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रेल परिवहन (Rail Transport)

भारतीय का रेल मानचित्र
भारतीय का रेल मानचित्र (Source: https://indianrailways.gov.in/)

भारतीय रेल परिवहन (Indian Rail Transport)

रेल परिवहन भारत के आंतरिक स्थल परिवहन की स्नायु प्रणाली है। भारतीय रेल तंत्र यहाँ के जीवन को प्रभावित करता है और माल तथा सवारियों को ढोने में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रेल परिवहन तंत्र ने भारत के आर्थिक विकास तथा राष्ट्रीय एकीकरण के लिए विशेष योगदान दिया है। भारत में प्रथम रेलगाड़ी सन् 1853 में मुंबई तथा थाणे के बीच 34 किमी० की दूरी तक चली। लेकिन रेलों का सही विकास सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई के बाद आरंभ हुआ, जब अंग्रेज़ सरकार ने प्रशासन के लिए रेलों की आवश्यकता को महसूस किया। 

अंग्रेज़ सरकार ने विदेशी व्यापार के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाने की दृष्टि से तीन मुख्य बंदरगाहों (मुंबई, चेन्नई तथा कोलकाता) को आंतरिक भागों से मिलाने के लिए रेल-मार्गों का निर्माण किया। 31 मार्च, 2022 तक भारत में 68,043 किमी० लंबे रेल मार्ग हो गए थे, जिन पर प्रतिदिन 10,250 हजार यात्री रेलगाड़ियाँ  व 9,164 हजार माल  रेलगाड़ियाँ 7,308 रेलवे स्टेशनों का भ्रमण करती हैं। ये प्रतिदिन 9.64 मिलियन यात्री तथा 3.88 मिलियन टन माल ढोती हैं। हमारी रेल-व्यवस्था एशिया में प्रथम तथा विश्व में तीसरा स्थान रखती है। 

भारतीय रेलमार्गों प्रकार (Types of Indian Railway Lines)

भारतीय रेल-मार्ग चौड़ाई अथवा गेज (Gauge) की दृष्टि से निम्नलिखित तीन प्रकार के हैं : 

बड़ी लाइन अथवा चौड़ी गेज (Broad Gauge)

इसकी चौड़ाई अर्थात् दोनों पटरियों की आपसी दूरी 1676 मिलीमीटर अथवा 1.676 मीटर होती है। 31 मार्च, 2022 को भारत में चौड़ी गेजवाली लाइनों की कुल लंबाई 65,093 किमी० (अर्थात् कुल का 95.66%) थी। ये देश के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण नगरों तथा बंदरगाहों को मिलाती हैं। 

मध्यम लाइन अथवा मीटर गेज (Metre Gauge)

इसकी चौड़ाई 1,000 मिलीमीटर अथवा एक मीटर होती है। 31 मार्च, 2022 को भारतीय रेल का 2.43% (अर्थात् 1,655 किमी०) इसी वर्ग की थीं। 

छोटी लाइन अथवा संकरी गेज (Narrow Gauge)

इसकी चौड़ाई 762 मिलीमीटर तथा 610 मिलीमीटर है। 31 मार्च, 2022 को देश का कुल 1.90 % (अर्थात् 1,294 किमी०) रेल-मार्ग छोटी लाइन का है। ये कुछ पर्वतीय क्षेत्रों तक ही सीमित हैं और थोड़ी दूर तक ही चलती हैं।

कोंकण रेलवे 
1998 में कोंकण रेलवे का निर्माण भारतीय रेल की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। यह 760 किमी० लंबा रेलमार्ग महाराष्ट्र में रोहा को कर्नाटक के मंगलौर से जोड़ता है। इसे अभियांत्रिकी का एक अनूठा चमत्कार माना जाता है। यह रेलमार्ग 146 नदियों व धाराओं तथा 2,000 पुलों एवं 91 सुरंगों को पार करता है। इस मार्ग पर एशिया की सबसे लंबी (6.5 किमी०) सुरंग भी है। इस उद्यम में कर्नाटक, गोवा तथा महाराष्ट्र राज्य भागीदार हैं।
कोंकण रेलवे 

रेलमार्गों को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting railways)

रेलमागों को प्रभावित करने वाले कारक भारतीय रेलों का प्रारूप निम्न भौगोलिक, राजनैतिक तथा आर्थिक कारकों से प्रभावित हुआ है : 

भौगोलिक तत्त्व (Geographical Factors)

भारत के उत्तरी मैदान में समतल भूमि, घनी जनसंख्या, समृद्ध कृषि, औद्योगीकरण तथा नगरीकरण ने रेलमार्गों के विकास के लिए बहुत ही उपयुक्त दशाएँ प्रस्तुत की हैं। परंतु यहाँ पर बहने वाली अनेक नदियों पर पुलों के निर्माण में अधिक धन व्यय होता है, जिस कारण रेल-निर्माण कार्य काफी महँगा हो जाता है। इसी प्रकार से असम तथा बिहार के बाढ ग्रस्त क्षेत्रों में रेलों का अभाव है। 

भारत का मध्य पठारी भाग भी रेलों के विकास के लिए अधिक अनुकूल नहीं है। उत्तर में हिमालय क्षेत्र रेलों से लगभग पूर्णतः वंचित है। रेलमार्ग केवल पदस्थली पर स्थित नगरों तक ही पहुँच पाए हैं, जैसे-जम्मू, कोटद्वार, हरिद्वार तथा काठगोदाम आदि। कहीं-कहीं सँकरे गेज के रेलमार्ग मिलते हैं, जिनमें कालका से शिमला तथा सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग प्रमुख हैं। इसी प्रकार, राजस्थान के भी मरुभूमि क्षेत्र में रेलमार्ग बनाना कठिन कार्य है। 

मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा के घने जंगलों तथा पश्चिम बंगाल एवं रन कच्छ के दलदली भागों में रेल-निर्माण कार्य में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। पर्वतीय एवं वनाच्छादित सहयाद्रि में भी रेलों का निर्माण नहीं किया जा सकता। इस पर्वत को थालघाट, भोरघाट तथा पालघाट द्वारा पार करके ही मुंबई, मंगलोर, वास्कोडिगामा तथा कोच्चि रेलमार्ग शीर्षों तक पहुँचा जा सकता है। 

आर्थिक तत्त्व (Economical Factors)

रेल-मार्ग प्रायः उन्हीं क्षेत्रों में अधिक विकसित होते हैं, जहाँ आर्थिक परिस्थितियाँ इनके अनुकूल हों। यही कारण है कि मुख्य रेल-मार्ग बड़े-बड़े नगरों तथा औद्योगिक केन्द्रों को मिलाते हैं। 

राजनैतिक तत्त्व (Political Factors)

स्वतंत्रता-प्राप्ति से पहले ब्रिटिश शासकों की नीति अपने शासन को दृढ़ बनाने तथा सैनिक शक्ति बढ़ाकर भारत का शोषण करने की थी। इसलिए उन्होंने अधिक रेल मार्गों का जाल मुंबई, कोलकाता तथा चेन्नई के आसपास ही बिछाया। संसाधनों के शोषण की व्यवस्था इस प्रकार की गई कि छोटे-छोटे गाँवों से अधिशेष उत्पादन छोटे नगरों तथा उपक्षेत्रीय केन्द्रों तक ले जाया जाता था। जहाँ से उन्हें बड़े नगरों तक पहुँचाया जाता था, जो बंदरगाहों से जुड़े हुए थे। इस प्रकार संपूर्ण पृष्ठ-प्रदेश बंदरगाहों से जोड़ दिया गया था। 

रेल-जालों की समरूपता को अन्य विदेशी शक्तियों, जैसे-फ्रांस एवं पुर्तगाल द्वारा प्रशासित क्षेत्रों की उपस्थिति ने भी प्रभावित किया। इसके साथ ही कुछ देशी रियासतें अपने परिवहन तंत्र की व्यवस्था स्वयं करती थीं। इन कारणों से एक समन्वित तथा एकीकृत परिवहन जाल के विकास में बाधा पड़ी और रेलों का विस्तार बंदरगाहों से आंतरिक क्षेत्रों की ओर हुआ। 

यात्री यातायात (Passenger traffic)

रेल यात्रा सस्ती एवं सुलभ होती है, जिस कारण लोग इसे अधिक पसंद करते हैं। रेल यात्रियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। 1950-51 में यह संख्या 128.4 करोड़ थी, जो बढ़कर 2019-20 में  808.6 करोड़ हो गई थी। लेकिन 2020-21 में केवल 125 करोड़ यात्रियों ने यात्रा की, जिसका कारण कोरोना के लगा Lockdown रहा। 2021-22 में फिर से यह संख्या बढकर 351.9 करोड़ हो गई। 

भारतीय रेल विभाग द्वारा यात्रियों की सेवा के लिए पाँच प्रकार की रेलगाड़ियाँ चलाई जा रही हैं। साधारण यात्री रेलगाड़ियाँ, एक्सप्रेस, एक्सप्रेस/मेल रेलगाडियाँ, सुपरफास्ट रेलगाडियाँ, राजधानी, शताब्दी और जनशताब्दी रेलगाड़ियाँ। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को राज्यों की राजधानियों तथा अन्य महत्त्वपूर्ण नगरों से जोड़ने के लिए संपर्क क्रांति एक्सप्रेस गाड़ियाँ चलाई गई हैं। यही नहीं अब रेलों में आरक्षण कंप्यूटर द्वारा होने लगा है। 

अब भारत में किसी भी रेल आरक्षण केंद्र से या ऑनलाइन माध्यम या मोबाइल एप्लीकेशन से किन्हीं दो स्टेशनों के बीच तत्काल आरक्षण करवाया जा सकता है। यहां तक वर्तमान समय में अनारक्षित सीटों की बुकिंग भी मोबाइल एप्लीकेशन से की जा सकती है। 

माल ढुलाई (Freight)

यात्रियों की संख्या के साथ ही माल के परिवहन में भी भारी वृद्धि हुई है। औद्योगिक और कृषीय क्षेत्रों में विकास के कारण रेल परिवहन की माँग बहुत बढ़ गई है। रेलों द्वारा ढोई गई प्रमुख वस्तुएँ हैं- कोयला, लोहा और इस्पात, अयस्क, पेट्रोलियम उत्पाद तथा अन्य आवश्यक वस्तुएँ, जैसे-खाद्यान्न, उर्वरक, सीमेंट, चीनी, नमक, खाद्य तेल आदि। इसी के परिणामस्वरूप ढोए गए माल की मात्रा में वृद्धि हुई है। 1950-51 में रेलों ने 7.32 करोड़ टन माल ढोया था, जिसकी मात्रा बढ़कर 2021-22 में लगभग 141.5 करोड टन हो गई। 

भारत में रेलमार्गों का वितरण (Distribution of railways in India)

हिमालय प्रदेश में रेलमार्ग (Railway route in Himalayan region)

हिमालय प्रदेश में न्यूनतम रेलें हैं। यहाँ सीमित क्षेत्रों में ही कुछ छोटी लाइन वाले रेल मार्ग हैं। इसका कारण ऊबड़-खाबड़ जमीन, अधिक ऊँचाई, विरल जनसंख्या तथा आर्थिक विकास की कमी है। यहाँ शिमला, काँगड़ा, दार्जिलिंग आदि शहरों को ही छोटी लाइन द्वारा रेल सेवा उपलब्ध है। इसी प्रकार राजस्थान मरुस्थल में अरावली के पश्चिमोत्तर, विशेषतया जोधपुर के पश्चिम की ओर भी कम रेल-मार्ग हैं। 

उत्तरी मैदान में रेलमार्ग (Railway route in Northern Plains)

उत्तरी भारत के मैदान में रेलों का घना जाल है। देश में रेलों की लम्बाई का आधा भाग इसी क्षेत्र में है , जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं : 

(i) यह समतल मैदान भू-भाग है, जहाँ आसानी से रेल लाइनें बिछाई जा सकती हैं। 

(ii) यहाँ जनसंख्या अत्यधिक है, जिसे रेल यातायात की बहुत अधिक आवश्यकता है।

(iii) कृषीय एवं औद्योगिक विकास के कारण यहाँ रेलों का गहन जाल बिछ गया है। 

(iv) नदियों पर पुल बनाने के अतिरिक्त और कोई विशेष बाधा नहीं है। 

(v) इस मैदानी भाग में बड़े-बड़े नगर बस गए हैं, जिसके कारण यहाँ रेलों का विकास अधिक हुआ है। 

(vi) रेलमार्ग के निर्माण के लिए लोहा-इस्पात केन्द्रों से पर्याप्त लोहा बिहार से प्राप्त हो जाता है। रेलवे इंजन-निर्माण के महत्त्वपूर्ण केन्द्र चितरंजन तथा वाराणसी इसी क्षेत्र में हैं। 

(vii) निकटवर्ती हिमालय पर्वत से रेलमार्ग निर्माण के लिए आवश्यक पत्थर तथा वहाँ के वनों से उपयोगी लकड़ी प्राप्त हो जाती है। 

प्रायद्वीपीय पठार में रेल-मार्ग (Railway route in peninsular plateau)

इस क्षेत्र में पहाड़ी तथा पठारी स्थलाकृतियों की विभिन्नता उत्तरी मैदान की अपेक्षा अधिक है। जनसंख्या का घनत्व भी साधारण अथवा विरल है। इन कारणों से सौराष्ट्र तथा तमिलनाडु के अतिरिक्त यहाँ रेल-मार्गों का विकास अपेक्षाकृत कम हुआ है। मुख्य रेल मार्ग भारत के तीन बड़े पोताश्रयों (मुंबई, कोलकाता, चेन्नई) को पारस्परिक तथा दिल्ली से जोड़ते हैं। इसके अतिरिक्त, उत्तर-पश्चिमी में जम्मू, कालका, देहरादून, फिरोजपुर, और अमृतसर: भारत के पश्चिम में जोधपुर, बीकानेर तथा कांधला; दक्षिण में तिरुवनतंपुरम् तथा चेन्नई; पूर्व में गोहाटी, डिब्रूगढ़ तथा पुरी तक दिल्ली से तेज रफ्तार की गाड़ियाँ चलती हैं। 

भारतीय रेलों का महत्त्व (Importance of Indian rails)

(1) अधिकांश रेलमार्ग अधिक उपजाऊ तथा घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बनाए गए हैं ताकि अधिक-से-अधिक लोगों को रेल की सुविधा प्राप्त हो सके और रेल विभाग की आय में वृद्धि हो। 

(2) भारतीय रेल सरकार की आय का मुख्य साधन है। 

(3) रेलों से लाखों लोगों को आजीविका मिलती है। 

(4) रेलें देश की बन्दरगाहों को आन्तरिक मागों से जोड़ती हैं जिससे व्यापार में वृद्धि होती है। 

(5) रेलें देश के विभिन्न भागों के निवासियों को एक-दूसरे के निकट लाने में सहायता देती हैं। इससे राष्ट्रीय एकता बढ़ती है और देश मजबूत होता है। 

(6) रेलों की सहायता से बाढ़, सूखा या अन्य किसी दैवी विपत्ति के समय पीड़ित लोगों को तुरन्त सहायता पहुँचाई जा सकती है। इससे इन दैवी विपत्तियों की विभीषिका कम हो गई है। 

(7) विभिन्न प्रकार का कच्चा माल उद्योग केन्द्रों तक लाने तथा औद्योगिक उत्पाद को खपत के क्षेत्रों तक ले जाने का कार्य भी मुख्यतः रेलों द्वारा ही किया जाता है। इससे देश के औद्योगिक विकास में सहायता मिलती है। 

(8) किसानों को दूर-दूर से उन्नत बीज तथा खाद उपलब्ध कराने और कृषि उत्पादों मण्डियों तक पहुँचाने का काम भी मुख्यतः रेलें ही करती हैं। इस प्रकार से कृषि की उपज को बढ़ाने तथा किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने में रेलों का बहुत बड़ा योगदान है। 

(9) आधुनिक रेलगाड़ियों की यात्रा बड़ी सुखद हो गई है। अधिकांश लम्बी दूरी के यात्री रेलों में ही यात्रा करते हैं। (10) भारतीय रेलें हमारी सुरक्षा-व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। सीमा पर तैनात सेनाओं को रसद तथा गोला-बारूद मुख्यतः रेलों द्वारा ही पहुँचाया जाता है। 

(11) रेलों के विकास के फलस्वरूप कई नए नगरों का जन्म हुआ है तथा कई पुराने नगरों के आकार में वृद्धि हुई है। 

(12) रेल-मार्ग, सड़क-मार्गों तथा वायु-मार्गों की अपेक्षा सस्ते होते हैं अतः लोग यातायात तथा परिवहन के साधनों में रेलों का प्रयोग अपेक्षाकृत अधिक करते हैं।

भारत में रेल मंडल (Railway Zone in India)

भारतीय रेल के उचित प्रबंधन के लिए इसे 17 मंडलों में बाँटा गया है।जिनको नीचे तलिका में दिखाया गया है:

मुख्यालय के साथ भारतीय रेल मंडल

रेल मंडलमुख्यालय 
सेंट्रलमुंबई (सी०एस०टी०)
ईस्टर्नकोलकाता
ईस्ट सेंट्रलहाजीपुर 
ईस्ट कोस्टलभुवनेश्वर
नॉदर्नBaroda House, नई दिल्ली
नॉर्थ सेंट्रलइलाहाबाद
नॉर्थ ईस्टर्नगोरखपुर
नार्थ फ्रंटियरमालीगाँव (गुवाहाटी)
नॉर्थ वेस्टर्नजयपुर 
सदर्नचेन्नई 
साउथ सेंट्रलसिकंदराबाद
साउथ ईस्टर्नGarden Reach, कोलकाता
साउथ ईस्ट सेंट्रलबिलासपुर
साउथ वेस्टर्नहुबली
वेस्टर्न मुंबई (चर्च गेट)
वेस्ट सेंट्रल जबलपुर
मेट्रो रेलकोलकाता
स्रोतः Ministry of Railways (Railway Board)

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