुल बारह महीने की वर्षण-प्रभाविता के अनुपात का योग ‘वर्षण-प्रभाविता सूचकांक’ (P.E. Index) कहलाता है। सूचकांक की सहायता से वृष्टि के प्रभाव का अनुभव करना श्रेयस्कर है। थॉर्नवेट ने इस सूत्र के आधार पर विश्व को आर्द्रता सम्बन्धी पाँच प्रदेशों में विभक्त किया है :
थॉर्नवेट के जलवायु प्रदेश (Thornthwaite’s Climatic Regions): वर्षण-प्रभाविता सूचकांक पर आधारित
आर्द्रता सम्बन्धी प्रदेश | वनस्पति के प्रकार | वर्षण प्रभाविता सूचकांक |
---|---|---|
A अधिक आर्द्र | वर्षा के वन | 128 और अधिक |
B आर्द्र | वन | 64 -127 |
C उपार्द्र | घास के मैदान | 32 – 63 |
D अर्ध-मरुस्थलीय | स्टेप्स | 16-31 |
E मरुस्थलीय | मरुथल | 16 से कम |
वृष्टि की मौसम सान्द्रता (Seasonal Concentration) के आधार पर आर्द्रता सम्बन्धी उपर्युक्त पाँच प्रदेशों को पुनः चार उप-विभागों में निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है : –
r – प्रत्येक मौसम में पर्याप्त वर्षा
s – ग्रीष्मकाल में वर्षा की कमी
w – शीतकाल में वर्षा की कमी
d – प्रत्येक मौसम में वर्षा की कमी
उन्होंने आर्द्रता के अलावा तापमान के प्रभाव का निरीक्षण भी किया था। तापीय दक्षता (Thermal Efficiency) का जलवायु के वर्गीकरण में महत्त्वपूर्ण स्थान है। कुल बारह महीने की तापीय दक्षता के अनुपात के योग को तापीय दक्षता सूचकांक (T/E Index) की संज्ञा दी गई। उन्होंने तापीय दक्षता का अध्ययन करके ताप सम्बन्धी छः प्रदेश निम्नलिखित प्रकार से नियुक्त किए:
थॉर्नवेट के जलवायु प्रदेश (Thornthwaite’s Climatic Regions): तापीय दक्षता सूचकांक पर आधारित
ताप सम्बन्धी प्रदेश | तापीय दक्षता सूचकांक |
---|---|
A’- उष्ण कटिबन्धीय | 128 एवं अधिक |
B’ – समशीतोष्ण कटिबन्धीय | 64 – 127 |
C – शीतोष्ण कटिबन्धीय | 32 – 63 |
D’ – टैगा | 16 – 31 |
E’ – टुण्ड्रा | 1 – 15 |
F’ – हिमाच्छादित | 0 |
इस प्रकार वृष्टि-क्षमता, वृष्टि की मौसमी सान्द्रता तथा तापीय क्षमता के सम्मिलत प्रभाव को लेकर जलवायु के 120 प्रकार प्रस्तुत किए जा सकते हैं, किन्तु इन सभी प्रकारों को विश्व मानचित्र पर दिखाना थोड़ा कठिन कार्य था। अतः थॉर्नवेट ने जलवायु के 32 विभाग नियुक्त किए और उनको विश्व के मानचित्र में दिखाया।
थॉर्नवेट के अनुसार भारत में पाए जाने वाले जलवायु प्रदेश या विभाग
1. AA’ – उष्ण कटिबन्धीय अधिक आई जलवायु, जहाँ तापीय दक्षता एवं वर्षण-प्रभाविता दोनों के सूचकांक 128 या उससे अधिक संख्या में हों। वर्षा प्रत्येक मौसम में पर्याप्त होती हो। यहाँ अधिक वर्षा पर निर्भर वन उगते हैं। यह जलवायु पश्चिमी तट के दक्षिणी भान तथा त्रिपुरा एवं उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में मिलती है।
2. BA’w – उष्ण कटिबन्धीय आई जलवायु, जहाँ तापीय-दक्षता का सूचकांक 128 या उससे अधिक हो, किन्तु वर्षण-प्रभाविता का सूचकांक 64 वा 127 के मध्य हो। शीतकाल में वर्षा की कमी अनुभव की जाती हो। यह जलवायु भी वनों को उगाने में सहयोगी है। यह जलवायु पश्चिमी घाट के पूर्वी डालों तथा पश्चिम बंगाल में पाई जाती है।
3. BB’w – सम शीतोष्ण कटिबन्धीय आई जलवायु जहाँ तापीय-दक्षता एवं वर्षण-प्रभाविता दोनों के सूचकांक 128 या उससे अधिक हों। शीतकाल में वर्षा की कमी अनुभव की जाती हो। यह जलवायु भी वनों को उगाने में सहयोगी है। यह जलवायु असम, मेघालय, मिजोरम तथा नागालैण्ड में मिलती है।
4. CA’w – उष्ण कटिबन्धीय उपाई जलवायु, जहाँ तापीय-दक्षता का सूचकांक 128 या अधिक तथा वर्षण-प्रभाविता का सूचकांक 32 से 63 के मध्य पाया जाता हो। शीतकाल में वर्षा की कमी होती हो। यह जलवायु घास के मैदानों को उत्पन्न करती है। प्रायद्वीपीय भारत के अधिकांश भागों में इस जलवायु का विस्तार मिलता है।
5. CA’w’ – यह उपर्युक्त विभाग की भांति उष्ण कटिबन्धीय उपाई जलवायु ही है, किन्तु शरद् ऋतु में अधिक वर्षा होली है।
6. CB’w – सम-शीतोष्ण कटिबन्धीय उपाई जलवायु जहाँ तापीय दक्षता का सूचकांक 64 से 127 तक तथा वर्षण-प्रभाविता का सूचकांक 32 से 63 के मध्य पाया जाता है। शीतकाल में वर्षा की कमी होती हो। यह जलवायु भी घास के मैदानों के लिए उपयुक्त है। गंगा के मैदान का अधिकांश भाग इसी जलवायु के अधीन है।
7. DA’w – उष्ण कटिबन्धीय अर्ध-मरुस्थलीय जलवायु, जहाँ तापीय दक्षता का सूचकांक 64 से 127 के मध्य तथा बर्षण-प्रभाविता का सूचकांक 16 से 31 हो। शीतकाल में वर्षा की कमी हो। यह जलवायु स्टैप्स की वनस्पति के लिए उपयुक्त है। इसका विस्तार गुजरात तथा राजस्थान में है।
8. DB’d – समशीतोष्ण कटिबन्धीय अर्ध-मरुस्थलीय जलवायु, जहाँ तापीय दक्षता का सूचकांक 64 से 127 के मध्य तथा वर्षण-प्रभाविता का सूचकांक 16 से 31 के मध्य पाया जाता हो। प्रत्येक मौसम में वर्षा की कमी होती है। यह जलवायु स्टैप्स वनस्पति के लिए उपयुक्त है। यह जलवायु जम्मू-कश्मीर में पाई जाती है।
9. DB’w – यह उपर्युक्त विभाग की भाँति समशीतोष्ण कटिबन्धीय अर्ध-मरुस्थलीय जलवायु ही है। किन्तु वर्षा की कमी शीतकाल में अनुभव की जाती है। पश्चिमी पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान के कुछ भागों एवं प्रायद्वीप के वृष्टिछाया क्षेत्र में यह जलवायु मिलती है।
10. D’ – यह टैगा जलवायु के समान है, जहाँ तापीय दक्षता का सूचकांक 16 से 31 के मध्य पाया जाता है। इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड के पर्वतीय भागों में मिलता है।
11. E – ह शीत जलवायु है और हिमालय के उच्च भागों तथा लद्दाख से मिलती है।
12. EA’d – उष्ण कटिबन्धीय मरुस्थलीय जलवायु जहाँ तापीय दक्षता का सूचकांक 128 या अधिक, किन्तु वृष्टि क्षमता का सूचकांक 16 से भी कम हो। यहाँ प्रत्येक मौसम में वर्षा की कमी अनुभव की जाती है। वनस्पति केवल मरुस्थलीय ही उगती है। यह जलवायु राजस्थान के पश्चिमी भाग में पाई जाती है।
उपर्युक्त वर्गीकरण कोपेन की भाँति ही मात्रा प्रधान है, किन्तु कोपेन से कई बातों में भिन्न भी है। कोपन ने ताप और वृष्टि के सामान्य वितरण को अपने वर्गीकरण का आधार बनाया है, जबकि थॉनवेट ने तापीय दक्षता और वर्षण-प्रभाविता को आधार बनाया है। एक कठिनाई अवश्य है कि थॉनवेट के वर्गीकरण में जलवायु के प्रदेशों की सीमाएँ कोपेन की अपेक्षा जटिल है। इसके अतिरिक्त प्रदेशों की संख्या भी कोपेन की संख्या से अधिक है।
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