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कच्छ का रण (Rann of Kachchh)

rann of kachchh on map

कच्छ का रण (Rann of Kachchh) : भौगोलिक स्थिति

भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात में स्थित कच्छ का रण 23,300 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ। यह दुनिया का सबसे बड़ा नमक का  रेगिस्तान है, जो रण ऑफ कच्छ के नाम से मशहूर है। गुजरात राज्य के कच्छ जिले में (कुछ भाग पाकिस्तान में भी है) फैला हुआ यह सफेद रेगिस्तान एक विशाल क्षेत्र है, जो थार रेगिस्तान का ही हिस्सा है। रण हिंदी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है रेगिस्तान। 

इस सफेद रेगिस्तान की सबसे खास बात यह है कि मानसून के आते ही कच्छ की खाड़ी का सारा पानी इस रेगिस्तान में आ जाता है, जिससे यह सफेद रेगिस्तान विशाल समुद्र की तरह दिखता है। जुलाई से लेकर नवंबर तक इस महान रण का हिस्सा एक समुद्र जैसा प्रतीत होता है। गर्मियों में यहां  का तापमान लगभग 44 से 50 डिग्री तक चला जाता है और सर्दियों में कई बार तापमान 0 डिग्री से भी नीचे चला जाता है। इस दलदल इलाके में बालू के टिब्बे तथा साल्ट पैन्स है। इस इलाके से भारत का 70% नमक मिलता है।

मानसून के दौरान कच्छ के रण का दृश्य

कैसे बना कच्छ का रण (Rann of Kachchh)?

वाकई नमक के इस रेगिस्तान को देखना जितना अद्भुत है, उतना ही दिलचस्प है इसके बनने की कहानी। वैसे तो कच्छ का रण एक समुद्र का ही हिस्सा है, लेकिन 1819 में आए एक भूकंप के कारण यहां का भौगोलिक परिदृश्य पूरी तरह बदल गया और इसका कुछ भाग ऊपर की तरफ उभर आया था। सिकंदर के समय इस हिस्से को नौगम्य झील के नाम से जाना जाता था। कच्छ का रण दो हिस्सों में बटा है: उत्तरी रण और पूर्वी रण। उत्तरी रण यानी ग्रेट रण आफ कच्छ तो 257 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है तथा पूर्वी रण जिसे लिटिल रण आफ कच्छ कहते हैं लगभग 5178 किलोमीटर में फैला हुआ है।

कच्छ का रण (Rann of Kachchh) उत्सव

यहां हर साल होने वाला रण उत्सव दुनिया भर में मशहूर  है। इस रण उत्सव में यहां आप डेजर्ट सफारी से लेकर लोकगीत, लोक नृत्य का आनंद ले सकते हैं। 38 दिनों तक चलने वाले इस रण उत्सव को देखने के लिए देश के लोग ही नहीं बल्कि विदेशी भी भारी संख्या में शामिल होते हैं।

कच्छ के रण (Rann of Kachchh) का संक्षिप्त इतिहास

अगर बात करें इसके इतिहास की तो कच्छ पर पहले सिंध के राजपूतों का शासन हुआ करता था, लेकिन बाद में जडेजा राजपूत राजा खेंगर जी के समय भुज को कच्छ की राजधानी बना दिया। सन 1741 में राजा लखपति कच्छ के राजा कहलाए। लेकिन 1815 में अंग्रेजों ने डूंगर पहाड़ी पर कब्जा कर लिया और कच्छ को अंग्रेजी जिला घोषित कर दिया। ब्रिटिश शासन काल में ही कच्छ में रजित विलास महल और मांडवी विलास महल बनाए गए थे। 

कच्छ के रण (Rann of Kachchh) का विवाद

कच्छ के इस रण पर विवाद भी हुआ था। बात सन 1965 की है, जब रण के पश्चिमी छोर पर भारत-पाकिस्तान सीमा को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। अप्रैल 1965 में सीमा को लेकर लड़ाई छिढ़ गई थी और बाद में ब्रिटेन के हस्तक्षेप के बाद विवाद खत्म हुआ। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव द्वारा सिक्योरिटी काउंसलिंग को भेजी गई रिपोर्ट के मुताबिक इस पूरे मामले को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को भेजा गया था। लेकिन 3 साल बाद सन 1968 में जाकर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने फैसला सुनाया की कच्छ के रण का 10% हिस्सा पाकिस्तान में और 90% हिस्सा भारत  के पास रहेगा और एक साल बाद सन 1969 में इस रण का विभाजन हो गया। 

कच्छ के रण (Rann of Kachchh) में जीव-जन्तु

animals in rann of kachchh

यहां एक एनिमल है जिसने अच्छी तरह से अपने आप को यहां के पर्यावरण के अनुकूल समायोजित कर लिया है। यह है इंडियन वाइल्ड डोंकी इनका कलर आसपास की भूमि से  मिलता-जुलता है। यह अपने स्टैमिना और स्पीड के लिए जाना जाता है। इन्हें बहुत कम पानी चाहिए और यह अत्यधिक गर्मी को भी झेल सकते हैं। 

इनके अतिरिक्त यह इलाका यंग फॉक्स का भी घर है। इन्होंने रहने के लिए यहां मांद के जाल बना रखे हैं, जो एक दूसरे के साथ आपस में जुड़ी हैं। यंग फॉक्स रोडेंट के अलावा जो मिलता है उसका शिकार कर लेते हैं।  ट्रैफिक से दूर भगाने की बजाए यंग फॉक्स सड़क के पास चक्कर लगाने लगते हैं, क्योंकि इनको यहां दावत मिल जाती है। रोड एक्सीडेंट्स में छोटे-मोटे जानवर मारे जाते हैं, उनको ये खा लेते हैं। 

उपरोक्त जानवरों के अलावा कच्छ के रण में अपने वार्षिक प्रवास पर सुंदर पक्षी फ्लेमिंगो आते हैं। ये पक्षी ठीक मानसून के समय  में आते हैं, जब यह इलाका झील का रूप ले लेता है।

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