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Table of contents
भारतीय जलवायु की मुख्य विशेषताएं (Salient Features of Indian Climate)
मानसून पवनों का प्रभाव (Effect of Monsoon Winds)
भारतीय जलवायु (Indian Climate) की सबसे मुख्य बात यह है कि यहां की जलवायु पूर्ण रूप से मानसून पवनों से प्रभावित है। यही कारण है कि भारतीय जलवायु को ‘मानसूनी जलवायु‘ (Monsoon Climate) कहा जाता है। मानसून पवनों का प्रभाव जितना भारत की जलवायु पर पड़ता है उतना किसी अन्य देश की जलवायु पर नहीं पड़ता।
वर्षा की मात्रा तथा समय (Amount and Time of Rainfall)
भारत की अधिकांश वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून (South-West Monsoon) पवनों द्वारा होती है। देश की कुल वर्षा का 75% ग्रीष्मकालीन दक्षिण-पश्चिमी मानसून काल में, 13% मानसून के उपरान्त (Post-Monsoon) काल में, 10% पूर्व मानसून (Pre-Monsoon) काल में तथा शेष 2% शीतकाल में होता है।
वर्षा का असमान वितरण (Uneven Distribution of Rainfall)
भारत में वर्षा (Rainfall) का क्षेत्रीय वितरण समान नहीं है। जहां मौसिनरम (मेघालय) में 1221 सेमी० वार्षिक वर्षा होती है। वहीं जैसलमेर (राजस्थान) में 10 सेमी0 से भी कम वार्षिक वर्षा होती है। नीचे दी गई तालिका से यह स्पष्ट होता है कि भारत का केवल 11% भाग 200 सेमी० से अधिक वार्षिक वर्षा प्राप्त करता है जबकि लगभग एक-तिहाई भू-भाग में 75 सेमी० से कम वार्षिक वर्षा होती है।
वर्षा की अनिश्चितता (Uncertainty of Rainfall)
मानसूनी वर्षा का अधिकांश भाग जुलाई से सितम्बर तक प्राप्त होता है। परन्तु मानसून वर्षा प्रायः समय पर नहीं आती और काफी अनिश्चित (Uncertain) होती है। कभी तो यह वर्षा समय से पहले आ जाती है और कभी काफी देर से आती है। इससे कृषि कार्य पर प्रतिकूल (Adverse) प्रभाव पड़ता है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि दस वर्षों की अवधि में केवल दो वर्ष ही मानसून की वर्षा समय पर आरम्भ तथा समाप्त होती है। शेष आठ वर्षों में इसके प्रारम्भ तथा समापन में अनिश्चितता (Uncertainty) पाई जाती है।
वर्षा की अनियमितता (Irregularity of Rainfall)
मानसूनी वर्षा अनिश्चित होने के साथ-साथ अनियमित (Irregular) भी होती है। यह अपनी नियमित मात्रा से अधिक अथवा कम हो सकती है जिससे क्रमशः बाढ (Flood) अथवा सूखे (Draught) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अनियमितता का प्रभाव विशेष रूप से 50 से 100 सेमी० वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पड़ता है। ऊपरी व मध्य गंगा का मैदान तथा प्रायद्वीपीय भारत (Peninsular India) के अधिकांश भागों में इसका प्रभाव विशेष रूप से पड़ता है। इससे अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अनियमितता के बावजूद भी फसलों के लिए पर्याप्त जल मिल जाता है और इससे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिचाई की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
मानसून विभंगता (Gap of Monsoon)
मानसून की वर्षा निरन्तर नहीं होती, बल्कि कुछ दिनों के अन्तराल पर रुक-रुक कर होती है। कभी-कभी वर्षा काल के एक माह तक वर्षा नहीं होती। किसी वर्ष वर्षा ऋतु के आरम्भ में खूब वर्षा हो जाती है और उसके बाद एक लम्बा सूखा अन्तराल आ जाता है। इससे कृषि को हानि पहुँचती है।
मूसलाधार वर्षा (Torrential Rainfall)
देश की कुल वार्षिक वर्षा का 75% भाग मानसून पवनों द्वारा वर्ष के केवल चार महीनों में प्राप्त होता है। इन चार महीनों में भी वास्तविक वर्षा के दिन केवल 40 से 45 ही होते हैं। इन दिनों वर्षा बूँदा बाँदी (Drizzle) के रूप में न होकर मूसलाधार (torrential) रूप में होती है। चेरापूँजी (मेघालय) में 180 दिन में 1080 सेमी ० तथा श्रीगंगानगर (राजस्थान) में 10-12 दिनों में 12 सेमी० वर्षा हो जाती है। इसीलिए प्रायः कहा जाता है कि “भारत में बादल पानी उड़ेलते है न कि बरसते हैं।” (It pours, it never rains in India),
पर्वतकृत वर्षा (Orographic Rainfall)
मानसून वर्षा मूल रूप से पर्वतकृत वर्षा है (The rainfall over the country is primarily orographic)। देश में स्थित ऊंचे पर्वत मानसून पवनों को रोककर वर्षा करने में सहायता देते हैं। हिमालय पर्वत तथा पश्चिमी घाट इस सन्दर्भ में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। पवन सम्मुख ढालों (Windward Slopes) पर खूब वर्षा होती है जबकि पवन विमुख ढाल (Leeward Slopes) प्रायः शुष्क रह जाते हैं।
तापमान का असमान वितरण (Uneven Distribution of Temperature)
भारत के विभिन्न भागों में तापमान (Temperature) की भिन्नता पाई जाती है। उत्तर-पश्चिमी भारत में महाद्वीपीय जलवायु (Continental Climate) है जिस कारण वार्षिक तथा दैनिक तापान्तर अधिक पाया जाता है। यहाँ पर ग्रीष्म ऋतु में तापमान 45° से० तक पहुँच जाता है जबकि शीत ऋतु में यह हिमांक (freezing point) से भी नीचे गिर जाता है। दक्षिणी भारत में समुद्र के समकारी प्रभाव के कारण तापमान में अधिक विषमता नहीं पाई जाती।
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