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इस लेख को पढ़ने के बाद आप भारत के जनसंख्या-संसाधन प्रदेशों (Population-Resource Regions of India) के बारे में विस्तार से जन पाएंगे।
भारत के जनसंख्या-संसाधन प्रदेश (Population-Resource Regions of India)
जनसंख्या स्वयं एक संसाधन है और यह विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों की खोज, उपभोग और प्रबंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। देश के विभिन्न भागों में संसाधनों के वितरण में, विद्यमान संसाधनों के विकास एवं उपयोग तथा तज्जनित आर्थिक विकास के स्तर में पर्याप्त विषमता देखने को मिलती है। संसाधनों और जनसंख्या के अनुपात के आधार पर किसी प्रदेश की जनसँख्या को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जाता है –
1. अनुकूलतम जनसंख्या (optimum population)
2. अतिजनसंख्या (overpopulation), और
3. अल्प जनसंख्या (under population)
हम जानते हैं कि भारत के विभिन्न प्रदेशों की स्थिति एक समान नहीं है क्योंकि जनसंख्या-संसाधन अनुपात का वितरण अधिक असमान दिखायी पड़ता है। भारत को जनसंख्या-संसाधन प्रदेशों में विभक्त करने का महत्वपूर्ण प्रयास कुमारी पी. सेनगुप्ता (1970) ने किया है। उन्होंने जनांकिकीय संरचना (जनसंख्या घनत्व और जनसंख्या वृद्धि दर), संसाधन भंडार और सामाजिक-आर्थिक विकास के स्तर को आधार बनाते हुए सम्पूर्ण भारत को तीन बृहत् श्रेणियों के अंतर्गत कुल 19 जनसंख्या संसाधन प्रदेशों में विभक्त किया है।
यहाँ पी. सेनगुप्ता के वर्गीकरण के अनुसार ही भारत के जनसंख्या संसाधन प्रदेशों का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। पी. सेनगुप्ता द्वारा निर्धारित भारत के जनसंख्या संसाधन प्रदेश निम्नांकित हैं :
बृहत् प्रदेश | जनसंख्या संसाधन प्रदेश |
---|---|
गत्यात्मक प्रदेश (Dynamic Regions) | 1. पश्चिम बंगाल डेल्टा 2. लावा प्रदेश 3. तमिलनाडु प्रदेश 4. पंजाब मैदान और गंगा-यमुना दोआब 5. दक्षिणी-पूर्वी कर्नाटक पठार |
अग्रदर्शी या भावी प्रदेश (Prospective Regions) | 6. उत्तरी-पूर्वी पठार 7. गोदावरी बेसिन 8. अरावली पहाड़ी एवं मालवा पठार 9. दक्षिणी-पश्चिमी कर्नाटक पठार 10. ब्रह्मपुत्र घाटी |
समस्याग्रस्त प्रदेश (Problematic Regions) | 11. मध्य-पूर्व गंगा मैदान 12. उड़ीसा तट 13. केरल तट 14. लक्षद्वीप 15. उत्तरी पूर्वी कर्नाटक एवं रायल सीमा 16. राजस्थान मरुस्थल (कैच्छ सहित) 17. उत्तरी-पश्चिमी हिमालय 18. पूर्वी पहाड़ी-पठारी प्रदेश 19. अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह |
गत्यात्मक जनसंख्या-संसाधन प्रदेश (Dynamic Population Resource Regions)
इसके अंतर्गत वे प्रदेश सम्मिलित किये गये हैं जिनके भीतर बड़े-बड़े औद्योगिक एवं नगरीय केन्द्र स्थित हैं और जहाँ वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय ज्ञान का पर्याप्त विकास हुआ है। नगरीय केन्द्रों ने रोजगार के लिए दूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों से अधिक मात्रा में जनसंख्या को आकर्षित किया है जिनके फलस्वरूप नगरीय जनसंख्या में अधिक वृद्धि हुई है और नगरीकरण का स्तर भी अति उच्च पाया जाता है।
गत्यात्मक जनसंख्या प्रदेश के अंतर्गत कुल पाँच प्रदेश सम्मिलित हैं जो इस प्रकार हैं
(1) पश्चिम बंगाल डेल्टा,
(2) लावा प्रदेश,
(3) तमिलनाडु प्रदेश,
(4) पंजाब का मैदान एवं गंगा-यमुना मैदान, और
(5) दक्षिण-पूर्वी कर्नाटक का पठार।
पश्चिम बंगाल के डेल्टा प्रदेश में हुगली औद्योगिक प्रदेश स्थित है जहाँ हुगली नदी के दोनों किनारों पर अनेक औद्योगिक नगर मिलते हैं। हुगली औद्योगिक प्रदेश से लगा हुआ दामोदर घाटी औद्योगिक प्रदेश का विकास हुआ है। इस प्रदेश के नगरीय केन्दों पर दूरवर्ती क्षेत्रों (पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार) तथा समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों से प्रवासित जनसंख्या का संकेन्द्रण होने से यहाँ नगरीकरण का स्तर अधिक ऊँचा है। यहाँ सामाजिक-आर्थिक विकास के उच्च होने के साथ ही जनसंख्या घनत्व और जनसंख्या की वृद्धि दर भी अधिक है।
दकन प्रदेश या लावा प्रदेश भी हुगली डेल्टा के समान ही उद्योग प्रधान और उच्च नगरीकृत क्षेत्र है। इस प्रदेश में अनेक औद्योगिक नगरीय केन्द्र स्थित हैं जिनमें मुम्बई, अहमदाबाद, सूरत, नागपुर, पुणे आदि विशाल औद्योगिक केन्द्र है। इस औद्योगिक प्रदेश में विशेषरूप से मुम्बई-अहमदाबाद अक्ष के समीपवर्ती क्षेत्रों में विकास की सभी संरचनात्मक सुविधाएँ जैसे कच्चा माल, परिवहन सुविधाएँ, पूजी, शक्ति, श्रम आदि उपलब्ध हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों से जनसंख्या का प्रवास नगरीय केन्द्रों (औद्योगिक केन्द्रों) में होने के फलस्वरूप यहाँ नगरीकरण का स्तर अधिक ऊँचा है। यहाँ वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास का स्तर भी काफी उच्च है।
तमिलनाडु प्रदेश में औद्योगिक विकास विकेन्द्रित नगरीय केन्द्रों पर हुआ है। यहाँ जनसंख्या घनत्व उच्च है किन्तु जनसंख्या वृद्धि की दर नीची है। चेन्नई और इसके समीपवर्ती नगरों में औद्योगिक और वाणिज्यिक क्रियाओं का पर्याप्त विकास हुआ है। चेन्नई के अतिरिक्त मदुरई, कोयम्बटूर, तूपजेकोरन आदि अन्य महत्वपूर्ण औद्योगिक-नगरीय केन्द्र हैं जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली जनसंख्या का अधिक संकेन्द्रण पाया जाता है।
पश्चिमोत्तर भारत के मैदानी प्रदेश (पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश) परम्परागत रूप में कृषि प्रधान प्रदेश हैं किन्तु यहाँ विविध प्रकार की औद्योगिक इकाइयाँ भी स्थापित हैं। दिल्ली महानगरीय प्रदेश इसी प्रदेश के मध्य में स्थित है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में जनसंख्या का स्थानान्तरण दिल्ली तथा उसके समीपवर्ती नगरों के लिए हुआ है। अतः यहाँ जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक है और जनसंख्या वृद्धि दर तथा सामाजिक-आर्थिक विकास का स्तर भी ऊँचा है।
दक्षिणी कर्नाटक पठार के अन्तर्गत बंगलौर, मैसूर, कोलार, तुमकुर और मांड्या जनपद आते हैं। औद्योगिक विकास की दृष्टि से यह भारत का एक उन्नत क्षेत्र है जहाँ बंगलौर सहित अनेक औद्योगिक-नगरीय केन्द्र स्थित हैं। इस प्रदेश में जनसंख्या घनत्व अधिक होने के साथ ही यहाँ जनसंख्या वृद्धि दर, नगरीकरण तथा सामाजिक आर्थिक विकास का स्तर भी ऊँचा है।
अग्रदर्शी जनसंख्या-संसाधन प्रदेश (Prospective Population – Resource Regions)
इसके अन्तर्गत सम्मिलित प्रदेशों में उपलब्ध संसाधनों का अभी पर्याप्त विकास नहीं हो पाया है किन्तु भविष्य में शिक्षा, प्रौद्योगिकी, सामाजिक जागरूकता आदि में वृद्धि के साथ भविष्य में यहाँ नगरीय- औद्योगिक विकास तथा सामाजिक-आर्थिक विकास की प्रबल सम्भावनाएँ विद्यमान हैं। सम्भावित विकास वाले इस वर्ग के अंतर्गत पाँच प्रदेश सम्मिलित हैं जो इस प्रकार हैं (1) उत्तरी-पूर्वी पठार,
(2) गोदावरी बेसिन,
(3) आरावली पहाड़ी एवं मालवा पठार,
(4) दक्षिणी-पश्चिमी कर्नाटक पठार, और
(5) ब्रह्मपुत्र घाटी
उत्तरी-पूर्वी पठार के अंतर्गत झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के संलग्न पठारी क्षेत्र आते हैं जहाँ खनिज संसाधनों के विपुल भंडार स्थित हैं। इस क्षेत्र में कोयला, लौह अयस्क, मैंगनीज, अभ्रक, डोलोमाइट, चूना पत्थर आदि खनिजों के विशाल भंडार हैं। इन संसाधनों का उत्खनन और उपयोग अभी काफी कम हो पा रहा है किन्तु भविष्य में तकर्नीकी विकास होने पर यह प्रदेश देश का अग्रणीय औद्योगिक प्रदेश बन सकता है।
गोदावरी बेसिन के अंतर्गत तेलंगाना पठार तथा आंध्र प्रदेश का तटीय भाग सम्मिलित है जहाँ कोयला, लोहा आदि कई खनिज पदार्थों के पर्याप्त भंडार पाये जाते हैं। जब इन खनिज संसाधनों का पर्याप्त उपयोग होने लगेगा, इस प्रदेश का सामाजिक, आर्थिक स्तर काफी उच्च हो सकता है।
अरावली पहाड़ी क्षेत्र तथा उससे संलग्न मालवा पठार (पश्चिमी मध्य प्रदेश) पर तांबा, सीसा, लिग्नाइट, अभ्रक, जिप्सम, चूना पत्थर, नमक, जिंक आदि खनिज पदार्थों के पर्याप्त भण्डार स्थित हैं लेकिन अभी इनका अधिक खनन नहीं किया जाता है किन्तु भविष्य में इसकी सामाजिक-आर्थिक उन्नति की प्रबल सम्भावनाएँ विद्यामान हैं। यहाँ जनसंख्या का घनत्व निम्न है और जनसंख्या वृद्धिदर और सामाजिक-आर्थिक विकास का स्तर मध्यम प्रकार का है।
दक्षिणी-पश्चिमी कर्नाटक पठार पर खनिज संसाधनों का प्रचुर भंडार है तथा जलविद्युत विकास की प्रबल संभावना है। इन संसाधनों के उपयोग से इस क्षेत्र में लोहा एवं इस्पात, सीमेंट, धातु के सामानों से सम्बन्धित उद्योग धन्धे विकसित हो सकते हैं जिससे सामाजिक आर्थिक स्तर में उत्थान होगा।
ब्रह्मपुत्र घाटी में पेट्रोलियम, कोयला तथा वन संसाधन के प्रचुर भण्डार हैं जिनके आधार पर यहाँ औद्योगिक विकास की बड़ी सम्भावनायें विद्यमान हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल के सघन बसे हुए ग्रामीण क्षेत्रों से आकर बड़ी संख्या में लोग ब्रह्मपुत्र घाटी में बस गये हैं जो मुख्यतः तेल शोधन शालाओं, निर्माण कार्य, कृषि कार्यों तथा वन विभाग में कार्य करते हैं। इस प्रदेश में जनसंख्या घनत्व अधिक है और जनसंख्या वृद्धि दर बहुत ऊँची है किन्तु सामाजिक-आर्थिक विकास का स्तर मध्यम प्रकार का है।
समस्याग्रस्त जनसंख्या-संसाधन प्रदेश (Problematic Population-Resource Regions)
समस्याग्रस्त प्रदेश के अंतर्गत कुल 9 प्रदेश सम्मिलित हैं जो भौतिक तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों की दृष्टि से अधिक भिन्न और देश के अलग-अलग भागों में स्थित हैं। ऐसे कुछ प्रदेशों में जनसंख्या का घनत्व अति उच्च है तो कुछ में अति निम्न। इसी प्रकार कुछ प्रदेशों में जनसंख्या वृद्धि तेजी से हो रही है तो कुछ में जनसंख्या वृद्धि दर निम्न है।
केरल को छोड़कर अन्य प्रदेशों का सामाजिक-आर्थिक स्तर निम्न है और नगरीकरण का स्तर भी काफी नीचा है। इसके अंतर्गत सम्मिलित 9 प्रदेश हैं:-
(1) मध्यपूर्व गंगा मैदान,
(2) उड़ीसा तट,
(3) केरल तट,
(4) लक्षद्वीप,
(5) उत्तरी-पूर्वी कर्नाटक एवं रायलसीमा,
(6) राजस्थान मरुस्थल एवं कच्छ प्रदेश,
(7) उत्तरी-पश्चिमी हिमालय,
(8) पूर्वी पहाड़ी-पठारी प्रदेश, और
(9) अंडमान एवं नीकोबार द्वीपसमूह
ऐसे कुछ प्रदेश अति जनसंख्या एवं जनसंख्या विस्फोट की समस्या से जूझ रहे हैं तो कुछ संसाधन अभाव एवं अपर्याप्तता के शिकार हैं। कुछ प्रदेशों में अवसंरचनात्मक सुविधाओं, कुशल श्रमिकों, उन्नत तकनीक, शिक्षा आदि के अभाव के कारण भी सामाजिक-आर्थिक स्तर अत्यंत निम्न है। कई प्रदेश पर्यावरणीय प्रतिकूल दशाओं के कारण अत्यंत पिछड़े हुए हैं।
मध्य-पूर्व गंगा मैदान के अंतर्गत पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कृषि प्रधान तथा सघन जनसंख्या वाले प्रदेश सम्मिलित हैं। कृषि भूमि पर जनसंख्या का दबाव अधिक होने के कारण यहाँ व्यापक बेरोजगारी, निर्धनता, अशिक्षा आदि की उपस्थिति है और सामाजिक-आर्थिक विकास का स्तर निम्न है। रोजगार की खोज में इस प्रदेश से ग्रामीण जनसंख्या का प्रवास दूरवर्ती नगरीय केन्द्रों के लिए होता रहा है। तीव्र जनसंख्या वृद्धि, प्रति व्यक्ति कृषि भूमि की अल्पता, अल्प औद्योगिक विकास आदि कारणों से यह एक समस्याग्रस्त प्रदेश बन गया है।
उड़ीसा तट भी एक कृषि प्रधान प्रदेश है जहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक है और जनसंख्या वृद्धि दर उच्च है किन्तु औद्योगिक विकास काफी सीमित है। यहाँ सामाजिक-आर्थिक विकास का स्तर भी नीचा है।
केरल तट (मालाबार तट) एक कृषि प्रधान प्रदेश है जहाँ की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण है। यह देश के सर्वाधिक सघन प्रदेशों में से एक है जहाँ जनसंख्या वृद्धि दर और सामाजिक-आर्थिक स्तर दोनों उच्च हैं। औद्योगिक पिछड़ेपन और कृषि पर अधिक निर्भरता के परिणामस्वरूप यह अति जनसंख्या की श्रेणी में आता है और जनसंख्या विस्फोट की स्थिति में पहुँच गया है। लक्षद्वीप में संसाधनों के अभाव, भूमि की कमी तथा देश की मुख्य भूमि से काफी दूर समुद्र में स्थित होने के कारण इसके विकास की गति अत्यंत मंद रही है।
उत्तरी-पूर्वी कर्नाटक एवं रायल सीमा कृषि, उद्योग आदि सभी प्रकार से पिछड़ा क्षेत्र है। वर्षा की कमी और मिट्टी के कम उपजाऊ होने के कारण यहाँ कृषि का भी विकास बाधित रहा है। यहाँ जनसंख्या घनत्व, जनसंख्या वृद्धि दर और सामाजिक-आर्थिक स्तर सभी काफी नीचा है।
राजस्थान मरुस्थल वर्षा के अभाव एवं सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण कृषि के लिए अनुपयुक्त रहा है। यहाँ औद्योगिक विकास भी बहुत सीमित है। कच्छ प्रदेश दलदली तथा लवणयुक्त मिट्टी के कारण लगभग कृषिविहीन प्रदेश है। उत्तरी-पश्चिमी हिमालय प्रदेश के अंतर्गत जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तरांचल के पर्वतीय भाग आते हैं जहाँ कृषि के लिए भूमि बहुत सीमित है और अत्यधिक ऊँचाई नीचाई के कारण परिवहन सुविधाओं की कमी है। औद्योगिक विकास के अभाव में यहाँ सामान्य जीवन स्तर निम्न है और कृषि योग्य भूमि पर जनसंख्या का दबाव अधिक है।
पूर्वी पहाड़ी-पठारी प्रदेश में जनसंख्या का घनत्व और सामाजिक-आर्थिक विकास स्तर दोनों निम्न है। यहाँ कृषि और उद्योग दोनों अत्यंत पिछड़ी अवस्था में हैं। यहाँ की जनसंख्या आदिवासी है जो प्राचीन एवं परम्परागत ढंग से कृषि, आखेट आदि कार्य करती है और अत्यंत पिछड़ा जीवन यापन करती है। इसके अंतर्गत, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैण्ड, मणिपुर, त्रिपुरा और मिजोरम राज्य सम्मिलित हैं।
अंडमान एवं नीकोबार द्वीपसमूह बंगाल की खाड़ी में स्थित हैं जहाँ की जलवायु उष्णार्द्र (भूमध्यरेखीय) तथा भूमि वर्षा वनों से आच्छादित है। यहाँ जनसंख्या घनत्व और वृद्धिदर दोनों अत्यंत निम्न हैं।
- विश्व के जनसंख्या-संसाधन प्रदेश (Population Resource Regions of the World)
- प्राचीन भारत में खगोलीय ज्ञान (Astronomical Knowledge in Ancient India)
- यूराल पर्वत (Ural Mountains)
- जनसंख्या के वितरण एवं घनत्व को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Distribution and Density of Population)
- भारत के औद्योगिक प्रदेश (Industrial Regions of India)